सत्ता के लिए अपने मूल से सम्झौता करने वाली शिवसेना के संजय राऊत ने सोनू सूद पर कसा तंज़, घिरे आप

संजय राऊत अपने बड़बोले पन के लिए मशहूर हैं। उनके बयान महाराष्ट्र की राजनीति में छोटी मोटी लहर तो पैदा कर देते हैं परांतु कोई खास असर नहीं छोड़ते। संजय राऊत आजकल शिवसेना के मुख पृष्ठ ‘सामना’ के संपादकीय में यदा कदा अपनि अभिव्यक्ति की आज़ादी का आनंद लेते रहते हैं। महाराष्ट्र में कोरोना को नियंत्रित करने में उद्धव सरकार बुरी तरह से असफल साबित हुई है. प्रवासी मजदूरों के मामले में भी उद्धव सरकार निशाने पर रही. ऐसे में संजय राउत की खीज को समझा जा सकता है.

मराठी मानस का नारा बुलंद करने वाली हिन्दुत्व का अजेंडा चलाने वाली पार्टी जब सत्ता लोलुप हो कर कॉंग्रेस की घोर ध्रुवीकरण का समर्थन करने लगे तो संजय राऊत का विचलित होना समझ आता है। परंतु जब कोई मानवता के लिए काम करे तब ओछी राजनीति करना न केवल निंदनीय है अपितु घोर असंवेदन हीनता का परिचय देता है। संजय राऊत भी असंवेद्न्शील हो कर गलती कर बैठे। जहां एक ओर वह पंजाब के मोगा के रहने वाले सोनू सूद को गालियां बॅक रहे हैं वहीं हिन्दू हृदय सम्राट के बेटे तुष्टीकरण रूपी अश्व के नवारूढ़ उद्धव ठाकरे के साथ सोनू सूद की गलबहियों को नज़रअंदाज़ कर बैठे।

सोनू सूद ठाकरे पिता पुत्र के साथ मुहयमन्त्री निवास पर अपने राजनैतिक निर्देशकों से दिशा निर्देश लेते हुए

लॉकडाउन के दौरान पैदल घर लौटने वाले प्रवासी मजदूरों की मदद करके फिल्म अभिनेता सोनू सूद पूरे देश में छा गए. लेकिन महाराष्ट्र की सत्ताधारी राजनीतिक पार्टियों से सोनू सूद की लोकप्रियता देखि नहीं जा रही. जिस काम को करने की जिम्मेदारी महाराष्ट्र सरकार की थी, उसमे वो पूरी तरह से नाकाम रही और प्रवासी मजदूरों को भगवान भरोसे छोड़ दिया. ऐसे में सोनू सूद मसीहा बन कर सामने आये और उन्होंने प्रवासी मजदूरों को घर पहुँचाने का जिम्मा उठाया. लेकिन अब राज्य की सत्ताधारी पार्टी शिवसेना इस बात को लेकर सोनू सूद के पीछे पड़ गई है और उन्हें भाजपा का एजेंट, पैसों के लिए काम करने वाला और न जाने क्या क्या कह दिया.

शिवसेना के मुख्यपत्र सामना में संजय राउत ने लिखा है कि सोनू सूद भाजपा के प्यादा है. जल्द ही वो यूपी और बिहार में भाजपा के लिए चुनाव प्रचार करते भी नजर आ सकते हैं. संजय राउत ने सामना के सम्पादकीय में लिखा है कि ‘महाराष्ट्र में सोशल वर्क की लंबी परंपरा रही है, इसमें महान सामाजिक कार्यकर्ता महात्मा ज्योतिबा फुले और बाबा आम्टे शामिल रहे हैं, और अब इस लिस्ट में एक और व्यक्ति शामिल हो गए हैं, वह हैं सोनू सूद. उनके कई वीडियो और तस्वीरें दिख रही हैं, उनमें सोनू सूद चिलचिलाती धूप में प्रवासी मजदूरों की मदद कर रहे हैं. लॉकडाउन के दौरान अचानक सोनू सूद नाम से नया महात्मा तैयार हो गया. प्रवासी मजदूरों को घर भेजने के लिए उनके नाम की चर्चा हो रही है. राज्यपाल ने भी उनकी तारीफ़ की है.’

इतनी भूमिका बाँधने के बाद संजय राउत लिखते हैं कि इन अभियानों के पीछे सोनू सूद महज एक चेहरा हैं. महाराष्ट्र के कुछ राजनीतिक दल सोनू सूद का इस्तेमाल उद्धव सरकार पर आरोप लगाने के लिए कर रहे हैं. ये लोग सोनू सूद को सुपरहीरो के तौर पर पेश करने में सफल रहे हैं, लेकिन राज्य सरकार की मदद के बिना वे कुछ नहीं कर सकते थे.’

संजय राउत इस सम्पादकीय में आगे लिखते हैं कि सोनू सूद को भाजपा के कुछ लोगों ने गोद ले लिया है और ये काम चुपके चुपके मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को बदनाम करने के लिए किया गया है. संजय राउत ने तो यहाँ तक कह दिया कि सोनू सूद पैसों के लिए कुछ भी कर सकते हैं. उन्होंने इसके लिए एक कथित स्टिंग का भी हवाला दिया. संजय राउत ने कहा कि जल्द ही सोनू सूद का जिक्र मन की बात में आएगा. जल्द ही उन्हें पीएम से मिलने के लिए बुलाया जाएगा और जल्द ही वो यूपी, दिल्ली में भाजपा के लिए प्रचार करते नज़र आएंगे.

महाराष्ट्र में कोरोना को नियंत्रित करने में उद्धव सरकार बुरी तरह से असफल साबित हुई है. प्रवासी मजदूरों के मामले में भी उद्धव सरकार निशाने पर रही. ऐसे में संजय राउत की खीज को समझा जा सकता है.

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