चन्द्र मोहन ने आशंका जताई है कि सरकार अपनी के हाथों 1 करोड़ रुपया पकड़ा गया


पंचकूला 19 नवम्बर:

हरियाणा के पूर्व उपमुख्यमंत्री चन्द्र मोहन ने कहा कि हरियाणा लोक सेवा आयोग के उप सचिव और हरियाणा सरकार के चहेते एच सी एच अधिकारी अनिल नागर को  एक करोड़ रुपए के साथ पकडे जाने पर तंज कसते हुए कहा कि इससे मनोहर लाल खट्टर और जे जे पी  गठबंधन सरकार का असली चेहरा बेनकाब हो गया है।

     चन्द्र मोहन ने कहा कि इससे बड़ी विडम्बना  हरियाणा प्रदेश के युवाओं के साथ हो नहीं सकती है कि उनको पारदर्शिता के नाम पर मूर्ख बनाया जा रहा है और युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस षड्यंत्र का पर्दाफाश होने से सरकार का असली चेहरा प्रदेश की जनता के सामने उजागर हो गया है।

     उन्होंने कहा कि एक करोड़ रुपए की राशि कोई कम नहीं होती है, जो उसकी अटैची में मिली है। एक एच सी एच अधिकारी जिसका वेतन एक लाख रुपए प्रति महीना से भी कम है। वह मुख्यमंत्री के इशारे के बिना नौकरी लगवाने के नाम पर करोड़ों रुपए एकत्रित नहीं कर सकता है। इस सरकार  से पहले रिश्वत का ऐसा नंगा नाच कभी भी नहीं देखा गया है। एक अदने से अधिकारी की भूमिका की जांच सीबीआई से करवाई जाए ताकि नौकरियों का सच जनता के सामने उजागर हो सके।

      उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री को हरियाणा में, लोक सेवा आयोग का चेयरमैन लगाने के लिए कोई योग्य व्यक्ति नहीं मिला इसलिए राज्य से बाहर के अधिकारी श्री वर्मा को चेयरमैन लगा कर युवाओं का भविष्य बर्बाद करने के लिए डोर उनके हाथ में सौंप दी गई है।

      उन्होंने मांग कि है कि मुख्यमंत्री को नैतिकता का परिचय देते हुए इस मामले की जांच  तुरंत सीबीआई से अविलंब करवाने के आदेश जारी करने चाहिए ताकि जिन योग्य युवाओं के साथ पक्षपात और अन्याय किया गया है उनको न्याय मिल सके।

     चन्द्र मोहन ने कहा कि लोकसेवा आयोग ही नहीं अपितु हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग की कारगुजारियां भी लोगों के सामने आ चुकी है और हरियाणा के इतिहास में भाजपा और जजपा सरकार में पहली बार हुआ है कि हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग  के पेपर बार- बार लीक हो रहें हैं और सरकार के पास इसका कोई ठोस सन्तोष जनक उत्तर नहीं है। उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा कि अगर प्रदेश में यही हालत रहे तो युवाओं में घोर निराशा पैदा होगी और वह भयावह कदम उठाने पर विवश होंगे। ऐसे हालात से निपटने के लिए लोक सेवा आयोग के चेयरमैन को तुरंत त्याग पत्र देने के साथ साथ जितने भी पेपर  इस सरकार के समय में हुए हैं उन सबकी पूरी जांच करवाई जाए ताकि युवाओं को न्याय मिल सके और उनका भविष्य अंधकारमय होने से बचाया जा सके।

     उन्होंने आशंका जताई है कि सरकार अपनी छवि को बचाने के लिए इस मामले को दबाने का प्रयास करेगी ताकि सच्चाई जनता के सामने ना आ सके।

शहीद किसानों के परिवारों को आर्थिक मदद और सरकारी नौकरी दे सरकार- हुड्डा

कहा- किसानों के बाकी मुद्दों पर भी बातचीत करे सरकार

खेती को लाभकारी बनाने की योजना बनाए सरकार- हुड्डा

आंदोलनकारी किसानों पर दर्ज सभी केस लिए जाएं वापिस- हुड्डा

‘पुरनूर’ कोरल, चंडीगढ़:

19 नवंबर, चंडीगढ़। पूर्व मुख्यमंत्री नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने तीन कृषि कानून वापस लिए जाने के फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने इसे किसानों की जीत करार दिया है। हुड्डा का कहना है कि यह किसानों के लंबे संघर्ष और सत्याग्रह की जीत है। उन्होंने कहा कि सरकार को अब किसान के बाकी बचे अन्य मुद्दों पर भी बातचीत करनी चाहिए। साथ ही उसे कृषि को लाभकारी बनाने की योजनाएं बनानी चाहिए। सरकार को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए जिससे किसानों के घाटे को कम किया जाए और उन्हें लाभ पहुंचाया जाए।

हुड्डा ने अपनी मांग को दोहराते हुए कहा कि सरकार की तरफ से आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज किए गए सभी मुकदमे वापस लिए जाने चाहिए। आंदोलन के दौरान शहीद हुए किसान के परिवारों की मदद के लिए भी सरकार को आगे आना चाहिए। जिस तरह पंजाब की कांग्रेस सरकार ने पीड़ित परिवारों को आर्थिक मदद और सरकारी नौकरी दी है। उसी तर्ज पर हरियाणा सरकार को भी ऐलान करना चाहिए। भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि उन्होंने कांग्रेस विधायक दल की तरफ से शहीद किसानों के परिवारों को दो-दो लाख रुपये की आर्थिक मदद दी है और बार-बार सरकार से भी उनकी मदद के लिए अपील की है।

शहीद किसानों के परिवार के सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाए : सुधा

‘पुरनूर’ कोरल, चंडीगढ़ :

हरियाणा महिला कांग्रेस सुधा भारद्वाज ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कानून वापस लेने के निर्णय का स्वागत करते हुए किसानों को बधाई दी। उन्होंने कहा देर आए दुरुस्त आए । सुधा भारद्वाज ने इसे किसानों की जीत बताया।

उन्होंने कहा इतने महीनों से किसान इंसान के लिए संघर्ष कर रहे हैं और बहुत से किसानों को इसी दौरान अपनी जान भी गवानी पड़ी। सुधा भारद्वाज ने केंद्र सरकार और हरियाणा सरकार से मांग की कि किसानों के परिवारों के लिए सरकार को उनके लिए सरकारी नौकरी सहित उचित मुआवजा देना चाहिए

भाजपा उत्तर प्रदेश और पंजाब में पराजय की ओर बढ़ रही है:राठी

कानून हार के डर से वापिस लिए गए: राठी

‘पुरनूर’ कोरल, चंडीगढ़ :

आम आदमी पार्टी के जिले के अध्यक्ष सुरेंद्र राठी ने कृषि कानून की वापसी पर कहा कि राठी ने कहा प्रधानमंत्री मोदी ने मुख्य मुद्दे एम एस पी पर कुछ नहीं कहा जिस पर निर्णय लेना महत्वपूर्ण है।

भाजपा जान चुकी है की उत्तर प्रदेश और पंजाब में आने वाले चुनावों में भाजपा की हार निश्चित है। इसका प्रमाण पिछले दिनों निकायों के चुनाव परिणाम से स्पष्ट होता है। इसीलिए कृषि कानून वापस लिए गए हैं । यह सच भी है धीरे धीरे भाजपा पराजय की ओर बढ़ रही है ।

कृषि के विकास के लिए सरकार वचनबद्ध:रंजीता

‘पुरूर’ कोरल, चंडीगढ़:

हरियाणा प्रदेश भारतीय जनता पार्टी की प्रवक्ता रंजीता मेहता ने सरकार द्वारा उनको वापस लेने लेने पर किसानों को बधाई दी और कहा शायद इन कानूनों के बारे में किसानों को ठीक से समझा नहीं सके और अभी इस मुद्दे पर किसानों के साथ चर्चा की जाएगी ।

रंजीता ने बताया कि सरकार डेढ़ लाख करोड़ सीधे उनके बैंक अकाउंट में डाला गया कृषि के विकास के लिए बजट पाँच गुणा बढ़ाया गया । आने वाले समय में भी कृषि के उत्थान और किसानों के कल्याण के लिए सरकार वचनबद्ध है।

ऋषि क़ानूनों के वापिस लेने पर कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने प्रधान मंत्री की तारीफ की

कांग्रेस से इस्तीफा देते समय कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा था कि यदि किसानों का मुद्दा सुलझ जाता है तो वे भाजपा के साथ गठबंधन के लिए तैयार हैं। तब से कयास लगाए जा रहे थे कि कृषि कानूनों पर केंद्र सरकार बड़ा फैसला ले सकती है। कृषि कानून रद्द करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एलान से पंजाब की सियासत में नई सुगबुगाहट शुरू हो गई है। पंजाब के पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इस फैसले पर खुशी जताते ये साफ किया है कि वे भाजपा के साथ काम करने को उत्सुक हैं। इस बयान के बाद ये साफ हो गया है कि पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 में भाजपा और कैप्टन मिलकर लड़ेंगे। ऐसे में पंजाब विधानसभा चुनाव में नया गठबंधन बनने की मार्ग प्रशस्त हो गया।

नरेश शर्मा ‘भारद्वाज’, चंडीगढ़ :

श्री गुरु नानक देव जी के प्रकाश उत्सव के मौके पर तीनों नए कृषि कानून रद्द करने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा पर पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने खुशी जताई है। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पीएम का शुक्रिया अदा किया है उन्होंने कहा कि वे भाजपा से सीट शेयरिंग करके विधानसभा चुनाव में उतरेंगे। कैप्टन ने पहले ही कहा था कि जैसे ही कृषि कानून रद्द होंगे और किसान आंदोलन खत्म होगा, तो वे भाजपा के साथ मिलकर चुनावी ताल ठोकेंगे। अब यह बात तय भी हो गई है कि सूबे में साढ़े तीन महीने बाद होने वाले चुनाव कैप्टन भाजपा के साथ मिलकर ही लड़ेंगे।

तीनों नए कृषि कानून रद्द करने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा पर पंजाब के पूर्व CM कैप्टन अमरिंदर सिंह ने खुशी जताई है। उन्होंने कहा कि वे भाजपा से सीट शेयरिंग करके विधानसभा चुनाव में उतरेंगे। कैप्टन ने पहले ही कहा था कि जैसे ही कृषि कानून रद्द होंगे और किसान आंदोलन खत्म होगा, तो वे भाजपा के साथ मिलकर चुनावी ताल ठोकेंगे। अब यह बात तय भी हो गई है कि सूबे में साढ़े तीन महीने बाद होने वाले चुनाव कैप्टन भाजपा के साथ मिलकर ही लड़ेंगे।

कैप्टन अमरिंदर सिंह ने खुशी जताई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की बात सुनकर उनकी चिंता समझी और कृषि कानून रद्द करने की घोषणा कर दी। उन्होंने कहा, ‘मैं लगातार इस मुद्दे को उठाता रहा और केंद्र सरकार से मिलता रहा। प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा, ‘पंजाब में आज हमारे लिए यह बहुत बड़ा दिन है। मैं इस मामले को एक साल से ज्यादा समय से उठा रहा था। इसको लेकर प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिला। उनसे गुजारिश करता रहा कि वे अन्नदाता की आवाज सुनें। बहुत खुशी है कि उन्होंने किसानों की बात सुनी और हमारी चिंताओं को समझा

स्वास्थ्य सुविधाओं की दृष्टि से सरकारी तंत्र सवालों के घेरे में,जनता पर पड़ रही दोहरी मार

:– स्वास्थ्य सुविधाओं की दृष्टि से धरातल पर कार्य करने की है अति आश्यकता
:-स्वास्थ्य सुविधाओं के आभाव में जनता की अपेक्षाओं से हो रहा खिलवाड़
:-ड़ेंगू से जूझ रही आम जनता को स्वास्थ्य सुविधाओं की दरकार
:-स्वास्थ्य सुविधाओं की दृष्टि से सरकारी तंत्र सवालों के घेरे में,जनता पर पड़ रही दोहरी मार
:-जनता को संपूर्ण स्वास्थ्य सुविधाएं देने में विफ़ल होती शासन व्यवस्था
:- स्वास्थ्य सुविधाओं की दृष्टि से धरातल पर कार्य करने की है अति आवश्यकता
:- बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए सरकार की प्रतिबद्धता अपेक्षित

सुशिल पंडित

किसी भी देश की लोकतंत्र स्वस्थ व सुदृढ़ होना वहाँ की जनता को मिल रही मूलभूत सुविधाओं पर निर्भर करता है। जनता की अपेक्षाओं और भावनाओं पर खरा उतरना मौजूदा शासन व्यवस्था की नैतिक जिम्मेदारी होती है। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, यहां के सविधान में लोगो को राज्य से आधारभूत सुविधाओं की मांग की गारंटी दी गई है। भारतीय संविधान के अनुछेद 21ए में मौलिक अधिकार का प्रावधान है। इन अधिकारों की श्रखला में स्वास्थ्य सुविधाओं को मुख्य रूप से अंकित किया गया है परंतु यह अधिकार आम व अति निम्न स्तर के व्यक्ति की पहुँच से कोसो दूर दिखाई दे रहा है। यदि विकसित देशों की बात करें तो वहां की सरकारों के द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के लिए कुल खर्च का 80 से 90 प्रतिशत सरकार वहन करती है और यह गारंटी सवैधानिक रूप से सार्वजनिक सुविधाओं के माध्यम से प्रदान की जा रही हैं परंतु भारत में निर्धारित वर्ग के अलावा अन्य जरुरतमंद के पास यह अधिकार नही है। वर्तमान परिस्थितियों में भारत की जनता ड़ेंगू जैसी बीमारी की चपेट में है, यदि स्पष्ठ शब्दों में कहा जाए कि देश में डेंगू का कहर है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। सरकारी आंकड़ो की बात करें तो ड़ेंगू के बहुत अधिक केस नही है परंतु यदि वास्तविकता की दृष्टि से और निजी अस्पतालों व प्रयोगशालाओं की रिपोर्ट के आधार पर हर तीसरा बीमार व्यक्ति वर्तमान में डेंगू का मरीज है। सरकारी अस्पतालों में बेड का न मिलना और निजी अस्पतालों की रोजाना बढ़ती भीड़ से मौजूद सरकार की कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वभाविक से लग रहा है।स्वास्थ्य सुविधाओं की दृष्टि से वर्तमान में देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली का बुरा हाल है, वही दूसरी ओर निजी अस्पतालों में निरन्तर सुविधा का विस्तार जारी हैं, जिसके चलते लोंगो का रुझान निजी अस्पतालों की ओर होना स्वभाविक हो चुका है। चौथे राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वे के मुताबिक, 56 फीसदी शहरी व 49 फीसदी ग्रामीण लोगों ने निजी स्वास्थ्य सेवाओं का विकल्प चुना है। अत: देश की स्वास्थ्य सुविधाओं में सार्वजनिक व निजी दोनों की भूमिका की जांच करने की आवश्यकता हैं। निजी अस्पतालों की मनमानी और सरकारी अस्पतालों में व्यापक स्तर पर सुविधाओं का आभाव जनता की अपेक्षाओं के प्रतिकूल माना जा सकता है। सरकार के द्वारा निजी अस्पतालों के लिए कोई ऐसी नीति भी नही तैयार की गई जिसके तहत आम आदमी पर आर्थिक बोझ न पड़े। डेंगू को लेकर जहां सरकार के सभी प्रयास विफल नजर आ रहे हैं वहीं आम आदमी निजी अस्पतालों की लूट का शिकार होता दिखाई दे रहा है। मौजूद हालात को देखते हुए सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली पर जनता का विश्वास न होना भी निजी अस्पतालों की भीड़ का बड़ा कारण माना जा सकता है। वस्तुतः निजी अस्पतालों द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधाओं और सरकारी अस्पतालों में पूर्णतः उपचार के अभाव चलते भी लोंगो का रुझान निजी क्षेत्र से मिलने स्वास्थ्य सुविधाओं की ओर हो रहा है अब इस डर कहे या मजबूरी? दरअसल कोरोना के कारण जनता डर के साये में जीने के लिए विवश हैं वहीं मौसम के परिवर्तन से उतपन्न हुई ड़ेंगू वायरल बुखार ने आम आदमी को शारीरिक,मानसिक व आर्थिक रूप से निर्बल कर दिया है। सरकार के द्वारा स्वास्थ्य सुविधाओं की व्यापक व्यवस्थाओं का ढिंढोरा पीटा जा रहा है परंतु जब बात आम आदमी की जान की आती है तो सभी स्वास्थ्य सुविधाएं छू मंतर क्यों हो जाती है? देश के की राज्यों में डेंगू का कहर बढ़ता ही जा रहा है, राजधानी दिल्ली में एक हफ़्ते में एक हजार से अधिक मरीजों संख्या होना चिंता का विषय बना हुआ है।वही उतरप्रदेश में 2016 के बाद सबसे अधिक है यहां ड़ेंगू के मरीजों की संख्या 23 हजार से अधिक बताई जा रही हैं। पंजाब में हालात बद से बदत्तर बने है यहां 60 से अधिक मौते हो चुकी हैं, जम्मूकश्मीर में मरीज़ो की संख्या 1100 से अधिक बताई जा रही है। राजस्थान 13 हजार से अधिक मरीज़ ड़ेंगू पीड़ित पाए गए। अभी तक देश में लगभग 1 लाख 20 हज़ार मरीज़ ड़ेंगू से प्रभावित है। वास्तविकता के आधार पर ड़ेंगू का ईलाज सरकारी अस्पतालों में संभव न होने के कारण लोंगो को मज़बूरन निजी अस्पतालों की ओर रुख करना पड़ रहा है। सरकार के द्वारा शिक्षा,स्वास्थ्य व रोजग़ार को प्राथमिकता देने की बात चुनावी रैलियों और जनसभाओं में करना आम बात हो चुकी है परंतु धरातल के पटल पर कार्य करना सरकार और सम्बन्धित विभागों के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नही है। शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं के आभाव का लाभ निजी क्षेत्र में कार्य कर रहे लोग उठा रहे है,निजी अस्पतालों में एक दिन के ईलाज का मतलब है कि आम आदमी की एक महीने की तनख्वाह का स्वाह हो जाना परन्तु अपनी व अपनो की जान के बदले हर व्यक्ति को यह सौदा सस्ता ही लगता है। सरकार के द्वारा ड़ेंगू मरीज़ों के आंकड़ो की जादूगरी और विपक्षी दलों का राजनैतिक रोटियां सेंकने का खेल बदस्तूर जारी है परंतु आम आदमी के जीवन की महत्ववता न के बराबर है।2014 के चुनाव के बाद मौजूदा सरकार के प्रतिनिधि प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी जी ने कार्यभार संभालने के पाश्चत एक राष्ट्रव्यापी सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का अनावरण किया था जिसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य गारंटी योजना के नाम से जाना जाता हैं। जिसका मुख्य लक्ष्य देश के प्रत्येक नागरिक को मुफ्त दवाएं,नैदानिक उपचार और गंभीर बीमारियों के लिए बीमा उपल्ब्ध करना था परंतु वर्तमान में यह योजना कागज़ी दस्तावेजो की शोभा बढ़ा रही हैं। सरकार के पास डेंगू और मलेरिया से संबंधित सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं।  पिछले कई दशकों में डेंगू के मरीज़ों की संख्या तीन गुना बढ़ना देश की स्वास्थ्य प्रणाली पर सीधे तौर पर प्रश्नचिन्ह मेंआज सकता है। अमेरिका की ब्रांडेस यूनिवर्सिटी के डोनाल्ड शेपर्ड के अक्टूबर 2014 में जारी शोध पत्र के अनुसार भारत विश्व में सबसे अधिक डेंगू प्रभावित देशों मे शामिल हो चुका है जो चिंता का विषय है। एक सर्वेक्षण के अनुसार 2012 में दक्षिण एशिया क्षेत्र में डेंगू के लगभग दो लाख नब्बे हजार मामले दर्ज हुए थे, जिसमें करीब 20 प्रतिशत भागीदारी भारत की थी वतर्मान में जब हर वर्ष डेंगू के मामले बढ़ रहे हों, तो यह गंभीर समस्या हो सकती है। वर्ष 2010 में डेंगू के 20 हजार से ज्यादा मामले दर्ज हुए, जो बढ़कर 2012 में 50 हजार और 2013 में 75 हजार हो गए। राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम के आंकड़ों के अनुसार, दिसंबर 2014 में 40 हजार केस दर्ज हुए थे। वर्तमान में यह संख्या दोगुनी से भी अधिक हो चुकी है। देश की खराब स्वास्थ्य सेवाओं और असंतुलित डॉक्टर-मरीज अनुपात को देखते हुए इस संख्या को कम करना सरकार और सम्बन्धित विभागों के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। देश में प्रति 1800 मरीजों पर एक चिकित्सक की उपलब्धता सराकर की कथनी और करनी का अंतर स्पष्ठ करने के लिए प्रयाप्त होगा। देश के 10 बड़े चिकितसा संस्थान इस क्षेत्र में निरंतर प्रयास कर रहे हैं परंतु अभी तक सफलता नही मिल सकी और न ही प्रयाप्त संसाधन उपलब्ध हो सके हैं।वर्तमान परिदृश्य में डेंगू मलेरिया जैसी बीमारी को जड़मूल से समाप्त करना संभव नही होगा परन्तु इसके लिए व्यापक पैमाने पर स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना सराकर की जिम्मेदारी बनती हैं। भारत मे सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली बहुत अच्छी न होने के कारण आज हमारा देश अपने पड़ौसी देशों से पिछड़ता दिखाई दे रहा है। अभी कुछ समय पहले आई एक वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार स्वास्थ्य सुविधाओं की दृष्टि से भारत 194 देशों में 145 वे स्थान पर है स्पष्ठ तौर पर यदि कहा जाए तो भारत स्वास्थ्य संसाधनों की दृष्टि से पड़ौसी देश श्रीलंका,भूटान और बंगलादेश से भी पिछड़ा हुआ है जो भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली की गंभीरता को प्रदर्शित करने के लिए क़ाफी होगा और यही कारण है कि लोंगो को निजी अस्पतालों की शरण मे जाना पड़ता है। इस लचर व्यवस्था से जहाँ आम आदमी पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ बढ़ रहा है वहीं आम वर्ग स्वास्थ्य सुविधाओं का आभाव झेलने के लिए विवश हो रहा है। इस बीमारी के फैलने का कारण जहाँ स्वंम की लापरवाहीं है वहीं सरकार द्वारा निर्धारित किए गए विभागों की सुस्त कार्यप्रणाली भी मुख्य कारण है। सरकार के द्वारा प्रतिवर्ष इस प्रकार की बीमारियों की रोकथाम हेतु अरबों रुपए खर्च किए जा रहे हैं लेकिन वस्तविक रूप से कार्य करने के अभाव के चलते हर वर्ष लाखों लोग इन बीमारियों की चपेट में आते हैं। जनसहभागिता की कमी और विभागीय अधिकारियों की लापरवाही के कारण हर वर्ष मरीज़ों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही हैं। इस मच्छर जनित बीमारी से जहाँ आम आदमी का बजट बिगड़ रहा है वहीं देश की अर्थव्यवस्था को भी प्रतिवर्ष लगभग 13000 हजार करोड़ रुपए का नुक्सान होता है।बहरहाल सरकारी तंत्र और मौजूदा शासन को आगे दौड़ पीछे छोड़ की नीति को त्याग कर धरातल पर कार्य करना होगा। जनता की आवश्यकताओं और अपेक्षाओं पर आधारित व्यवस्था प्रदान करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता बहुत महत्व रखती है। जनता के द्वारा विभिन्न प्रकार के टेक्सिस के माध्यम से अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी पूर्ण की जा रही और इसके बदले में मिलने वाली सुविधाओं की दरकार भी जनता ही करेगी। देश की अधिकतर जनसंख्या सामाजिक,आर्थिक व अन्य कारणों से निजी स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ लेने में असक्षम हैं, साथ ही एक लोककल्याणकारी व्यवस्था का यह दायित्व बनता है कि देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा का मजबूत आधारभूत ढांचा तैयार करे जिसमें कोई भी व्यक्ति आसानी व शीघ्र स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ ले सके। 

प्रधान मंत्री मोदी ने हार मान कर तीनों कृषि क़ानूनों को वापिस करने का वादा किया

पीएम मोदी ने कहा, ‘हमारी सरकार, किसानों के कल्याण के लिए, खासकर छोटे किसानों के कल्याण के लिए, देश के कृषि जगत के हित में, देश के हित में, गांव गरीब के उज्जवल भविष्य के लिए, पूरी सत्य निष्ठा से, किसानों के प्रति समर्पण भाव से, नेक नीयत से ये कानून लेकर आई थी. लेकिन इतनी पवित्र बात, पूर्ण रूप से शुद्ध, किसानों के हित की बात, हम अपने प्रयासों के बावजूद कुछ किसानों को समझा नहीं पाए।’

उन्होंने कहा, ‘कृषि अर्थशास्त्रियों ने, वैज्ञानिकों ने, प्रगतिशील किसानों ने भी उन्हें कृषि कानूनों के महत्व को समझाने का भरपूर प्रयास किया. आज मैं आपको, पूरे देश को, ये बताने आया हूं कि हमने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का निर्णय लिया है। इस महीने के अंत में शुरू होने जा रहे संसद सत्र में, हम इन तीनों कृषि कानूनों को Repeal करने की संवैधानिक प्रक्रिया को पूरा कर देंगे।’

‘पुरनूर’ कोरल, चंडीगढ़/नयी दिल्ली:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरु नानक जयंती के मौके पर बड़ा ऐलान किया और तीनों कृषि कानूनों को वापस ले लिया। बीते कई महीनों से जारी किसानों के आंदोलन को देखते हुए सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया। देश के नाम संबोधन में पीएम मोदी ने किसानों से अब घर लौटने की अपील की और कहा कि इस कानून को खत्म करने प्रक्रिया शीतकालीन सत्र में शुरू हो जाएगी। पीएम मोदी ने कहा कि हमारी तपस्या में ही कमी रही होगी, जिसकी वजह से हम कुछ किसानों को नहीं समझा पाए। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा ‘पांच दशक के अपने सार्वजनिक जीवन में मैंने किसानों की मुश्किलों, चुनौतियों को बहुत करीब से अनुभव किया है।’

कृषि कानूनों के संदर्भ में पीएम मोदी ने कहा कि बरसों से ये मांग देश के किसान, देश के कृषि विशेषज्ञ, देश के किसान संगठन लगातार कर रहे थे। पहले भी कई सरकारों ने इस पर मंथन किया था। इस बार भी संसद में चर्चा हुई, मंथन हुआ और ये कानून लाए गए। किसानों की स्थिति को सुधारने के इसी महाअभियान में देश में तीन कृषि कानून लाए गए थे। मकसद ये था कि देश के किसानों को, खासकर छोटे किसानों को, और ताकत मिले, उन्हें अपनी उपज की सही कीमत और उपज बेचने के लिए ज्यादा से ज्यादा विकल्प मिले। लेकिन इतनी पवित्र बात, पूर्ण रूप से शुद्ध, किसानों के हित की बात, हम अपने प्रयासों के बावजूद कुछ किसानों को समझा नहीं पाए। कृषि अर्थशास्त्रियों ने, वैज्ञानिकों ने, प्रगतिशील किसानों ने भी उन्हें कृषि कानूनों के महत्व को समझाने का भरपूर प्रयास किया। 

उन्होंने आगे कहा कि हमारी सरकार, किसानों के कल्याण के लिए, खासकर छोटे किसानों के कल्याण के लिए, देश के कृषि जगत के हित में, देश के हित में, गांव गरीब के उज्जवल भविष्य के लिए, पूरी सत्य निष्ठा से, किसानों के प्रति समर्पण भाव से, नेक नीयत से ये कानून लेकर आई थी। आज मैं आपको, पूरे देश को, ये बताने आया हूं कि हमने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का निर्णय लिया है। इस महीने के अंत में शुरू होने जा रहे संसद सत्र में, हम इन तीनों कृषि कानूनों को खत्म करने की संवैधानिक प्रक्रिया को पूरा कर देंगे।

पीएम मोदी ने कहा कि एमएसपी को और अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए, ऐसे सभी विषयों पर, भविष्य को ध्यान में रखते हुए, निर्णय लेने के लिए, एक कमेटी का गठन किया जाएगा। इस कमेटी में केंद्र सरकार, राज्य सरकारों के प्रतिनिधि होंगे, किसान होंगे, कृषि वैज्ञानिक होंगे, कृषि अर्थशास्त्री होंगे। उन्होंने कहा कि आज ही सरकार ने कृषि क्षेत्र से जुड़ा एक और अहम फैसला लिया है। जीरो बजट खेती यानि प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए, देश की बदलती आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर क्रॉप पैटर्न को वैज्ञानिक तरीके से बदलने के लिए। 

Panchang

पंचांग, 19 नवम्बर 2021

नोटः कार्तिक पूर्णिमा, श्री गुरू नानकदेव जयंती व ग्रस्तोदय खण्डग्रास चन्द्रग्रहण, मेला पुष्कर तीर्थ (राजस्थान)

विक्रमी संवत्ः 2078, 

शक संवत्ः 1943, 

मासः कार्तिक़, 

पक्षः शुक्ल पक्ष, 

तिथिः पूर्णिमा दोपहरः 02.28 तक है, 

वारः शुक्रवार।

विशेषः आज पश्चिम दिशा की यात्रा न करें। शुक्रवार को अति आवश्यक होने पर सफेद चंदन, शंख, देशी घी का दान देकर यात्रा करें।

 नक्षत्रः कृतिका प्रातः 04.29 तक है, 

योगः परिघ रात्रि काल 03.51 तक, 

करणः बव, 

सूर्य राशिः वृश्चिक,  चंद्र राशिः मेष, 

राहु कालः प्रातः 10.30 बजे से दोपहर 12.00 बजे तक, 

सूर्योदयः 06.51,  सूर्यास्तः 05.22 बजे।