मोदी सरकार में क्या वाकई ही सबकुछ सही है????

सारिका तिवारी
संपादक डेमोक्रेटिक्फ़्र्ण्ट॰

इज़ आल रियली वैल विद मोदी सरकार, आल …?

यकीनन मोदी सरकार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा पार्टी के वरिष्ठ नेता मोदी की मनमानियों के खिलाफ मुखर हो रहे हैं । वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी चिर परिचित अंदाज में कहते सुनाई पड़ रहे हैं कि मोदी को केवल यस मैन की आवश्यकता है देश की चरमराती अर्थव्यवस्था इसका जीता जागता उदाहरण है ।गत सप्ताह सरकार द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार सितंबर से जुलाई तक की तिमाही में कुल घरेलू उत्पाद में 4.5 की वृद्धि हुई है लेकिन अर्थशास्त्रियों की माने तो यह वृद्धि मात्र 1.5 प्रतिशत ही रही।

मोदी सरकार के पूर्व मुख्य वित्तीय सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम के अनुसार वर्ष 2011 – 12 मैं कुल घरेलू उत्पाद का मूल्यांकन करने का तरीका बदला गया और और वित्तीय बढ़त 2 .5 प्रतिशत दिखाई गई थी। सरकारी आंकड़े देखें तो वर्ष 2011 – 12 और वर्ष 2016 – 17 में यह बढ़त 6.0% रही जबकि अर्थशास्त्रियों के अनुसार यह असल में लगभग 4 .5 प्रतिशत ही रही गत सप्ताह जारी रिपोर्ट 4.5 प्रतिशत गिरावट आई है जोकि 2013 से अब तक की सबसे अधिक गिरावट है।

समय-समय पर सरकार के वित्त मंत्री इसे अपने अपरिपक्व टिप्पणियों से सही साबित करने की कोशिश रहे हैं। पूर्व वित्त मंत्री पीयूष गोयल मैं तो यहां तक कह दिया था कि ज्यादा हिसाब किताब में ना पड़े। निर्मला सीतारमण ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में हो रहे घाटे के लिए उबर और ओला को जिम्मेदार ठहरा कर जीडीपी की गिरावट ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री पर मढ़ना चाहती हैं। हाल ही में संसद में सरकार के बचाव के लिए उठे कानून मंत्री जोकि पूर्व में सूचना एवं प्रसारण मंत्री भी रहे हैं ने कहा 2 अक्तूबर को तीन फिल्में रिलीज हुई है छुट्टी होने के बावजूद उन्होंने एक सौ बीस करोड रुपए का व्यवसाय जिससे साबित होता है अर्थव्यवस्था मजबूत है। इस तरह के हास्यास्पद और अपरिपक्व बयानों से वर्तमान सरकार स्वयं की कुर्सी तो बचा सकती है लेकिन चरमराती अर्थव्यवस्था के लिए जी वी ए (ग्रॉस वैल्यू एडेड) में बढ़ोतरी करती जा रही है जो कि आम जनता के लिए महंगाई के रूप में उसकी कमाई को लील रहा है ।

जीडीपी और जी वी ए सबसे अधिक उपभोक्ता को प्रभावित करती है जबकि विडम्बना यह है कि उसे तो केवल आटे दाल की कीमत ही समझ आती है जीडीपी के आंकलन के लिए तरीका बदल कर रिपोर्ट पेश करना एक अलग बात है जिससे विपक्ष का तो मुंह बंद किया जा सकता है लेकिन लोगों के स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग यानी रहन सहन का स्तर बढ़ाना मुश्किल है। देखा जाए तो रहन-सहन का स्तर ही किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का आईना होता है।

अब सवाल यह है किन कारणों से अर्थव्यवस्था के हालात बिगड़ रहे हैं प्रत्यक्ष रूप से ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री, रियल स्टेट, बैंक और इसी तरह से सेक्टर बिगड़ी अर्थव्यवस्था की चपेट में आ गए हैं। सरकार जीवीए यानी ग्रॉस वैल्यू ऐडेड पर जोर दे रही है जिसका असर सीधे उपभोक्ता पर पड़ता है जोकि “महंगाई बहुत हो गई है “कहकर अपना मन मसोस कर बैठ जाता है।

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