दिल्ली में अधिकार को लेकर मुख्यमंत्री और एलजी के बीच जंग हमेशा से चर्चा का विषय रही है। जब से दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है तब से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और एलजी के बीच किसी न किसी बात पर विवाद होता ही रहा है। हालात यहां तक बिगड़े कि अधिकार की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई. 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में एलजी और दिल्ली सरकार की भूमिकाओं और अधिकार क्षेत्र को स्पष्ट किया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सीएम और एलजी के बाद विवाद कम तो हुआ लेकिन खत्म नहीं हुआ। दिल्ली में पिछले काफी समय से चले आ रहे इस विवाद को दूर करने के लिए गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली एक्ट में संशोधन लाई(Government of National Capital Territory of Delhi (Amendment) Bill, 2021) है। संसद के दोनों सदनों में पास हो चुके इस बिल के बाद अब एलजी का अधिकार क्षेत्र काफी विस्तृत हो गया है. बिल में प्रावधान है कि राज्य कैबिनेट या सरकार किसी भी फैसले को लागू करने से पहले लेफ्टिनेंट गवर्नर की ‘राय’ लेगी।
नयी दिल्ली (ब्यूरो):
GNCT संशोधन बिल में राज्यपाल को किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री के बराबर का अधिकार होगा. इस बात को आसान भाषा में समझना हो तो दिल्ली विधानसभा में बनाए गए किसी भी कानून में सरकार से मतलब एलजी से होगा। एलजी को सभी फैसलों, प्रस्तावों और एजेंडों के बारे में पहले से जानकारी देना आवश्यक होगा। अगर किसी मुद्दे पर मुख्यमंत्री और एलजी के बीच मतभेद पैदा होते हैं तो उस मामले को राष्ट्रपति के पास भेजा जा सकता है। यही नहीं, एलजी विधानसभा से पारित किसी ऐसे बिल को मंजूरी नहीं देंगे जो विधायिका के शक्ति-क्षेत्र से बाहर हैं. इस तरह के बिल को भी राष्ट्रपति के पास भेजा जा सकता है। वहां से मंजूरी मिलने के बाद ही उसे राज्य में लागू किया जा सकेगा।
‘आआपा’ नेता और दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने भी बिल को लेकर केंद्र सरकार पर हमला बोला है:
‘आज का दिन भारतीय लोकतंत्र के लिए काला दिन है। दिल्ली की जनता द्वारा चुनी गई सरकार के अधिकारों को छिनकर उपराज्यपाल के हांथों में सौंप दिया गया। विडंबना देखिए कि लोकतंत्र की हत्या के लिए संसद को चुना गया, जो हमारे लोकतंत्र का मंदिर है। दिल्ली की जनता इस तानाशाही के खिलाफ लड़ेगी।’ आम आदमी पार्टी के अलावा इस बिल का कांग्रेस ने भी जमकर विरोध किया है। कांग्रेस नेता अभिषेक मुन सिंघवी ने कहा कि हमारे पास अभी सुप्रीम कोर्ट का विकल्प है। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि जीएनसीटी बिल 2021 के खिलाफ विपक्ष सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है।
आइए आपको बताते हैं GNCT संशोधन बिल में क्या है और उससे दिल्ली पर क्या असर पड़ने वाला है।
संशोधन 1- पहला संशोधन सेक्शन 21 में प्रस्तावित है
इसके मुताबिक विधानसभा कोई भी कानून बनाएगी तो उसमें सरकार का मतलब “उपराज्यपाल’ होगा। जबकि जुलाई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में चुनी हुई सरकार को ही सरकार माना था।
संशोधन 2- दूसरा संशोधन सेक्शन 24 में प्रस्तावित है।
इस प्रस्तावित संशोधन के मुताबिक ‘उपराज्यपाल ऐसे किसी भी बिल को अपनी मंजूरी देकर राष्ट्रपति के पास विचार के लिए नहीं भेजेंगे जिसमें कोई भी ऐसा विषय आ जाए जो विधानसभा के दायरे से बाहर हो’
(इसका मतलब अब उपराज्यपाल के पास यह पावर होगी कि वह विधानसभा की तरफ से पास किए हुए किसी भी बिल को अपने पास ही रोक सकते हैं जबकि अभी तक विधानसभा अगर कोई विधेयक पास कर देती थी तो उपराज्यपाल उसको राष्ट्रपति के पास भेजते थे और फिर वहां से तय होता था कि बिल मंजूर हो रहा है या रुक रहा है या खारिज हो रहा है)
संशोधन 3- तीसरा संशोधन सेक्शन 33 में प्रस्तावित है
इस प्रस्तावित संशोधन के मुताबिक, विधानसभा ऐसा कोई नियम नहीं बनाएगी जिससे कि विधानसभा या विधान सभा की समितियां राजधानी के रोजमर्रा के प्रशासन के मामलों पर विचार करें या फिर प्रशासनिक फैसले के मामलों में जांच करें। प्रस्तावित संशोधन में यह भी कहा गया है कि इस संशोधन विधेयक से पहले इस प्रावधान के विपरीत जो भी नियम बनाए गए हैं वह रद्द होंगे।
संशोधन 4- चौथा संशोधन सेक्शन 44 में प्रस्तावित है।
इस प्रस्तावित संशोधन के मुताबिक ‘उपराज्यपाल के कोई भी कार्यकारी फैसले चाहे वह उनके मंत्रियों की सलाह पर लिए गए हो या फिर ना लिए गए हो… ऐसे सभी फैसलों को’ उपराज्यपाल के नाम लिया जाएगा। संशोधित बिल में यह भी कहा गया है कि किसी मंत्री या मंत्री मंडल का निर्णय या फिर सरकार को दी गई शक्तियों का इस्तेमाल करने से पहले उपराज्यपाल की राय लेना आवश्यक होगा।।