फिर बिदक गया बसपा का हाथी

हरियाणा में पिछले 1 साल से राजनीतिक उठापटक काफी तेज रही है। लोकसभा के चुनाव में इसका एक असर यह देखने को मिला कि मुकाबले दो राष्ट्रीय दलों कांग्रेस और भाजपा में सिमटकर रह गए। यही स्थिति आने वाले विधानसभा में देखने को मिल सकती है। इसका प्रमुख कारण यह है कि क्षेत्रीय दलों ने अपनी विश्वसनीयता समाप्त कर ली है और शायद कांग्रेस और भाजपा भी यही चाहते हैं की मतदाता भी इन क्षेत्रीय दलों से नियमित दूरी बना ले।

राष्ट्रीय कहे जाने वाले दल बसपा को भी हरियाणा के लोग क्षेत्रीय दल की तरह ही समझ कर चलते हैं। उसकी विश्वसनीयता बड़ी तेजी से कम हुई है। बसपा ने हरियाणा में डेढ़ साल के अंदर एक दो नहीं तीन दलों से गठबंधन किए और तोड़ दिए। ऐसी ही स्थिति ज ज पा की है जिसे बने 1 साल भी नहीं हुआ तीन सिंबल बदल लिए दो गठबंधन टूट लिए।

शुक्रवार को नई खबर आई की कुमारी मायावती ने हरियाणा में जेजेपी से अपना गठबंधन समाप्त कर लिया। इसमें सीटों के बंटवारे और जेजेपी के नेताओं द्वारा मनमर्जी के फैसले लेने की शिकायतें सामने आईं बताई गई।

हरियाणा में बीएसपी ने इनेलो से गठबंधन किया तो इसे व्यावहारिक गठबंधन बताया गया। परंतु ओम प्रकाश चौटाला के परिवार की लड़ाई के बाद बसपा ने इनेलो से भी हाथ पीछे खींच लिए फिर समान विचारधारा की बात करते हुए राजकुमार सैनी के दल लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी से गठबंधन कर लिया।चुनाव में हालत खराब हो गई लोगों ने भाव नहीं दिए ।बीएसपी केयह कहते हुए गठबंधन तोड़ लिया हमने एक गलती कर ली थी। कहा गया कि हमें यह गठबंधन नहीं करना चाहिए था। परंतु बसपा नेताओं ने एक और गलती कर ली और दुष्यंत के साथ मिलकर 50 और 40 सीटों के अनुपात पर गठबंधन कर लिया। बताते हैं कि बात इस बात पर बिगड़ी कि एक रिजर्व सीट पर जेजेपी के एक नेता को लेकर दोनों आमने-सामने हो गए l इसकी आशंका पहले भी थी गुरुवार को कुमारी मायावती ने अपने ट्विटर हैंडल पर संदेश भेजकर एलान कर दिया बसपा ने हरियाणा में सपा से अपना गठबंधन समाप्त कर दिया है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि अब जज्पा और बसपा सभी सीटों पर अलग-अलग लड़ेंगे और इसका जो नुकसान होगा कांग्रेस को होगा परंतु लोकसभा में मतदान का जो रुझान था ,उसमें यही संदेश गया था लोग आर पार का फैसला करके चले हैं। एक तरफ भाजपा के समर्थक दूसरी ओर भाजपा के विरोधी है। अब भी कमोबेश यही स्थिति रहेगी पक्षधर भाजपा को वोट डालेंगे और विरोधी कांग्रेस को।

अब यह लगभग साफ है कि जाट बहुमत में कांग्रेस को फेवर करेंगे और यदि कांग्रेस कुमारी शैलजा के दम पर दलित वोटरों को अपने पक्ष में करने में सफल हुई तो फिर हरियाणा की राजनीति बहुत रोचक हो जाएगी।

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