केंद्र में भाजपा को अकेले ही पूर्ण बहुमत प्राप्त है. कॉमन मिनिमम प्रोग्राम तब बनता था, जब किसी दल को बहुमत प्राप्त नहीं था
पटनाः भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए में अब कॉमन मिनिमम प्रोग्राम की जरूरत नहीं है. यह कहना है एनडीए के प्रमुख सहयोगी दल जदयू का, जो तीन तलाक, धारा 370 और 35 ए का विरोध कर रही थी, लेकिन उसके विरोध के बाद भी यह चीजें लोकसभा और राज्यसभा से पास हुई. अब जदयू के नेता इन्हें हकीकत बता कर स्वीकार करने की बात कह रहे हैं. राज्यसभा में जदयू संसदीय दल के नेता और पार्टी महासचिव आरसीपी सिंह का कहना है कि कानून का सभी को सम्मान करना चाहिए.
जदयू के बदले हुए रुख को लेकर जब आरसीपी सिंह से कॉमन मिनिमम प्रोग्राम की बात की गयी, तो उन्होंने कहा कि अब इसकी कोई जरूरत नहीं है. क्योंकि, केंद्र में भाजपा को अकेले ही पूर्ण बहुमत प्राप्त है. कॉमन मिनिमम प्रोग्राम तब बनता था, जब किसी दल को बहुमत प्राप्त नहीं था. 1996 में जब केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली सरकार आयी थी, तब से समता पार्टी और जनता दल यू के रूप में पहले जार्ज फर्नांडिस और फिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई वाली पार्टी शामिल है. तब से ही विवादित मुद्दों को लेकर जदयू एक दूरी भाजपा से बनाये हुये है.
आरसीपी सिंह का कहना है कि चूंकि हमारे नेता जार्ज फर्नांडिस ने इस मुद्दों पर एक नीति तय की थी, इसलिए हम इनके विरोध में थे. क्योंकि हम उनकी आत्मा को दुख नहीं पहुंचाना चाहते थे. आरसीपी सिंह ने आगे कहा कि धारा 370 और 35 ए अब नहीं हैं, इस सच्चाई को हमको स्वीकार करना पड़ेगा. बदली हुई परिस्थिति पर हमें बात करनी होगी.
उन्होंने कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद के उस बयान की कड़ी निंदा की, जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत दोभाल के कश्मीर के शोपियां में लोगों के साथ बात करने पर सवाल किये थे और पैसे के बल पर प्रायोजित बताया था. आरसीपी सिंह ने कहा कि अजीत डोभाल जिम्मेदार पद हैं और वरिष्ठ अधिकारी हैं. उन्होंने कहा कि कांग्रेस जब सत्ता में थी, तब भी अजीत डोभाल अधिकारी के रूप में काम कर रहे थे.
जदयू महासचिव ने कहा कि हकीकत को हम सबको स्वीकार करना चाहिये. केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में सरकार चल रही है, जिसने कई संकल्प तय कर रखे हैं, जिसमें 2022 में किसानों की आय दोगुनी करने जैसा संकल्प शामिल है. उन्होंने कहा कि बिहार में भी सरकार चलाने के लिए कॉमन मिनिमम प्रोग्राम की जगह पर विकास को आधार बनाया गया है. जदयू के बदले रुख पर राजद सवाल खड़े कर रहा है. राजद उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी का कहना है कि जब भाजपा अपना एजेंडा सेट कर रही है, तो जदयू उसके साथ क्यों गयी. क्या जदयू ने अपने सिद्धांतों को तिलांजलि दे दी है?
राजद की ओर से दी गयी प्रतिक्रिया का भाजपा नेता नवल किशोर यादव ने कड़ा प्रतिवाद किया और कहा कि राजद के लोगों का दिमाग खत्म हो गया है. ये भाई-बहन, बेटा-बेटी और चमचों का दल रह गया है. देश अब कॉमन मिनिमम प्रोग्राम नहीं मैक्सिमम प्रोग्राम पर काम कर रहा है.
भाजपा नेता ने राजद पर समाज में भय पैदा करने का आरोप लगाया और कहा कि जब किसी ने वोट नहीं दिया, तो राजद के नेता प्रोपेगेंडा का सहारा ले रहे हैं. वहीं, जदयू नेता राजीव रंजन ने कहा कि जब कोई कानून संसद के दोनों सदनों से पारित हो चुका है, तो उसके बारे में क्या कहेंगे. राजद के नेताओं को सवाल खड़े करने का कोई नैतिक आधार नहीं है.
1996 में बना था कॉमन मिनिमम प्रोग्राम
1996 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में जब एनडीए की केंद्र में सरकार बनी थी, तब कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बना था, जिसमें सभी विवादत मुद्दों को अलग रखा गया था. तब समता पार्टी थी और वो भी धारा 370, राम मंदिर जैसे मुद्दों पर भाजपा से अलग राय रखती थी. इसके बाद 1999 में जब सरकार बनी थी, तब भी कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पर सरकार चली थी और इस सरकार ने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया था. हालांकि, 2014 में भाजपा को बहुमत से ज्यादा सीटें मिली थीं, लेकिन तब भी पार्टी ने एनडीए में शामिल दलों को प्रतिनिधित्व दिया था.
क्या होता है कॉमन मिनिमम प्रोग्राम
जब कोई गठबंधन की सरकार बनती थी, जिसमें कई दल शामिल होते हैं, तो सरकार चलाने के लिए एक एजेंडा तैयार किया जाता है, जिसे कॉमन मिनिमम प्रोग्राम कहा जाता है. इसमें वैसे ही मुद्दों को शामिल किया जाता है. जिन पर सरकार में शामिल सभी दलों की सहमति होती है. लेकिन किसी दल को अगर पूर्ण बहुमत मिल जाता है, तो इस तरह के कार्यक्रम के कोई मायने नहीं रह जाते हैं.