वर्त्तमान परिपेक्ष में कितना सुरक्षित है पत्रकार व पत्रकारिता..
आज के परिवेश में प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को हथियार बना कर कुछ असामाजिक तत्व अपनी नकारात्मक सोच को सुनियोजित तरीके से अपना व्यक्तिगत लाभ प्राप्त करने में लगे हुए हैं। मीडिया जगत परिकल्पना की इस गहराई को ध्यान से नापा जाए तो पता चलता है कि कही न कही पत्रकारिता सुनियोजित षडयंत्र का शिकार हो रही है।
सुशील पंडित, (पत्रकार) यमुनानगर – 24 मई
पत्रकारिता को किसी भी राष्ट्र व समाज का आईना माना गया है पत्रकार वही है जो किसी भी खबर की समसायिक परिस्थिति का निष्पक्ष विश्लेषण करके जनता के सामने रखता हो। मोटे तौर पर पत्रकारिता का आरंभ सरकारी नीतियों के बारे में जनता को अवगत करवाने और जनता की जरूरतों तथा सरकारी नीतियों पर उठने वाली प्रतिक्रियाओं से शासन व प्रशासन को अवगत कराने के उद्देश्य से हुआ है। सरकार व जनता दोनों को समसामयिक घटनाओं से रूबरू करवाने की प्रक्रिया ही पत्रकारिता का मूल उद्देश्य है।
आज के परिवेश में प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को हथियार बना कर कुछ असामाजिक तत्व अपनी नकारात्मक सोच को सुनियोजित तरीके से अपना व्यक्तिगत लाभ प्राप्त करने में लगे हुए हैं। मीडिया जगत परिकल्पना की इस गहराई को ध्यान से नापा जाए तो पता चलता है कि कही न कही पत्रकारिता सुनियोजित षडयंत्र का शिकार हो रही है। मीडिया वह शब्द है जिसे हम सभी आम मतदाता और लोकतंत्र के स्वरूप का निर्माता कहते है जनप्रतिनिधियों और नोकरशाही इसे अपनी सुविधानुसार चलाने की फिराक में है।
समाज मे सभी कार्यों व व्यवसायों की अपनी एक महत्वता है कोई भी सामजिक प्राणी अपनी कार्य कुशलता के आधार पर समाज में अपनी पहचान रखता है या बनाने में लगा हुआ है। मैं आज पत्रकारिता के विषय पर आप सभी का ध्यान केंद्रित करना चाहता हूँ। पत्रकार लोकतंत्र का चौथा स्तंभ, समाज का आईना, आम आदमी की आवाज, जनता व शासन प्रशासन के बीच की कड़ी और न जाने कितने नामों से एक पत्रकार को सम्बोधित किया जाता है जिसका पत्रकार वर्ग अधिकार भी रखता है परंतु क्या कभी सोचा है कि एक पत्रकार जो दिन रात फ़ील्ड में घूम कर समाज के हर वर्ग से सम्पर्क स्थापित करके सच्चाई जनता के बीच रखने का प्रयास करता है वह खुद कही न कही अपने अधिकारों से वंचित रह गया है। दुनियाभर के सभी कार्य क्षेत्रों व व्यवसाय में एक दिन जरूर ऐसा आता है जब वह व्यक्ति आराम से अपने व्यक्तिगत जीवन के लिए कुछ समय निकाल सकता है लेकिन पत्रकारिता में ऐसा नहीं है क्योंकि पत्रकार के लिए सामजिक जीवन ही व्यक्तिगत जीवन की भांति होता है। इस सम्पूर्ण धरा पर पत्रकार ही एक ऐसा प्राणी है जो अपने जीवन की चिंता किए बगैर हर सूचना को अपनी क़लम व कैमरे के माध्यम से जनता के समक्ष रखने का कठिन कार्य भी सामान्य दिनचर्या की तरह ही निष्ठा व ईमानदारी से निभाता है। क्या कभी किसी ने सोचा है विषम परिस्थितियों में काम करने वाला एक पत्रकार भी एक इंसान हैं उसकी भी भावनाएं व अपेक्षाएं इस सम्पूर्ण समाज से जुड़ी होती है यहाँ ये कहना बिल्कुल भी अनुचित नही होगा कि एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है, हाँ पत्रकार जगत में हो सकता है कुछ लोग हैं इस तरह के भी जो अपनी चाटूकारिता व भ्रष्ट चरित्र की वजह से अन्य पत्रकारों को भी सामाजिक दृष्टि में निम्न स्तर पर लाकर खड़ा कर देते हैं।
चौथा स्तंभ कहे जाने वाले पत्रकार को वर्तमान में अनेक चुनोतियों का सामना करना पड़ रहा है अगर सामजिक दृष्टि की बात करें तो हमारे समाज में भी बहुत से लोग हैं जो अपनी सुविधानुसार पत्रकार से अपेक्षाएं रखते हैं। रही राजनीतिक दृष्टि की बात पत्रकार को आईना कहने वाले ये लोग इस आईने में अपना वो चेहरा देखना पसंद करते हैं जो इन्हें खुद को अच्छा लगे। अधिकतर पत्रकार आर्थिक रूप से सामान्य ही मिलते हैं यहाँ अधिकतर शब्द का प्रयोग करना अनिवार्य होगा क्योंकि बड़ी संख्या में पत्रकार अपना काम ईमानदारी से करते हैं। कुछ गिने चुने भ्रष्ट व आधारहीन पत्रकारिता करने वाले लोगों की महत्वाकांक्षी सोच तथा भ्रष्ट नेता व रिश्वतखोर अधिकारी या असमाजिक तत्वों के षड़यंत्र व व्यक्तिगत स्वार्थ की वजह से खबर देने वाला पत्रकार स्वंम खबर बन जाता है। समाज के हर वर्ग की समस्या को शासन प्रशासन तक पहुचाने वाला व्यक्ति(पत्रकार) कभी अपनी संवेदनाएं व अधिकार किसी के समक्ष रखने में सक्षम क्यो नही है इसका कारण है हमारा समाज, समाज का वो हर वर्ग जिसके अधिकारों की लड़ाई पत्रकार निस्वार्थ भाव से लड़ता आया है और भविष्य में भी लड़ता रहेगा। अगर इस लेख से जुड़े तथ्यों की बात करें तो हम आए दिन देख व पढ़ रहे हैं कि किस प्रकार पत्रकारों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं सामने आ रही है, हमारे समरसता वादी समाज व निष्पक्ष तथाकथित राजनीति के द्वारा सभी सम्मानित वर्गों की सुरक्षा हेतू कानून व्यवस्था सुदृढ की गई है जो होनी भी चाहिए परन्तु पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रतिकूल परिस्थितियों में कार्य करने वालों के लिए तो केवल बड़े बड़े मंचो से प्यार के दो मीठे बोल ही बोले जाते है। धरातल पर पत्रकार जगत आज भी असुरक्षित महसूस कर रहा है। एक पत्रकार होने के नाते मैं शासन से अपील भी नहीं कर सकता परन्तु आह्वान जरूर करना चाहता हूँ कि पत्रकारों के हितों के बारे में भी आप सोच सकते हो उन्हें भी अन्य वर्गों की भांति आर्थिक व सामजिक सुरक्षा प्रदान कर सकते हो।
अंत में मैं समाज के उस प्रतियेक वर्ग जैसे किसान, कर्मचारी, व अन्य सामाजिक संस्थाओं से तो अपील ही करना चाहता हूँ कि किसी भी पत्रकार की वास्तविक समस्या में उसका सहयोग अवश्य करें, क्योंकि वो एक पत्रकार ही होता है जो आपके अधिकारों व समस्याओं को स्थानीय प्रशासन व मौजूद सरकार तक पहुँचा कर दो छोरों में सेतू का कार्य करता हैं। वर्तमान के परिपेक्ष्य में पत्रकार साथियों को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि वह क्या चाहते है अपने अधिकारों व सुरक्षा के संघर्ष में अकेले अकेले रह कर इसी प्रकार शोषित होना है या फिर एकजुटता व निष्ठा से अपनी गरिमा व अस्मिता को सुरक्षित रखना है।