सारिका तिवारी, चंडीगढ़ – 31 अक्टूबर:
बोरवेल दुर्घटना के कारण तमिलनाडु में दो वर्षीय सुजीत विल्सन और पंजाब के फ़तह सिंह की दुखद मौत एक आंख खोलने वाली घटनाएं हैं। लेकिन सम्बन्धित विभागों और प्राधिकरणों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता जो कि बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है।
इस तरह की घटनाएं अभी भी जारी हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने लगभग नौ साल पहले दिशा-निर्देश जारी किए थे।
शीर्ष अदालत द्वारा स्वत संज्ञान लिए गए एक मामले में बोरवेल में गिरने और ट्यूबवेल में गिरने के कारण छोटे बच्चों के साथ होने वाली घातक दुर्घटनाओं की रोकथाम के उपायों पर फिर से विचार किया गया था।
तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एस.एच. कपाड़िया और जस्टिस के.एस. राधाकृष्णन और जस्टिस स्वतंत्र कुमार की पीठ ने विभिन्न राज्यों में कई मामलों पर ध्यान दिया था, जहां बच्चे बोरवेल और ट्यूबवेल या खाली पड़े कुओं में गिर गए थे। उसी के अनुसार , अदालत ने 6 अगस्त 2010 को इस तरह के हादसों को रोकने के लिए तत्काल उपाय करने के लिए निर्देश दिए थे। परन्तु ऐसी दर्दनाक हादसों का सिलसिला रुक नहीं रहा।
बोरवेल दुर्घटनाओं का सिलसिला भले ही सुप्रीम कोर्ट की तरफ से जारी निर्देश को नौ साल बीत चुके हों, लेकिन इस तरह की घातक घटनाएं थमी नहीं हैं। ताजा घटना सुजीत विल्सन की हाल ही में हुई मौत है, जिसके मृत शरीर को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में खुले छोड़ दिए गए बोरवेल से 80 घंटे तक नॉन स्टॉप रेस्क्यू ऑपरेशन चलाने के बाद निकाला गया था। विल्सन अपने परिवार के फॉर्म में खेलते समय एक खुले बोरवेल में गिर गया था और वह 88 फीट की गहराई पर 80 घंटे से अधिक समय तक उसमें फंसा रहा। इस घटना के साथ कई अन्य घटनाओं को भी रोका जा सकता था,अगर संबंधित अधिकारियों ने उन दिशानिर्देशों का पालन किया होता, जो सुप्रीम कोर्ट ने जारी किए थे। विशेष रूप से खुले बोरवेल के संबंध में।
अदालत ने निर्देश दिया था कि–
1. इनको नीचे से लेकर जमीनी स्तर तक मिट्टी/रेत/बोल्डर/ कंकड़/ ड्रिल कटिंग आदि द्वारा भरा जाना चाहिए। इसके अलावा, ग्राउंड वाटर /पब्लिक हेल्थ/म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन/ प्राइवेट कॉन्ट्रैक्टर आदि के संबंधित विभाग से उपरोक्त प्रभाव या काम के लिए एक प्रमाण पत्र प्राप्त किया जाना चाहिए।
2. संबंधित एजेंसी /विभाग की कार्यकारिणी इन अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए ऐसे खुले कुओं का समय-समय पर औचक निरीक्षण करें।
3. ऐसे सभी खुले बोरवेलों की जानकारी राज्य के जिला कलेक्टर/ खंड विकास कार्यालय में रखी जाए। बोरवेल के निर्माण और उसके बाद के रखरखाव के संबंध में, अदालत ने निर्देश दिया था कि-
1. एक भूमि मालिक, बोरवेल का निर्माण करने के लिए कोई भी कदम उठाने से कम से कम 15 दिन पहले लिखित में क्षेत्र के संबंधित अधिकारियों ,जिनमें जिला कलेक्टर / जिला मजिस्ट्रेट /ग्राम पंचायत के सरपंच/ किसी अन्य सांविधिक प्राधिकारी या भूजल / सार्वजनिक स्वास्थ्य/नगर निगम के संबंधित अधिकारी, को सूचित करें।
2. निर्माण के समय, कांटेदार तार की बाड़ या किसी अन्य उपयुक्त अवरोध को कुएं या बोरवेल के चारों ओर लगाया जाना चाहिए। इसके अलावा, ड्रिलिंग एजेंसी और कुएं के मालिक के विवरण के साथ कुएं या बोरवेल के पास एक साइनबोर्ड लगाया जाना चाहिए।
3. कुएं या बोरवेल के आवरण के चारों ओर 0.50Û0.50Û0.60 मीटर ( जमीनी स्तर से 0.30 मीटर ऊपर और जमीन के स्तर से 0.30 मीटर नीचे) वाले सीमेंट प्लेटफॉर्म का निर्माण किया जाना चाहिए।
4. कुएं या बोरवेल को अच्छी तरह से ढ़कने के लिए वेल्डिंग स्टील प्लेट का प्रयोग किया जाना चाहिए या बोल्ट और नट्स के साथ आवरण पर पाइप की एक मजबूत कैप लगाई जानी चाहिए।
5. एक विशेष स्थान पर ड्रिलिंग संचालन का काम पूरा होने पर, ड्रिलिंग को शुरु करने से पहले जमीन की जैसी स्थिति थी,उसे बहाल करना चाहिए, मिट्टी के गड्ढों और चैनलों को भरना होगा।
6. पंप की मरम्मत के मामले में, नलकूप या ट्यूबवेल को खुला नहीं छोड़ा जाना चाहिए।
इसके अतिरिक्त, यह निर्देश दिए गए थे कि–
1. उपरोक्त दिशानिर्देशों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए जिला कलेक्टर को सशक्त बनाया जाना चाहिए।
2. जिला प्रशासन/वैधानिक प्राधिकारी के साथ निजी एजेंसियों सहित सभी ड्रिलिंग एजेंसियों का पंजीकरण अनिवार्य होना चाहिए।
3. जिला/ब्लॉक/ ग्रामवार स्तर पर खोदे गए बोरवेल की स्थिति- उपयोग में आने वाले बोरवेल या कुओं की संख्या, खुले बोरवेलों की संख्या जो खुले पाए गए हैं, परित्यक्त बोरवेलों की संख्या जिनको भूमि स्तर तक ठीक से भर दिया गया है और ऐसे बोरवेल जो अभी जमीनी स्तर तक भरे जाने हैं उनकी संख्या, को जिला स्तर पर बनाए रखी जानी चाहिए।…