जो देश को ही ‘खाना’ चाहे वह ‘अन्नदाता’ नहीं हो सकता

‘अन्नदाता आंदोलन’ में शरजील इमाम की आमद के बाद आंदोलन की नियत स्पष्ट होती नज़र आ रही है। आंदोलनकारी युवा किसान हों या समझदार किसान नेता टिकैत सभी इस टुकड़े – टुकड़े गिरोह के नए झंडाबरदार हैं जो देश के टुकड़े चाहने वाले लोगों को न केवल अपना आदर्श मानते हैं अपितु उनके लिए पीड़ित भी हैं। उन्हे जेल में देख इनका दिल भर आता है, और ‘आंदोलनकारी अन्नदाता’ इन देश द्रोह के आरोपियों की न केवल रिहाई की मांग करता है अपितु उन पर दर्ज़ हुए मुकद्दमों को भी खारिज करने की बात करता है। ‘आंदोलनकारी अन्नदाता’ को क्रिकेटर युवराज सिंह के पिता योगराज सिंह के बयान से भी कोई आपत्ति नहीं है चाहे इस आंदोलन में लगभग 65% हिन्दू किसान ही हैं। भारत की पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमति इन्दिरा गांधी के हत्यारे होने का दंभ पाले हुए अन्नदाता अब वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी ठोक देने की बात करते हुए तनिक भी नहीं घबराता है। क्या यह वाकयी किसान आंदोलन है, क्या यह वाकयी अन्नदाता हैं?

नयी दिल्ली:

एक तरफ दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसानों से केंद्र सरकार लगातार संवाद कर रही है, दूसरी ओर इस ‘आंदोलन’ से लगातार ऐसी तस्वीर सामने आ रही हैं जो इसके असल मंशा पर लगातार सवाल उठाते रहे हैं। चाहे वह खालिस्तानी ताकतों की घुसपैठ हो या फिर उमर खालिद और शरजील इमाम के लिए ताजा-ताजा दिखा समर्थन।

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में किसानों के नाम पर क्या हो रहा है? ये किसी से नहीं छिपा है। कुछ ऐसा ही ठीक एक साल पहले हुआ था। पिछले साल शाहीन बाग में सीएए विरोध के नाम पर इसी तरह समुदाय विशेष के लोगों का जमावड़ा हुआ था। तब भी दिल्ली की सड़कों को लोकतंत्र के नाम पर ब्लॉक किया गया था और इस बार भी हाल कुछ यही है।

अंतर यदि है तो बस ये कि पिछले साल दिल्ली में हुए प्रदर्शन कट्टरपंथ की जमीन पर भड़के थे। मगर, इस बार सारा खेल राजनैतिक पार्टियों का है। ‘मासूम’ किसानों को ऐसे कानून के ऊपर विपक्षी पार्टियों द्वारा बरगलाया जा रहा है जिसमें निहित प्रावधानों को लागू करने की घोषणाएँ वह एक समय में खुद कर चुके हैं। स्थिति ये है कि धरने पर बैठा कोई शख्स सरकार की सुनने को बिलकुल राजी नहीं है, वह सिर्फ एक माँग पर अड़े हैं कि कानून को निरस्त किया जाए। 

मगर अब धीरे-धीरे यह प्रदर्शन राजनीति से प्रेरित लगने से ज्यादा खतरे की घंटी नजर आने लगा है। वही खतरे की घंटे जिसे शाहीन बाग के दौरान हम नजरअंदाज करते रहे और अंत में उसका भीषण रूप हमें उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए हिंदू विरोधी दंगों के रूप में देखने को मिला।

आज किसानों के प्रोटेस्ट में प्रदर्शनकारियों के हाथ में शरजील इमाम और उमर खालिद जैसे तमाम आरोपितों की तस्वीर थी। जाहिर है किसानों के इस प्रदर्शन से इनका कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन तब भी इन पोस्टरों के साथ आई प्रदर्शन की तस्वीर इस ओर इशारा करती है कि शाहीन बाग का वामपंथी-कट्टरपंथी गिरोह सक्रिय है।

प्रश्न उठता है कि बिना वजह आखिर कोई किसान महिला अपने प्रदर्शन में उस शरजील इमाम को रिहा क्यों करवाना चाहेगी जो अपने भाषण में असम को भारत से काटने की बात कह रहा था? इन महिलाओं को क्या मतलब है उस उमर खालिद से जो ट्रंप के आने पर दिल्ली में दंगे करवाना चाहता था और उसके लिए पहले से गुपचुप ढंग से बैठकें कर रहा था?  जाकिर नाइक से मिलने वाले खालिद सैफी से आखिर किसान प्रदर्शन का क्या लेना-देना? अर्बन नक्सलियों से कृषि कानून का क्या संबंध?

आज सामने आई तस्वीर ने साफ कर दिया कि पिछले दिनों इस प्रदर्शन की मंशा पर उठे सवाल निराधार नहीं थे। खालिस्तानियों का समर्थन पाकर भी इस पर कोई स्पष्टीकरण न देने वाले किसान नेता अब रेलवे ट्रैक्स को ब्लॉक करने की धमकियाँ तक दे चुके हैं। पिछले दिनों इसी प्रोटेस्ट के मंच से युवराज सिंह के पिता योगराज सिंह ने हिंदुओं के ख़िलाफ़ जहर उगला था।

योगराज ने खुलेआम कहा था, “जिस सरकार की आप बात कर रहे हैं केंद्र की, आपको पता है कि ये कौन हैं? ये वही हैं, जो अपनी बेटियों की डोली हाथ जोड़ कर मुगलों के हवाले कर देते थे।” योगराज के शब्द थे:

इसके अलावा हमारे तथाकथित अन्नदाताओं ने अपनी माँगे मनवाने के लिए खुलेआम पिछले दिनों मीडिया के सामने ये तक कह दिया था कि इंदिरा को ठोका, मोदी को भी ठोक देंगे

क्या संवैधानिक ढंग से हो रहे किसी प्रदर्शन में ऐसी बातें निकल कर सामने आती हैं? योगराज के हिंदू घृणा से भरे बयान पर कोई स्पष्टीकरण नहीं आया इंदिरा ठोक दी वाले बयान पर किसी ने मलाल नहीं किया। इसके बदले सरकार को अलग से धमकाया जा रहा है कि ट्रैक ब्लॉक होंगे

आजादी संग्राम में सिखों के बलिदान को आज कोई नहीं भुला रहा, कोई इस बात से इंकार नहीं कर रहा कि हिंदुओं के परेशानी के समय में सिख हमेशा उनके साथ रहे, कोई उनकी बहादुरी को नहीं ललकार रहा, लेकिन आप अपने विवेक पर फैसला कीजिए कि आखिर आज प्रदर्शन में शामिल किसान यूनियन के लोग सरकार की बातें सुनने को तैयार नहीं है। क्यों जिद पर अड़े हैं। क्यों बताया जा रहा है कि पहले से वह लोग 4 महीने का राशन लेकर आए हैं?

किसान आंदोलन में उमर खालिद और शरजील इमाम के पोस्टर का पहुँचना बताता है कि मुद्दों के नाम दिल्ली वालों को एक बार फिर भटकाया जा रहा है। शाहीन बाग के छद्म एजेंडे के बेनकाब होने के बाद अब वही ताकतें कृषि कानून के विरोध नाम रोटी सेंकने की कोशिश में हैं। प्रदर्शनों पर, गुरुद्वारों पर नमाज पढ़ने के लिए समुदाय विशेष को जगह देख कर नया प्रोपेगेंडा फैलाया जा रहा है।

साभार : जयन्ती मिश्रा

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