घाटी में बढ़ाए गए सैन्य बल के कारण घाटी के अलगाववादी नेताओं की रही सही हिम्मत भी पस्त हो गयी है, वहीं म्ख्यधारा के राजनैतिक दल अब अलगाववादियों के पक्षकार बनाते दीख पड़ रहे हैं। पहले सैन्यबल फिर मस्जिदों ओर उनके कारकुनों की तफसील मांगने से घाटी के राजनेता खुल कर केंद्र सरकार के विरोध में एकजुट होने को तत्पर हैं। घाटी में कहा जा रहा है कि बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार प्रदेश को लेकर कोई अहम फैसला ले सकती है. वहीं सियासी पार्टियों ने केंद्र सरकार से पूरी स्थिति साफ करने की मांग की.
ब्यूरो :
जम्मू कश्मीर में 10 हजार अतिरिक्त जवानों की तैनाती की खबरों के बीच अब प्रशासन ने मस्जिदों की जानकारी मांगी है. इसके बाद से ही घाटी में आशंका का माहौल शुरू हो गया है. घाटी में कहा जा रहा है कि बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार प्रदेश को लेकर कोई अहम फैसला ले सकती है. वहीं सियासी पार्टियों ने केंद्र सरकार से पूरी स्थिति साफ करने की मांग की.
महबूबा ने ‘अनुच्छेद 35 ए’ पर मांगा अब्दुल्ला का साथ
जम्मू एवं कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने अनुच्छेद 35 ए की रक्षा के लिए अपने धुर राजनीतिक विरोधी फारूक अब्दुल्ला से साथ देने का आग्रह किया है. महबूबा मुफ्ती ने सोमवार को कहा कि उन्होंने प्रदेश के विशेष दर्जे की रक्षा के लिए फारूक अब्दुल्ला से सर्वदलीय बैठक बुलाने का आग्रह किया है.
महबूबा मुफ्ती ने एक ट्वीट के जरिए कहा, “हालिया घटनाक्रम से जम्मू-कश्मीर के लोगों में घबराहट पैदा हो गई है, इसलिए मैंने डॉ. अब्दुल्ला साहब से सर्वदलीय बैठक बुलाने का आग्रह किया है. एकजुटता के साथ जवाब देना वक्त की जरूरत है. हम कश्मीर के लोगों को एकजुट होने की जरूरत है.”
केंद्र सरकार द्वारा संविधान के अनुच्छेद 35 ए को समाप्त करने की योजना के संबंध में मीडिया रिपोर्ट आने के बाद पिछले कुछ दिनों से कश्मीर में काफी घबराहट की स्थिति है. अनुच्छेद 35 ए के तहत कश्मीर में स्थाई निवासी की परिभाषा तय करने का अधिकार राज्य विधानसभा को दिया गया है.
सोशल मीडिया पर अफवाहें भरी पड़ी हैं कि अनुच्छेद 35 ए को जल्द ही समाप्त करने की घोषणा होने वाली है. अनुच्छेद 35 ए निरस्त होने के बाद प्रदेश में अनिश्चितता की स्थिति पैदा होने की आशंका से लोग राशन, दवा, दाल, वाहनों के लिए तेल व अन्य जरूरत की वस्तुएं इकट्ठा करने लगे हैं. हालांकि राज्यपाल के प्रशासन की ओर से लोगों को इन अफवाहों पर ध्यान नहीं देने को कहा जा रहा है जबकि नई दिल्ली या श्रीनगर की ओर इस प्रावधान के संबंध में कोई ठोस बात नहीं कही जा रही है.