डिजिटल लर्निंग के बच्चों पर प्रभाव व अन्य विकल्प पर चर्चा को बैठक आयोजित
विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों ने सुझाए डिजिटल लर्निंग के अन्य विकल्प, डिजिटल लर्निंग से बच्चों के मनोविज्ञान पर पड़ रहा प्रभाव
पंचकूला 3 जुलाई:
हरियाणा राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा छोटे बच्चों के डिजिटल लर्निंग के प्रभाव और सीखने के लिए वैकल्पिक दृष्टिकोण को लेकर सैक्टर 6 स्थित आवास भवन कार्यालय में विशेष बैठक का आयोजन किया गया। बैठक में विभिन्न विभागों के विशेषज्ञों ने डिजिटल लर्निंग से बच्चों पर पड़ रहे प्रभाव के बारे में अपने विचार रखे। इसके अलावा विशेषज्ञों ने डिजिटल लर्निंग के अन्य विकल्पों के बारे में भी अपनी राय दी।
हरियाणा राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की चैयरपर्सन ज्योति बेंदा ने बताया कि बैठक में छोटे बच्चों पर डिजिटल शिक्षण का क्या प्रभाव पड़ा है और पढ़ाई के लिए वैकल्पिक दृष्टिकोण क्या हो, इस विषय पर गहन विचार विमर्श किया गया। बैठक में 5वीं कक्षा तक के बच्चों का सिलेब्स सीमित करने पर जोर दिया गया। आयोग ने अनुशंसा की है कि बच्चों को ऐसे सिलेब्स करवाए जाए जिसमें इंटरनेट सर्चिग बहुत कम करनी पड़े। ज्योति बैंदा ने बताया कि कोविड-19 काल के दौरान ऑनलाइन पढ़ाई शुरू करने के बाद इसके परिणाम के स्वरूप यह देखा जा रहा है कि बच्चे इंटरनेट के आदि होते जा रहे हैं। बच्चों में चिड़चिड़ापन व अवसाद की स्थिति भी आ रही है, जो गंभीर है। छोटे बच्चें मनौवैज्ञानिक दबाव में भी है। इस काल में अभिभंावकों की जिम्मेवारी भी बढ़ी है।
आयोग की चेयरपर्सन ने बताया कि अभिभावकों को भी चाहिए कि वे बच्चों की रूटीन फिर से सेट करें। जैसे बच्चों को समय पर सुलायें और सुबह जल्दी उठाकर तैयार करके पढ़ाई के लिए मोटिवेट करें। ऑनलाइन क्लास के बाद बच्चों को मोबाइल से दूर रखें, डिजिटल गेम न खेलने दें नहीं तो उनकी आंखों व मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। बच्चों में कोरोना का फोबिया पैदा करने के बजाए उनको सहज तरीके से हाइजीन, सोशल डिस्टेंसिंग आदि की ट्रेनिंग दें। उन्होंने बताया कि अभिभावक बच्चों के साथ संतुलित व्यवहार करें।
छात्र नेता पुरनूर ने छात्रों के साथ साथ अभिभावकों के भी मार्गदर्शन की बात कही अपनी बात को रखते हुए उनहोंने कहा की आज के समय में जब सभी छात्र अपने अपने घरों में हैं तो उन पर मानसिक दबाव बढ़ता जा रहा है। बिना अध्यापक को देखे सुने पढ़ने और फिर ऑन लाइन परीक्षाओं में उत्तीर्ण होना अपने आप में एक बहुत ही मुश्किल काम है उस पर माता पिता का पढ़ाई को ले कर दबाव और भी कठिनाई पैदा करने वाला है। ऐसे समय में माता पिता को भी अधिक संवेदनशील और समझदार होना होगा, इस पर काम करने की बहुत आवश्यकता है और साथ ही ब्च्चों को एक्सट्रा क्योररिकलम के माध्यम से प्रिशिक्षित किया जा सकता है।
बैठक की अध्यक्षता करते हुए अतिरिक्त मुख्य सचिव अमित झा ने कहा कि स्कूलों के संबंध में ऑनलाइन लर्निंग के लिए स्कूलों ने अध्यापकों के पर्सनल नंबर से सोशल मीडिया ग्रुप बनाए हुए हैं। ऐसा होने से अध्यापकों को नंबर पब्लिक डोमेन में आ रहा है जो सही नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि अध्यापकों व बच्चों के नंबर सार्वजनिक न हों और उनकी फोटो भी अन्य स्थानों पर शेयर न की जाएं। स्कूल अपने स्तर पर अध्यापक को नंबर उपलब्ध करवाए ताकि प्राइवेसी बनी रहनी चाहिए। बैठक में इंटरनेट के ज्यादा इस्तेमाल के दौरान बच्चों द्वारा दूसरी अनावश्यक साइट खोले जाने की भी संभावना बनी हुई है। ऑनलाइन एब्यूज और साइबर क्राइम का रिस्क भी है, जो गंभीरता जताता है।
उन्होंने बताया गया कि बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई को लेकर होने वाले प्रभावों बारे दिए गए सुझावों में ऑनलाइन पढ़ाई किसी भी प्रकार से स्कूली पढ़ाई का पूरक नहीं हो सकती। जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर न होने से ऑनलाइन सिस्टम में बड़े बच्चों को ही परेशानी हो रही है वहीं छोटे बच्चों को तो और भी मुश्किलें हैं। ऐसे में बहुत सारे बच्चे तनाव और चिंता से घिर रहे हैं। घर में बंद रहने और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर लम्बे समय तक जुड़े रहने से बच्चों का स्वभाव बदल रहा है और वे तनाव और चिंता में हो सकते हैं। ऐसे में पेरेंट्स को भी उनसे ज्यादा जुड़ाव रखना होगा।
बैठक में आयोग के सचिव कैप्टन मनोज कुमार, प्रमोद कुमार, डॉ. एनपी शर्मा, डॉ. आरजू गुप्ता, डॉ. सुनीरा मित्तल, प्रवीण जोशी, डॉ. प्रतिभा सिंह, पूजा पांडे, छात्र नेता पुरनूर और कुछ अभिभावक भी मौजूद रहे।
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