नई दिल्ली:
लोकसभा चुनाव में पहले चरण की वोटिंग में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 8 अहम सीटों पर गुरुवार को मतदान हो गया है. यह सीटें ऐसी हैं जिनका संदेश उत्तर प्रदेश से होते हुए बिहार तक जाता है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में इन सीटों पर जमकर ध्रुवीकरण हुआ था और नतीजा यह रहा है कि बीजेपी ने पूरे उत्तर प्रदेश में विपक्ष को साफ कर दिया था. यही हाल कुछ साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भी रहा है. बीते 2 साल तक विपक्ष को ये बात बिलकुल नहीं समझ में आ रही थी कि बीजेपी का सामना कैसे किया जाए. लेकिन फिर ‘अंकगणित’ के एक फॉर्मूले ने धुर विरोधी सपा और बसपा को एक साथ आने के लिए मजूबर कर दिया. दोनों ने गठबंधन कर गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा का उपचुनाव जीत लिया. इसके बाद कैराना में सपा-बसपा-आरएलडी ने भी दोनों ने जीत दर्ज की. लेकिन इस कैराना मॉडल से आगे इन सभी दलों का गठबंधन फंस गया और लोकसभा चुनाव सपा-बसपा ने आपस में गठबंधन कर लिया और 3 सीटें आरएलडी के लिए छोड़ दीं. लेकिन न मायावती और न अखिलेश ने कांग्रेस को ज्यादा भाव दिया. मायावती का रुख कांग्रेस को लेकर कुछ ज्यादा ही सख्त है. उधर कांग्रेस ने भी प्रियंका गांधी की अगुवाई में उत्तर प्रदेश में सभी 80 सीटों पर प्रत्याशी उतारने का ऐलान कर दिया. लेकिन बात सिर्फ यहीं आकर खत्म नहीं हुई. चार बार प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं मायावती को समझना इतना आसान नहीं है.
सपा-बसपा और आरएलडी के महागठबंधन के नेताओं की संयुक्त रैली सिर्फ सहारनपुर में हुई है और उसमें भी मायावती ने मंच से मुस्लिमों से कांग्रेस के खिलाफ और महागठबंधन के पक्ष में वोट डालने की अपील कर डाली. जिसने विपक्ष के नेताओं को माथे पर पसीना ला दिया है. इस बात की चर्चा है कि मायावती बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ ही नही रही हैं. लोगों का कहना है कि मायावती की इस अपील से मुस्लिमों का बंटवारा हो सकता है जिसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है. वहीं दूसरी ओर हिंदू वोटरों का बीजेपी के पक्ष में ध्रुवीकरण हो सकता है.
वहीं इस बात की भी चर्चा है कि जिस तरह की आज तक ‘बहन जी’ करती रही हैं, वह किसी भी राष्ट्रीय पार्टी के साथ जा सकती हैं, जो 23 मई को आने वाले चुनाव परिणाम पर निर्भर करेगा. वहीं जिस तरह से अखिलेश का कांग्रेस के प्रति रुख नरम है उस पर भी मायावती ने कहा है कि वह पूरी ताकत के साथ कांग्रेस पर हमला बोलें. मायावती कांग्रेस से क्यों इतना नाराज हैं इसकी कई बड़ी वजहें हैं. पहली बड़ी वजह है कि टीम प्रियंका इस समय उत्तर प्रदेश में दलित वोटरों पर पूरी तरह से फोकस कर रही है. इस पर अभी मायावती का पूरा राज है जबकि इंदिरा गांधी के समय यह कांग्रेस का कोर वोट बैंक हुआ करता था. कांग्रेस का मानना है कि इस लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में जितनी ही सीटें मिल जाएं वहीं बहुत हैं. पार्टी दलित और सवर्णों को अपने पाले में कर राज्य के विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रही है. इसमें प्रियंका चेहरा बन जाएं तो कोई बड़ी बात नहीं होगी.
दूसरी ओर प्रियंका गांधी इसी कोशिश में भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद से भी मिल चुकी हैं. मायावती को नागवार गुजरा है. मायावती नहीं चाहती हैं कि दलितों में उनके टक्कर का कोई नेता खड़ा हो जाए. तीसरा कभी उनके सबसे नजदीक रहे नसीमुद्दीन सिद्दकी को कांग्रेस ने चुनाव लड़ा दिया है. कुल मिलाकर जो समीकरण बन रहे हैं उससे साफ संकेत मिल रहे हैं कि अभी बहुत कुछ होना बाकी है. दूसरी कांग्रेस भी उनकी मांगे मानने को तैयार नहीं है. माना जाता है कि मायावती कई नेताओं से कांग्रेस से रवैये की शिकायत कर चुकी हैं. सूत्रों के मुताबिक मायावती ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री तथा कांग्रेस नेता कमलनाथ से कहा, “आप लोग (कांग्रेस पार्टी) हाथी (BSP का चुनाव चिह्न) पर सवार होकर आराम से दिल्ली पहुंच जाना चाहते हैं… मैं ऐसा नहीं होने दूंगी…”