हरियाणा के मेवात क्षेत्र को कट्टरवादियों ने बहुत पहले ही ‘बंगलादेश’ बना दिया है। बंगलादेश में करीब 8 प्रतिशत हिन्दू रह गए हैं, यही स्थिति मेवात की भी हो गई है। जबकि 1947 में बंगलादेश में करीब 30 प्रतिशत और मेवात में भी लगभग 30 प्रतिशत हिन्दू थे। अब पूरे मेवात को ‘पाकिस्तान’ की शक्ल देने देने का प्रयास तेजी से हो रहा है। आज हरियाणा के मेवात में हिन्दुओं के साथ वह सब हो रहा है जो बंगलादेश या पाकिस्तान में हिन्दुओं के साथ होता है। हिन्दू लड़कियों और महिलाओं का अपहरण, उनका मतान्तरण और फिर किसी मुस्लिम के साथ जबरन निकाह। हिन्दुओं को जबरदस्ती मुसलमान बनाना। हिन्दू व्यापारियों से जबरन पैसे की वसूली करना। मंदिरों और श्मशान के भूखंडों पर कब्जा करना। बंगलादेशी घुसपैठियों को बसाना। हिन्दुओं को झूठे मुकदमों में फंसाना। हिन्दुओं के यहां डाका डालना। कोढ़ में खाज यह कि प्रशासन द्वारा भी हिन्दुओं की उपेक्षा आम बात हो गयी है। इस कारण मेवात के हिन्दू मेवात से पलायन कर रहे हैं। मेवात के सभी 508 गांव लगभग हिन्दू-विहीन हो चुके हैं। किसी- किसी गांव में हिन्दुओं के दो-चार परिवार ही रह गए हैं। यदि सेकुलर सरकारों का रवैया नहीं बदला तो यहां बचे हिदू भी पलायन कर जाएंगे। फिर इस इलाके को पाकिस्तान बनने से कोई रोक नहीं सकता है।
सारिका तिवारी, चंडीगढ़
हरियाणा के मेवात से हिंदू समुदाय की पलायन पर अखबारों में एक रिपोर्ट छप रही है लगभग 75 से 100 शब्दों की। बस विश्व हिंदू परिषद ने पिछले दिनों एक समिति बनाई जिसमें जनरल बक्शी स्वामी धर्मदेव और वकील चंद्रकांत शर्मा शामिल थे। समिति ने ओट में बताया गत 25 वर्षों से मेवात से भारी संख्या में हिंदू पलायन कर गए हैं। वीएचपी के संयुक्त सचिव डॉ सुरेंद्र जैन की माने तो उन्होंने मेवात को हिंदुओं का कब्रिस्तान ही कह दिया, क्योंकि आए दिन हिंसा की घटनाएं सामने आ रही है। धर्म परिवर्तन के लिए दबाव आए दिन सुनने में आ रहा है, कभी किसी लड़के की शिखा काटने का प्रयास और विरोध करने पर उसके घर पर भारी संख्या में समुदाय विशेष के लोगों द्वारा हल्ला बोल कर ना केवल लड़के को अधमरा करना बल्कि उसकी मां के साथ भी मारपीट करना आम है। इतना ही नहीं प्रशासन और पुलिस इतने पंगु हैं कि पहले तो रिपोर्ट दर्ज ही नहीं हुई बाद में किसी तरह मामला दर्ज हुआ तो दबाव बनाकर सम्झौता करवाया गया। उसके अगले ही दिन लठियों से दो हिन्दू युवाओं पर जान लेवा हमला किया गया जिनमें से एक अभी भी अस्पताल में दाखिल है। उसकी स्थिति नाज़ुक बनी हुई है। इससे साफ झलकता है कि पुलिस और प्रशासन अपना कर्तव्य पालन करने में नाकाम साबित हो रहे हैं। या तो किसी प्रभाव के अंतरगर्त अपना काम नहीं कर पा रहे या स्वयं दोनों मशीनरियाँ ऐसी गतिविधियों में संलिप्त हैं।
गोहत्यारों पर नहीं होती कड़ी कार्रवाई
गोकशी के मामलों में भी जब पुलिस को सूचना दी जाती है तो पुलिस अपराधियों पर कोई कड़ी कार्रवाई नहीं करती है। उदाहरण के लिए 28 अप्रैल को पुन्हाना में गो तस्करों की गोली से रघुवीर नामक एक मजदूर मारा गया। लेकिन इस मामले में कड़ी कार्रवाई करने के बजाए पुलिस इसकी लीपापोती में लगी है। मजदूर का परिवार भुखमरी के कगार पर है, परन्तु मुआवजे की बात तो दूर, उसकी कोई परवाह नहीं की जा रही है। ऐसी घटनाएं बताती हैं कि मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में जहां हिन्दू परिवार गिने चुने हैं, वहां हिंदुओं की सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है और न ही अपेक्षित सुरक्षा बल मौजूद है। इसके अतिरिक्त, लॉक डाउन के चलते जहां हिन्दू व्यावसायी लॉक डाउन के नियमों का पालन करते हुए जब अपने प्रतिष्ठान चला रहे होते हैं, तो वहां के स्थानीय अधिकारी केवल हिंदुओं का गैर कानूनी चालान करते हैं, जबकि मुस्लिमों द्वारा चलाये जा रहे व्यावसायिक प्रतिष्ठान लॉक डाउन की धज्जियां उड़ाकर, बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के धड़ल्ले से चल रहे हैं। 500 मकानों वाले गांव कुलैटा (नगीना ) में जहां केवल 10 मकान हिंदुओं के हैं वहां हिन्दुओं का घर से निकलना दूभर हो रहा है। बहू-बेटियां भी सुरक्षित नहीं हैं। इतना ही नहीं, सरकारी स्कूलों में हिन्दुओं के बच्चों को नमाज पढ़ने के लिये बाध्य किया जाता है,जहां पर कर्मचारी मुस्लिम बहुल हैं।
इस सबके बीच पुन्हाना के पास नई गांव से कन्वर्जन की साजिशों का भी पता चला। यहां के एक हिन्दु युवक को मुस्लिम बनाया गया और अब उसकी मां को भी इस्लाम अपनाने के लिये प्रताड़ित किया जा रहा है। यह भी बात सामने आई है कि गांव उटावड़ में कुख्यात आतंकवादी हाफिज सईद द्वारा दिए गए पैसों से एक बड़ी मस्जिद बनाई गयी जो सलमान नाम के व्यक्ति के माध्यम से बनवाई गयी। इस समय यह सलमान किसी अन्य मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी की गिरफ्त में है। कुल मिलाकर हरियाणा के इस जिले में मुसलमानों का इतना आतंक व खौफ है, जिसके चलते हिन्दुओं का जीना दूभर हो रहा है। इन्हीं कारणों के चलते हिन्दू पलायन तक को मजबूर हो रहे हैं। ऐसे में यह समिति हिन्दू समुदाय की सुरक्षा के प्रति राज्य सरकार को जागरूक करते हुए अपील करती है कि सरकार हिन्दुओं की सुरक्षा का उचित प्रबन्ध करे ताकि उनमें एक विश्वास उत्पन्न हो सके। पीड़ितों से चर्चा करते समय एक ही बात सामने आई कि वे प्रशासन पर विश्वास खो बैठे हैं। इसलिये उनमें से कुछ लोग पलायन की सोच रहे हैं। ऐसी स्थिति घातक है। इन परिस्थितियों को वर्तमान हरियाणा सरकार ही ठीक कर सकती है। इसलिए यह रिपोर्ट हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल जी को भेज दी गई है। विश्व हिंदू परिषद विश्वास करती है कि मुख्यमंत्री महोदय इस रिपोर्ट की अनुशंसाओं को अति शीघ्र लागू करके मेवात को राष्ट्र विरोधी व हिंदू विरोधी गतिविधियों से मुक्त कराएंगे।
जुलाई 2018 को 8 लोगों द्वारा एक बकरी के साथ गैंगरेप करने की घटना को कोई भूला तो नहीं होगा?
समिति ने कुछ अनुशंसा भी की हैं जो इस प्रकार हैं—
- क्षेत्र के समस्त पुलिस प्रशासन को बदल कर इनकी जगह कर्मठ व किसी दबाव में न झुकने वाले अधिकारियों को लाया जाये।
- जिस क्षेत्र में हिन्दुओं पर अत्याचार होते हैं, वहां के थानाध्यक्ष को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराया जाए।
- मेवात में मदरसों,—मस्जिदों और मजारों से चल रही राष्ट्र विरोधी गतिविधियों की एनआईए से जांच कराई जाए। हवाला के रास्ते आतंकवादियों का पैसा मस्जिदों के बनाने और अवैध हथियारों के जखीरे खड़ा करने में हो रहा है, यह भी जांच में शामिल हो।
- पुलिस पर अविश्वास के कारण वहां पर अर्ध सैनिक बलों की उपस्थिति आवश्यक है। अतः मुस्लिम बहुल इलाकों मे अर्ध सैनिक बलों का केन्द्र बनना चाहिये, चाहे उसके लिये भूमि अधिग्रहण करनी पड़े।
- हिंदुओं की व्यक्तिगत, सामाजिक व धार्मिक सम्पत्ति पर अवैध कब्जों की जांच होनी चाहिये और उनको जिहादियों के चंगुल से अविलम्ब मुक्त कराना चाहिए।
मुख्यमंत्री को परिषद की ओर से यह रिपोर्ट सौंपी गई। सुरेन्द्र जैन चाहते हैं कि मुख्यमंत्री जल्दी से जल्दी रिपोर्ट का संगयानलेते हुए उचित कार्रवाई करें और समिति की सिफारिशों जिसमें वर्तमान अधिकारियों और कर्मियों को तुरंत प्रभाव से हटाकर दूसरे अधिकारी और कर्मचारी नियुक्त किया जाए। इतना ही नहीं समिति ने सिफ़ारिश की है कि मेवात के संवेदनशील माहौल को देखते हुए यहां सीआरपीएफ़ और बीएसएफ को तैनात किया जाए।
भई यह तो रही विश्व हिंदू परिषद की मांग, जिन मसलों पर सुरेन्द्र जैन बात कर रहे हैं यह समस्याएं और घटनाएं आर एस एस के घटक दल भाजपा के राज मैं ही हुई है।
मुख्यमंत्री हो या गृह मंत्री दोनों के पास इस विषय पर बात करने का समय नहीं, मान ले अपने किसी खास या चहेते पत्रकार से इस विषय पर बात करें भी तो आम दिनों की तरह एक ही जवाब उम्मीद की जा सकती है या तो उन्हें इस बारे में जानकारी नहीं या इस पर जांच चल रही है इस पर वह सामने आएगी भी या नहीं यह आने वाले समय के शोध का विषय रहेगा।
अब बात करते हैं कि क्यों प्रशासन ऐसे व्यक्ति जो कि इस तरह की घोर हिंसा में संलिप्त हैं के विरुद्ध कार्रवाई नहीं करता या इन पर कोई राजनीतिक दबाव जो कि अपने वोट बैंक को संजोकर रखने के लिए तथाकथित अपिजमेंट नीति का प्रयोग करते हैं? राजनेताओं के हाथ की कठपुतली बने अखबार और चैनल क्यों सच को उजागर होने नहीं देते? एक समुदाय विशेष के कुछ गिने-चुने लोगों द्वारा हिंसा फैलाने या वारदातों को अंजाम देने को मात्र कुछ शब्दों तक समेट कर रख दिया जाता है जबकि मेवात के इलाके में पिछले दिनों इस तरह की हिंसा और सांप्रदायिक गतिविधियों में संलिप्त लोगों के बारे में बोलने और लिखने वाले पत्रकार के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया और उसे ना केवल पुलिस ने गिरफ्तार करने की पूरी तैयारी कर ली थी। और कुछ लोगों ने उसके घर पर भी हमला किया। चलो कुछ सोच कर पुलिस ने गिरफ्तारी तो नहीं की लेकिन उसकी शिकायत पर हमलावरों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई इससे बड़ी विडंबना यह है की पत्रकार संगठनों या उनके पदाधिकारी साथ देना तो दूर घटनाक्रम क निंदा करने के लिए आगे नहीं आए।
अब बात करें ऐसे मामलों की रिपोर्टिंग की चाहे रिपोर्ट जनता के सामने आने की बात हो रिपोर्ट दर्ज करने के बाद दोनों ही मामलों में रिपोर्ट औंधे मुंह गिरी दिखाई पड़ती हैं। मीडिया की दिलचस्पी तथाकथित अल्पसंख्यक समुदाय मैं ही है चाहे मुजफ्फरनगर का हो या शामली का मामला, मीडिया ने क्षेत्र को अपनी छावनी बना लिया था और ग्राउंड ज़ीरो से रेपोर्टिंग हो रही थी। इतना ही नहीं मिडीया इस तरह से रिपोर्टिंग करता है की जैसे चाहता हो कि घटना क्रम जितनी जल्दी हो सके जनसाधारण के मानस पटल से साफ हो जाए।
पलायन बंगाल से भी हो रहा है, आसनसोल के दंगों के बाद से यह पलायन जारी है, लेकिन अखबार और चैनल मालदा, उत्तरी दिनाजपुर, मुर्शिदाबाद और टेलिनपरा की खबर बाहर नहीं आने देते। ममता बनर्जी के आने के बाद ही से यह घटना विषम रूप लेती जा रही है। देश में संचार माध्यमों की भरमार है लेकिन संचार के विषय का चुनाव देश हित के लिए नहीं बिजनेस हाउस और राजनीतिक हाउसेस के लिए किया जाता है फॉर सेल के बोर्ड तो भले ही से हट गए हैं लेकिन घरों के बाहर लटकते ताले देखकर तीन दशक पहले के कश्मीर को यहां जीवंत करते हैं।
जारी है:-