Monday, December 23

सवाल यह है कि श्रीलंका की यह हालत कैसे हुई? इसके कई कारण हैं। कोरोना संकट के कारण देश का टूरिज्म सेक्टर बुरी तरह प्रभावित हुआ। साथ ही सरकारी खर्च में बढ़ोतरी और टैक्स में कटौती ने हालात को और बदतर बना दिया। ऊपर से चीन के कर्ज को चुकाते-चुकाते श्रीलंका की कमर टूट गई। देश में विदेशी मुद्रा भंडार एक दशक के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया। सरकार को घरेलू लोन और विदेशी बॉन्ड्स का भुगतान करने के लिए पैसा छापना पड़ रहा है।

  • श्रीलंका में गहराया वित्तीय और मानवीय संकट
  • महंगाई रेकॉर्ड लेवल पर, सरकारी खजाना खाली
  • देश में 5 लाख लोग गरीबी के मकड़जाल में फंसे
  • चीन का श्रीलंका पर 5 अरब डॉलर से अधिक कर्ज

सारिका तिवारी, डेमोरेटिक फ्रंट॰कॉम -नयी दिल्ली/चंडीगढ़ :

श्रीलंका आज कंगाली की कगार पर खड़ा है। आर्थिक और मानवीय आपदा गहरा गई है। खाने-पीने की वस्तुओं की कीमत आसमान छू रही। रिकॉर्ड स्तर पर महँगाई है। आखिर श्रीलंका की यह हालत हुई कैसे?

दरअसल, श्रीलंका की अर्थव्यवस्था सबसे अधिक पर्यटन पर आश्रित है। इस पर कोरोना महामारी के कारण ग्रहण लग गया है। दूसरी ओर श्रीलंका को चीन से कर्ज लेना काफी महँगा पड़ रहा है। उसके कर्ज चुकाते-चुकाते श्रीलंका आज आर्थिक बदहाली की स्थिति में पहुँच गया है। बताया जा रहा है कि देश का खजाना खाली होने को है और वह जल्द ही दिवालिया हो सकता है।

विश्व बैंक के अनुमानों के मुताबिक महामारी के शुरू होने के बाद से देश में 500,000 लोग गरीबी के मकड़जाल में फंस गए हैं। नवंबर में महंगाई 11.1 फीसदी के रेकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई। इस कारण जो परिवार पहले संपन्न माने जाते थे, उनके लिए भी दो जून की रोटी जुटानी मुश्किल पड़ रही है। देश के अधिकांश परिवारों के लिए अपनी बुनियादी जरूरतों (Basic Needs) को पूरा करना ही भारी पड़ रहा है। देश में इकनॉमिक एमरजेंसी घोषित करने के साथ ही सेना को जरूरी चीजों की आपूर्ति सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी दी गई थी। लेकिन इससे भी लोगों की परेशानी दूर नहीं हुई।

आपने साहूकारी व्यवस्था के बारे में जरूर सुना होगा। जहां ब्याज की दरें इतनी अधिक होती थीं कि कर्ज के तले दबे लोगों को इससे बाहर निकलना लगभग नामुमकिन होता था। लोग कर्ज के इस मकड़जाल में इतना उलझ जाते थे कि मूलधन तो छोड़ दीजिए, ब्याज ही कई पीढ़ियां चुकाती रह जाती थीं।

अब यही साहूकारी तस्वीर ग्लोबल हो गई है। यहां कर्ज लेने वाले हैं श्रीलंका, पाकिस्तान सहित अफ्रीका के गरीब देश, और कर्ज बांटने वाला साहूकार है चीन। ड्रैगन अपनी महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड परियोजना के तहत दुनिया भर के गरीब देशों में इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के नाम पर कर्ज बांट रहा है। गरीब देशों की भ्रष्ट सरकारें चीन का लोन लेकर डिफॉल्ट कर रही हैं, और मौके का फायदा उठाकर चीन इन देशों में जमीनें, द्वीप और हवाई अड्डे हथिया रहा है।

बैंकरप्ट होने की कगार पर श्रीलंका

चीन के कर्ज का मकड़जाल कितना खतरनाक है यह श्रीलंका से ज्यादा कोई नहीं समझ सकता। चीन के हाथों अपना हंबनटोटा द्वीप पहले ही गंवा चुके श्रीलंका पर बैंकरप्ट यानि दीवालिया होने का खतरा पैदा हो गया है। चीन का श्रीलंका पर 5 अरब डॉलर से अधिक कर्ज है। पिछले साल उसने देश में वित्तीय संकट से उबरने के लिए चीन से और 1 अरब डॉलर का कर्ज लिया था। अगले 12 महीनों में देश को घरेलू और विदेशी लोन के भुगतान के लिए करीब 7.3 अरब डॉलर की जरूरत है। यहां महंगाई 11.1 फीसदी के रेकॉर्ड लेवल पर है और सरकारी खजाना तेजी से खाली हो रहा है। उस पर टूरिज्म सेक्टर जो कुल जीडीपी (GDP) में 10 फीसदी की हिस्सेदारी रखता है, वह कोरोना के चलते ठप हो गया है। कोरोना के चलते करीब 2 लाख लोग नौकरी गंवा चुके हैं। वहीं सरकार द्वारा चाय बागानों को आ​र्गेनिक बनाने के सरकार के तुगलकी फरमान ने चाय उद्योग को लगभग समाप्त कर दिया है। 

चीनी कर्ज में उलझा पाकिस्तान

हमारे पड़ोसी श्रीलंका के अलावा पाकिस्तान भी चीन के जाल में फंस चुका है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार, अप्रैल 2021 तक, पाकिस्तान पर अपने विदेशी ऋण का 27.4 प्रतिशत यानी 24.7 बिलियन डॉलर चीन का बकाया है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा जो चीन की महत्वाकांक्षी बीआरआई पहल की प्रमुख परियोजना है, इस परियोजना के लिए पाकिस्तान ने चीन से अथाह कर्ज ले रखा है। पिछले साल जब सऊदी अरब ने पाकिस्तान से अपना कर्ज वापस मांगा तो उसे चीन से मनमाने ब्याज पर कर्ज लेकर सऊदी अरब का पैसा वापस लौटाना पड़ा। 

मेडागास्कर, मालदीव और ताजिकिस्तान भी शिकार

मेडागास्कर, मालदीव और ताजिकिस्तान जैसे एशियाई और अफ्रीकी देश चीनी कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं। चीन ने यहां परियोजनाओं के लिए पानी की तरह पैसा ​बहाया, अब कर्ज न चुकाने पर आंखें तरेरने लगा है। चीन की साजिश सरल है, वो बुनियादी ढांचे के निर्माण का वादा करता है, उलटी-सीधी शर्त रखता है और जब देनदार देश वापस भुगतान करने में विफल रहता है, तो उसे अपनी राष्ट्रीय संपत्ति सौंपने या चीन को रणनीतिक लाभ देने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

युगांडा के एयरपोर्ट पर कब्जा

चीन की कारगुजारियों का ताजा उदाहरण युगांडा है। यहां इस अफ्रीकी देश के इकलौते अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर चीन कब्जे की तैयारी कर रहा है। युगांडा ने 2015 में एक्सपोर्ट-इंपोर्ट बैंक ऑफ चाइना से 200 मिलियन डॉलर के कर्ज का भुगतान करने में विफल रहा है। कर्ज की शर्त के तहत चीन कर्ज न चुकाने की स्थिति में चीनी बैंक इस इंटरनेशनल एयरपोर्ट को अपने कब्जे में ले लेगा। समझौते के अनुसार, चीन का एक्जिम बैंक युगांडा नागरिक उड्डयन प्राधिकरण और सरकारी बहीखातों दोनों का निरीक्षण कर सकता है।

चीन के चंगुल में अफ्रीका

चीनी पंजा अफ्रीका के गरीब देशों पर लगातार कसता जा रहा है। चीन ने 39 अफ्रीकी देशों में बेल्ट एंड रोड पहल (बीआरआई) के तहत चीन ने यहां अरबों डॉलर का कर्ज बांट रखा है। युगांडा की तरह उसका पड़ोसी देश केन्या भी चीन की हरकतों से परेशान है। अगर केन्या 3.2 बिलियन डॉलर के ऋण वाले समझौते में डिफॉल्ट करता है तो उसे अपना सबसे अहम मोम्बासा के बंदरगाह चीन को सौंपना पड़ सकता है। इसके अलावा छोटे से देश जिबूती भी चीन की साहूकारी का उदाहरण है। 2017 में जिबूती का कर्ज उसके सकल घरेलू उत्पाद का 88 फीसदी था। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा चीन का है। चीन वहां अपना पहला विदेशी सैन्य अड्डा बनाने की तैयारी में है।