वीणा को बजाते हुए हरिगुन गाते हुए नारद जी अपनी भक्ति संगीत से तीनो लोकों को तारते हैं। नारद जी ने ही उर्वशी का विवाह पुरुरवा के साथ करवाया। वाल्मीकि को रामायण लिखने की प्रेरणा भी नारद जी ने ही दी। व्यास जी से भागवत की रचना उन्होंने ही करवायी। ये व्यास, वाल्मीकि और शुकदेव के गुरु हैं। नारद जी ने ही ध्रुव और भक्त प्रहलाद को भक्ति मार्ग का उपदेश दिया। उनके द्वारा लिखित भक्तिसूत्र बहुत महत्वपूर्ण है। मत्स्यपुराण में वर्णित है कि श्री नारद जी ने बृहत्कल्प-प्रसंग में जिन अनेक धर्म-आख्यायिकाओं को कहा है, 25,000 श्लोकों का वह महाग्रन्थ ही नारद महापुराण है। वर्तमान समय में उपलब्ध नारदपुराण 22,000 श्लोकों वाला है। 3,000 श्लोकों की न्यूनता प्राचीन पाण्डुलिपि का कुछ भाग नष्ट हो जाने के कारण हुई है।
धर्म/संस्कृति डेस्क, डेमोक्रेटिकफ्रंट॰कॉम :
हिंदू पंचांग के अनुसार, देवताओं के ऋषि कहे जाने वाले देवर्षि नारद मुनि की जयंती ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को मनाई जाती है। इस साल यह तिथि 27 मई गुरुवार को है। नारद मुनि को देवों का दूत, संचारकर्ता और सृष्टि का पहला पत्रकार कहा जाता है। पुराणों के अनुसार नारद मुनि हमेशा तीनो लोकों में भ्रमणकर सूचनाओं का आदान-प्रदान करते थे। नारद मुनि का आदर सत्कार न केवल देवी-देवता, मुनि किया करते थे बल्कि असुरलोक के राजा समेत सारे राक्षसगण भी उन्हें सम्मान दिया करते थे।
आपको बता दें कि नारद मुनि सृष्टिकर्ता ब्रम्हाजी के पुत्र हैं, उनका जन्म ब्रह्माजी के कंठ से हुआ था। नारद जी को निरंतर चालायमान और भ्रमणशील होने का वरदान मिला है। वे भगवान विष्णु के परम भक्त हैं। इसलिए नारद जयंती के अवसर पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने के बाद ही नारद मुनि की पूजा की जाती है। ऐसा करने से व्यक्ति के ज्ञान में वृद्धि होती है। आइए जानते हैं इस दिन का महत्व और पूजा का मुहूर्त…
पूर्वजन्म :
एक जन्म में नारद एक अति सुन्दर गंधर्व थे तब एक बार जब इन्हें प्रभु महिमागान के लिये देव सत्र में बुलाया गया तो ये सुन्दरियों व अप्सराओं के साथ शृंगार पूर्ण संसारी गीत गा रहे थे तो देवसभा में बैठे प्रजापति ने शापित कर दिया जिससे ये भूलोक में गिरकर क्षूद्र योनि में जन्मे एवं एक दासीपुत्र उपबर्हण कहलाये।
साधुओं की साधुता व सुसंगति के प्रभाव में उपबर्हण में पाँच वर्ष की आयु में हरिभक्ति की ललक जाग उठी एवं ये वैरागी हो चले। फिर एक दिन सर्पदंश से इनकी माता की मृत्यु हो गयी, पूर्णविरक्ति हो चुकी थी, गृहत्याग कर ये वन में एक पीपलवृक्ष के नीचे भगवदज्ञान करने लगे।
कुछ ही समय में ये ध्यानस्थ हो गये व प्रभु ने क्षणमात्र दर्शन दिये तथा फिर एक आकाशवाणी हुई कि आगामी जन्म में ये ब्रह्मापुत्र के रूप में जन्म लेंगे व उसमें इन्हें प्रभुदर्शन होते रहेंगे।
ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की द्वितीया को ये ब्रह्मदेव की गोदी में नारद रूप से जन्मे। नारद जयंती इस वर्ष (2021) में 28 मई शुक्रवार को पड़ रही है। नारायण भक्ति विस्तारक नारायण भक्त नारद की जय
पहले पत्रकार हैं नारद
नारद मुनी को हम सभी ने पौराणिक कथाओं में एक जगह से दूसरी जगह का विचरण का सूचनाओं का आदान प्रदान करते हुए देखा या सुना है। वैदिक पुराणों के अनुसार देवऋषि नारद एक सार्वभौमिक दिव्य दूत और देवताओं के बीच जानकारी के प्राथमिक स्रोत हैं। नारद मुनि में सभी किशोर लोक, आकाश या स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल की यात्रा करने की क्षमता है। ऐसा भी माना जाता है कि यह पृथ्वी पर पहले पत्रकार हैं। नारद मुनि सूचनाओं को फैलाने के लिए ब्रह्मांड में भ्रमण करते रहते हैं। हालाँकि, उनकी अधिकांश समय पर जानकारी परेशानी पैदा करती है, लेकिन यह ब्रह्मांड की बेहतरी के लिए है।