राष्ट्र विरोधी अजेंडा चलाने में कई पत्रकारों को महारत हासिल है। इसी महारत के चलते वह अल्प समय में करोड़ों के मालिक बने बैठे हैं। किसी का 60 करोड़ का बंगला है तो कोई अपना ही चैनल चला रहा है। यह वही पत्रकार हैं जो शाहीन बाग का समर्थन करते हैं, एनआरसी` जिसका अभी कहीं लेखा जोखा ही नहीं है उसे अपने चैनल की सुर्खियां बनाते हैं सेना से सबूत मांगे की खबरों को बार बार दिखते हैं और मांग को जायज ठहराते हैं। एनडीटीवी की कई रिपोर्ट कुछ ऐसा ही आभास देतीं हैं।
आजकल लोगों को डराने का चलन चल निकला है। कई चैनलों पर फर्जी एपिडोमिलोजिस्ट बैठ कर ज्ञान दे रहे हैं। कोई कह रहा है कि भारत में इतने हजार लोग मर जाएँगे तो कई इसे लाख में बता रहे हैं। ‘फियर-मोंगरिंग’ कर के लोगों को डराया जा रहा है, बजाए उन्हें सावधान करने के। इसी क्रम में एनडीटीवी ने भी अपने हाथ धोए। NDTV ने लोगों को डराने के लिए एक विदेशी यूनिवर्सिटी का ‘अध्ययन’ क्रिएट किया और फिर उसे ख़बर की शक्ल दे दी। बाद में चोरी पकड़ी गई तो उसे ये ख़बर हटानी पड़ी।
दरअसल, एनडीटीवी ने एक ख़बर चलाई, जिसमें कहा गया कि अगले तीन महीने में भारत में कोविड-19 के 25 करोड़ मामले आ सकते हैं। चैनल द्वारा दिए गए आँकड़ों की मानें तो देश की 20% जनता कोरोना वायरस से पीड़ित होगी। बकौल प्रोपेगेंडा मीडिया संस्थान एनडीटीवी, ये आँकड़े जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के अध्ययन में सामने आए हैं। ऐसे ‘अध्ययन’ का हवाला दिया गया, जिसे करने वाले को ही इसके बारे में कुछ पता नहीं था। एनडीटीवी ने यूनिवर्सिटी के हवाले से लिखा कि अप्रैल-मई तक ऐसी तबाही आएगी। उसने बताया कि इस अध्ययन में एक स्वास्थ्य रिसर्च संस्था CDDEP भी शामिल है।
इस ख़बर के सामने आने के बाद जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी ने इसे नकार दिया। अमेरिका के मेरीलैंड में स्थित यूनिवर्सिटी ने स्पष्टीकरण जारी करते हुए बताया कि उसने ऐसा कोई रिसर्च प्रकाशित नहीं किया है। यूनिवर्सिटी ने लिखा कि इस कथित ‘रिसर्च’ में उसके लोगो और नाम का भी ग़लत इस्तेमाल किया गया है। लोगों ने ट्विटर पर जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी से इस बारे में पूछा था, जिसके बाद उसने ये स्पष्टीकरण दिया। लोगों ने यूनिवर्सिटी को टैग कर के पूछा था कि ये ‘रिसर्च’ भारत में खूब वायरल हो रहा है, क्या ये यूनिवर्सिटी के छात्रों का है? लेकिन यूनिवर्सिटी ने इसे स्पष्ट तौर पर नकार दिया।
बाद में पोल खुलने पर एनडीटीवी ने इस ख़बर को डिलीट कर दिया और ट्विटर पर बताया कि उसने जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के स्पष्टीकरण के बाद इस ख़बर को अपनी वेबसाइट से हटा दिया है। साथ ही प्रोपेगंडा पोर्टल ने इसके लिए अप्रत्यक्ष रूप से न्यूज़ एजेंसी IANS को दोष दिया और कहा कि ये ख़बर उसकी ही थी और ग़लत साबित होने के बाद इसे हटा दिया गया है। हालाँकि, ये पहले बार नहीं है जब एनडीटीवी इस तरह की हरकत करते धराया हो।