स्वतन्त्रता दिवस विशेष कविता

“राष्ट्रीय अखंडता”

राष्ट्र की अखंडता में एकता का वास हो,
कोकिला की कूक-सी मधुरता का आभास हो |
आपस की वैरता को छोड़कर निकलना है,
देशधर्मी आस्था को लेकर के चलना है ||

भारती ने स्वप्न में क्या कहा था अब सुनो,
जल गया ये देश बस नफरतो की आग में,
आग की वो राख अब दुलार उर्वरक बने,
हर उपज माँ भारती की राष्ट्र सेवक बने ||

राष्ट्र की अखंडता में एकता का वास हो,
कोकिला की कूक-सी मधुरता का आभास हो |

सैन्य शक्ति हो प्रबल, माँ भारती की फौज की,
वीर गाथा स्मरण रहे, देश पर शहीद की |
राष्ट्र का हर नागरिक राष्ट्र का गौरव बने,
दीप ज्योत ऐसी हो, जो राष्ट्र को रोशन करे ||

राष्ट्र की अखंडता में एकता का वास हो,
कोकिला की कूक-सी मधुरता का आभास हो |

सभ्यता और संस्कृति की सेविका हु मानकर,
सेवा में तटस्थ भाव देश भक्ति जानकर |
सीमा की सुरक्षाओ का भार ओढना है अब,
दुश्मनों की चाल का जवाब देना है अब ||

राष्ट्र की अखंडता में एकता का वास हो,
कोकिला की कूक-सी मधुरता का आभास हो |

भूमिका चौबीसा
(अधिवक्ता, जिला एवं सेशन न्यायालय, उदयपुर, राजस्थान)

|| वन्दे मातरम् ||
|| जय हिन्द ||

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