1.8 लाख मरीजों को किडनी ट्रांस्पलांट की जरूरत, भारत में हर वर्ष सिर्फ 6000 ट्रांस्पलांट ही संभव: डा. एस.के. गोयल
- अल्केमिस्ट अस्पताल पंचकूला ने अंगदानी निपुन जैन के परिवार को सम्मानित किया
- अंग दान करके पांच लोगों को नया जीवन दिया
- 36 वर्षीय निपुन जैन के परिवार ने अंग दान करके पंचकूला में इतिहास रचा
पंचकूला, 29 नवंबर:
अल्केमिस्ट अस्पताल पंचकूला ने 36 वर्षीय सूचना टेक्नोलॉजी माहिर निपुन जैन के परिवार को सम्मानित किया, जिनकी दिमाग की नाड़ी फटने के कारण मौत हो गई थी। तथा परिवार ने उसके अहम अंग दान करने का फैसला किया था। निपुन जैन के अंग दान करने से 5 लोगों को नया जीवन मिला है। अस्पताल मैनेजमेंट ने जैन परिवार द्वारा दिखाए हौंसले तथा बहादुरी को सलाम करते हुए एक सम्मान चिन्ह भेंट किया।
इस सम्मान समारोह में किडनी विभाग के प्रमुख डा. एस.के. शर्मा, सीनियर कंस्लटेंट डा. नीरज गोयल, नेफ्रोलॉजी के सीनियर कंस्लटेंट डा. रमेश कुमार, न्यूरो के माहिर डा. गौरव जैन तथा न्यूरो सर्जन डा. मनीष बुद्धिराजा शामिल थे।
इस अवसर पर संबोधन करते हुए डा. नीरज गोयल ने बताया उन्होंने अल्केमिस्ट अस्पताल पंचकूला में ट्राईसिटी की पहली ऐसी ट्रांस्प्लांट सर्जरी की, जिसमें एक मृतक व्यक्ति के अहम अंग जरूरतमंद मरीजों को लगाकर नया जीवन दिया गया। उन्होंने बताया कि ऐसा पीजीआई चंडीगढ़ के डाक्टरों की मदद के साथ संभव हो सका। डा. गोयल ने बताया कि 31 अक्तूबर को अल्केमिस्ट अस्पताल पंचकूला में निपुन जैन नामक मरीज आया, जिसको ब्रेन हैमरेज के कारण दिमागी तौर पर मृतक घोषित किया गया था। उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य विभाग से सारी कागजी कार्रवाई मुकम्मल करके मृतक के परिवार की सहमती से प्राइवेट क्षेत्र में पहली ट्रांस्प्लांट की कार्रवाई थी, जहां अंगदानी एक मृतक (कैडेवर) था।
डा. गोयल ने बताया कि पीजीआई चंडीगढ़ के डाक्टरों के साथ बातचीत के बाद अल्केमिस्ट अस्पताल पंचकूला से लेकर पीजीआई चंडीगढ़ तक सुरक्षित (ग्रीन) कॉरीडोर बनाया गया तथा चंडीगढ़ पुलिस की मदद के साथ पूरा रास्ता खाली करवाया गया, ताकि तेजी से अंग पीजीआई के दाखिल लाभपात्रियों के पास पहुंच सकें।
डा. एस.के.शर्मा ने इस अवसर पर संबोधन करते हुए कहा कि भारत में अंगों की उपलब्धता न होने के कारण हर वर्ष 5 लाख लोगों की जान चली जाती है। उन्होंने बताया कि निपुन जैन की एक किडनी, पैनक्रियास तथा आंखें जरूरतमंद को ट्रांस्प्लांट करके नया जीवन दिया गया। उन्होंने कहा कि 1.8 लाख मरीजों को किडनी ट्रांस्पलांट की जरूरत होती है, परंतु भारत में हर वर्ष सिर्फ 6000 ट्रांस्पलांट ही संभव हो पाते हैं।
उन्होंने बताया कि 130 करोड़ की आबादी होने के बावजूद हमारे देश में 10 लाख (एक मिलियन) आबादी के पीछे 0.08 अंग दानी मिलते हैं, ऐसा जागरूक की कमी के कारण है।
नेफ्रोलॉजी के सीनियर कंस्लटेंट डा. रमेश कुमार ने बताया कि भारत जीवंत लोगों से किडनी ट्रांस्पलांट के मामले में दुनिया में दूसरे स्थान पर है तथा जहां 95 प्रतिशत किडनी जीवंत लोगों से ट्रांस्प्लांट किए जाते हैं, जबकि कैडेवर (मृतक) से सिर्फ 5 प्रतिशत किडनी ट्रांस्पलांट किए जाते हैं। उन्होंने कहा कि निपुन जैन के परिवार द्वारा अंग दान करने संबंधी लिया गया फैसला मानवता की सेवा में सर्वोत्तम कार्य है। वह निपुन के परिवार की सच्ची श्रद्धा भावना को दिल से सलाम करते हैं।