बिल के विरोध में उतरे किसान और आढ़ती
सारिका तिवारी, चंडीगढ़ – 18 सितंबर:
एक तरफ हरसिमरत कौर ने कृषि बिल के विरोध में केन्द्रीय मंत्री के तौर पर इस्तीफा दिया वहीं दूसरी ओर हरियाणा के उप मुख्य मंत्री पर अपने ही वर्ग से इस्तीफा देने का भारी दबाव है। खट्टर सरकार के डांवाडोल होने के आसार हैं बल्कि आने वाले उपचुनाव में भी औंधे मुंह गिरने के आसार बन रहे हैं, क्योंकि हुड्डा अपने खेमे के साथ फील्डिंग के लिए डट गए हैं।
अब भाजपा कह रही है कि हरसिमरत कौर के केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफे के पीछे पंजाब की स्थानीय राजनीति प्रमुख वजह है। भाजपा को अब भी उम्मीद है कि बातचीत से मामला सुलझ जाएगा।
आर्थिक मामलों के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने अपने वक्तव्य में कहा, कि तीनों कृषि बिलों से किसानों को ही फायदा पँहुचेगा, लेकिन पंजाब में जिस तरह से कांग्रेस ने झूठ फैलाया है, उससे लगता है कि शिरोमणि अकाली दल भी स्थानीय राजनीति के दबाव में आ गया, जिस वजह से हरसिमरत कौर से इस्तीफा दिलाया गया जबकि इन विधेयकों से किसानों को फायदा होगा यह शिरोमणि अकाली दल को भी पता है।
कृषि से जुड़े विधेयकों का पंजाब , हरियाणा , उत्तरप्रदेश तेलंगाना में काफी विरोध हो रहा है, क्योंकि किसान और व्यापारियों को इससे एपीएमसी मंडियां खत्म होने की आशंका है। यही कारण है कि प्रदेश के प्रमुख राजनीतिक दलों ने कृषि विधेयकों का विरोध किया है। आज हरियाणा में मंडियों में हड़ताल रही, किसानों के साथ साथ आढ़ती, पल्लेदार, मज़दूर संगठन भी समर्थन में उतर आए हैं।
कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020 में कहा गया है कि किसान अब एपीएमसी मंडियों के बाहर किसी को भी अपनी उपज बेच सकता है, जिस पर कोई शुल्क नहीं लगेगा। जबकि एपीएमसी मंडियों में कृषि उत्पादों की खरीद पर विभिन्न राज्यों में अलग-अलग मंडी शुल्क व अन्य उपकर हैं। पंजाब में यह शुल्क करीब 4.5 फीसदी है। आढ़तियों और मंडी के कारोबारियों को डर है कि जब मंडी के बाहर बिना शुल्क का कारोबार होगा तो कोई मंडी आना नहीं चाहेगा। वहीं, पंजाब और हरियाणा में एमएसपी पर गेहूं और धान की सरकारी खरीद की जाती है. किसानों को डर है नए कानून के बाद एमएसपी पर खरीद नहीं होगी क्योंकि विधेयक में इस संबंध में कोई व्याख्या नहीं है कि मंडी के बाहर जो खरीद होगी वह एमएसपी से नीचे के भाव पर नहीं होगी।
पंजाब में सत्ताधारी कांग्रेस पहले से ही विधेयक का विरोध कर रही है।
किसानों, आढ़तियों और कारोबारियों की आशंका को लेकर कृषि विशेषज्ञ एवं आढ़ती रविन्द्र मालिक ने कहा कि, जब मंडी के बाहर बिना शुल्क का कारोबार होगा तो फिर मंडी में कोई शुल्क देना क्यों चाहेगा। जबकि हरियाणा और पंजाब की अनाज मंडियों से वर्तमान में सरकार को लगभग 2 लाख करोड़ राजस्व मिल रहा है। उन्होंने बताया कि सरकार कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग लाना चाहती है जो कि आने वाले समय मे ईस्ट इंडिया कंपनी की तर्ज़ पर किसान को दासता की ओर ले जाएगी।
पंजाब के खन्ना मंडी के साथ लगते गांव चीमा के गुरप्रीत सिंह चीमा ने कहा कि सरकारआढ़ती को बिचोलिये बताकर किसानों का आढ़ती से रिश्ता खत्म कर रही है जबकि आढ़ती किसान का ए टी एम है। उन्होंने कहा कि इसके जरिए सरकार कुछ गिनीचुनी कम्पनियों को किसान का शोषण करने के लिए अधिकृत करना चाहती है।
पंजाब और हरियाणा में बासमती निर्यातकों और कॉटन स्पिनिंग और जिनिंग मिल एसोसिएशनों ने मंडी शुल्क समाप्त करने की मांग की है।
दूसरी और भाजपा लगातार कह रही है कि कांग्रेस आदि विरोधी राजनीति दल न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) हटाने का झूठ फैला रहे हैं। जबकि तीनों बिलों से एमएसपी का कोई लेना-देना नहीं है।
Leave a Reply
Want to join the discussion?Feel free to contribute!