राहुल का ग्म्छा और पूर्वोत्तर की राजनीति

असम की राजनीति में मंगलदोई का ज़ीर होना इतना ही ज़रूरी है जितना की महाभारत में कुरुक्षेत्र का।977 के चुनावों में असम में कॉन्ग्रेस को 14 में से 10 सीटें मिली। तीन सीटें जनता पार्टी को मिली थीं। इनमें एक सीट मंगलदोई की थी। इस सीट पर जनता पार्टी के हीरा लाल पटवारी (तिवारी) चुनाव जीते थे। मंगलदोई लोकसभा क्षेत्र में 5,60, 297 मतदाता थे। एक साल बाद हीरा लाल की मौत हो गई तो उपचुनाव कराया गया। महज़ एक साल से थोड़े से अधिक समय में जब मतदाता सूची (वोटर लिस्ट) अपडेट की गई तो मतदाताओं की संख्या 80,000 बढ़ गई! यानी रातों-रात 15% की एकाएक वृद्धि! इनमें से लगभग 70,000 मतदाताओं का मजहब इस्लाम था। तमाम नागरिक समूहों ने इसके विरुद्ध शिकायतें दर्ज कराईं। ऐसे मामलों की संख्या भी लगभग 70 हज़ार थी, इनमें से 26 हज़ार ही टिक पाए। यहीं से भारतीय राजनीति में ‘अवैध बांग्लादेशी’ शब्द आता है, जिसका बड़ा हिस्सा बांग्लादेशी मुस्लिमों का है। भारतवासियों से हारी कॉंग्रेस

घुसपैठियों के सहारे जीती। यह सिलसिला पिछले चुनावों तक जारी रहा, आज घुसपैठिया रोहंगिया हों या बंगलादेशी, कॉंग्रेस गांधी की हो या ममता की इनके साथ खड़ी है। इसीलिए वहाँ एनआरसी। सीएए या एनपीआर लागू न अरने की बात कर वह भारतीय वोटेरलिस्ट में शामिल हुए बांग्लादेशी और रोहांगीयान घुसपैथियों को बचाना चाहते हैं योनि अब नई जीत का आधार वही हैं। मुद्दे की बात यह है कि हिन्दूकिसी भी देश में चाहे कितना भी प्रताड़ित क्यों न हो रहा हो कॉंग्रेस उसे छोड़ अवैध घुसपैठियों को न केवल शरण देने में यकीन रखती ही अपितु उन्हें नागरिक साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ती.

असम/नयी दिल्ली :

कॉन्ग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने असम के शिवसागर में हुई रैली में कहा कि सत्ता में आने पर सीएए लागू नहीं करेंगे। अक्सर अपनी बातों से ज़्यादा हरकतों की वजह से चर्चा में रहने वाले राहुल गाँधी ने इस रैली में असम के एक पारंपरिक गमछे का इस्तेमाल किया, जिससे वह राज्य के लोगों और खुद के बीच ‘कनेक्ट’ स्थापित कर पाएँ (जैसा अमूमन उनसे होता नहीं है)। 

गमछा दिखाते हुए राहुल गाँधी ने कहा कि इस पर सीएए (नागरिकता संशोधन क़ानून) लिखा हुआ है और उस पर क्रॉस का निशान बना हुआ है। इसका मतलब यह है कि चाहे जो हो जाए सीएए लागू नहीं होगा। राहुल गाँधी ने कहा, “हमने ये गमछा पहना है इस पर लिखा है सीएए। इस पर हमने क्रॉस लगा रखा है मतलब चाहे जो हो जाए सीएए नहीं होगा! हम दो हमारे दो…।। अच्छी तरह सुन लो, (सीएए) नहीं होगा, कभी नहीं होगा।” 

सीएए 2019 के दौरान संसद के दोनों सदनों से पारित किया गया था। इस पर अभी अमल किया जाना बाकी है। इस कानून की मदद से पड़ोसी देशों के प्रताड़ित अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को नागरिकता दी जाएगी। इसके लागू होने के बाद पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, बांग्लादेश के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन और ईसाई लोगों को नागरिकता दी जाएगी।  

लेकिन कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने ताजा बयान से फिर साबित किया है कि उन्हें इस्लामी देशों के प्रताड़ित हिन्दुओं, सिखों, बौद्धों, जैनों, ईसाइयों से कोई मतलब नहीं है। इन देशों में मौजूद अधिकांश लोग दलित समुदाय से आते हैं, जिनके हित की कॉन्ग्रेस हमेशा वकालत करती है। इसका मतलब साफ़ है कि ‘दलितों के अधिकारों’ के लिए लड़ने की बात छलावा मात्र है। दलितों के मुद्दे पर की गई सारी भाषणबाजी सिर्फ राजनीतिक मुनाफ़े के लिए की गई थी। 

असम में सीएए को लेकर पूर्व में काफी विरोध-प्रदर्शन हुए थे। प्रदेश में इस मुद्दे पर लगभग सारे विवाद हल हो चुके हैं। लेकिन आगामी विधानसभा चुनावों में यह बेशक बड़ा मुद्दा होगा।    

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