Tuesday, December 24

किसानों के आंदोलन का समर्थन करते – करते दिल्ली के मुख्यमंत्री आज फिर से धरणे – प्रदर्शन पर उतर आए हैं। यह सारी कवायद सत्ता बनाए रखने और उस ताकत को पुन: हासिल करने की है जिसे इस नए कानून ने तकरीबन – तकरीबन ठंडे बस्ते में डाल दिया है। जिस प्रस्तावित विधेयक में केंद्र सरकार की कैबिनेट ने जिन संशोधनों पर मुहर लगाई है, उनमें दिल्ली सरकार के लिए कमोबेश सभी विधायी और प्रशासनिक निर्णयों में उपराज्यपाल से सहमति लेना अनिवार्य कर दिया गया है। कोई भी विधायी प्रस्ताव दिल्ली सरकार को 15 दिन पहले और कोई भी प्रशासनिक प्रस्ताव सात दिन पहले उपराज्यपाल को भिजवाना होगा। अगर उपराज्यपाल उस प्रस्ताव से सहमत नहीं हुए तो वे उसे अंतिम निर्णय के लिए राष्ट्रपति को भी भेज सकेंगे। अगर कोई ऐसा मामला होगा, जिसमें त्वरित निर्णय लिया जाना होगा तो उपराज्यपाल अपने विवेक से निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र होंगे।

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सारिका तिवारी, नयी दिल्ली/ चंडीगढ़:

राजधानी दिल्ली में एक बार फिर एलजी बनाम मुख्यमंत्री की जंग शुरू हो चुकी है। पिछले कई सालों में अलग-अलग मुद्दों को लेकर एलजी और दिल्ली सरकार के बीच टकराव देखने को मिला, लेकिन इस बार केंद्र सरकार इसे लेकर एक बिल लाई है। जिसमें दिल्ली के उपराज्यपाल की शक्तियां बढ़ाई गई हैं। संसद में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र संशोधन विधेयक (2021) पेश होने के बाद दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने बीजेपी पर हमला बोला और कहा कि मोदी सरकार पिछले दरवाजे से अब दिल्ली पर शासन करना चाहती है। आइए जानते हैं क्या है ये नया संशोधन और इससे दिल्ली सरकार के अधिकारों पर क्या असर पड़ने वाला है।

केंद्र सरकार की तरफ से संसद में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र संशोधन विधेयक (2021) पेश किया गया. जिसमें दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल की शक्तियों को लिखित तौर पर बताया गया है। बिल पेश होने के बाद मुख्यमंत्री केजरीवाल के अलावा आम आदमी पार्टी के नेताओं ने इसका जमकर विरोध किया और प्रवक्ताओं ने प्रेस कॉन्फ्रेंस भी कीं। जिन्होंने इस संशोधन को लोकतंत्र और संविधान के खिलाफ बताया।

क्या है राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र संशोधन विधेयक (2021)?

बिल में जिस लाइन पर सबसे ज्यादा विवाद हो रहा है और आआपा जिसे सीधे लोकतांत्रिक तौर पर चुनी हुई सरकार पर हमला बता रही है, वो है- “राज्य की विधानसभा द्वारा बनाए गए किसी भी कानून में सरकार का मतलब उपराज्यपाल होगा.” ये विधेयक के सेक्शन 21 के सब सेक्शन-2 में बताया गया है। इसीलिए मुख्यमंत्री केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री सिसोदिया का कहना है कि केंद्र सरकार अब दिल्ली में एलजी को ही सरकार बनाने जा रही है। इसके अलावा संशोधन विधेयक में जो विवादित मसले हैं, उनमें –

  • “कोई भी मामला जो विधानसभा की शक्तियों के दायरे से बाहर है”, उसमें एलजी की मंजूरी लेनी होगी. इसका सीधा मतलब है कि उपराज्यपाल को अब एडिशनल कैटेगरी के बिलों पर रोक लगाने की शक्ति और अधिकार दिया गया है। यहां एलजी की शक्तियों को बढ़ाने का काम किया गया है।
  • राज्य सरकार को खुद या फिर उसकी कमेटियों को राजधानी के रोजमर्रा के प्रशासनिक मामलों में कोई भी नियम बनाने या फिर फैसला लेने से पहले उपराज्यपाल से मंजूरी लेनी होगी। अगर ऐसा नहीं किया गया तो इस अधिनियम के तहत उस फैसले को शून्य माना जाएगा।
  • मंत्री परिषद या किसी मंत्री को किसी भी फैसले से पहले और उसे लागू करने से पहले एलजी के पास फाइल भेजनी होगी, यानी उनकी मंजूरी लेनी होगी।सभी तरह की फाइलों को पहले एलजी को भेजा जाएगा और उनकी राय जरूरी होगी।

इस बिल में कहा गया है कि ये विधायिका (लेजिस्लेचर) और कार्यपालिका (एग्जिक्यूटिव) के बीच तालमेल को और ज्यादा बेहतर करने का काम करेगा। साथ ही ये विधेयक उपराज्यपाल और चुनी हुई सरकार की जिम्मेदारियों को भी परिभाषित करने का काम करेगा, जो दिल्ली में शासन के संवैधानिक नियमों के तहत है।

सुप्रीम कोर्ट ने दिया था अहम फैसला

बीजेपी के तमाम नेता इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के साथ जोड़कर देख रहे हैं। दिल्ली सरकार बनाम एलजी की जंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 4 जुलाई 2018 को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था. सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने इस फैसले में कहा गया था –

  • दिल्ली में चुनी हुई सरकार को जमीन, पुलिस और कानून व्यवस्था के अलावा सभी मामलों पर फैसला लेने का अधिकार है। मंत्रिमंडल जो फैसला लेगा, उसकी सूचना उपराज्यपाल को देनी होगी।
  • कैबिनेट का हर मंत्री अपने मंत्रालय के लिए जिम्मेदार है। हर राज्य की विधानसभा के दायरे में आने वाले मुद्दों पर केंद्र सरकार जबरन दखल अंदाजी न करे, संविधान ने इसके लिए पूरी स्वतंत्रता दी है।
  • दिल्ली में विधानसभा तीन मसलों को छोड़कर बाकी सभी चीजों को लेकर कानून बना सकती है। कैबिनेट और विधानसभा को ये अधिकार है। एलजी के पास तीन मुद्दों को लेकर एग्जीक्यूटिव पावर है. इन्हें छोड़कर बाकी सभी मुद्दों की एग्जीक्यूटिव पावर दिल्ली सरकार के पास हैं।
  • अगर किसी मामले में एलजी और मंत्री के बीच मतभेद है और ये रेयरेस्ट ऑफ रेयर केस है तो इस मामले में एलजी दखल दे सकते हैं। हर मुद्दे पर ऐसा नहीं होगा. मंत्री और मंत्रालय को एलजी के पास जरूर बिल या कानून की कॉपी भेजनी होगी। लेकिन जरूरी नहीं है कि इस पर एलजी की स्वीकृति हो।
  • दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है, क्योंकि दिल्ली की स्थिति बाकी राज्यों से अलग है. अराजकता की कोई जगह नहीं, सब अपनी जिम्मेदारी निभाएं. उपराज्यपाल मनमाने तरीके से दिल्ली सरकार के फैसलों को रोक नहीं सकते।

यानी इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया था कि एलजी के पास दिल्ली सरकार के हर फैसले को पलटने का अधिकार नहीं है। साथ ही ये भी बताया था कि हर फैसले पर जरूरी नहीं है कि एलजी की स्वीकृति हो. सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने तब कहा था कि, एलजी को चुनी हुई सरकार की कैबिनेट की सलाह माननी चाहिए। अरविंद केजरीवाल सरकार ने तब इस फैसले को लोकतंत्र की जीत बताया था। कुल मिलाकर इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ये बता दिया था कि दिल्ली में बॉस चुनी हुई सरकार को ही माना जाएगा।

एलजी और दिल्ली सरकार में कब-कब हुआ टकराव?

लेकिन केंद्र सरकार जो विधेयक लाई है, उसमें उपराज्यपाल की शक्तियों को बढ़ाया गया है और सीधे ये कहा गया है कि सभी फाइलों को पहले एलजी के पास से गुजरना होगा। यानी अगर ये संशोधन विधेयक पारित हो जाता है तो एक बार फिर दिल्ली में सरकार बनाम एलजी के बीच एक बड़ी लड़ाई देखने को मिल सकती है। अब लड़ाई का जिक्र हुआ है तो एक नजर पिछले कुछ बड़े विवादों पर भी डाल लेते हैं, जिनमें एलजी और दिल्ली सरकार में टकराव देखने को मिला था।

  • कोरोना महामारी के बाद कई मसलों को लेकर दिल्ली सरकार और एलजी भिड़े थे। अनलॉक प्रक्रिया के दौरान ट्रायल के तौर पर होटल और साप्ताहिक बाजार खोलने के दिल्ली सरकार के फैसले को एलजी ने पलट दिया था।
  • दिल्ली के प्राइवेट अस्पतालों में 80 फीसदी आईसीयू बेड कोरोना मरीजों के लिए रिजर्व रखने के फैसले को भी एलजी ने मंजूरी नहीं दी थी. इसके अलावा जब कोरोनाकाल में बाहरी लोगों की बजाय दिल्ली के लोगों को प्राथमिकता की बात आई तो भी एलजी ने फैसले पर रोक लगा दी थी।
  • दिल्ली सरकार ने कम लक्षण वाले कोरोना मरीजों को जब होम क्वारंटीन में रखने का फैसला किया था, तो एलजी ने इसे पलटते हुए सभी मरीजों को इंस्टीट्यूशनल क्वारंटीन में रहने का आदेश दिया, विवाद के बाद फिर आदेश वापस लिया गया।
  • नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली में हुई हिंसा के मामले में दिल्ली सरकार की कैबिनेट ने पुलिस पर पक्षपात के आरोप लगाए थे और दिल्ली पुलिस के वकीलों का पैनल खारिज कर दिया था. सरकार ने खुद का पैनल बनाया, लेकिन एलजी ने उसे खारिज कर दिया।
  • इससे पहले एंटी करप्शन ब्यूरो में अधिकारियों की नियुक्ति के मामले में भी एलजी और दिल्ली सरकार में टकराव देखा गया, एलजी ने सरकार की नियुक्तियों को खारिज कर कहा कि एंटी करप्शन ब्यूरो के बॉस वो हैं और दिल्ली सरकार इन अधिकारियों की नियुक्ति नहीं कर सकती।

विधेयक पर क्या कह रही है दिल्ली सरकार

सिसोदिया ने कहा कि अगर हर फाइल एलजी को ही भेजनी होगी और सरकार का मतलब एलजी है तो फिर ये लोकतांत्रिक होने का ढ़ोंग क्यों किया जा रहा है। क्यों चुनाव कराए जा रहे हैं। डिप्टी सीएम ने कहा कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पूरी तरह उलट दिया है। वहीं सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली में बीजेपी को जनता ने पूरी तरह से नकार दिया है, इसीलिए अब दिल्ली पर शासन करने के लिए वो बिल लेकर आई है और सरकार की शक्तियां छीनने की कोशिश कर रही है।

आआपा की तरफ से बताया गया है कि अब केंद्र के इस विधेयक के खिलाफ पार्टी नेता सड़कों पर उतरेंगे। बुधवार 17 मार्च को मुख्यमंत्री केजरीवाल और पार्टी के तमाम विधायक और मंत्री पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करेंगे।