भक्ति – अध्यातम ही नहीं अपितु व्यापार वाणिज्य से भी परिपूर्ण करते हैं शारदीय नवरात्रे
धर्म संस्कृति डेस्क, चंडीगढ़:
पित्र पक्ष में अपने पित्रों को तृप्त कर खुशी खुशी विदा करते हैं वहीं से शारदीय नवरात्रों का उल्लास त्योहारों की एक निरंतर लड़ी के आगमन की सूचना भी लाता है। आषाढ़ मास की आखिरी मूलाधार के पश्चात दक्षिणायन होते रश्मीरथी आर्याव्रत की भूमि पर अपनी उग्र उष्णता कम कर सौम्य होते जाते हैं मानों वह भी नवरात्रों में माँ भगवती का स्वागत कर रहे हों।
शारदीय नवरात्रि केवल मात्र शक्ति पूजन ही नहीं है, यह धन – धन्य से परिपूर्ण करने वाला समय है। जहां एक ओर हम माता के नौं रूपों की भक्ति करते हैं वहीं हमरे खलिहानों को भरने का समय भी होता है। नयी फसलें ज्वार , बाजरा , धान , मक्का , मूंग , सोयाबीन , लोबिया , मूंगफली , कपास , जूट , गन्ना , तम्बाकू , आदि से हमारे व्यापार – वाणिज्य में नवप्राणों का उत्सर्ग होता है। नया धान आने से कुटाई छनाई (शेल्लर उद्योग) गतिमान होता है वहीं गुड शक्कर और खांडसेरी की भट्टियाँ भी जल उठतीं हैं। चहुं ओर उल्लास का साम्राज्य दिखाई पड़ता है।
आज अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि (07 अक्तूबर) से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होती है। शारदीय नवरात्र का व्रत सभी महिलाएं और पुरुष कर सकते हैं। अगर कोई व्यक्ति खुद व्रत ना कर सके तो वह अपनी पुत्र या ब्राम्हण को अपना प्रतिनिधि बनाकर व्रत को पूर्ण करवा सकता है।