नवरात्र यानी 9 विशेष रात्रियां। इस समय शक्ति के 9 रूपों की उपासना का श्रेष्ठ काल माना जाता है। ‘रात्रि’ शब्द सिद्धि का प्रतीक है। विक्रम संवत के पहले दिन अर्थात चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पहली तिथि) से 9 दिन यानी नवमी तक नवरात्र होते हैं। सिद्धि और साधना की दृष्टि से से शारदीय नवरात्र को अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। इस नवरात्र में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति के संचय के लिए अनेक प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग-साधना आदि करते हैं। मुख्यत: शक्ति की उपासना आदिकाल से चली आ रही है। वस्तुत: श्रीमद् देवी भागवत महापुराण के अंतर्गत देवासुर संग्राम का विवरण दुर्गा की उत्पत्ति के रूप में उल्लेखित है। समस्त देवताओं की शक्ति का समुच्चय जो आसुरी शक्तियों से देवत्व को बचाने के लिए एकत्रित हुआ था, उसकी आदिकाल से आराधना दुर्गा-उपासना के रूप में चली आ रही है।
एक वर्ष में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ के महीनों में कुल चार नवरात्र होते हैं। इन चार नवरात्र में दो प्रत्यक्ष और दो गुप्त नवरात्र होते हैं। आषाढ़ और माघ के नवरात्र गुप्तनवरात्र की श्रेणी में रखे गए हैं। चैत्र और आश्विन माह के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से नवमी के नवरात्र को विशेष मान्यता है। चैत्र में गौरी स्वरूप और आश्विन में दुर्गा स्वरूप की पूजा का विधान है।
नवरात्र गुप्त तंत्र साधकों और संन्यासियों के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। शारदीय नवरात्र में इस वर्ष देवी दुर्गा का आगमन हाथी पर और वापसी घोड़े पर होगी। देवी आगमन और गमन दोनों ही संकट की चेतावनी है।
दुर्गाशप्तशती कहा गया है कि देवी के दोनों ही वाहन प्राकृतिक आपदाओं के प्रतीक हैं। पं. विष्णुपति त्रिपाठी के अनुसार इसका यह तात्पर्य नहीं है कि आगमन और विदाई दोनों ही अमंगलकारी हैं, अपितु इसका अभिप्राय यह है कि हम भविष्य के संकटों के प्रति वर्तमान से ही सचेत हो जाएं और उसका सामना करने के लिए हम प्रत्येक स्तर पर स्वयं को तैयार करें।
आश्विन शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से नवमी तिथि का पर्व शारदीय नवरात्र के रूप में मनाया जाता है। यह व्रत उपवास , आद्यशक्ति माँ जगदम्बा के पूजा,अर्चना,जप ध्यान का पर्व है।
देवी भागवत में आता है कि विद्या, धन, एवं पुत्र के अभिलाषी को नवरात्र व्रत का अनुष्ठान अवश्य करना चाहिए। जिसका राज्य छीन गया हो , ऐसे नरेश को पुन : गद्दी पर बिठाने की क्षमता भी इस व्रत में है। नवरात्र में प्रतिदिन देवी-पूजन, हवन व कुमारी पूजन करें तथा ब्राह्मण को भोजन करायें तो नवरात्र- व्रत पूरा होता है ऐसी उक्ति है।
नवरात्र के दिनों में भजन कीर्तन गा कर, वाद्य बजा कर और नाचकर बड़े समारोह के साथ उत्सव मनाना चहिए। भूमि पर शयन एवं यथाशक्ति कन्याओं को भोजन कराना चाहिए किन्तु एक वर्ष व उससे कम उम्र की कन्या नहीं लेनी चाहिए। २ से १० वर्ष तक की कन्या को ही लिया जा सकता है।
देवी भागवत में कहा गया है कि दक्ष के यज्ञ का विध्वंस करने वाली भगवती भद्रकाली का अवतार अष्टमी तिथि को हुआ था। मनुष्य यदि नवरात्र में प्रतिदिन पूजन करने में असमर्थ हो तो अष्टमी के दिन विशेष रूप से पूजन करना चाहिए।
यदि कोई नवरात्र के उपवास न कर सकता हो तो सप्तमी,अष्टमी और नवमी तीन दिन उपवास करके देवी की पूजा करने से वह सम्पूर्ण नवरात्र के उपवास के फल को प्राप्त कर सकता है।
नवरात्र पर जागरण
नवरात्र पर उत्तम जागरण वह है, जिसमें-
1) शास्त्र-अनुसार चर्चा हो ।
2) भक्तिभाव से युक्त माँ का कीर्तन हो।
3) वाद्य , ताल आदि से युक्त सात्विक संगीत हो ।
4) सात्विक नृत्य हो , ऐसा नहीं कि डिस्को या अन्य कोई पाश्चात्य नृत्य किया ।
5) माँ जगदम्बा पर नजर हो , ऐसा नहीं कि किसी को गन्दी नजर से देखा।
6) मनोरंजन भी सात्विक हो।