प्रकृति और नदियों के लिए वरदान बन आर आया COVID-19

देश में नदियों की सफाई हमेशा से बड़ा मुद्दा रहा है और हर सरकार ने इसके लिए जतन किया, हजारों करोड़ रुपए पानी की तरह बहाया, मगर वैसी उपलब्धि नहीं हासिल हो पाई जैसी उम्मीद थी, मगर अब कोरोना वायरस की वजह से यह काम सिर्फ 12 दिन में हो गया है। कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते लागू लॉकडाउन के कारण दिल्ली में यमुना करीब 60 प्रतिशत तक साफ हो गई है। यही हाल गंगा नदी का भी है।

कुछ इंसान तो अपनी विचारधारा और सोच बदलने के लिए तैयार नहीं है. लेकिन कोरोना वायरस की वजह से प्रकृति ने अपना स्वरूप बदलना शुरू कर दिया है. कोरोना वायरस दुनिया के लिए अभिशाप बन गया है, लेकिन प्रकृति के लिए यही वायरस, वरदान साबित हुआ है. जिसे देखकर पूरी दुनिया हैरान है. अब यमुना नदी को ही ले लीजिये जो लॉकडाउन से पहले दिल्ली में एक नाले की तरह नजर आती थी, वो अब इतनी साफ और निर्मल हो गई है कि लोगों को यकीन ही नहीं हो रहा है. 

लॉकडाउन के दौरान यमुना का पानी 60 प्रतिशत तक स्वच्छ हो गया है. इस वक्त आपकी टीवी स्क्रीन पर इसी यमुना नदी की दो तस्वीरें हैं. एक तस्वीर लॉकडाउन से पहले की है..जबकि दूसरी तस्वीर आज की है. दोनों तस्वीरों में अंतर साफ नजर आता है. एक तस्वीर वो है, जिसमें यमुना नदी में काला पानी बह रहा है, जबकि दूसरी तस्वीर यमुना नदी में बहते साफ पानी की है. यमुना नदी के पानी की गुणवत्ता में आया ये सुधार लॉकडाउन की ही देन है. ये तस्वीरें इस बात की गवाही देतीं हैं कि दिल्ली में अपनी अंतिम सांसें गिन रही यमुना नदी को लॉकडाउन ने नया जीवनदान दिया है.

ध्यान देने वाली एक बात ये भी है कि करीब तीन दशकों के दौरान दो हजार करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च करके जो काम सरकारें नहीं कर पाईं…वो काम लॉकडाउन के दौरान अपने आप हो गया. यमुनोत्री से लेकर इलाहाबाद तक करीब 1370 किलोमीटर के अपने रास्ते में यमुना नदी का करीब 22 किलोमीटर का हिस्सा दिल्ली में पड़ता है और अक्सर दिल्ली से गुजरने वाली यमुना प्रदूषित रहती है.

दिल्ली में प्रतिदिन 3 हज़ार 267 मिलियन लीटर सीवर का पानी निकलता है जिसमें से करीब आधा ही साफ हो पाता है जबकि बाकी गंदा पानी सीधे यमुना नदी में जाकर गिर जाता है. लॉकडाउन में बाजार और फैक्ट्रियां बंद होने से सीवर से निकलने वाले गंदे पानी की मात्रा कम हो गई है. दिल्ली में करीब एक लाख फैक्ट्रियां है जिनमें से हर रोज़ 60 से 70 मिलियन लीटर कचरा निकलता है और ट्रीटमेंट प्लांट्स होने के बावजूद बड़ी मात्रा में कचरा सीधे यमुना नदी में ही गिरता है. इसके अलावा दिल्ली के 16 नालों से भी यमुना नदी में गंदगी पहुंचती है लेकिन लॉकडाउन के दौरान ये सब चीजें होना या तो पूरी तरह बंद हो गया है या काफी कम हो गया है.
 
लेकिन दिल्ली में अभी भी कुछ जगह ऐसी हैं जहां यमुना नदी अब भी मैली है लेकिन वहां भी पहले के मुकाबले गुणवत्ता का स्तर बेहतर हुआ है लेकिन उतना नहीं, जितना होना चाहिए. वैसे लॉकडाउन का असर सिर्फ यमुना नदी की ही गुणवत्ता पर नहीं पड़ा है बल्कि गंगा नदी का पानी भी स्वच्छ हुआ है. 

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के Real Time Water Monitoring Data के मुताबिक 36 में से 27 निगरानी केंद्र में गंगा नदी का पानी नहाने लायक पाया गया है. गंगा नदी में होने वाले कुल प्रदूषण में उद्योगों की हिस्सेदारी करीब दस प्रतिशत होती है. लॉकडाउन के दौरान उद्योग बंद हैं जिससे स्थिति बेहतर हुई है. गंगा नदी के घाटों के किनारे अंतिम संस्कार और नौकायन जैसी गतिविधियां बंद हैं जिससे गंगा नदी में 5 प्रतिशत गंदगी घटी है. इसी का असर है कि 24 मार्च को लॉकडाउन के ऐलान के बाद से गंगा नदी पहले के मुकाबले 40 से 50 प्रतिशत साफ नजर आ रही है. 

गंगा अब काफी हद तक हो गई साफ

औद्योगिक शहर कानपुर, जहां से बड़ी मात्रा में औद्योगिक कचरा निकलता है और इसे गंगा नदी में फेंका जाता है, वहां भी गंगा अब काफी हद तक साफ हो गई है. यमुना और गंगा नदी ने जिस तरह लॉकडाउन के इस मौके का फायदा उठाकर खुद को साफ और स्वच्छ रखने का मॉडल पेश किया है. वो भविष्य में इन नदियों को साफ और निर्मल बनाए रखने में कारगर साबित हो सकता है. सोचिये अगर 14 दिन के लॉकडाउन में स्थितियां इतनी बेहतर हो सकती हैं तो क्यों ना प्रकृति की खातिर लॉकडाउन को एक वार्षिक आयोजन बनाकर अपनाया जाए. 

0 replies

Leave a Reply

Want to join the discussion?
Feel free to contribute!

Leave a Reply