कृषि विधेयक : सत्तापक्ष की इसे ‘आज़ादी का तोहफा’ तो विपक्ष इसे क्यों ‘मौत का फरमान’ कह रहा है?

कृषि हितैषी होने के दावों के बीच मोदी सरकार के खिलाफ 2014 से लेकर अब तक कई बड़े किसान आंदोलन हो चुके हैं. अब कृषि सुधार कानून के बहाने किसान संगठनों और विपक्षी पार्टियों को एक बार फिर से सरकार के खिलाफ लामबंद होने का बहाना मिल गया है. अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने 25 सितंबर को भारत बंद बुलाया है. विपक्षी दलों ने इसे खाद पानी देना शुरू कर दिया है. बिहार विधानसभा चुनाव सिर पर हैं जहां ज्यादातर किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) नहीं मिलता, क्योंकि वहां 2016 से ही किसान बाजार के हवाले है. वहां सरकार ने पिछले पांच साल में कुल उत्पादन का एक फीसदी गेहूं भी नहीं खरीदा है. सरकार जेडीयू और बीजेपी चला रहे हैं.

चंडीगढ़ – 24 सितंबर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन्हें किसानों के लिए रक्षा कवच कह रहे हैं. उधर, कांग्रेस नेता राहुल गांधी के लिए ये किसानों की मौत का फरमान हैं. इससे भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि कृषि से जुड़े और संसद से पारित हो चुके तीन विधेयकों पर राय के जो दो छोर हैं उनके बीच कितना फासला है. देश के कई राज्यों में किसान इन विधेयकों पर गुस्से का इजहार करते हुए सड़क पर हैं और कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी पार्टियां उनके साथ खड़ी हैं. दूसरी तरफ सरकार का कहना है कि विधेयकों में किसानों का बेहतर भविष्य छिपा है और विपक्ष उन्हें बहका रहा है.

कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक

आगे बढ़ने से पहले इन तीनों विधेयकों के बारे में जानते हैं. संसद के दोनों सदनों से पारित हो चुके ये तीनों विधेयक राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद कानून बनने वाले हैं. इनमें पहला है कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक. इसमें प्रावधान है कि किसान अपनी उपज को मंडी के बाहर देश में कहीं भी बेच सकता है. इस विधेयक के अध्याय दो के तीसरे बिंदु में कहा गया है, ‘किसी भी किसान, व्यापारी या इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग एंड ट्रांज़ैक्शन प्लेटफॉर्म को राज्य के भीतर या बाहर किसी भी व्यापार क्षेत्र में उपज का व्यापार करने की आजादी होगी.’ व्यापार क्षेत्र का मतलब खेत से लेकर वेयर हाउस, कोल्ड स्टोरेज और प्रोसेसिंग यूनिटों सहित तमाम ऐसी जगहों से है जहां फसल की खरीद-बिक्री हो सकती है. विधेयक के मुताबिक खरीदार को किसान को सौदे के दिन ही या फिर अधिकतम तीन दिन के भीतर भुगतान करना होगा. सरकार के मुताबिक इलेक्‍ट्रॉनिक व्‍यापार और इससे जुड़े मामलों के लिए एक सुविधाजनक ढांचा भी उपलब्‍ध कराया जाएगा.

कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक.

कृषि से जुड़ा दूसरा विधेयक है कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक. इसमें अनुबंध पर खेती यानी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से जुड़े प्रावधान हैं. कहा जा रहा है कि इनसे किसानों को व्यापारियों, कंपनियों, प्रसंस्करण इकाइयों और निर्यातकों से सीधे जोड़ने का रास्ता बनेगा. इस विधेयक के दूसरे अध्याय की बिंदु संख्या 3(1) में कहा गया है कि ‘कोई भी किसान अपनी उपज के सिलसिले में एक लिखित समझौता कर सकता है जिसमें इस उपज की आपूर्ति के लिए शर्तें तय की जा सकती हैं जिनमें आपूर्ति का समय, उसकी गुणवत्ता, ग्रेड, मानक, कीमत और ऐसी दूसरी चीजें शामिल हैं.’ यह समझौता एक फसली सीजन से लेकर अधिकतम पांच साल तक के लिए किया जा सकता है. सरकार के मुताबिक देश में 10 हजार कृषक उत्पादक समूह (एफपीओ) बनाए जा रहे हैं जो छोटे किसानों को आपस में जोड़कर उनकी फसल को बाजार में उचित लाभ दिलाने की दिशा में कार्य करेंगे. खेती से जुड़े इन दोनों विधेयकों में विवाद की स्थिति में निपटारे की व्यवस्था का भी प्रावधान है.

आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक.

संसद द्वारा पारित तीसरा विधेयक है आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक. इसके तहत सरकार ने अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्‍याज और आलू को आवश्‍यक वस्‍तुओं की सूची से हटा दिया है. यानी युद्ध और अकाल जैसे कुछ असाधारण हालात को छोड़कर इन चीजों के उत्पादन और बिक्री में सरकार का कोई दखल नहीं रहेगा. साथ ही पहले की तरह इनके भंडारण यानी स्टॉक की कोई सीमा भी नहीं होगी. यानी कोई भी व्यापारी इनका जितना चाहे स्टॉक कर सकता है. आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में बना था. तब से सरकार इस कानून की मदद से ‘आवश्यक वस्तुओं’ का उत्पादन, आपूर्ति और वितरण नियंत्रित करती रही है. इसके पीछे सोच यह है कि इससे जमाखोरी पर लगाम लगती है और लोगों को जरूरी चीजें ठीक दाम पर उपलब्ध होती हैं.

इन तीनों विधेयकों को सरकार ऐतिहासिक बता रही है. मसलन कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि यह किसानों के लिए बंधनों से मुक्ति है. सरकार के मुताबिक यह कानून किसानों के लिए अधिक विकल्‍प खोलेगा, उनकी विपणन यानी बेचने की लागत कम करेगा और अपनी फसल की बेहतर कीमत वसूलने में उनकी मदद करेगा.

उधर, कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक के बारे में सरकार का कहना है कि यह कानून भी विपणन की लागत कम करेगा और किसानों की आय में सुधार करेगा. इसे लेकर जारी विज्ञप्ति में कहा गया है, ‘किसान सीधे विपणन में शामिल होंगे जिससे बिचौलियों का सफाया होगा और किसानों को पूरा मूल्‍य प्राप्‍त होगा.’ सरकार का यह भी कहना है कि इस विधेयक से किसान के लिए एक तरफ जोखिम कम होगा तो दूसरी तरफ उस तक आधुनिक तकनीक और बेहतर बीज-खाद जैसी चीजें भी पहुंचेंगी.

तो कुल मिलाकर तीनों विधेयकों से होने वाले बदलाव का जो सार है वह यह है कि किसान अब अपनी उपज कहीं भी बेच सकता है, फसल उगाने से पहले ही वह व्यापारी के साथ समझौता कर सकता है और अनाज, दलहन या तिलहन के भंडारण पर अब कोई सीमा नहीं है.

कई जानकार इन्हें सही दिशा में उठाए गए कदम मानते हैं. पत्रकारों के साथ बातचीत में कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी कहते हैं, ‘ये ऐसे ही है जैसे 1991 में लाइसेंस-परमिट राज खत्म हुआ था क्योंकि आप बेहतर विकल्प दे रहे हैं. बाजार खोल रहे हैं जहां व्यापारी, निर्यातक और किसान एक साथ पहुंच सकते हैं और सीधे व्यापार कर सकते हैं. इसके चलते बीच के लोगों को जो पैसा देना पड़ता है वह कम होगा.’ उड्डयन क्षेत्र का उदाहरण देते हुए वे आगे जोड़ते हैं, ‘अभी की स्थिति को देखकर मुझे इंडियन एयरलाइंस वाला वक्त ध्यान में आता है. तब एक ही हवाई सेवा थी. यात्रा की कीमत ज्यादा थी और गुणवत्ता कम. फिर जब आपने प्रतिस्पर्धा का माहौल बनाया और तीन या पांच और एयरलाइंस को आने की इजाजत दी तो उपभोक्ता को फायदा हुआ. किसान को भी फायदा होगा.’

लेकिन अगर ऐसा है तो कई राज्यों में किसान इन तीनों विधेयकों का विरोध करते हुए सड़क पर क्यों उतरे हुए हैं? सरकार और इन विधेयकों के समर्थकों का तर्क है कि विपक्षी दल किसानों को भ्रमित कर रहे हैं. अशोक गुलाटी भी मानते हैं कि इन विरोध प्रदर्शनों का संबंध राजनीति से भी जुड़ता है. वे कहते हैं, ‘कुछ राज्य नाराज हैं क्योंकि उन्हें डर है कि मंडी शुल्क जैसे राजस्वों से मिलने वाली उनकी कमाई कम हो सकती है.’ अशोक गुलाटी के मुताबिक यह डर बेबुनियाद है क्योंकि सरकारी मंडियां खत्म नहीं की जा रही हैं और जो वहां अपनी फसल बेचना चाहते हैं उन्हें कोई नहीं रोक रहा.

सरकार द्वारा बनाई गई ‘डबलिंग फार्मर्स इनकम’ (डीएफआई) कमेटी के अध्यक्ष डॉ. अशोक दलवई भी कुछ ऐसा ही मानते हैं. उनके मुताबिक सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर उपज खरीदती है और यह प्रक्रिया जारी रहेगी. अशोक दलवई कहते हैं, ‘किसान को जहां भी उसकी फसल का सही रेट मिलेगा वह वहां पर उसे बेचेगा. उसे मंडी से अच्छा रेट बाहर मिलेगा तो वो बाहर बेचेगा और मंडी में अच्छा रेट मिलेगा तो मंडी में बेचेगा. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मामले में स्थिति साफ करने की कोशिश की है. अपने एक ट्टीट में उनका कहना है, ‘पहले भी कह चुका हूं और एक बार फिर कहता हूं: MSP की व्यवस्था जारी रहेगी. सरकारी खरीद जारी रहेगी.’

आगे बढ़ने से पहले पहले मंडी और सरकारी खरीद की इस व्यवस्था को समझते हैं.

आजादी के पहले भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में साहूकारों का बोलबाला था. ये साहूकार पशुधन और शादी-ब्याह जैसे तमाम खर्चं के लिए किसानों को ऊंचे सूद पर पैसा उधार देते थे और इसका फायदा उठाकर उनकी फसल औने-पौने दाम पर खरीद लिया करते थे. आजादी के बाद किसानों को इस शोषण से आजादी दिलाने की कवायदें शुरू हुईं. इनका नतीजा यह हुआ कि 1950 के दशक से राज्य अपने-अपने कानून बनाकर कृषि उपज वितरण समितियों (एपीएमसी) और इनके तहत चलने वाली मंडियों की स्थापना करने लगे. किसान इन मंडियों में जाकर अपनी फसल बेच सकता था. यहां बिचौलिए या आढ़तिये होते थे जिन्हें सरकार कुछ शुल्क वसूलकर लाइसेंस देती थी. ये आढ़तिए किसान से उपज लेकर खरीदार को बेच देते थे. इसमें उनका एक निश्चित कमीशन बनता था. उधर, खरीदार को हर सौदे के लिए एक तय मंडी शुल्क चुकाना पड़ता था.

1960 के दशक में सरकार ने फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी घोषित कर मंडियों में सरकारी खरीद केंद्र खोलने भी शुरू कर दिए. एमसपी का निर्धारण कृषि लागत और मूल्य आयोग करता था. इसमें खेती की लागत, उपज की मांग और आपूर्ति की स्थिति आदि कारकों का ध्यान रखा जाता था. लागत में बीज-सिंचाई-खाद ही नहीं, खेत और परिवार के श्रम का खर्च भी शामिल होता था. एमएसपी के पीछे की सोच यह थी कि एक तो किसान को किसी भी हालत में नुकसान न हो और दूसरे, खाद्यान्न वितरण से जुड़ी सरकारी योजनाओं के लिए अनाज भी जुट जाए. अभी एमएसपी के तहत 23 फसलें आती हैं. इनमें फल और सब्जियां शामिल नहीं हैं.

लेकिन इन तमाम कवायदों के बावजूद सच यह है कि आज भी एमएसपी के तहत होने वाली सरकारी खरीद तक महज छह फीसदी किसानों की ही पहुंच है. यह बात 2015 में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के पुनर्गठन का सुझाव देने के लिए बनी शांता कुमार समिति ने अपनी रिपोर्ट में कही थी. यानी बाकी किसान दूसरे खरीदारों के भरोसे हैं. जानकारों के मुताबिक उन्हें अपनी फसल उसी दाम पर बेचनी होती है जिस पर बिचौलिये चाहते हैं क्योंकि उनका गठजोड़ एक कीमत तय कर देता है और किसान मजबूर हो जाता है. जैसा कि उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर जिले में अपनी चार एकड़ जमीन पर गेहूं और धान की खेती करने वाले सुरेंद्र भाटी कहते हैं, ‘जो किसान ट्रैक्टर पर अपनी फसल लादकर मंडी आया है वह बार-बार घर तो नहीं लौट सकता. आने-जाने में डीजल लगता है और खर्च बढ़ता है. इसलिए मंडी गए तो फसल बेचकर ही घर जाना होता है.’

कई बार ऐसा भी देखा गया है कि बिचौलिये किसान से औने-पौने दाम पर माल उठाकर उसे स्टोर कर लेते हैं और फिर बाद में उसे एमएसपी पर बेच देते हैं. यानी एमएसपी का फायदा किसानों के बजाय उन्हें मिलता है. आर्थिक सहयोग विकास संगठन और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की एक रिपोर्ट बताती है कि 2000 से 2017 के बीच किसानों को उत्पाद का सही मूल्य न मिल पाने के कारण 45 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ.

यही वजह है कि इन तीनों विधेयकों के समर्थक इन्हें सही दिशा में सही कदम करार देते हैं. वे यह तो मानते हैं कि कृषि क्षेत्र में अब भी बहुत सी चीजें हैं जिन्हें दुरुस्त किए जाने की जरूरत है, लेकिन उनके मुताबिक सबसे पहले इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा के लिए दरवाजे खोलना जरूरी है. अशोक गुलाटी कहते हैं, ‘सरकार हर किसान का सारा अनाज तो नहीं खरीद सकती. इसके अलावा फल और सब्जियों के मामले में न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसी व्यवस्था भी नहीं है.’ उनके मुताबिक इसीलिए ये तीनों कानून सही दिशा में सही कदम हैं.

लेकिन बहुत से लोग इससे इत्तेफाक नहीं रखते. सत्याग्रह से बातचीत में मुंबई स्थित इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ़ डेवेलपमेन्ट रिसर्च की कृषि अर्थशास्त्री सुधा नारायणन का मानना है कि सरकार भले ही आश्वासन दे रही हो कि मंडियों की व्यवस्था जारी रहेगी, लेकिन ऐसा होता नहीं दिखता. वे कहती हैं, ‘अगर आप मंडी में टैक्स ले रहे हैं और मंडी के बाहर कोई टैक्स नहीं लग रहा है तो क्या होगा? लोग बाहर ही व्यापार करना पसंद करेंगे. आढ़तिये और व्यापारी मंडी में क्यों बैठेंगे जब वहां उन्हें शुल्क देना पड़ेगा? वे अपना स्टॉल बाहर लगाएंगे. व्यापार बाहर होने लगेगा तो मंडियां धीरे-धीरे अपने आप खत्म हो जाएंगी.’

इस मुददे को लेकर विरोध प्रदर्शनों में सक्रिय और स्वराज इंडिया पार्टी के मुखिया योगेंद्र यादव भी इन विधेयकों को किसानों के हितों के उलट बताते हैं. राष्ट्रिय चैनल के साथ बातचीत में वे कहते हैं, ‘ये कितना भद्दा मजाक देश में चल रहा है. किसान के नाम पर कहा जा रहा है कि हम तुम्हें ऐतिहासिक गिफ्ट दे रहे हैं. लेकिन वो किसान हाथ जोड़ रहा है कि भैय्या मुझे गिफ्ट मत दो. मैंने ये चीज कभी नहीं मांगी. जो चीज मैंने मांगी है मुझे वो दे दो.’ वे आगे जोड़ते हैं, ‘किसानों की सिर्फ इतनी सी मांग है कि एमएसपी को सरकार कानून बना दे, कि वो जो भी रेट तय करेगी, देश भर में मंडी या उससे बाहर कहीं पर भी उसके नीचे खरीद नहीं होगी.’

कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा भी इससे इत्तेफाक रखते हैं. अपने एक एक लेख में वे कहते हैं, ‘नए प्रावधानों के बाद सब बोल रहे हैं कि किसानों को अच्छा दाम मिलेगा. अच्छा दाम तो न्यूनतम समर्थन मूल्य से ज्यादा ही होना चाहिए, तो फिर समर्थन मूल्य को पूरे देश में वैध क्यों न कर दिया जाए?’ भारतीय किसान यूनियन (हरियाणा) के अध्यक्ष और राज्य में इन कानूनों के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शन में अहम भूमिका निभा रहे गुरनाम सिंह चढ़ूनी भी यह बात दोहराते हैं. एक दैनिक समाचार पत्र के साथ बातचीत में वे कहते हैं, ‘अगर ये एमएसपी नहीं खत्म कर रहे तो हमारी छोटी-सी मांग मान लें और एमएसपी की गारंटी का कानून बना दें. कानून में बस इतना लिख दें कि एमएसपी से कम दाम पर फसल खरीदना अपराध होगा, हम लोग कल ही अपना आंदोलन वापस ले लेंगे.’

कई जानकार मानते हैं कि इन विधेयकों को लेकर सरकार जो तर्क दे रही है उनमें झूठ और विरोधाभासों की भरमार है. मसलन सरकार का कहना है कि वह एक देश एक बाजार वाली व्यवस्था की तरफ बढ़ना चाहती है. लेकिन देविंदर शर्मा कहते हैं, ‘अब जब वैध रूप से मंडी के बाहर भी अनाज बिकेगा, तो एक देश दो बाजार हो जाएगा.’ उधर, योगेंद्र यादव कहते हैं, ‘पहला झूठ है ये कहना कि किसान अब कहीं पर भी बेच सकता है. इसका मतलब है कि पहले नहीं बेच सकता था. ये एकदम झूठ है. आप मुझे एक भी कानून बता दीजिए जिसमें ऐसी पाबंदी हो. मैं आज भी चाहूं तो अपने खेत का बाजरा कलकत्ता में जाकर बेच सकता हूं. पाबंदी केवल आढ़तिए पर थी, व्यापारी पर थी.’

सुधा नारायणन की बात को आगे बढ़ाते हुए योगेंद्र यादव कहते हैं, ‘दूसरा झूठ है ये कहना कि अब मंडी में आने से किसान को ज्यादा ऑप्शंस मिल जाएंगे. ये बात इसलिए झूठ है कि क्यों सरकारी मंडी के बाहर जो मंडी अब लगा करेगी उस मंडी में टैक्स नहीं लगा करेगा. वहां रजिस्ट्रेशन नहीं होगा, रिकॉर्डिंग नहीं होगी. इसका मतलब है कि दो तीन साल में सरकारी मंडी ध्वस्त हो जाएगी. ये जो सरकारी मंडी है वो किसान के ऊपर एक छत है. कच्ची छत है. टूटी हुई छत है. इसमें से पानी भी चूता है. और बीजेपी और सरकार कहती है कि देखो कितनी खराब छत है. हम ऐसा करते हैं तुम्हें आजादी दे देते हैं. छत ही हटा देते हैं.’

मंडियों के खत्म होने के जो कई प्रभाव होंगे उनके बारे में गुरनाम सिंह कहते हैं, ‘अभी सारा व्यापार मंडियों के जरिए होता है. वहां एक टैक्स व्यापारी को चुकाना होता है जो आखिरकार किसानों के ही काम आता है. पंजाब, हरियाणा के खेतों से गुजरने वाली बेहतरीन पक्की सड़कें जो आपको दिखती हैं वह इसी टैक्स से बन सकी हैं. अब सरकार मंडियों से बाहर व्यापार की छूट दे रही है तो इससे किसानों को कोई फायदा नहीं होगा, बल्कि बड़े व्यापारियों को फायदा होगा, क्योंकि वे लोग बिना टैक्स चुकाए बाहर से खरीद कर सकेंगे.’ उनके मुताबिक जब मंडियों से सस्ता माल व्यापारी को बाहर मिलेगा तो वह क्यों टैक्स चुकाकर मंडी में माल खरीदेगा.

इस बारे में सुधा नारायणन कहती हैं, ‘तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे जिन राज्यों में मंडियां उतनी अहम नहीं हैं और जहां रिलायंस जैसी कंपनियां सीधे किसानों से खरीद करती हैं वहां इसके लिए मंडी की कीमत को ही आधार बनाया जाता है. लेकिन अगर मंडियां ही नहीं रहती हैं तो कीमत कैसे तय होगी? किसान को कैसे पता चलेगा कि उसे सही कीमत मिल रही है या नहीं? विधेयकों में पारदर्शिता की बात कई बार कही गई है लेकिन वह पारदर्शिता कहीं नहीं दिखती.’

तो फिर क्या किया जाए?

क्या कई खामियों वाली मौजूदा व्यवस्था ही चलने दी जाए? जानकारों की मानें तो सही विकल्प मौजूदा व्यवस्था की खामियां दूर करना है. योगेंद्र यादव कहते हैं, ‘किसान कह रहा है कि मेरी छत को आप मजबूत करो. छत को मेरे सिर पर से हटाओ मत. यह सही है कि आढ़ती कई जगहों पर किसानों का शोषण कर रहे हैं जिसके लिए एपीएमसी एक्ट में सुधार की जरूरत है.’ कई दूसरे जानकारों के मुताबिक भी मंडियों की व्यवस्था में सुधार किया जाना चाहिए. मसलन सुधा नारायणन का मानना है कि मंडियों में सरकारी खरीद की व्यवस्था का विकेंद्रीकरण होना चाहिए क्योंकि इसका ज्यादातर हिस्सा पंजाब और हरियाणा केंद्रित रहा है. ‘इस मामले में बीते कुछ समय के दौरान ओडिशा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों ने बढ़िया काम किया है और वहां सरकारी खरीद के दायरे में आने वाले छोटे किसानों की संख्या बढ़ी है’ सुधा कहती हैं.

देविंदर शर्मा का भी मानना है कि देश में मंडियों की संख्या में अभी काफी बढ़ोत्तरी की गुंजाइश है. उनके मुताबिक अभी देश में करीब सात हजार मंडियां हैं और यह संख्या 42 हजार तक होनी चाहिए. वे यह भी कहते हैं कि भारत को अमेरिका और यूरोप का मॉडल सीखने की जरूरत नहीं है. देविंदर शर्मा के मुताबिक ‘गांवों-किसानों के हित में हमारा मॉडल अच्छा है एपीएमसी मंडियों और न्यूनतम समर्थन मूल्य का, जो हमने कहीं से उधार नहीं लिया… किसान की आजादी तो तब होगी, जब उसे विश्वास होगा कि मैं कहीं भी अनाज बेचूं, मुझे न्यूनतम समर्थन मूल्य तो मिलेगा ही. हमारा मॉडल दुनिया के लिए मॉडल बन सकता है.’ उनके मुताबिक एक किसान आय और कल्याण आयोग भी बनना चाहिए जो तय करे कि किसानों के लिए एक सरकारी कर्मचारी के न्यूनतम वेतन के बराबर आय कैसे सुनिश्चित हो.

ये सभी जानकार मानते हैं कि नए कानूनों से सिर्फ नुकसान ही होना है. योगेंद्र यादव कहते हैं, ‘ये तो ऐसा हुआ कि चूहे कुछ समस्या कर रहे हैं तो अब मैं भालू ले आता हूं. नए कानून से क्या होगा? आढ़ती हटेगा नहीं इस सिस्टम से. अगर अडानी या अंबानी कोई प्राइवेट मंडी स्थापित करेंगे तो वो आढ़ती के बगैर नहीं होगा. तब भी मिडिलमैन होगा. जो मंडी के अंदर आढ़ती बैठा हुआ है वही अपनी एक डेस्क बाहर भी लगा लेगा. तो किसानों को मिडिलमैन से मुक्ति नहीं मिलेगी. छोटे मिडिलमैन की जगह बड़ा मिडिलमैन आ जाएगा. आज तक जो मिडिलमैन था वो आढ़ती कहलाता था. अब अंग्रेजी बोलने वाले सुपर मिडिलमैन आया करेंगे.’

सुधा नारायणन के मुताबिक कृषि क्षेत्र को बाजार के लिए खोलने के नतीजे देखने हों तो अमेरिका जैसे देशों की तरफ नजर घुमानी चाहिए जहां सब कुछ बाजार के हवाले है. वे कहती हैं, ‘अमेरिका में किसानों पर कर्ज बढ़ा है. उनकी आत्महत्याएं भी बढ़ी हैं और इसके नतीजे में हर साल सरकार द्वारा उन्हें दिया जाना संरक्षण (सब्सिडी) भी बढ़ा है.’ कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग का उदाहरण देते हुए वे आगे जोड़ती हैं, ‘अमेरिका में शुरुआत में कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग का मॉडल बहुत सफल हुआ. लेकिन फिर उद्योग जगत ने पोल्ट्री किसानों पर नई और बेहतर तकनीकों में निवेश का दबाव बनाया. इसके लिए किसान कर्ज लेते गए. उधर, पोल्ट्री उत्पादों की कीमतें गिरती गईं और कर्ज न चुका पाने के चलते किसानों को अपने पोल्ट्री फार्मों से हाथ धोना पड़ा. अब वहां पोल्ट्री और डेयरी क्षेत्र में सिर्फ बड़े-बड़े फार्म बचे हैं.’

यह उस अमेरिका का हाल है जहां वे प्रावधान पहले से वजूद में हैं

यह उस अमेरिका का हाल है जहां वे प्रावधान पहले से वजूद में हैं जो भारतीय संसद द्वारा पारित तीनों विधेयकों में किए गए हैं. मतलब यह है कि जिन छोटे किसानों के हितों का हवाला देकर सरकार इन कानूनों को जरूरी बता रही है, उन्हीं को इनसे सबसे ज्यादा खतरा हो सकता है.

इस बात को आंकड़ों से भी समझने की कोशिश करते हैं. जैसा कि जिक्र हुआ, अमेरिका में खेती के क्षेत्र में वायदा बाजार और अनुबंध खेती जैसी व्यवस्थाएं करीब सात दशक से हैं. वहां वालमार्ट जैसी बड़ी कंपनियां हैं जिनके भंडारण की कोई सीमा नहीं है. लेकिन वहां का किसान अगर आज बचा हुआ है तो यह सब्सिडी की वजह से ही है. अमेरिका में किसानों को मिल रही सालाना औसत सब्सिडी 7,000 डॉलर है. यही नहीं, इस साल अमेरिका के किसानों पर कुल मिलाकर 425 अरब डॉलर का कर्ज हो गया है. इसके अलावा 1970 से लेकर अब तक वहां 93 प्रतिशत डेयरी फार्म बंद हो चुके हैं. और यहां के ग्रामीण इलाकों में आत्महत्या की दर शहरों से 45 प्रतिशत ज्यादा है.

यूरोप का भी हाल अमेरिका से जुदा नहीं है. इंग्लैंड में बीते तीन साल में 3,000 डेयरी फार्म बंद हुए हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक अमेरिका, यूरोप और कनाडा में खेती ही नहीं बल्कि कृषि निर्यात भी सब्सिडी पर टिका है. ताजा आंकड़ों के अनुसार अमीर देश अपने किसानों को हर साल लगभग 246 अरब डॉलर की सब्सिडी देते हैं. इन सारे आंकड़ों का जिक्र करते हुए देविंदर शर्मा सवाल करते हैं, ‘बाजार अगर वहां कृषि की मदद करने की स्थिति में होता तो इतनी सब्सिडी की जरूरत क्यों पड़ती? हमें सोचना चाहिए कि खुले बाजार का यह पश्चिमी मॉडल हमारे लिए कितना कारगर रहेगा?’

‘आज की व्यवस्था में सौ दोष हों लेकिन वो किसान की व्यवस्था है

योगेंद्र यादव कहते हैं, ‘आज की व्यवस्था में सौ दोष हों लेकिन वो किसान की व्यवस्था है. अगर कंपनियों की खेती होगी तो ये अमेरिका के स्टाइल की खेती भारत में नहीं चल सकती. अमेरिका में 100 में से सिर्फ पांच लोग खेती करते हैं. हमारे यहां 100 में से 45 लोग सीधे खेती कर रहे हैं और 100 में से 60 लोग खेती पर निर्भर हैं. अमेरिका की नकल करके भारत का किसान बर्बाद हो जाएगा. हमारा कृषि उत्पादन भले ही बढ़ जाए, किसान की आमदनी नहीं बढ़ेगी. किसान की खुशहाली नहीं बढ़ेगी. यह कानून नहीं किसान की बर्बादी का पूरा ब्लूप्रिंट है.’ गुरनाम सिंह भी कहते हैं कि ये कानून खेती और किसानी की कब्र खोदने के लिए बनाए गए हैं.

दुनिया ही क्यों, भारत में भी जहां किसान को बाजार का विकल्प दिया गया है वहां हाल खराब हुआ है. देविंदर शर्मा लिखते हैं, ‘2006 में बिहार में अनाज मंडियों वाले एपीएमसी एक्ट को हटा दिया गया. कहा गया कि इससे निजी निवेश बढ़ेगा, निजी मंडियां होंगी, किसानों को अच्छी कीमत मिलेगी. आज बिहार में किसान बहुत मेहनत करता है, लेकिन उसे जिस अनाज के लिए 1,300 रुपये प्रति क्विंटल मिलते हैं, उसी अनाज की कीमत पंजाब की मंडी में 1,925 रुपये है. पंजाब और हरियाणा में मंडियों और ग्रामीण सड़कों का मजबूत नेटवर्क है. इसी वजह से पंजाब और हरियाणा की देश की खाद्य सुरक्षा में अहम भूमिका है.’

गुरनाम सिंह के अलावा कई जानकार हैं जो यह मानते हैं कि ये तीनों कानून किसानों के लिए नहीं बल्कि कॉरपोरेट कंपनियों के लिए बने हैं. योगेंद्र यादव कहते हैं, आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम एक्ट को जमाखोरी अनुमति कानून बोलना चाहिए. वो स्टॉकिस्टों के लिए बना है. जो कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट है वो कंपनी के लिए बना है. और जो एपीएमसी को बाइपास करने का एक्ट है उसमें ट्रेडिंग जोन बनाने की बात है. ट्रेडिंग जोन आप और हम तो बना नहीं सकते. वो तो कोई बड़ी कंपनी ही बनाएगी न! आप अर्थशास्त्रियों से पूछेंगे तो वो खुलकर बताएंगे कि भारत के कृषि क्षेत्र में कंपनियों की जरूरत है. क्योंकि वहां निवेश बहुत कम है. और वो तो कंपनियां ही करेंगी. सरकार तो करेगी नहीं. तो कुल मिलाकर यह भारत के कृषि क्षेत्र में कंपनी राज लाने की कोशिश है. इसीलिए किसान इसका विरोध कर रहा है.’

उधर, सुधा नारायणन कहती हैं, ‘इन तीनों कानूनों के पीछे अगर यह दृष्टि होती कि किसानों का भला करना है तो फिर आपकी रणनीति कुछ अलग होती. आप पहले कृषक उत्पादक समूह खड़े करते. ऐसी व्यवस्थाएं बनाते कि किसान इन कानूनों का लाभ लेने की स्थिति में होते. अभी की स्थिति में तो ऐसा नहीं है.’

इस मुद्दे पर सरकार के विरोध में खड़ी कांग्रेस पर भी सवाल उठ रहे हैं. कहा जा रहा है कि 2019 के आम चुनाव के लिए जारी घोषणापत्र में कांग्रेस ने कृषि क्षेत्र में वही सब करने का वादा किया था जो एनडीए सरकार कर रही है. इसके पूर्व राष्ट्रीय प्रवक्ता और अब पार्टी से निष्कासित किए जा चुके संजय झा ने बीते दिनों एक ट्वीट में कहा, ‘हमने खुद कहा था कि सत्ता में आने पर हम एपीएमसी एक्ट खत्म करेंगे और कृषि उत्पादों को प्रतिबंधों से मुक्त किया जाएगा. कृषि विधेयकों में मोदी सरकार ने यही किया है. इस मामले में भाजपा और कांग्रेस एक ही तरफ हैं.’ इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी यही बात कही थी. उनका कहना था, ‘चुनाव के समय किसानों को लुभाने के लिए ये बड़ी-बड़ी बातें करते थे, लिखित में करते थे, अपने घोषणापत्र में डालते थे और चुनाव के बाद भूल जाते थे. और आज जब वही चीजें एनडीए सरकार कर रही है, किसानों को समर्पित हमारी सरकार कर रही है, तो ये भांति-भांति के भ्रम फैला रहे हैं.’

साभार : विकास बहुगुणा

पुलिस फ़ाइल, पंचकुला – 24 सितंबर

पंचकूला 24 सितम्बर  :   

पुलिस ने महिलाओ के द्वारा   मारपिटाई करने के मामले मे तीन महिला आरोपी को किया गिरफ्तार ।

मोहित हाण्डा, भा॰पु॰से॰, पुलिस उपायुक्त पंचकुला के द्वारा दिये हुऐ निर्दशोनुसार जिला पचंकुला मे अपराधो की रोकथाम तथा अपराधियो को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने हेतु । कल दिंनाक 23.09.2020 को थाना कालका की टीम ने दिये गये निदेर्शो के तहत कार्यवाही करते हुए 23.09.2020 गाँव टगँरा कालका मे हुए मारपिटाई के मामले मे तीन महिला आरोपी को किया काबू । काबू किये गये आरोपियो की पहचान की पहचान सुरेश,खुम्बी,बबली वासी कालका के रुप मे हुए ।

                                        प्राप्त जानकारी के अनुसार 25.06.2020 को शिकायतकर्ता गुरप्रीत वासी टगँरा ने शिकायत दर्ज करवाई कि दिनाक 25.06.2020 को चार महिलाओ ने शिकायतकर्ता को घर मे अकेला पाकर घर बाहर आकर गालिया दी व  पत्थरो से तोडफोड मारपिटाई की जो किसी घर के पास पानी निकासी के पहले कोई बातचीत पर ये झगडा पाया गया । जिस समबन्ध मे थाना कालका मे प्राप्त शिकायत पर जल्द से जल्द से कार्यवाही करते हुए अभियोग अकित करके कार्यवाही की गई । जिस अभियोग मे अनुसधानकर्ता ने गहतना से कार्यवाही करते हुए कल दिनाक 23.09.2020 आरोपीयो को गिरफ्तार करके माननीय पेश अदालत करके कार्यवाही की गई ।

ट्रक का फर्जी नम्बर प्लेट लगाकर सेब मण्डी से सेब लोड करवाने वाले धोखाधडी करने की कोशिश करने के मामले मे आरोपी को किया काबू ।

 मोहित हाण्डा, भा॰पु॰से॰, पुलिस उपायुक्त पंचकुला के द्वारा दिये हुऐ निर्दशोनुसार जिला पचंकुला मे अपराधो की रोकथाम तथा अपराधियो को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने हेतु । कल दिंनाक 23.09.2020 को थाना प्रबंधक महावीर सिह निरिक्षक ने दिये गये निदेर्शो के तहत कार्यवाही करते हुए दिनाक 23.09.2020 को सेब मण्डी मे ट्रक पर फर्जी नम्बर प्लेट लगाकर सेब करने के लिए व धोखाधडी के मामले मे आरोपी को किया गिरफ्तार जो गिरफ्तार किये गये आरोपी की पहचान सतेन्द्र पुत्र उदयपाल वासी मखराना पिलावा जिला ईटा उतर प्रदेश के रुप मे हुई ।

                                प्राप्त जानकारी के अनुसार 12.09.2020 की शाम को शिकायतकर्ता गुरजिन्द्र सिह पुत्र दलबीर सिह वासी सैक्टर 20 पचंकूला ने शिकायत दर्ज करवाई  कि 12.09.2020 को एक ट्रक चालक यु0पी0 नम्बर का ट्रक लेकर शिकायतकर्ता की सेब मण्डी मे शाप पर आया कहा । कि मुझे यू0पी0 बिहार के लिए सेब लोड करवाना है जिस पर शिकायतकर्ता ने कहा कि कोई गारन्टर दे दो जिस पर उन्होने दिल्ली की ट्रान्सपोर्ट पर बात करवाई । जिस पर शक होने की बुनाह पर ट्रक चालक के ट्रक के कागजात चैक किये जो , जिन कागजात मे चैसिस न. कागजात मे कुछ और व गाडी पर कुछ और चैसिस नम्बर लगा मिला । जिसको आफिस मे बुलाने बैठकर बुलाने के लिए कहा जो ट्रक चालक वहा पर ट्रक को छोडकर भाग गया । जिस सम्बन्ध मे थाना सैक्टर 20 पचंकूला मे शिकायत दी गई । जिस प्राप्त शिकायत पर थाना सैक्टर 20 पचंकूला ने कार्यवाही करते हुए सम्बन्धित धाराओ के तहत अभियोग अकित करके अभियोग मे तफतीश करते हुए कल दिनांक 23.09.2020 को उपरोक्त आरोपी को गिरफ्तार करके माननीय पेश अदालत चार दिन का पुलिस रिमाण्ड प्राप्त किया ।

जघंन्य अपराधो पर रोक लगाते हुए क्रांईम ब्रांचं पचंकुला ने स्नैचर को किया काबू ।

मोहित हाण्डा, भा॰पु॰से, पुलिस उपायुक्त पंचकुला के द्वारा दिये हुऐ निर्दशोनुसार जिला पचंकुला मे अपराधो की रोकथाम तथा अपराधियो को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने हेतु । पचकुला क्षेत्र मे हुए जघन्य अपराधो पर जल्द से जल्द कार्यवाही करते हुए दिंनाक 23.09.2020 को क्राईम ब्रांच सैक्टर 19 पचंकूला की टीम ने कार्यवाही करते हुए एक स्नैचर को काबू किया जो काबू किये हुए अपराधी की पहचान के रवि कुमार पुत्र भगत सिह वासी महादेव कालोनी पिन्जौर के रुप मे हुई ।

                              प्राप्त जानकारी के अनुसार 17.09.2020 शिकायतकर्ता बाबूल वासी खगक मन्गौली पचंकूला ने बतलाया कि दिनाक 17.09.2020 को जब वह Civil Hospital सैक्टर 06 पचंकूला से दवाई लेकर घर पर आ रहा था जब वह सैक्टर 06 पचंकूला मन्दिर के पास पहुँचा तो वहा पर दो लडके मोटरसाईकिल पर सवार होकर जो शिकायतकर्ता के पास आकर रुके तो उन्होने शिकायतकर्ता से फोन करने के लिए मोबाईल फोन माँगा तो शिकायतर्ता ने उनको फोन दे दिया तभी मोटर साईकिल पर बैठे पिछली सीट वाले व्यकित ने शिकायतकर्ता के गले से चैन छिनी व उसकी पैन्ट से पर्स छीनकर आगे कुछ दुरी पर जाकर फोन फैन्क कर भाग गये । जिस सम्बन्ध मे थाना सैक्टर 05 पचंकूला मे दरखास्त प्राप्त होने पर धाना सैक्टर 05 पचंकूला ने धारा 379-ए भा.द.स के तहत कार्यवाही करते हुए अभियोग अंकित करके अभियोग की आगामी तफतीश हेतु क्राईम ब्रांच सैक्टर 19 पचंकूला मे भेजी गई । जिस अभियोग मे क्राईम ब्रांच सैक्टर 19 पचंकूला ने गहनता से कार्यवाही करते हुए कल दिनाक 23.09.2020 को आरोपी को गिरफ्तार करके माननीय पेश अदालत करके कार्यवाही कि गई ।

यौन अपराधियों के सरेआम चौराहों पर लगेंगे पोस्टर महिला सुरक्षा पर योगी का ‘ऑपरेशन दुराचारी’ शुरू

महिलाओं को गलत नजर से देखने वालों की अब खैर नहीं. अब ईव टीज़र्स की शामत आने वाली है क्योंकि प्रदेश सरकार ने सभी अपराधियों को सबक सिखाने के लिए एक ऑपरेशन की शुरुआत की है. ‘ऑपरेशन दुराचारी’ के तहत महिलाओं से किसी भी तरह का अपराध करने वाले को तो सजा मिलेगी ही, साथ ही उस एरिया की पुलिस फोर्स भी जिम्मेदार होगी. कहीं भी महिलाओं के साथ कोई आपराधिक घटना हुई तो वहां के बीट इंचार्ज, चौकी इंचार्ज, थाना प्रभारी और सर्किल ऑफिसर जवाबदेही होंगे. इस ऑपरेशन का मकसद है कि महिलाओं और बच्चियों के साथ किसी भी तरह की घटना को अंजाम देने वालों को समाज जाने. ऐसे लोगों के पोस्टर चौराहों पर लगाए जाएंगे. ऑपरेशन दुराचारी के तहत मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि छेड़खानी करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए.

यूप्र (ब्यूरो):

अपने नियमों व कानूनों को लागू कराने और अपराधियों पर नकेल कसने को लेकर विख्यात उत्तरप्रदेश की योगी सरकार ने अब महिला सुरक्षा को लेकर एक बड़ा फैसला लिया है। सीएम योगी आदित्यनाथ ने आज (24 सितंबर, 2020) निर्देश देते हुए कहा कि महिलाओं, लड़कियों और बच्चियों से छेड़खानी, दुर्व्यवहार, अपराध, यौन अपराध करने वाले अपराधियों के सरेआम चौराहों पर पोस्टर लगाए जाएँ। सरकार ने इसका नाम ‘ऑपरेशन दुराचारी’ रखा है।

सरकार द्वारा पुरानी सरकारों के सुस्त और लाचर प्रशासन को खत्म करके नई व्यवस्था कायम करने को लेकर यह सख्त कदम मनचलों को कड़ा सबक सिखाने का काम करेगा। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि महिलाओं से किसी भी तरह का अपराध करने वालों को महिला पुलिसकर्मियों से दंडित करवाया जाए साथ ही उनका नाम सार्वजनिक किया जाए।

महिलाओं या बच्चियों के साथ अपराध करने वाले के बारे में समाज को जानना चाहिए, इसलिए उनके पोस्टर चौराहों-सड़को-दीवारों पर लगाए जाएँ। ताकि उनका समाज से बहिष्कार हो सके। साथ ही सीएम ने ऐसे अपराधियों और दुराचारियों की मदद करने वालों के नाम उजागर करने के भी निर्देश दिए हैं। ऐसा करने से उनके मददगारों में भी बदनामी का डर पैदा होगा।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बलात्कारियों में उन्हीं के नाम का पोस्टर छपेगा जिन्हें अदालत द्वारा दोषी करार दिया जाएगा। मिशन दुराचारी के तहत महिला पुलिसकर्मियों को जिम्मा दिया जाएगा। महिला पुलिस शहर के चौराहों पर नजर रखेगी। इसके अलावा सीएम ने यह भी निर्देश दिया है कि महिलाओं या बच्चियों के साथ किसी भी प्रकार का दुराचार होता है तो इसकी जवाबदेही के लिए संबंधित बीट इंचार्ज, चौकी इंचार्ज, थाना प्रभारी और सीओ जिम्मेदार होंगे।

मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि सरेराह छेड़खानी करने वाले शोहदों और आदतन दुराचारी के खिलाफ सख्ती से पेश आया जाए और कड़ी कार्रवाई की जाए। प्रदेश में महिला अपराध के कई मामले सामने आने के बाद सीएम योगी ने ये फैसला लिया है। ताकि अपराधियों में डर पैदा किया जा सके।

गौरतलब है कि इससे पहले योगी सरकार सीएए के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन करने वालों के पोस्टर भी लखनऊ में लगवाए थे। पिछले साल 19 दिसंबर को लखनऊ के कई स्थानों पर उपद्रवियों ने सीएए विरोध के नाम पर हिंसा की थी, जिसमें करोड़ों की सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुँचाया गया था। हिंसा में शामिल 57 लोगों के नाम और पते के साथ लखनऊ शहर के सभी प्रमुख चौराहों पर कुल 100 होर्डिंग्स लगाए गए थे। प्रशासन ने इससे पहले आरोपितों पर 1.55 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाते हुए नोटिस जारी किया है, जिसके तहत 8 अप्रैल तक जुर्माने की रकम को जमा करवाना था।

दिल्ली दंगों में भड़काऊ भाषण देने में वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण, सीपीएम नेता वृंदा करात, कविता कृष्णन, कवलप्रीत कौर और गौहर रजा जांच के घेरे में

इस साल फरवरी में राजधानी दिल्ली के कई इलाकों में दंगे हुए थे। जिसकी जांच के दायरे में अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्वी केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद भी आ गए हैं। दंगा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार एक आरोपी ने मजिस्ट्रेट के सामने खुर्शीद का नाम लिया है। खुर्शीद के अलावा सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण, सीपीएम नेता वृंदा करात, कविता कृष्णन, कवलप्रीत कौर और गौहर रजा का भी जिक्र उसके बयान में है।

नयी दिल्ली(ब्यूरो):

दिल्ली दंगों के मामले में पुलिस द्वारा दायर की गई चार्जशीट में कई बड़े नेताओं का नाम सामने आया है। इसमें कॉन्ग्रेस नेता सलमान खुर्शीद, सीपीआई – एमएल पोलित ब्यूरो की सदस्य कविता कृष्णन, छात्र नेता कवलप्रीत कौर, वैज्ञानिक गौहर रज़ा और प्रशांत भूषण का नाम शामिल है। दिल्ली पुलिस ने बेहद स्पष्ट तौर पर इन लोगों को दंगों का षड्यंत्र रचने का आरोपित बताया है।

दिल्ली दंगों के मामले में आरोपित खालिद सैफी और पूर्व कॉन्ग्रेस पार्षद इशरत जहाँ द्वारा दिए गए बयान के आधार पर खुर्शीद को आरोपित बनाया गया है। सैफी ने 30 मार्च को दिए गए अपने बयान में कहा था, “प्रदर्शन लंबे समय तक जारी रखने के लिए मैंने और इशरत ने कई लोगों को बुलाया था जिसमें एक व्यक्ति सलमान खुर्शीद भी थे। इन सभी को वहाँ पर भड़काऊ भाषण देने के लिए बुलाया गया था। जितने भी लोग धरने पर बैठे रहते थे वह सिर्फ और सिर्फ भड़काऊ भाषणों के लिए बैठते थे। इन भाषणों की मदद से ही वह अपने मज़हब को आधार बना कर प्रदर्शन जारी रखने वाले थे।”

सुरक्षा में रखे गए एक चश्मदीद ने भी इस मुद्दे पर बयान दिया था (जिसे सीआरपीसी की धारा 164 के आधार पर तैयार किया गया था)। उसने भी अपने बयान में सलमान खुर्शीद का ज़िक्र किया था और उनके द्वारा दिए भड़काऊ भाषणों के बारे में भी बताया। 

सलमान खुर्शीद ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा, “अगर आप सब कुछ समेटने जाएँगे तो पूरी चार्जशीट लगभग 17 हज़ार पन्नों की है। एक चार्जशीट विश्वसनीय और प्रभावशाली होनी चाहिए क्योंकि वह किसी अपराध का पुख्ता सबूत होती है। अगर कोई ऐसा कहता है कि 12 लोगों ने आकर भड़काऊ भाषण दिया तो ऐसा संभव नहीं है कि सभी ने एक तरह के भड़काऊ भाषण दिए। उकसावा और लामबंदी हमारे देश में आपराधिक गतिविधि नहीं है।”   

वहीं वैज्ञानिक रज़ा का नाम खुरेजी क्षेत्र के नज़दीक मुस्लिम भीड़ को भड़काने के आरोप में सामने आया। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, चश्मदीद ने बताया, “रज़ा ने कई अन्य लोगों के साथ मिल कर सीएए और एनआरसी को लेकर कई आपत्तिजनक बातें कहीं। इसके अलावा उन्होंने वर्तमान सरकार को लेकर भी कई गलत बातें कहीं और मुस्लिमों को जम कर भड़काया।”

इन आरोपों पर रज़ा ने कहा था, “मैं आज भी अपने बयान पर कायम हूँ, मैंने सीएए के विरोध में कुछ भी गलत नहीं कहा। मैं हमेशा इसका विरोध करता रहूँगा क्योंकि यह संविधान पर हमला है। मैंने हमेशा हिंसा का विरोध किया है इसलिए भड़काने का आरोप पूरी तरह बेबुनियाद है।” 

इनके अलावा सैफी और इशरत के बयान पर प्रशांत भूषण का नाम भी सामने आया था। प्रशांत भूषण पर भी आरोप लगाया गया था कि उन्होंने खुरेजी क्षेत्र में भड़काऊ भाषण दिया था। इस पर प्रशांत भूषण ने कहा था, “मैं कई जगहों पर गया था और विरोध प्रदर्शन का समर्थन किया था। लेकिन मैंने इस तरह का कोई भाषण नहीं दिया था जो लोगों में हिंसा की भावना को बढ़ावा देता हो। हाँ मैंने सरकार के विरोध में बहुत कुछ कहा था और उससे वह भड़क गए तो इसके लिए कुछ नहीं किया जा सकता।” 

25 मई को दिए गए बयान में सैफी ने कवलप्रीत कौर का नाम भी लिया था। उसने यह भी बताया कि वह काफी समय से कौर के संपर्क में था। बयान के मुताबिक़ कौर ने कई लोगों के साथ मिल कर योजना बनाई थी कि वह ट्विटर पर भड़काऊ बातें साझा करेंगे जिससे मुस्लिम समुदाय की भावनाएँ आहत हों और वह सरकार के विरुद्ध सड़कों पर उतरें। 

दिल्ली दंगों के कुल 15 आरोपितों में शादाब अहमद ने 27 मई को एक बयान दिया था। उस बयान में कुल 38 लोगों का नाम मौजूद था। इन नामों में मुख्य रूप से कृष्णन, कौर, उमर खालिद के पिता एसक्यूआर इलियास शामिल थे जिन्होंने चाँद बाग़ में भड़काऊ भाषण दिए थे। ख़बरों के मुताबिक़ इसके पहले सीपीआई के जनरल सेक्रेटी सीताराम येचुरी, स्वराज्य इंडिया के मुखिया योगेंद्र यादव, जयती घोष, प्रोफ़ेसर अपूर्वानंद और फिल्म निर्माता राहुल रॉय जैसे लोगों का नाम भी दिल्ली पुलिस की पूरक चार्जशीट में शामिल है। 

दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता अनिल मित्तल ने इस संबंध में बयान जारी करते हुए कई अहम बातें कहीं। उन्होंने कहा, “एक व्यक्ति को सिर्फ गवाही के आधार पर आरोपित नहीं बना दिया जाता है। हमारे पास लगाए गए आरोपों के अतिरिक्त तमाम ऐसे सबूत हैं जिनके आधार पर हम अपनी कार्रवाई आगे बढ़ा रहे हैं।” 

पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय बिहार की राजनीति में पहले नौकरशाह नहीं

बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ने कहा कि मुझे बिहार की जनता बहुत प्यार करती है. मैं कहीं भी चुनाव लड़ना चाहता हूं तो जा सकता हूं और जीत सकता हूं. चुनाव से मेरे वीआरएस को जोड़ना गलत है. अगला गृह मंत्री बनने के सवाल पर गुप्तेश्वर पांडेय ने कहा कि भविष्य कौन जानता है. मेरे परिवार अनपढ़ था. मैं पहला आदमी हूं, जो चार पीढ़ियों के बाद स्कूल गया.

  • बीजेपी सांसद आरके सिंह मोदी सरकार में मंत्री
  • निखिल कुमार से लेकर मीरा कुमार तक सांसद रहीं
  • बिहार में अफसर का राजनीति से पुराना संबंध है

पटना(ब्यूरो):

बिहार विधानसभा चुनाव की भले ही औपचारिक घोषणा न हुई हो, लेकिन राजनीतिक पार्टियां सियासी समीकरण बनाने में जुटी हुई हैं. ऐसे में बिहार के पुलिस महानिदेशक रहे गुप्तेश्वर पांडेय ने सियासी पिच पर किस्मत आजमाने के लिए वीआरएस ले लिया है. वो किस पार्टी से और कौन सी सीट से चुनाव लड़ेंगे, इसकी तस्वीर साफ नहीं है. हालांकि, बिहार के राजनीतिक इतिहास में गुप्तेश्वर पांडेय पहले अफसर नहीं है, जिन्होंने चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया है.

बता दें कि हाल ही में बिहार के दो वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी अपने पद से इस्तीफा देकर सियासत में अपना भाग्य आजमाने की तैयारी में हैं. इसमें बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ही नहीं बल्कि सुनील कुमार का नाम शामिल है. पूर्व आईपीएस सुनील कुमार ने पुलिस भवन निर्माण निगम के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक पद से सेवानिवृत्त होने के बाद 29 अगस्त को जेडीयू का दामन थामा है. सुनील कुमार के भाई अनिल कुमार कांग्रेस के विधायक हैं. माना जा रहा गोपलगंज से सुनील कुमार चुनावी मैदान में तर सकते हैं. 

ये अफसर चुनावी पिच पर उतर चुके हैं

बिहार की राजनीति में अफसरों का आना कोई नई बात नहीं है. इससे पहले भी प्रदेश के कई आला अफसरों ने राजनीतिक दलों का दामन थामा है. निखिल कुमार, मीरा कुमार, यशवंत सिन्हा, रामचंद्र प्रसाद सिंह, बलबीर चंद्र, हीरालाल, केपी रमैया, अनूप श्रीवास्तव, आरके सिंह, एनके सिंह, अशोक कुमार गुप्ता और आशीष रंजन सिन्हा चुनावी पिच पर उतरकर किस्मत आजमा चुके हैं. आरके सिंह तो मौजूदा समय में मोदी सरकार में मंत्री हैं और दूसरी बार वो बीजेपी से सांसद चुने गए हैं. 

जेडीयू में नीतीश कुमार के बाद नंबर दो ही हैसियत रखने वाले आरसीपी सिंह आईएएस रहे हैं. मौजूदा समय में जेडीयू से राज्यसभा सदस्य हैं. आरसीपी उत्तर प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी थे और बाराबंकी में डीएम रहे हैं. इसी दौरान बाराबंकी के रहने वाले और सपा के दिग्गज नेता बेनी प्रसाद वर्मा ने नीतीश से कह कर आरसीपी सिंह को राजनीति में एंट्री करायी थी. वहीं, पूर्व डीजी अशोक कुमार गुप्ता आरजेडी का दामन थामकर विधानसभा पहुंचने की जुगत में जुटे हैं. हालांकि, अशोक इससे पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में पटना साहिब सीट से निर्दलीय किस्मत आजमा चुके हैं. 

2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में पुलिस सेवा के अधिकारी सोम प्रकाश औरंगाबाद जिले के ओबरा से निर्दलीय विधायक चुने गए थे. इसके बाद 2015 के चुनाव में वो हार गए थे. हालांकि इस बार मैदान में उतरने की तैयारी है. दारोगा की नौकरी से वीआरएस लेने वाले रवि ज्योति राजगीर से जेडीयू के विधायक हैं. इसी तरह मनोहर प्रसाद सिंह भी मनिहारी विधानसभा सीट से जीतकर लगातार दूसरी बार विधायक बने हैं और हैट्रिक लगाने की जुगत में हैं. 

Police Files, Chandigarh – 24.09.2020

Korel ‘Purnoor’, CHANDIGARH – 24.09.2020

Arms Act

Chandigarh Police arrested Sanjay R/o # 2033, New Indra Colony, Mani Majra, Chandigarh (age 22 years) and recovered one Desi pistol from his possession near Khera Mandir, NIC, Mani Majra, Chandigarh on 23.09.2020. A case FIR No. 185, U/S 25-54-59 Arms Act has been registered in PS-IT Park, Chandigarh. Investigation of the case is in progress.

Accident

A case FIR No. 84, U/S 279, 427 IPC & 185 MV Act has been registered in PS-03, Chandigarh against driver of Honda Accord Car No. HR-03H-6535 namely Mit Mohan Singh Kahlon R/o # 445 Sec-6 Panchkula (HR), who rashly and negligently rammed his vehicle into the wall of Golf Club, Sector 6, Chandigarh on 22.09.2020. Alleged person arrested and bailed out. Investigation of the case is in progress.

Assault/Quarrel

          A case FIR No. 122, U/S 323, 452, 34 IPC has been registered in PS-Sarangpur, Chandigarh on the complaint of Ishteyak Ahmad R/o # 43/B, EWS Colony, Dhanas, Chandigarh who alleged that persons namely Vickey, Shivu,  Krishan all R/o EWS Colony, Dhanas, Chandigarh forcibly entered in his house and assaulted complainant and his son on 23.09.2020. Investigation of the case is in progress.

          A case FIR No. 159, U/S 324, 34 IPC has been registered in PS-26, Chandigarh on the complaint of Sonu Singh R/o # 154, Ph-2, BDC, Sector-26, Chandigarh who reported that 6 unknown persons assaulted complainant at forest area backside Police Line, Sector-26, Chandigarh on 23.09.2020. Complainant got injured admitted in GMCH-32, Chandigarh. Investigation of the case is in progress.

          A case FIR No. 175, U/S 323, 452, 506 IPC has been registered in PS-Mauli Jagran, Chandigarh on the complaint of Deepak Kumar R/o # 298, Vikas Nagar, Mouli Jagran, Chandigarh who alleged that persons namely Amir Khan R/o # 299, Vikas Nagar, Mouli Jagran, Chandigarh came on roof top of his house and assaulted/ pushed complainant on 22.09.2020. Alleged person has been arrested in this case. Investigation of the case is in progress.

Snatching

A lady resident of Sector-34, Chandigarh alleged that unknown person on a motorcycle snatched away the complainant’s purse containing mobile phone and cash Rs. 500/- near # 1232 Sector-34/C, Chandigarh on 23.09.2020. A case FIR No. 191, U/S 379A, 356 IPC has been registered in PS-34, Chandigarh. Investigation of the case is in progress.

MV Theft

Inderjit Singh R/o # 226/2, Sector-37/C, Chandigarh reported that unknown person stole away complainant’s Bullet M/Cycle No CH-01CA-8737 parked near his house on the night intervening 22/23-09-2020. A case FIR No. 292, U/S 379 IPC has been registered in PS-39, Chandigarh. Investigation of the case is in progress.

Surjit Singh R/o # 1202/A, Sector-41/B, Chandigarh reported that unknown person stole away complainant’s Bullet M/Cycle No CH-01BQ-7772 parked near his house on the night intervening 22/23-09-2020. A case FIR No. 293, U/S 379 IPC has been registered in PS-39, Chandigarh. Investigation of the case is in progress.

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पंचांग, 24 सितंबर 2020

आज 24 सितंबर को हिंदू पंचांग के अनुसार गुरुवार है. गुरुवार का दिन सुख सम्बृद्धि और सौभाग्य का दिन होता है. यह दिन भगवान विष्णु और मां सरस्वती दोनों की पूजा का दिन होता है. ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु जल्दी प्रसन्न नहीं होते, मगर शास्त्रों में उनको प्रसन्न करने के बेहद आसान उपाय भी बताए गए हैं.

आज सूर्योदय-सूर्यास्त और चंद्रोदय-चंद्रास्त का समय

सूर्योदय का समय : 06:10
सूर्यास्त का समय : 18:15
चंद्रोदय का समय: 13:25
चंद्रास्त का समय : 23:54

हिन्दु लूनर दिनांक
शक सम्वत:
1942 शर्वरी

विक्रम सम्वत:
2077 प्रमाथी

गुजराती सम्वत:
2076

चन्द्रमास:
अश्विन– अमान्त
अश्विन – पूर्णिमान्त

नक्षत्र :
मूल– 18:10 तक
आज का करण :
विष्टि– 07:24 तक
बव- 19:01 तक

आज का योग:
सौभाग्य- 21:55 तक

आज का वार : गुरुवार

आज का पक्ष : शुक्ल पक्ष

आज का शुभ मुहूर्त

अभिजित मुहूर्त 11:49 – 12:37 बजे तक रहेगा. अमृत काल 11:50 – 13:25 बजे तक रहेगा.

आज का अशुभ मुहूर्त

दुर्मुहूर्त 10:13 – 11:01, 15:00 – 15:48 बजे तक रहेगा. वर्ज्य मुहूर्त 16:35 – 18:10, 27:54 – 29:32 बजे तक रहेगा. राहुकाल 13:42 – 15:12 बजे तक रहेगा. गुलिक काल 09:14 – 10:43 बजे तक रहेगा, वहीं यमगण्ड 06:14 – 07:44 बजे तक रहेगा.

राष्ट्रवादी मुस्लिम महिला संघ की राष्ट्रीय अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री से मांगा इस्तीफा

राहुल भारद्वाज, सहारनपुर:

राष्ट्रवादी मुस्लिम महिला संघ की राष्ट्रीय अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश सरकार पर उनकी महिला सुरक्षा व विभिन योजनाओ की विफलताओं का आरोप लगाते हुए उनका त्यागपत्र गृहमंत्री को सौपने की मांग की।

सहारनपुर राष्ट्रवादी मुस्लिम महिला संघ की राष्ट्रीय अध्यक्ष फ़रहा फैज के द्वारा प्रेसवार्ता कर सरकार के द्वारा महिला सुरक्षा की तमाम कोशिशों को फिफल बताते हुए बताया कि सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद महिला सुरक्षा एक चुनौती बन गयी है। समाज मे मुस्लिम महिलाओं की ही नही बल्कि हिन्दू लड़कियों की सुरक्षा भी खतरे में है।जिसका मुख्य कारणों में लव जेहाद भी एक मुख्य कारण है। जिसमे मुस्लिम भर्मित लड़को द्वारा कोई ठोस कानून ना होने के कारण हिन्दू लड़की को अपना हिन्दू नाम बदलकर प्रेमजाल में फंसाकर घर से भगाकर निकहा के लिए कहा जाता है जिसका मैन उदेश्य ही सिर्फ धर्मान्तरण है फिर चाहे लड़की खुशी से करे या फिर जबर्दस्ती करे जबकि इस्लाम खुद जबर्दस्ती धर्मान्तरण की मनाही करता है।

फ़रहा फैज ने बताया भारत मे रहकर विभिन्न समुदाय के लड़के लड़की की शादी के लिए सपेशल मैरिज एक्ट होने के बावजूद इस एक्ट का लाभ कोई नही ले पाता फ़रहा फैज ने बताया में खुद 7 वर्षो से इस विषय पर कार्ये कर रही हूं और कई लड़कियों की काउंसलिंग कराके उनकी उनके घरों में वापसी करा चुकी हूं। वर्तमान में भी अपने पत्र द्वारा अवगत करा चुकी हूं कि सरकारें कुर्सी की राजनीति में बंधी विवश है। लेकिन अब उत्तर प्रदेश में चुनावी मौसम ने दस्तक दी है तो इस गभीर विषय की मुख्यमंत्री को याद आयी है। और आनन फानन में अध्यादेश लाने की काव्यद शुरू हो गई है। फ़रहा फैज ने सरकार द्वारा जनता के लिए जितनी योजनाओं को चलाने की जो घोषणा की गई थी वह सब सिर्फ हवा हवाई ही साबित हुई मुख्यमंत्री द्वारा महिलाओं की सुरक्षा व भरष्टाचार को रोकने में पूर्णतय असफल है पुलिस प्रशासन व नेतागण पूरी तरह निरंकुश है झुटे मुकदमे लिखकर निर्दोष लोगों को फसाया जा रहा है अफसरों की छत्रछाया में रिशवत खोरी चरम पर है इसलिए मुख्यमंत्री अपनी विवश्ता को स्वीकार कर अपना इस्तीफा गृहमंत्री को सौप दे।