Sunday, December 22
रामचंद्र अग्रवाल
वरिष्ठ अधिवक्ता

कुछ समय पहले पूज्य शंकराचार्य जी से मैंने पूछा था कि भारतीय समाज में कई जातियों व संप्रदाय हैं ऐसे हालात में देश में एकता कैसे लाई जा सकती है तो उन्होंने जवाब दिया था कि यदि वर्ण व्यवस्था पुन: कर्म प्रधान हो जावे जैसा के प्राचीन भारत में थी तो जातिगत भेदभाव समाप्त हो जाएगा व सांप्रदायिक एकता भी आ जावेगी। यदि माता-पिता अपने बेटे बेटियों की शादी के लिए match स्वयं के व्यवसाय या बेटे – बेटी के व्यवसाय के हिसाब से देखना चालू कर दें तो वर्ण व्यवस्था पुन: कर्म प्रधान हो सकती है। एक डॉक्टर लड़के के विवाह के समय डॉक्टर लड़की को preference दी जावे चाहे वह किसी भी जाति या संप्रदाय की हो तो इस तरह से वर्ण व्यवस्था को पुन: कर्मप्रधान बनाया जा सकता है। देश का अरबपति तबका परिवार के बच्चों के रिश्ते करते समय जातिगत विचार नहीं रखता यही बात जब उच्च शिक्षित वर्ग में भी है। विदेशों में जो भारतीय रहते हैं उनकी कोशिश यही रहती है कि बच्चों का रिश्ता किसी भारतीय परिवार में हो जावे, चाहे जाती कुछ भी हो। रिश्ते करते समय अनुकूलता व परिचित होने पर ज्यादा ध्यान होना चाहिए।

कई संपन्न व शिक्षित मुस्लिम परिवार भी ऐसा अनुभव करते हैं कि मुसलमान रहते हुए ज्यादा तरक्की नहीं कर सकते इसलिए यह हिंदू धर्म अपनाने को तैयार हैं लेकिन हिंदू समाज में इनके बच्चों की शादियां नहीं हो पाती। शिक्षक मुस्लिम युवतियों से मुस्लिम युवक निकाह नहीं करना चाहते क्योंकि यह सुधारवादी विचार रखती हैं, कश्मीर में कई मुसलमान भी बेटियों की शादी हिंदू युवकों से करना चाहते हैं क्योंकि आतंकवाद के कारण वहां के युवकों का कोई भविष्य नहीं है। यदि हिंदू समाज इनको अपनाना चालू कर देवें तो स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत इन युवतियों की शादी हिंदू युवकों से संभव है। इसके लिए जगह-जगह मैरिज ब्यूरो बनाए जावें। जहां कोई हिंदू युवक किसी मुस्लिम युवती से विवाह करता है तो ऐसे मामले में इन जोड़ों के सम्मान का ध्यान हिंदू संगठनों को रखना होगा अन्यथा वह युवक भी मुसलमान बन जावेगा। यदि कई मुस्लिम परिवारों को सामूहिक रूप से हिंदू बनाया जाए तो इनके बच्चों के रिश्ते करने में कठिनाई नहीं होगी वहीं अकेलापन भी महसूस नहीं होगा। जब यह बड़े लोग हिंदू बन जाएंगे तो इनका अनुसरण करके कई मध्यम व गरीब लोग भी हिंदू बन जाएंगे देश को आज नुसरत जहां जैसी महिलाओं की जरूरत है जो मुस्लिम युवतियों को कट्टरवाद से छुटकारा दिला सकती है।

इस समय यूरोप अमेरिका वह विश्व में कई देशों में मुसलमानों को नफरत की नजर से देखा जाता है इस कारण इनमें से कई इस्लाम छोड़कर अन्य धर्म अपनाने को तैयार हैं। इस्लाम एकेश्वरवाद में विश्वास करता है वह मूर्ति पूजा में यकीन नहीं करता। आर्य समाज द्वारा प्रसारित वैदिक धर्म में भी यही बात है। आर्य समाज के महान संत स्वामी श्रद्धानंद जी ने शुद्धि आंदोलन चलाकर लाखों मुसलमानों व ईसाइयों को हिंदू बनाया था लेकिन बाद में आंदोलन कमजोर पड़ गया। फिर से अन्य धर्म मानने वालों को हिंदू बनाने का कार्य किया जावे तो विश्व के करोड़ों मुसलमान हिंदू धर्म अपना लेंगे। किंतु मुसलमान आर्य समाज से परिचित ही नहीं है जो कि मुसलमानों में क्रांतिकारी सुधार लाने में सक्षम है इससे वेदों की वाणी पुन: गुंजायमान होगी।

इस्लाम केवल मजहब ही नहीं वरन एक राजनैतिक आंदोलन भी है जिसका मकसद यह है कि पूरे विश्व में केवल इस्लाम धर्म हो व सभी देशों में मुसलमानों का शासन हो। मुस्लिम धर्म शास्त्रों में ऐसा वर्णन है कि यदि कोई भी मुसलमान किसी गैर मुस्लिम को प्रेरित करके मुसलमान बना दे तो ऐसे प्रेरक के सभी गुनाह खुदा माफ कर देता है उसे जन्नत मिलती है, इस कारण प्रत्येक मुसलमान इस्लाम का प्रचारक हो जाता है। इस कारण कई मुसलमान यह सोचते हैं कि कितने भी अपराध कर लो फिर बाद में किसी को भी मुसलमान बना दो तो सारे पाप धुल जाएंगे व मरने के बाद स्वर्ग मिल जाएगा। यह एक अंधविश्वास है। क्योंकि कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है यह अंधविश्वास समाप्त किया जाना जरूरी है अंधविश्वासों को खत्म करने के लिए सलमान रुश्दी, अनवर शेख, तस्लीमा नसरीन जैसे लेखकों की किताबों का प्रचार प्रसार किया जाना चाहिए जिससे इस्लाम व मोहम्मद साहेब की सच्चाई की जनता को जानकारी हो सकेगी।

भारत में प्रतिवर्ष 400000 से जायदा हिंदू लड़कियां लव जिहाद का शिकार हो रही हैं। मुस्लिम युवकों ने इस तरह का एक बड़ा अभियान चला रखा है। ऐसे युवकों को इनके परिवार व समाज का पूर्ण सहयोग है जबकि इन लड़कियों को हिंदू समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है जिसके कारण नहीं लड़कियों का कोई रक्षक नहीं रहता और मुसलमानों द्वारा इनके कई तरह से शोषण किया जाता है। सुना है कि कुछ लड़कियों को बेच दिया जाता है, वहीं गुर्दे आंखें लीवर हार्ट इत्यादि अंग ऐसे मरीजों में प्रत्यारोपित कर दिए जाते हैं जिनको इन अंगों की जरूरत है। इसलिए बहिष्कृत लड़कियों का पता करके इन्हें पुन: अपने समाज से जोड़ा जावे। जिन लड़कियों का निकाह हो चुका है उनके निकाह का पंजीकरण कराकर उन्हें पुन: हिन्दू बनाया जा सकता है। यदि हिंदू ना भी बने तो इस पंजीयन से यह दंपत्ति शरीयत के दायरे से निकल जाएंगे। लेकिन ऐसी लड़कियों की जानकारी तभी संभव है जब बुर्का प्रथा समाप्त हो। यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि कई आतंक कारी वह अपराधी पुरुष भी बचने के लिए बुर्का पहन लेते हैं। ऐसी लड़कियों को तलाश करने के लिए हिंदू महिलाओं को आगे आना होगा ऐसी लड़कियों की मदद से मुस्लिम समाज में कई सुधार लाए जा सकते हैं।

जिस किसी भी हिंदू परिवार की लड़की मुस्लिम परिवार में चली गई हो ऐसे हिंदू परिवारों की जानकारी एकत्रित की जानी चाहिए। फिर इन हिंदू परिवारों को भी प्रेरित करना चाहिए कि जिस मुस्लिम परिवार में हिंदू लड़की गई है उसी मुस्लिम परिवार या उसके रिश्तेदारों मित्रों पड़ोसी की लड़की किसी भी हिंदू परिवार में आजावे। इस तरह की क्रॉस रिलेशनशिप भी कानून में मान्य है ऐसा होने से जो हिंदू लड़की चले गई उसकी भी रक्षा करना सुगम हो जावेगा लव जिहाद के मामलों की रोकथाम तभी संभव है जबकि लड़की के परिवार के अलावा संपूर्ण हिंदू समाज भी निगरानी करें। जहां भी कोई हिंदू लड़की किसी मुस्लिम लड़के के साथ दिखे यदि हम उस लड़के से नाम वह लड़की से उसके पिता का नाम इत्यादि पूछना चालू कर देना तो उनके पास कोई स्कूटर मोटरसाइकिल या अन्य वाहन है तो उसका नंबर नोट कर लेना तो इससे भी रोक होना चालू हो जाएगा।

मुस्लिम समाज में शरिया कानून के कारण महिलाओं को निर्दोष होते हुए भी कई परेशानियां उठानी पड़ती है। तलाक के बाद ऐसा पुरुषों ने अपनी तलाकशुदा पत्नी से निकाह करना चाहे तो पहले उस महिला को किसी अन्य पुरुष से निकाह करना होगा व शारीरिक संबंध भी बनाने होंगे. इसके बाद जब दूसरा पति उसे उसे तलाक दे देवें तभी वह महिला अपने पूर्व पति से विवाह कर सकती है। यदि मुस्लिम दंपतियों को निकाह का पंजीयन स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत करवाने को प्रेरित किया जावे तो महिलाओं को कई परेशानियां नहीं झेलनी पड़ेगी। जो मुसलमान शरीयत के दायरे में रहना चाहते हैं उनके लिए दंड व्यवस्थाएं भी इस्लामी यदि इस्लामी कानून के अनुसार कर दी जावे तो भारत के आधे से अधिक मुसलमान शरीयत छोड़ने को तैयार हो जाएंगे। इसके लिए इंडियन पीनल कोड की धारा 4 में भी संशोधन करना पड़ेगा इससे मुसलमानों द्वारा किए जाने वाले अपराध बिल्कुल कम हो जाएंगे।

यदि मुस्लिम समाज की अनपढ़ लड़कियों व महिलाओं को इतना सा शिक्षित भी कर दिया जाए कि वह हिंदी का अखबार वह किताबें पढ़ सकें तो यह मुस्लिम महिलाएं मुस्लिम समाज के पुरुषों को कट्टरपंथियों के चुंगल में नहीं फंसने देंगी। व जो पहले से फंसे हुए हैं उन्हें भी निकालने के लिए प्रयास करेंगी, क्योंकि कट्टरवाद के कारण इन महिलाओं को भारी परेशानियां झेलनी पड़ती हैं। मदरसों में ऐसी शिक्षा देना जरूरी है कि इनमें राष्ट्रीयता की भावना आवे व अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णुता भी। शिक्षा वैज्ञानिक सोच विकसित करने व अंधविश्वास खत्म करने वाली हो।

बहाई धर्म के संस्थापक बहाउल्ला ईरान के थे। उनका मानना था कि संपूर्ण विश्व एक देश होना चाहिए, व संपूर्ण मानव जाति बिना किसी धार्मिक भेदभाव व शांति व प्रेम के साथ – साथ रहे। बहाई धर्म का लोटस टेंपल दिल्ली में है इनका मानना है कि मुस्लिम धर्म ग्रंथों में यह भी वर्णन आता है कि ऐसा पैगंबर आवेगा जो विश्व में इस तरह की एकता लाने का प्रयास करेगा। भारत के मुसलमानों को बहाई धर्म की तरफ प्रेरित किया जा सकता है। भारत में मुसलमानों के अलावा अन्य कई भी बहाई धर्म मानते हैं इनमें विवाह की दशा में स्पेशल मैरिज एक्ट लागू होता है।

इस्लामिक आतंकवाद पूरे विश्व में फैल रहा है। इसलिए संयुक्त राष्ट्र (UNO) को भी विश्व के देशों में जहां पर भी कॉमन सिविल कोड नहीं है इसके लिए प्रेरित करना चाहिए। जिससे मुसलमान व अन्य भी कट्टरपंथियों के चुंगल से निकल सके। जिन देशों में कॉमन सिविल कोड नहीं है उन पर कई आर्थिक प्रबंध लगाकर उन्हें समान नागरिक संहिता के लिए बाध्य किया जा सकता है। शरिया मानने वाले मुसलमानों को गैर मुस्लिम देशों में आने पर प्रतिबंध लगाया जावे। कोई भी देश तब तक धर्मनिरपेक्ष नहीं कहा जा सकता जब तक के वहां समान नागरिक संहिता ना हो। क्योंकि इसके अभाव में कोई भी व्यक्ति बिना खुद की पहचान बदले बिना खुद के समाज से अलग हुए अपने जन्मजात धर्म के अलावा अन्य धर्म नहीं अपना सकता। वह एक से अधिक धर्मों की उपासना भी नहीं कर सकता। फिर इस्लाम में तो किसी भी सुधार की भी मनाही है। वह सुधारको के लिए कठोर यातनाएं भी हैं। भारत में जब तक समान नागरिक संहिता लागू नहीं होती तब तक स्पेशल मैरिज एक्ट व इंडियन सकसेशन एक्ट से ही काम चलाना होगा।

भारतीय उपमहाद्वीप में 95 प्रतिशत मुसलमान ऐसे हैं जिनके पूर्वज हिंदू थे, लेकिन उन्हें उस समय के मुस्लिम शासकों ने बलपूर्वक मुसलमान बनाया था। यदि यह लोग आज हिंदू होते तो अधिक शिक्षित व संपन्न होते। क्योंकि इस्लाम में जमाने के हिसाब से कोई भी सुधार नहीं हुए हैं। मुसलमानों को यह समझना चाहिए के मोहम्मद साहब का कार्य क्षेत्र केवल मक्का मदीना के आसपास के क्षेत्रों तक सीमित था। व उनकी सोच का दायरा केवल वहां के समाज का सुधार जो उस समय संभवत वही तक था। विश्व के अन्य देशों में उस समय भी कई उत्कृष्ट धर्म व्यवस्थाएं थी जिनसे मोहम्मद साहब अपरिचित थे। हिंदू कोई धर्म नहीं वरन एक जीवन शैली है, जिसका आधार यह है कि एक ही ईश्वर तक पहुंचने के लिए सभी धर्म अलग-अलग रास्ते हैं।
“एकम सत विप्रा: बहुधा वदन्ति”
सभी धर्मों में कई अच्छाइयां हैं तो कुछ बुराइयां भी हैं जिनमें समय के हिसाब से सुधार होना चाहिए। यदि विश्व के मुसलमान भी मानने लग जाए तो वह स्वयं की रूचि के अनुसार कई धर्मों की उपासना पद्धतियों का भी लाभ भी ले सकेंगे, जिससे उनका संपूर्ण विकास हो सकेगा। इसके लिए सुधारवादी मुसलमानों को संगठन “राष्ट्रीय मुस्लिम मंच” से जोड़ने का काम हिंदुओं को भी करना होगा। अन्य कई नए सुधारवादी संगठन भी बनाने होंगे जिससे इस समाज के लिए कई प्रकार के सुधारात्मक कार्यक्रम चलाया जा सके।

विदेशों में हिंदुस्तानी और पाकिस्तानी प्रेम से रहते हैं, क्योंकि दोनों में बोलचाल के अलावा भी कई सामान्यताएं हैं। वैसे भी 1947 का भारत विभाजन अंग्रेजों की एक चाल थी जिससे दोनों देश लड़ते रहें वह कभी तरक्की न कर सकें। दोनों जर्मनी पूर्वी व पश्चिमी मिलकर एक हो सकते हैं तो भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश भी एक हो सकते हैं। जिससे कश्मीर समस्या, आतंकवाद व भारत में बांग्लादेशियों की समस्याएं स्वत: समाप्त हो जाएंगी। दोनों देशों का रक्षा खर्च भी कम हो जावेगा। पाकिस्तान और बांग्लादेश में सेना ने सत्ता का स्वाद चख रखा है इसलिए बिना भारत की मदद के वहां लोकतंत्र रह भी नहीं सकता। पाकिस्तान और बांग्लादेश की जनता को भी भारत में विलय हेतु प्रयास करना चाहिए जिससे इन दोनों देशों का आर्थिक विकास संभव है।

भारतीय राजनेताओं को यह समझना चाहिए कि इस्लाम पाकिस्तान की ताकत है। जिसके कारण पाकिस्तानियों में ना केवल भारत के खिलाफ एकता है बल्कि राष्ट्रीयता की भावना भी है। इस्लाम के कारण पाकिस्तानियों को विदेशों में वहां के मुसलमानों का सहयोग आसानी से मिल जाता है व उन देशों का भी जहां भी मुसलमान हैं। परवेज मुशर्रफ ने एक दफे कहा था कि पाकिस्तान की असली ताकत वहां की सेना नहीं बल्कि हिंदुस्तान में रहने वाले वह मुसलमान हैं जिनका पाकिस्तान पर प्रेम है। व जिनके कारण पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद भारत में पनप रहा है। जिहाद के नाम पर पाकिस्तान मामूली खर्चे पर भारत के खिलाफ आतंकवादी तैयार कर लेता है। जो फिदायीन हमलों के लिए भी तैयार रहते हैं। अब यह एक अंतरराष्ट्रीय बीमारी बन गई है जो महामारी का रूप लेती जा रही है। जिहाद को धर्मयुद्ध समझना भी अंधविश्वास ही है।

आलेख में छपे विचार लेखक के निजी विचार हैं, डेमोक्रेटिकफ्रंट. कॉम इसके लिए उत्तरदायी नहीं है।