बीसीआई के एक वर्षीय एलएलएम कोर्स को खत्म करने की अधिसूचना को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती
याचिका में यह भी कहा गया है कि उक्त नियम अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के प्रावधानों का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता के अनुसार, नियमों में किए गए संशोधन भारत के संविधान के तहत पेशे की प्रैक्टिस के अधिकार का उल्लंघन करते हैं और बीसीआई की ओर से एक साल के एलएलएम पाठ्यक्रम को समाप्त करने का कोई उचित औचित्य नहीं है।
नयी दिल्ली(ब्यूरो):
भारत में एक साल के एलएलएम कोर्स को खत्म करने की बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) की हालिया अधिसूचना को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की गई है।
याचिकाकर्ता एक लॉ स्टूडेंट तमन्ना चंदन ने अपनी याचिका में शिक्षा के अपने मौलिक अधिकार का उल्लंघन होने का हवाला देते हुए बार काउंसिल ऑफ इंडिया लीगल एजुकेशन (पोस्ट ग्रेजुएट, डॉक्टोरल, एग्जीक्यूटिव, वोकेशनल, क्लिनिकल एंड अदर कंटीन्यूइंग एजुकेशन) रूल्स, 2020 को चुनौती दी है।
अधिवक्ता राहुल भंडारी के माध्यम से दायर याचिका में यह भी कहा गया है कि उक्त नियम अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के प्रावधानों का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता के अनुसार, नियमों में किए गए संशोधन भारत के संविधान के तहत पेशे की प्रैक्टिस के अधिकार का उल्लंघन करते हैं और बीसीआई की ओर से एक साल के एलएलएम पाठ्यक्रम को समाप्त करने का कोई उचित औचित्य नहीं है।
याचिका में एक और तर्क दिया गया है कि यूजीसी, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अधिकार क्षेत्र में भारत में उच्च कानूनी शिक्षा के नियमों को विनियमित करने की बीसीआई को शक्ति प्राप्त नहीं है।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया लीगल एजुकेशन (पोस्ट ग्रेजुएट, डॉक्टोरल, एग्जीक्यूटिव, वोकेशनल, क्लीनिकल एंड अदर कंटीन्यूइंग एजुकेशन) रूल्स, 2020 को अधिसूचित किया है, जिसमें लॉ (एलएलएम) में एक साल की मास्टर डिग्री को खत्म करने का प्रयास किया गया है।
नए नियमानुसार,
नए नियम में कहा गया कि पोस्ट ग्रेजुएट (स्नातकोत्तर डिग्री) लॉ में मास्टर डिग्री एलएलएम चार सेमेस्टर में दो साल की अवधि का होगा। इसके अलावा, एलएलएम पाठ्यक्रम केवल कानून स्नातक तक ही सीमित है।
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