तिथि की वृद्धि अथवा क्षय क्यों होती है?
भारतीय ज्योतिष का सबसे महत्पूर्ण अंग पंचांग माना गया है। पंचांग पांच चीजों के मिश्रण से बना है। दिन, तिथि, नक्षत्र, करण और योग। इन सभी पांचो चीजों का अपना अलग-अलग महत्व है लेकिन सबसे अधिक महत्पूर्ण है तिथि। चूंकि हमारे सारे त्यौहार तिथियों के अनुसार ही मनाये जाते है। आपने अक्सर पण्डित जी के मुख से सुना होगा कि तिथि का क्षय होना और वृद्धि होना। जिस कारण से कई त्यौहार दो दिन मनाये जाते है। दरअसल एक मास में दो पक्ष होते है, कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। इसमें शुक्ल व कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से चतुर्दशी पर्यन्त 14-14 तिथियाँ तथा पूर्णिमा व अमावस्या सहित तीस तिथियों को मिलाकर एक चान्द्रमास का निर्माण होता है। शुक्ल पक्ष की 15वीं तिथि पूर्णिमा एवं कृष्ण पक्ष की 15वीं तिथि अमावस्या होती है।एक तिथि का भोग काल सामान्यतः 60 घटी का होता है। किसी तिथि का क्षय या वृद्धि होना सूर्योदय पर निर्भर करता है। कोई तिथि, सूर्योदय से पूर्व आरंभ हो जाती है और अगले सूर्योदय के बाद तक रहती है तो उस तिथि की वृद्धि हो जाती है अर्थात् वह वृद्धि तिथि कहलाती है लेकिन यदि कोई तिथि सूर्योदय के बाद आरंभ हो और अगले सूर्योदय से पूर्व ही समाप्त हो जाती है तो उस तिथि का क्षय हो जाता है अर्थात् वह क्षय तिथि कहलाती है।
धर्म/संस्कृति डेस्क, चंडीगढ़:
सचमुच ही बहुत से लोग यह समझ नहीं पाते हैं कि आज अष्टमी है या नवमी। एक बार ऐसा हुआ था कि आज भी होली का त्योहार है और कल भी। कुछ पंडित कहते हैं कि आज है और कुछ कहते हैं कि कल है। आखिर सच क्या है? आओ यही भ्रम मिटाते हैं। दरअसल, एक होता है दिन और एक होती है तिथि। दिन का निर्धारण सूर्य की गति पर आधारित है और तिथि का निर्धारण चंद्र की गति पर आधारित है। जब हम हिन्दू पंचांग की बात करते हैं तो उसमें दिन, तिथि, नक्षत्र, करण और योग का समावेश करके ही किसी व्रत, त्योहार या मंगल कार्य का निर्धारण करते हैं। दिन को आप यहां वार समझे।
भारत में हिन्दू त्योहार तिथियों के अनुसार ही मनाए जाते हैं। तिथियां घटती और बढ़ती रहती है जिसे तिथि क्षय और तिथि वृद्धि कहते हैं। हिन्दू माह या मास में दो पक्ष की तीस तिथियां होती है। दो पक्ष अर्थात कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। एक पक्ष 15 तिथियों का होता है। इसमें पूर्णिमा और अमावस्या भी शामिल है। अर्थात अमावस्या से पूर्णिमा तक का काल शुक्ल पक्ष और पूर्णिमा से अमावस्या तक का काल कृष्ण पक्ष होता है।
इस तरह एक तिथि का भोग काल 60 घटी तक का होता है। 1 घटी = 24 मिनट की होती है। 48 मिनट की 2 घटी यानी एक घंटा लगभग 2:5 घटी का होगा। अर्थात ढाई घटी का। मतलब 24 घंटे = 60 घाटी। इस तरह हमने देखा कि तिथि का मान घड़ी के घंटे से नहीं घटी से चलता है। इस घटी के मान से ही सूर्योदय और सूर्यास्त के समय निकाला जाता है। खैर यहां तक याद रखें।
तो यह था कि तिथि क्या होती है। दरअसल, तिथि का संबंध वार या दिन से नहीं होता। तिथि का संबंध चंद्र की गति से होता है जो घटती और बढ़ती रहती है। दिन का संबंध सूर्य से होता है। ज्योतिषानुसार सूर्योदय से अगले दिन के सूर्योदय के बीच के काल को दिन कहते हैं जिसमें लगभग 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात होती है।
किसी तिथि का क्षय या वृद्धि होना सूर्योदय पर निर्भर करता है। कोई तिथि, सूर्योदय से पूर्व आरंभ हो जाती है और अगले सूर्योदय के बाद तक रहती है तो उस तिथि की वृद्धि हो जाती है लेकिन यदि कोई तिथि सूर्योदय के बाद आरंभ हो और अगले सूर्योदय से पूर्व ही समाप्त हो जाती है तो उस तिथि का क्षय हो जाता है। मतलब यह कि कोई तिथि तब ही प्रारंभ हो जाती है जबकि सूर्योदय हुआ ही नहीं और फिर वह अगले सूर्योदय के बाद तक भी रहती है। मतलब यह कि वह 24 घंटे से ज्यादा की रहती है। निश्चि ही है कि कोई तिथि यदि सूर्योदय के बाद तक रहती है तो फिर दूसरी तिथि सूर्योदय के बाद ही प्रारंभ होगी। लेकिन जब यह तिथि सूर्योदय के बाद प्रारंभ हो और सूर्योदय के पहले ही समाप्त हो जाए तो उसे तिथि क्षय कहते हैं। आपने देखा होगा कि कभी कभी चांद सूर्योदय के बाद भी बहुत देर तक दिखाई देता है और वह कभी कभी सूर्यास्त के बाद रात्रि लगभग 9 या 10 बजे तक नहीं दिखाई देता है।
आपने देखा होगा कि दूज का चांद जब तक नहीं दिखाई दे दूज शुरू नहीं होती। बस इसी गणित को समझना होगा। वह यह कि तिथि चंद्र की गति पर आधारित है।
तिथियों का निर्धारण सूर्य और चन्द्रमा की परस्पर गतियों के आधार पर होता है। जब सूर्य और चन्द्रमा एक स्थान (एक ही अंश) पर होते हैं तब अमावस्या तिथि होती है। मतलब उस काल में न सूर्य दिखाई देता है और न चंद्र। उस काल में चन्द्रमा, सूर्य के निकट होने के या फिर अस्त होने के कारण दिखाई नहीं देते हैं तथा सूर्य और चंद्रमा का अंतर शून्य होता है।
चन्द्रमा की दैनिक गति सूर्य की दैनिक गति से अधिक होती है। चन्द्रमा एक राशि को लगभग सवा दो दिन में पूरा कर लेता हैं जबकि सूर्य 30 दिन में एक राशि का भ्रमण करता है। सूर्य, चन्द्रमा का अन्तर जब शून्य से अधिक बढ़ने लगता है तो प्रतिपदा प्रारम्भ हो जाती है और जब यह अंतर 12 अंश होता है तो प्रतिपदा समाप्त हो जाती है और चंद्रमा उदय हो जाता हैं।
तिथि वृद्धि और तिथि क्षय होने का मुख्य कारण यह होता है कि एक तिथि 12 अंश की होती है जिसे चन्द्रमा 60 घटी में पूर्ण करते हैं परन्तु चन्द्रमा की यह गति घटती-बढ़ती रहती है। कभी चन्द्रमा तेजी से चलते हुए (एक तिथि) 12 अंश की दूरी को 60 घटी से कम समय में पार करते हैं तो कभी धीरे चलते हुए 60 घटी से अधिक समय में पूर्ण करते हैं। जब एक तिथि (12 अंश) को पार करने में 60 घटी से अधिक समय लगता है तो वह तिथि बढ़ जाती है और जब 60 घटी से कम समय लगता है तो वह तिथि क्षय हो जाती है अर्थात् जिस तिथि में दो बार सूर्योदय हो जाए तो उस तिथि की वृद्धि और जिस तिथि में एक बार भी सूर्योदय नहीं हो उसका क्षय हो जाता है।
अब यदि मान लो कि आज अष्टमी तिथि है जो कि सूर्योदय के बाद तक चलती रही। जबकि सूर्योदन से तो दूसरा दिन शुरू हो गया। ऐसे में माना यह जाएगा कि आज नवमी है जबकि अभी अष्टमी का काल खत्म नहीं हुआ है। नवमी तिथि दोपहर बाद लगेगी। ऐसे में लोग समझते हैं कि आज अष्टमी और नवमी साथ साथ है।
जब किसी तिथि में दो बार सूर्योदय हो जाता है तो उस तिथि की वृद्धि हो जाती है। अब दो बार सूर्योदय हो गया तो लोग कहेंगे कि आज भी नवमी है।
जैसे- किसी सोमवार को सूर्योदय प्रातः 5:48 मिनट पर हुआ और इस दिन सप्तमी तिथि सूर्योदय के पूर्व प्रातः 5:32 बजे प्रारंभ हुई और अगले दिन मंगलवार को सूर्योदय (प्रातः 5:47 मि.) के बाद प्रातः 7:08 तक रही तथा उसके बाद अष्टमी तिथि प्रारंभ हो गई। इस तरह सोमवार और मंगलवार दोनों दिन सूर्योदय के समय सप्तमी तिथि होने से तिथि की वृद्धि मानी जाती है। सप्तमी तिथि का कुल मान 25 घंटे 36 मि. आया जो कि औसत मान 60 घटी या 24 घंटे से अधिक है। ऐसी परिस्थिति में किसी भी तिथि की वृद्धि हो जाती है। अर्थात जब किसी तिथि की वृद्धि में दो सूर्योदय काल समावेश हो जाते हैं तो उस काल में लोग दो दो दिन कोई सा त्योहार मानते हैं।
इस तरह क्षय तिथि जब किसी तिथि में एक बार भी सूर्योदय नहीं हो तो उस तिथि का क्षय हो जाता है। जैसे-किसी गुरुवार को सूर्योदय प्रातः 5:44 पर हुआ और इस दिन एकादशी तिथि सूर्योदय के बाद प्रातः 6:08 पर समाप्त हो गई एवं द्वादश तिथि प्रारंभ हो गई और द्वादश तिथि आधी रात के बाद 27 बजकर 52 मिनट (अर्थात् अर्धरात्रि के बाद 3:52) तक रही, तत्पश्चात् त्रयोदशी तिथि प्रारंभ हो गई। द्वादश तिथि में एक भी बार सूर्योदय नहीं हुआ। गुरुवार को सूर्योदय के समय एकादशी और शुक्रवार को सूर्योदय (प्रातः 5:43) के समय त्रयोदशी तिथि रही, जिस कारण द्वादश तिथि का क्षय हो गया।
मतलब यह कि कोई तिथि समयानुसार छोटी और कोई बड़ी होती है। कोई 24 घंटे से ज्यादा की और कोई 19 घंटे तक की ही होती है। तो यह था कि चंद्र और सूर्य के उदय और अस्त का गणित। यह भी समझना जरूरी है कि हर क्षेत्र में सूर्योदय का समय अलग अलग होता है।