बहुला गणेश चतुर्थी व्रत
हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को बहुला चतुर्थी व्रत का पर्व मनाया जाता है। इसे बहुला गणेश चतुर्थी भी कहते हैं। इस दिन महिलाएं संतान की लंबी आयु की कामना के लिए व्रत और उपवास रखती हैं।
धर्म/संस्कृति डेस्क, डेमोक्रेटिकफ्रंट॰कॉम – चंडीगढ़ :
सनातन धर्म में भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी पर संकष्टी बहुला श्रीगणेश चतुर्थी मनाई जाती है। हिंदू धर्म के व्रत पर्वों में इसका अपना एक विशेष स्थान है। इस बार गणेश चतुर्थी व्रत 25 अगस्त को पड़ रही है। चतुर्थी तिथि 25 अगस्त को शाम 4:26 बजे लग रही है जो 26 अगस्त को शाम 5:17 तक रहेगी। वहीं चंद्रोदय रात्रि 8:27 बजे होगा।
प्रातः नित्य क्रिया से निवृत्त हो स्नान कर सबसे पहले हाथ में जल-अक्षत पुष्प लेकर संकल्प करना चाहिए। संकल्प में अमुक मास, पक्ष, तिथि का उच्चारण कर पुत्र-पौत्र, धन-विद्या-ऐश्वर्या व सभी प्रकार के कष्टों से निवृत्ति के लिए संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत करूंगा या करूंगी। गणेश जी का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन कर दिन भर व्रत रहें। सायंकाल चंद्रोदय के समय गणेश जी का पुनः पूजन और चंद्रमा का पूजन कर भगवान गणेश जी को नैवेद्य में लड्डू, दूर्वा, काला तिल, गुड़ समेत पांच प्रकार के ऋतु फल आदि समर्पित करें। शिवरात्रि में चंद्रोदय होने पर यथा विधि चंद्रमा का पूजन करें। क्षीर सागर आदि मंत्रों से अर्घ्य दान करना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि खीर समुद्र से उत्पन्न है, सुधा रूपा है। निशाकर आप रोहिणी सहित मेरे दिए हुए भगवान गणेश की प्रेम को बढ़ाने वाले अर्घ्य को ग्रहण करें। रोहिणी सहित चंद्रमा के लिए नमस्कार है। ऐसा करने से व्रतियों की सभी तरह की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। पुत्र-पौत्रादि की दीर्घायु के साथ ही सुख-समृिद्ध प्राप्त होता है।
बहुला चतुर्थी व्रत की प्रचलित कथा
बहुला चतुर्थी व्रत से संबंधित एक बड़ी ही रोचक कथा प्रचलित है। जब भगवान विष्णु का कृष्ण रूप में अवतार हुआ, तब इनकी लीला में शामिल होने के लिए देवी-देवताओं ने भी गोप-गोपियों का रूप लेकर अवतार लिया। कामधेनु नाम की गाय के मन में भी कृष्ण की सेवा का विचार आया और अपने अंश से बहुला नाम की गाय बनकर नंद बाबा की गौशाला में आ गई।
भगवान श्रीकृष्ण का बहुला गाय से बड़ा स्नेह था। एक बार श्रीकृष्ण के मन में बहुला की परीक्षा लेने का विचार आया. जब बहुला वन में चर रही थी तभी भगवान श्रीकृष्ण सिंह रूप में प्रकट हो गए। मौत बनकर सामने खड़े सिंह को देखकर बहुला भयभीत हो गई। लेकिन हिम्मत करके सिंह से बोली, ‘हे वनराज मेरा बछड़ा भूखा है। बछड़े को दूध पिलाकर मैं आपका आहार बनने वापस आ जाऊंगी।’
सिंह ने कहा कि सामने आए आहार को कैसे जाने दूं, तुम वापस नहीं आई तो मैं भूखा ही रह जाऊंगा। बहुला ने सत्य और धर्म की शपथ लेकर कहा कि मैं अवश्य वापस आऊंगी। बहुला की शपथ से प्रभावित होकर सिंह बने श्रीकृष्ण ने बहुला को जाने दिया। बहुला अपने बछड़े को दूध पिलाकर वापस वन में आ गई।
बहुला की सत्यनिष्ठा देखकर श्रीकृष्ण अत्यंत प्रसन्न हुए और अपने वास्तविक स्वरूप में आकर कहा कि ‘हे बहुला, तुम परीक्षा में सफल हुई। अब से भाद्रपद चतुर्थी के दिन गौ-माता के रूप में तुम्हारी पूजा होगी. तुम्हारी पूजा करने वाले को धन और संतान का सुख मिलेगा।
श्रीगणेश अवतरण कथा
शिवपुराण के अनुसार भगवान गणेश जी के जन्म लेने की कथा का वर्णन प्राप्त होता है। जिसके अनुसार देवी पार्वती जब स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक का निर्माण करती हैं और उसे अपना द्वारपाल बनाती हैं। वह उनसे कहती हैं ‘हे पुत्र तुम द्वार पर पहरा दो मैं भीतर जाकर स्नान कर रही हूं। अत: जब तक मैं स्नान न कर लूं, तब तक तुम किसी भी पुरुष को भीतर नहीं आने देना।
जब भगवान शिव आए तो गणेश जी ने उन्हें द्वार पर रोक लिया और उन्हें भीतर नहीं जाने दिया। इससे शिवजी बहुत क्रोधित हुए और बालक गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया। अपने पुत्र का सिर धड़ से अलग हुए देख माता पार्वती दुखी और क्रोधित हो उठीं। अत: उनके दुख को दूर करने के लिए भगवान शिव के निर्देश अनुसार उनके गण उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आते हैं और शिव भगवान ने गज के उस मस्तक को बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर देते हैं।
पार्वती जी हर्षातिरेक हो कर पुत्र गणेश को हृदय से लगा लेती हैं तथा उन्हें सभी देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद देती हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्य होने का वरदान दिया। चतुर्थी को व्रत करने वाले के सभी विघ्न दूर हो जाते हैं सिद्धियां प्राप्त होती हैं।