सर्वोच्च अदालत ने कहा कि उसकी ओर से 13 दिसंबर 2021 को पारित किए गए आदेश के आधार पर दोनों पक्ष काम करेंगे। ऐसे में मौजूदा विशेष अनुमति याचिका पर विचार करना जरूरी या उचित नहीं है। शीर्ष अदालत ने 13 दिसंबर 2021 को तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) से भाजपा में जाने के बाद उनके खिलाफ दर्ज मामलों में सुवेंदु अधिकारी को गिरफ्तारी से सुरक्षा देने के लिए कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट में पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी की सरकार को झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट की से बीजेपी के नेता और विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी को मिली राहत बरकरार रखने का निर्देश दिया है। पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से दर्ज मामलों में उनकी गिरफ्तारी नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई से मना करते हुए खारिज किया।
राज्य सरकार ने एकल न्यायाधीश के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करने के लिए कलकत्ता उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ के आदेश के खिलाफ एक एसएलपी भी दायर की थी। अदालत ने एसएलपी को खारिज करते हुए कहा कि पक्षकार एसएलपी में पारित 13 दिसंबर 2021 को पारित आदेश ही लागू होगे।
शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय की एकल पीठ के आदेश को पहले ही उसके समक्ष चुनौती दी जा चुकी है और उसने गुण-दोषों को देखते हुए पिछले साल 13 दिसंबर को आदेश सुनाया था।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से पक्ष रख रहीं वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी से कहा कि जब उच्चतम न्यायालय के समक्ष हर तरह की दलील दी चुकी है तो कलकत्ता उच्च न्यायालय की खंडपीठ के समक्ष ‘लेटर पेटेंट अपील’ दाखिल करने का सवाल ही कहां उठता है।
पीठ ने कहा, ‘‘हमने कलकत्ता उच्च न्यायालय की एकल पीठ के इसी आदेश के खिलाफ पिछले साल छह सितंबर के आदेश पर विस्तार से सुनवाई की थी और मामले का निस्तारण किया था. अब हम इस मुद्दे को बार-बार नहीं देख सकते. माफ कीजिए, हम इस पर विचार नहीं कर सकते।”
गुरुस्वामी ने कहा कि पिछले साल 13 दिसंबर को शीर्ष अदालत ने गुण-दोषों के बारे मे कोई राय व्यक्त नहीं की थी। उन्होंने कहा कि ऐसा ही मामला शीर्ष अदालत में लंबित है और इसलिए इस पर नोटिस जारी कर इसे उस मामले के साथ जोड़ सकती है।
पीठ ने कहा कि इस मामले में पश्चिम बंगाल सरकार पहले ही न्यायालय के सामने है और इसलिए वह इस मामले को नहीं जोड़ना चाहेगी।
उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने अधिकारी के अंगरक्षक की मृत्यु की जांच के सिलसिले में राज्य पुलिस की सीआईडी द्वारा जारी सम्मन के खिलाफ अधिकारी को पिछले साल छह सितंबर को अंतरिम राहत प्रदान की। शीर्ष अदालत ने पिछले साल 13 दिसंबर को उच्च न्यायालय के छह सितंबर के आदेश में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया था।