ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण में नरेन्द्र मोदी एवं अमितशाह को तो आमंत्रित करना चाहिए था

करणीदानसिंह राजपूत, सूरतगढ़:

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने हैट्रिक जीत दर्ज कर इतिहास रच दिया। ममता ने महत्वपूर्ण इतिहास रचा है और भाजपा के बड़बोले नेताओं को ऐसी पटखनी दी है कि वे पांच साल तक अपनी चोटों से कराहते रहेंगे।

यह जीत इसलिए मायने रखती है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी,गृहमंत्री अमितशाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा ने ममता को हराने के लिए सब कुछ किया। ममता हारी नहीं और जे.पी.नड्डा जैसे दिग्गज धरना लगाने वाले स्तर पर पहुंच गए।

टीएमसी की मुखिया ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के तौर पर आज यानि बुधवार को राजभवन में शपथ ग्रहण करेंगी। कोविड-19 महामारी के चलते शपथ ग्रहण समारोह बेहद सादगी भरा होगा। 

बताया जा रहा है कि शपथ ग्रहण समारोह के लिए पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य, निवर्तमान सदन के नेता प्रतिपक्ष अब्दुल मन्नान और माकपा के वरिष्ठ नेता बिमान बोस को कार्यक्रम का निमंत्रण भेजा गया है। 

ममता का मुख्यमंत्री पद की शपथ का समारोह चाहे कितना साधारण रखा गया हो उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को तो जरूर बुलाना था। जो कहते थे कि 2 म ई को दीदी गई,उन्हें दिखलाना था कि दीदी नहीं गई। 

इधर, बंगाल में हिंसा की खबरों के बीच भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और दिलीप घोष धरना भी देंगे। 

 देश में कोविड-19 महामारी की वर्तमान परिस्थितियों के मद्देनजर अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों और अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं को समारोह में आमंत्रित नहीं किया गया है। उन्होंने कहा, ‘कोविड-19 महामारी को देखते हुए ममता बनर्जी के शपथ ग्रहण समारोह को बेहद साधारण रखने का निर्णय लिया गया है। 

बुधवार को केवल ममता बनर्जी अकेले शपथ लेंगी। यह बेहद संक्षिप्त कार्यक्रम होगा।’ 

तृणमूल कांग्रेस के सूत्रों ने कहा कि राजभवन में पांच मई को सुबह 10:45 बजे होने वाले शपथग्रहण समारोह में पार्टी सांसद अभिषेक बनर्जी, चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर और पार्टी के वरिष्ठ नेता फिरहाद हाकिम के भी शामिल होने की उम्मीद है। 

सूत्रों ने कहा कि शपथ ग्रहण करने के तुरंत बाद ममता बनर्जी राज्य सचिवालय जाएंगी, जहां उन्हें कोलकाता पुलिस सलामी देगी। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में टीएमसी 292 में से 213 सीटें जीतकर लगातार तीसरी बार सत्ता में आई है। बीजेपी को 77 सीटों पर जीत हासिल हुई है। वहीं, दो सीटों पर अन्य ने जीत दर्ज की है।

इधर चुनावी नतीजों के बाद से बंगाल में जारी हिंसा की खबरों के बीच भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा कोलकाता पहुंचे हैं। बंगाल में हिंसा के खिलाफ भाजपा आज यानी बुधवार को पूरे देशभर में धरना देगी। कोलकाता में जेपी नड्डा और दिलीप घोष खुद धरने पर बैठेंगे। इससे पहले भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा ने मंगलवार को कहा गया कि पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हुई व्यापक हिंसा ने उन अत्याचारों की याद दिला दी है जिसका सामना लोगों को देश के विभाजन के दौरान करना पड़ा था। नड्डा ने राज्य में पार्टी कार्यकर्ताओं को ”क्रूरता के विरूद्ध लोकतांत्रिक तरीके से लड़ने के लिए प्रेरित किया।

कौन हैं ममता बनर्जी

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी के शानदार प्रदर्शन के बाद ममता बनर्जी की छवि एक ऐसे सैनिक और कमांडर के रूप में बनी है जिसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व वाली भाजपा की चुनावी युद्ध मशीन को भी हरा दिया। तीसरी बार की यह जीत न सिर्फ राज्य में बनर्जी की स्थिति को और मजबूत करेगी, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने में भी मदद करेगी।

2019 से पहले बिना चुनौती के दीदी ने किया शासन

ममता बनर्जी ने एक दशक से अधिक पहले सिंगूर और नंदीग्राम में सड़कों पर हजारों किसानों का नेतृत्व करने से लेकर आठ साल तक राज्य में बिना किसी चुनौती के शासन किया। आठ साल के बाद उनके शासन को 2019 में तब चुनौती मिली जब भाजपा ने पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव में 18 सीटों पर अपना परचम फहरा दिया। ममता बनर्जी (66) ने अपनी राजनीतिक यात्रा को तब तीव्र धार प्रदान की जब उन्होंने 2007-08 में नंदीग्राम और सिंगूर में नाराज लोगों का नेतृत्व करते हुए वाम मोर्चा सरकार के खिलाफ राजनीतिक युद्ध का शंखनाद कर दिया। इसके बाद वह सत्ता के शक्ति केंद्र ‘नबन्ना तक पहुंच गई।

यूपीए और एनडीए में भी बनीं मंत्री

पढ़ाई के दिनों में बनर्जी ने कांग्रेस स्वयंसेवक के रूप में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। यह उनके करिश्मे का ही कमाल था कि वह संप्रग और राजग सरकारों में मंत्री बन गईं। राज्य में औद्योगीकरण के लिए किसानों से ‘जबरन भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर वह नंदीग्राम और सिंगूर में कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ दीवार बनकर खड़ी हो गईं और आंदोलनों का नेतृत्व किया। ये आंदोलन उनकी किस्मत बदलने वाले रहे और तृणमूल कांग्रेस एक मजबूत पार्टी के रूप में उभरकर सामने आई। बनर्जी ने कांग्रेस से अलग होने के बाद जनवरी 1998 में तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की और राज्य में कम्युनिस्ट शासन के खिलाफ संघर्ष करते हुए उनकी पार्टी आगे बढ़ती चली गई।

2011 में लेफ्ट की सरकार को उखाड़ फेंका था

पार्टी के गठन के बाद राज्य में 2001 में जब विधानसभा चुनाव हुआ तो तृणमूल कांग्रेस 294 सदस्यीय विधानसभा में 60 सीट जीतने में सफल रही और वाम मोर्चे को 192 सीट मिलीं। वहीं, 2006 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की ताकत आधी रह गई और यह केवल 30 सीट ही जीत पाई, जबकि वाम मोर्चे को 219 सीटों पर जीत मिली। वर्ष 2011 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी ने ऐतिहासिक रूप से शानदार जीत दर्ज करते हुए राज्य में 34 साल से सत्ता पर काबिज वाम मोर्चा सरकार को उखाड़ फेंका। उनकी पार्टी को 184 सीट मिलीं, जबकि कम्युनिस्ट 60 सीटों पर ही सिमट गए। उस समय वाम मोर्चा सरकार विश्व में सर्वाधिक लंबे समय तक सत्ता में रहने वाली निर्वाचित सरकार थी।

पांच बार लोकसभा सांसद भी रह चुकी हैं दीदी

ममता बनर्जी अपनी पार्टी को 2016 में भी शानदार जीत दिलाने में सफल रहीं और तृणमूल कांग्रेस की झोली में 211 सीट आईं। इस बार के विधानसभा चुनाव में बनर्जी को तब झटके का सामना करना पड़ा जब उनके विश्वासपात्र रहे शुभेन्दु अधिकारी और पार्टी के कई नेता भाजपा में शामिल हो गए। बंगाली ब्राह्मण परिवार में जन्मीं बनर्जी पार्टी के कई नेताओं की बगावत के बावजूद अंतत: अपनी पार्टी को तीसरी बार भी शानदार जीत दिलाने में कामयाब रहीं। इस चुनाव में भाजपा ने तृणमूल कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी, लेकिन बनर्जी एक ऐसी सैनिक और कमांडर निकलीं जिन्होंने भगवा दल की चुनावी युद्ध मशीन को पराजित कर दिया। वह 1996, 1998, 1999, 2004 और 2009 में कोलकाता दक्षिण सीट से लोकसभा सदस्य भी रह चुकी हैं।

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