पिता की विवशता समझ कथाव्यास जया किशोरी की आंखों से छलके अश्रु, पंडाल के हजारों श्रद्धालु भी हुए भावुक
- शर्मा व झूंथरा परिवार ने भरा नानीबाई का मायरा
- भगवान श्रीकृष्ण के संग निभाई जिम्मेदारी
- पिता की विवशता समझ कथाव्यास जया किशोरी की आंखों से छलके अश्रु
- पंडाल के हजारों श्रद्धालु भी हुए भावुक
सतीश बंसल सिरसा:
स्व. श्रीमती रेखा शर्मा मैमोरियल ट्रस्ट एवं स्व. श्रीमती सोनाली झूंथरा मैमोरियल ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में चार दिवसीय नानी बाई रो मायरो कथा बीते शुक्रवार को हर्षोल्लास के साथ संपन्न हुई जिसमें भगवान श्रीकृष्ण के साथ-साथ शहर के प्रतिष्ठित शर्मा एवं झूंथरा परिवार के अनेक सदस्यों ने भी नानीबाई की बेटी शादी में भगवान श्रीकृष्ण के साथ और उनकी हाजिरी में मायरा भरा।
इससे पूर्व कथा के अंतिम दिन कथाव्यास जया किशोरी ने कथाक्रम को आगे बढ़ाते हुए कहा कि ज्यों ही नानीबाई को अपने पिता नरसी मेहता के अंजार नगर में आने का पता चलता है तो वह हर्ष में उनसे मिलने जाती है मगर मिलने जाने से पूर्व अंजार नगर स्थित श्रीरंग सेठ के परिवार की ओर से नानीबाई के पिता नरसी मेहता की गरीबी पर दिए गए तानों और व्यंग्यात्मक शैली में कही गई कड़वी बातों से नानीबाई को हुई पीड़ा और उसकी छटपटाहट उसे इस कदर परेशान कर देती है कि वह अपने पिता से मिलने के दौरान नरसी मेहता को ही अनेक पीड़ादायक बातें कहने पर मजबूर होती है। नानीबाई कहती है कि यदि आज उसकी मां जीवित होती तो निश्चित ही वह उसके लिए दो जोड़ी कपड़े तो अवश्य लाती मगर वे तो बिल्कुल खाली हाथ आए हैं जिससे ससुरालपक्ष को उसे व उसके पिता नरसी मेहता को बुरा भला कहने का अवसर मिला है। इसी क्रोध की अवस्था में नानीबाई अपने पिता से कहती हैं कि जिस श्रीहरि पर उन्हें ज्यादा भरोसा है तो उसे सहायता के लिए अभी क्यों नहीं बुलाते। इस पर नरसी मेहता अपने प्रभु पर पूरा भरोसा करते हुए कहते हैं कि वे उनकी सहायता करने अवश्य आएंगे और यदि न भी आए तो भी वे अपने प्रभु की भक्ति से अपनी आस्था नहीं छोड़ेंगे। प्रभु आस्था की मिसाल कायम करते हुए नरसी मेहता अपनी बेटी नानी बाई से कहते हैं कि वे अपने ससुराल पक्ष के लोगों से एक और पत्र लिखवा जिसमें अनेक कीमती वस्तुओं की मांग हो क्योंकि वे जानते हैं कि उनके भगवान श्रीकृष्ण उनकी सहायता के लिए सदैव तत्पर हैं। इस बात का ससुराल पक्ष में मजाक बनता है, फिर भी लोभवश ससुरालपक्ष की ओर से पहले से भी कई गुणा ज्यादा कीमती चीजें मांगते हैं। नानीबाई परेशान होकर पानी भरने जाती हैं और एक पेड़ पर बैठे तोते से कहती हैं कि जरा ऊंची टहनी पर बैठकर दूर से देखकर बताओ कि कहीं से मेरे भाई श्रीकृष्ण की आहट तो नहीं सुनाई पड़ रही। तोते ने कहा कि किसी रथ के आने से उडऩे वाली धूल की स्थिति से पता चल रहा है कि कोई रथ आ रहा है और रथ में द्वारकाधीश श्रीकृष्ण अपनी रानी रूकमणि के साथ बैठे हैं। इस पर नानीबाई प्रसन्न होकर अपने घर लौटती हैं और अपने भाई श्रीकृष्ण को अपना शक्ति आधार मानकर ससुरालपक्ष के सामने दृढ़ता से खड़ी हो जाती हैं। वहीं खाती के रूप में भी श्रीकृष्ण भी नरसी के समक्ष आते हैं और अपने प्रभाव से नरसी मेहता के साथ आए सभी नेत्रहीनों को उनके नेत्र लौटा देते हैं। वहीं नानीबाई अपने भाई श्रीकृष्ण द्वारा उनकी सहायता करने के लिए आने पर उनसे कहती हैं कि वे परंपरागत तौर पर ससुरालपक्ष को वही चीजें दे दें जो जरूरी हों मगर श्रीकृष्ण नानीबाई से कहते हैं कि घबराने की जरूरत नहीं केवल तुम्हारे ससुराल पक्ष के लोगों के लिए ही नहीं बल्कि पूरे गांव के सभी लोगों के लिए भी भरपूर वस्तुएं उपलब्ध हैं। इस पर इठलाती नानीबाई ने अपने भाई श्रीकृष्ण द्वारा देशभर के विभिन्न कोनों से लाई गई महंगी कीमती वस्तुएं अपने ससुरालपक्ष को मायरे के रूप में सौंपी।
जब जया किशोरी की आंखों से बही अश्रुधारा
कथा कहने के दौरान जब श्रीरंग सेठ के परिवार की ओर से नानीबाई को उसके पिता नरसी मेहता के बारे में अनेक कटीली बातें कही गई तो बेटी की ओर से अपने पिता के समर्थन में अनेक बातें कहकर उनका बचाव करने का प्रयास किया गया मगर ससुरालपक्ष के सदस्यों के अधिक होने और लालची प्रवृत्ति के कारण नानीबाई को काफी गंभीर और चुभने वाली बातें कहते हैं जिस पर एक बेटी की विवशता झलकती नजर आती है। पिता की गरीबी और ससुरालपक्ष से निरंतर मायरे में मांगे जाने वाली महंगी वस्तुओं के भार से पैदा हुए गमगीन माहौल के बीच स्वयं कथाव्यास जया किशोरी भी भावुक हो गई और उनकी आंखों से अश्रुधारा फूट पड़ी। किसी तरह से उन्होंने स्वयं को संयंत किया और फिर कथा को आगे बढ़ाया। कथाव्यास जया किशोरी के गमगीन होने से श्रद्धालुओं से भरा पंडाल भी पूरी तरह से गंभीर हो गया और सभी नानीबाई के पिता नरसी की गरीबी से पैदा हुई स्थितियों पर सिसकने लगे।
पूरे शानो शौकत से भरा मायरा
कथा के समापन अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण द्वारा भरे जाने वाले मायरे के समान ही कथा आयोजक शर्मा एवं झूंथरा परिवार के अनेक सम्मानित सदस्यों ने भी पूरी शानो शौकत से नानीबाई का मायरा भरा। इस दौरान दोनों परिवारों के अनेक सदस्य कथास्थल के प्रवेश द्वार से अपने सिरों पर महंगी वस्तुएं लेकर कथापीठ तक पहुंचे और भगवान श्रीकृष्ण को साक्षी मानकर नानीबाई की बेटी की शादी में मायरा भरा। भगवान श्रीकृष्ण के साथ नानीबाई की बेटी का मायरा भरने का सौभाग्य जहां शर्मा एवं झूंथरा परिवार को मिला वहीं उपायुक्त सिरसा प्रदीप कुमार, उनकी पत्नी, जिला सत्र न्यायाधीश राजेश मल्होत्रा की धर्मपत्नी कुसुम मल्होत्रा, एसडीएम सिरसा जयवीर यादव, डीएसपी हीरा सिंह, जिला जेल अधीक्षक शेर सिंह, संजीव जैन एडवोकेट, वरिष्ठ पत्रकार संजय अरोड़ा, भाजपा नेता भूपेश मेहता व डीएसपी अजय शर्मा को भी मिला।
संस्कारों का बताया महत्व
कथा के दौरान कथाव्यास जया किशोरी ने सभी अभिभावकों को बच्चों में अच्छे संस्कारों का बीजारोपण करने का आह्वान किया। उन्होंने बताया कि यदि बाल्यावस्था से ही बच्चों में संस्कारों की बेल को विकसित न किया गया तो बड़े होकर बच्चों से देश, समाज और परिवार के प्रति संवेदनशीलता व मृदुभाषी होने जैसे गुणों की अपेक्षा करना व्यर्थ होगा। उन्होंने सभी से आह्वान किया कि वे अपने बच्चों में छोटी अवस्था में ही ईश्वर के प्रति आसक्तियुक्त होने, माता पिता और गुरुओं की सेवा करने जैसे गुणों से युक्त करने
की जिम्मेदारी उठाने का आह्वान किया। इसी दौरान उन्होंने इस बात की भी व्याख्या की कि किसी को भी देखकर अपना गुरु नहीं बनाया जा सकता। उन्होंने कहा कि बेशक गुरु बनाओ मगर उसे भगवान का दर्जा नहीं दिया जा सकता। यदि भौतिक रूप में किसी को ईश्वर के स्वरूप में स्वीकार करना ही है तो केवल अपने माता-पिता को ही इस रूप में स्वीकार करें।
चार दिनों तक छाई रही श्रीकृष्ण की कृपा
नानीबाई का मायरा कथा कार्यक्रम के चार दिवसीय कार्यक्रम के दौरान हिसार रोड स्थित निशुराज होटल में भगवान श्रीकृष्ण की अपार कृपा बरसती रही। जहां श्रद्धालुओं को कथा का रसपान मिलता रहा वहीं दूसरी ओर कथा आयोजक राजकुमार शर्मा एवं चंद्र झूंथरा की ओर से व्यवस्था को बेहतर बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी गई। जहां हजारों श्रद्धालुओं को विभिन्न गांवों व शहर के विभिन्न मोहल्लों से कथास्थल तक लाने की जिम्मेदारी उन द्वारा उठाई गई वहीं रात्रि को सैकड़ों श्रद्धालुओं को स्वादिष्ट भोजन खिलाने में भी उनकी सेवा अग्रणी रही। चार दिन चले इस कथा महोत्सव को श्रद्धालुओं ने अविस्मरणीय बताया और फिर जल्द ही आने वाले समय में पुन: ऐसी ही कथा आयोजित करने की गुहार की।
योगदान देने वाले हुए सम्मानित
कथा कार्यक्रम के दौरान मंच पर उन सभी लोगों को सम्मानित किया गया जिन्होंने आयोजन को सफल बनाने में अपना भरपूर योगदान दिया। इस दौरान जिन गणमान्य लोगों को सम्मानित किया गया उनमें भारत भूषण सरदाना, मोहन खत्री, सुखविंद्र सोनी, सुशील झूंथरा, उमा वर्मा, दिल्ली से उमाशंकर, शकुंतला, राखी मौर्य, लोकेश गुर्जर, भूषण मेहता, नरेंद्र भाटिया, विकास सेठी, अंकुश मेहता, जयप्रकाश पूनिया, जीतू शर्मा, संगीत कुमार, रामकिशन, पे्रम शर्मा, रवि, गजानंद सोनी, मास्टर रोशनलाल, पत्रकार राजेंद्र ढाबां, सुरेंद्र सावंत, रमेश गंभीर सहित तमाम गणमान्य लोगों को ईश्वरीय माला पहनाकर सम्मानित किया गया। इस दौरान मंच पर कथा समापन के दौरान शर्मा एवं झूंथरा परिवारों के सदस्यों के साथ शहर के गणमान्य लोगों ने भी मंच पर भगवान श्रीकृष्ण की आरती गाई और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। इस दौरान अनेक श्रद्धालुओं ने सम्मानस्वरूप कथाव्यास जया किशोरी को टोपी व चुनरी पहनाकर सम्मान प्रदान किया। कथा के दौरान स्व. श्रीमती रेखा शर्मा मैमोरियल ट्रस्ट के अध्यक्ष पंडित होशियारीलाल शर्मा व स्व. श्रीमती सोनाली झूंथरा मैमोरियल ट्रस्ट के अध्यक्ष मुरलीधर झूंथरा के अलावा सालासर धाम के पुजारी विकास, रामावतार हिसारिया, कथा के आयोजक राजकुमार शर्मा, राजेश शर्मा, चंद्र झूंथरा के अलावा व्यापार मंडल के जिलाध्यक्ष हीरालाल शर्मा, प्रेम शर्मा, मोहित शर्मा, देवांश शर्मा, संयम झूंथरा, नयन झूंथरा, शीतल झूंथरा, पत्रकार अंजनी गोयल, पंडित कमल शर्मा सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।
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