एक नौकरशाह जो नाश्ते में नेताओं को खाता था : टी एन शेषन
Demokraticfront Bureau
भारत के चुनाव आयोग द्वारा अस्थायी रूप से चार नेताओं पर रोक लगाने के एक दिन बाद – यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी, बसपा प्रमुख मायावती और सपा नेता आज़म खान – आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के लिए अभियान चलाने से, उस व्यक्ति पर ध्यान केन्द्रित होता है जिसने वाकई भारत में चुनावी प्रक्रिया को दोषमुक्त किया अपितु नेताओं को भी जता दिया क संविधान प्रदत पदों ओर ईमानदारी में कितनी ताकत है, यह नाम है टी एन शेषन
तिरुनेलई नारायण अय्यर शेषन तमिलनाडु कैडर के 1955 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं, जिन्हें भारत में चुनावों में सफाई करने वाले व्यक्ति के रूप में याद किया जाता है। वह भारत के 10 वें मुख्य चुनाव आयुक्त थे, जिन्होंने देश में बड़े पैमाने पर व्याप्त दुर्भावनाओं को समाप्त करके चुनावों में सुधार किया
पुराने दौर में मतदान के दिन
पोलिंग बूथों के आस पास मजमा लगा रहता था।शोर-शराबा हुआ करता था। कोई वोट देने
जाता तो अपने पक्ष में मतदान करने तक की अपील भी होती थी। इसे लेकर विवाद की भी
स्थिति बनी रहती थी।
मतदाताओं को पर्ची बनाकर देते थे
लोकसभा
अथवा विधानसभा चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियों और प्रत्याशियों के शामियाने
पोलिंग बूथ पर होते थे। वहां कुर्सी मेज होती थी। पार्टी के कार्यकर्ता एवं
प्रत्याशी के समर्थक मतदाता सूची लेकर बैठते थे और मतदाताओं को पर्ची बनाकर देते
थे। समर्थक और कार्यकर्ता, मतदाताओं
पर अपने प्रत्याशी के पक्ष में वोट डालने के लिए दबाव तक बनाने थे। कई बार हंगामा
तक हो जाता था। वहीं 30 वर्ष पहले निर्वाचन आयोग ने सख्ती की। टीएन शेषन के मुख्य चुनाव
आयुक्त बनने के बाद बूथों के बाहरी हिस्से की रौनक एक तरह से गायब हो गई। वर्ष 1996 तक बतौर मुख्य चुनाव आयुक्त
टीएन शेषन ने चुनाव प्रक्रिया में बड़े बदलाव किए।
मतदान केंद्रों के बाहर राजनीतिक पार्टियों व प्रत्याशी के टेंट लगते थे
देश की आजादी के बाद 1952 से लेकर 1989 तक लोकसभा के जितने भी चुनाव हुए, सभी में मतदान के दिन मतदान केंद्रों के बाहर राजनीतिक पार्टियों और प्रत्याशी के टेंट लगाते थे। यहां कुर्सी, मेज लगाकर बस्ते के साथ कार्यकर्ता और समर्थक बैठते थे। यह मतदाता सूची में नाम देखकर मतदाताओं को पर्ची बनाकर देते थे। टेंट में प्रत्याशियों के बैनर, होर्डिंग्स भी लगे होते थे। कार्यकर्ता और समर्थक प्रत्याशी के पक्ष में वोट डालने के लिए मतदाताओं पर दबाव भी बनाने थे। कई बार पर्ची बनाकर देने के साथ वह मतदाताओं के साथ पोलिंग बूथ के अंदर तक भी चले जाते थे।
उस समय चुनाव आयोग की ओर से नहीं होती थी रोक-टोक
चुनाव आयोग की ओर से किसी तरह की रोक-टोक नहीं होती थी। कई बार अलग-अलग पार्टियों के प्रत्याशियों के समर्थकों में झगड़े तक की नौबत आ जाती थी। मतदान के दौरान माहौल काफी गरम भी हो जाता था। निर्वाचन आयोग ने 1989 के लोकसभा चुनाव में सख्ती की और मतदान केंद्र के दो सौ मीटर के दायरे में टेंट, कुर्सी, मेज आदि लगाने पर रोक लगा दी। फिर भी कुछ हद तक पुराना रवैया जारी रहा।
प्रत्याशियों के बैनर पोस्टर, पार्टी के झंडे लगाने पर भी रोक लगी
वर्ष 1990 में टीएन शेषन के मुख्य चुनाव आयुक्त बनने के बाद पूरी व्यवस्था ही बदल गई। मतदान केंद्र से दूर एक छतरी के नीचे एक कुर्सी-मेज लगाकर बस्ता रखने का आदेश दिया गया। इतना ही नहीं प्रत्याशियों के बैनर पोस्टर, पार्टी के झंडे लगाने पर भी रोक लग गई। इससे आम मतदाताओं को राहत मिली अलबत्ता दलों के कार्यकर्ताओं को माहौल नीरस समझ में आने लगा।
मतदाताओं को अपने पक्ष में करने को लेकर झगड़ा भी होता था
इलाहाबाद (अब प्रयागराज) संसदीय सीट के सेंट एंथोनी स्कूल केंद्र पर 1973 से मतदान देख रहे समाजवादी नेता केके श्रीवास्तव बताते हैैं तब मतदान केंद्र के ठीक सामने टेंट आदि लगाकर बैठने वाले विभिन्न पार्टी के कार्यकर्ता और समर्थकों में मतदाताओं को अपने पक्ष में करने को लेकर झगड़ा और थाना-पुलिस तक हो जाता था।
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