भौम प्रदोश व्रत कथा और महत्व

इस बार मंगलवार के दिन प्रदोष व्रत पड़ने के कारण इसे भौम प्रदोष या मंगल प्रदोष व्रत कहा जाता है। पंचांग के अनुसार प्रदोष व्रत हर महीने में दो बार होता है, एक कृष्ण पक्ष में और एक शुक्ल पक्ष में। त्रयोदशी तिथि के दिन यह व्रत किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह व्रत महत्वपूर्ण होता है मंगल प्रदोष व्रत (Mangal Pradosh Vrat): जो भी साधक इस व्रत को सच्चे ह्रदय से करता है भगवान शिव उसकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं और उसके जीवन में आने वाली बाधाओं का नाश होता है.

मंगल प्रदोष व्रत (Mangal Pradosh Vrat):

 हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का काफी महत्व है. 5 अप्रैल मंगलवार को भौम प्रदोष व्रत है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इन दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है. प्रदोष व्रत का महत्व वार यानी कि दिन के हिसाब से अलग-अलग होता है. मंगलवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को मंगल प्रदोष व्रत या भौम प्रदोष व्रत भी कहते हैं. मान्यता है कि जो भी साधक इस व्रत को सच्चे ह्रदय से करता है भगवान शिव उसकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं और उसके जीवन में आने वाली बाधाओं का नाश होता है. ऐसे जातक को सुयोग्य जीवनसाथी की भी प्राप्ति होती है.

इसकी कथा इस प्रकार है यह 11वें रूद्रावतार रामभक्त हनुमान जी से संबन्धित है।

एक नगर में एक वृद्धा रहती थी। उसका एक ही पुत्र था। वृद्धा की हनुमानजी पर गहरी आस्था थी। वह प्रत्येक मंगलवार को नियमपूर्वक व्रत रखकर हनुमानजी की आराधना करती थी। एक बार हनुमानजी ने उसकी श्रद्धा की परीक्षा लेने की सोची। हनुमानजी साधु का वेश धारण कर वृद्धा के घर गए और पुकारने लगे- है कोई हनुमान भक्त, जो हमारी इच्छा पूर्ण करे? पुकार सुन वृद्धा बाहर आई और बोली- आज्ञा महाराज। हनुमान (वेशधारी साधु) बोले- मैं भूखा हूं, भोजन करूंगा, तू थोड़ी जमीन लीप दे।

वृद्धा दुविधा में पड़ गई। अंतत: हाथ जोड़कर बोली- महाराज। लीपने और मिट्टी खोदने के अतिरिक्त आप कोई दूसरी आज्ञा दें, मैं अवश्य पूर्ण करूंगी। साधु ने तीन बार प्रतिज्ञा कराने के बाद कहा- तू अपने बेटे को बुला। मैं उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाऊंगा। यह सुनकर वृद्धा घबरा गई, परंतु वह प्रतिज्ञाबद्ध थी। उसने अपने पुत्र को बुलाकर साधु के सुपुर्द कर दिया।

वेशधारी साधु हनुमानजी ने वृद्धा के हाथों से ही उसके पुत्र को पेट के बल लिटवाया और उसकी पीठ पर आग जलवाई। आग जलाकर दु:खी मन से वृद्धा अपने घर में चली गई। इधर भोजन बनाकर साधु ने वृद्धा को बुलाकर कहा- तुम अपने पुत्र को पुकारो ताकि वह भी आकर भोग लगा ले।इस पर वृद्धा बोली- उसका नाम लेकर मुझे और कष्ट न पहुंचाओ।

लेकिन जब साधु महाराज नहीं माने तो वृद्धा ने अपने पुत्र को आवाज लगाई। अपने पुत्र को जीवित देख वृद्धा को बहुत आश्चर्य हुआ और वह साधु के चरणों में गिर पड़ी। हनुमानजी अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए और वृद्धा को भक्ति का आशीर्वाद दिया।

प्रदोष व्रत:

प्रदोष व्रत की पूजा सुबह सूर्योदय और शाम को प्रदोष काल यानी कि गोधूली बेला में करनी उचित रहती है.

प्रदोष व्रत की पूजा-विधि:

प्रदोष व्रत के साधक को दिन सुबह सूर्योदय से पहले बिस्तर त्याग देना चाहिए. इसके बाद नहा-धोकर पूरे विधि-विधान के साथ भगवान शिव का भजन कीर्तन और पूजा-पाठ करना चाहिए. इसके बाद पूजाघर में साफ-सफाई करनी चाहिए. इसके बाद पूजा के स्थान और पूरे घर में गंगाजल से पवित्रीकरण करना चाहिए. पूजाघर को गाय के गोबर से लीपना चाहिए. हिंदू धर्म में गाय के गोबर को काफी पवित्र माना गया है. यदि आप ऐसा नहीं भी करते हैं तो परेशानी की बात नहीं है.

अगर केले के पत्ते मिल सकें तो इन पत्तों और रेशमी कपड़ों की सहायता से एक मंडप तैयार करना चाहिए. आटे, हल्दी और रंगों की सहायता से पूजाघर में एक अल्पना (रंगोली) बनानी चाहिए. व्रती को कुश के आसन पर बैठ कर उत्तर-पूर्व की दिशा में मुंह करके भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए.

करें इस मंत्र का जाप:

प्रदोष की पूजा करते समय साधक को भगवान शिव के मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ का पाठ करना चाहिए. इसके बाद शिवलिंग पर दूध, जल और बेलपत्र चढ़ाना चाहिए.

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