कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर – ए -जहां हमारा
चुनावी माहौल के चलते कई कई नेयता अपनी जाती, गोत्र, समुदाय इत्यादि ई ढाल पहन कर निकालने लगते हैं उस दौरान कोई भी भारतीय नहीं रहता। अभी कुछ समय पहले फिरोज शाह के पौत्र राहुल गनही ने भी अपना गोत्र दत्तात्रेय बताया था जो कुछ राजनैतिक पंगुओं ने स्वीकार कर लिया था। जिन लोगों ने राहुल गांधी के गोत्र को स्वीकार किया वह सभी भारत के महिमवान मंदिरों के पुजारी हैं यहाँ तक की शायद शंकराचार्य ने भी कहीं कोई आपत्ति जताई हो। राजनैतिक मजबूरी कहें या फिर मलाई खाने की अभिलाषा या फिर तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले दलों से राजदंड का भय। इसी कड़ी में जब पूरी के जगन्नाथ मंदिर की बात चली तो सामने आया की सान 1984 में तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमतींदिरा गांधी को मंदिर में प्रवेश ई अनुमति नहीं मिली थी। जान कर बहुत आश्चर्य हुआ की जगन्नाथ पुरी में ऐसा क्या है की आज तक सूप्रीम कोर्ट भी वहाँ समानता के अधिकार को लागू नहीं करवा पाया। शायद आज तक इस संदर्भ में राम जन्मभूमि वाले विरोधी पक्षकार के वकील का संग्यान इस ओर नहीं गया। नहीं तो सनातन धर्म की परम्पराओं पर कब का कुठराघात हो जाता।
पुरीः . भारत के चार धामों में से एक है- ओडिशा के पुरी का जगन्नाथ मंदिर. हर हिंदू जीवन में एक बार जगन्नाथ मंदिर के दर्शन ज़रूर करना चाहता है. इस मंदिर के दर्शन करने के लिए लोग पूरी दुनिया से आते हैं. ये मंदिर समुद्र के तट पर मौजूद है. कहते हैं कि समुद्र की लहरों की आवाज़ें इस मंदिर के अंदर शांत हो जाती हैं.
इस मंदिर की वास्तुकला और इंजीनियरिंग की प्रशंसा दुनिया भर में की जाती है. ये मंदिर भारत की धरोहर है लेकिन इस मंदिर में प्रवेश के लिए किसी व्यक्ति का हिंदू होना अनिवार्य माना जाता है. वर्ष 1984 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी इस मंदिर में प्रवेश नहीं मिल सका था.
जगन्नाथ मंदिर के सेवायत और इतिहासकारों का मानना है कि इस मंदिर में सिर्फ सनातनी हिंदू ही प्रवेश कर सकते है. गैर हिंदुओं के लिए यहां प्रवेश निषेध है.
मंदिर में गैर हिंदुओं के प्रवेश पर कब लगी रोक
इतिहासकार पंडित सूर्यनारायण रथशर्मा ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि इंदिरा गांधी को 1984 में जगन्नाथ मंदिर में दर्शन इसलिए नहीं करने दिया गया था क्योंकि इंदिरा ने फ़िरोज़ जहांगीर गांधी से शादी की थी, जो कि एक पारसी थे. रथशर्मा ने बताया कि शादी के बाद लड़की का गोत्र पति के गोत्र में बदल जाता है. पारसी लोगों का कोई गोत्र नहीं होता है. इसलिए इंदिरा गांधी हिंदू नहीं रहीं थी. यही नहीं पंडित सूर्यनारायण ने यह भी बताया कि हज़ारों वर्ष पहले जगन्नाथ मंदिर पर कई बार आक्रामण हुआ और ये सभी हमले एक धर्म विशेष के शासकों ने किए, जिस वजह से अपने धर्म को सुरक्षित रखने के लिए जगन्नाथ मंदिर में गैर हिंदुओं के प्रवेश पर रोक लगाई गई.
राहुल और प्रियंका गांधी को भी नहीं देंगे प्रवेश
जगन्नाथ मंदिर के वरिष्ठ सेवायत रजत प्रतिहारी का कहना है कि वो राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को भी मंदिर में प्रवेश नहीं देंगे क्योंकि वो उन्हें हिंदू नहीं मानते हैं. जगन्नाथ मंदिर के सेवायतों और जगन्नाथ चैतन्य संसद से जुड़े लोगों ने बताया कि राहुल गांधी का गोत्र फ़िरोज़ गांधी से माना जाएगा ना कि नेहरू से. रजत प्रतिहारी ने कहा कि राहुल गांधी भले अपने आप को जनेऊधारी दत्तात्रेय गोत्र का कौल ब्राह्मण बताएं लेकिन सच्चाई ये है कि वो फ़िरोज़ जहांगीर गांधी के पौत्र हैं और फ़िरोज़ जहांगीर गांधी हिंदू नहीं थे.
एक अन्य वरिष्ठ सेवायत मुक्तिनाथ प्रतिहारी ने कहा कि अगर राहुल प्रियंका को दर्शन करने ही हैं तो वो साल में एक बार निकलने वाले जगन्नाथ यात्रा में मंदिर के बाहर शामिल हो सकते हैं लेकिन मेन मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा.
केवल इन धर्मों के लोगों को है प्रवेश की अनुमति
ओडिशा, जगन्नाथ पुरी के लिए पूरी दुनिया
में प्रसिद्ध है. विशेष तौर पर भारत का हर हिंदू ये चाहता है कि जीवन में कम से कम
एक बार उसे भगवान जगन्नाथ के दर्शन का सौभाग्य जरूर मिले. लेकिन इस मंदिर में
प्रवेश की इजाज़त सिर्फ और सिर्फ सनातन हिंदुओं को हैं. मंदिर प्रशासन, सिर्फ हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन धर्म के लोगों को ही
भगवान जगन्नाथ के मंदिर में प्रवेश की इजाज़त देता है. इसके अलावा दूसरे धर्म के
लोगों के मंदिर में प्रवेश पर सदियों पुराना प्रतिबंध लगा हुआ है.
भारत का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति, भारत का प्रधानमंत्री भी अगर हिंदू नहीं है तो वो इस मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकता है. वर्ष 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश करना चाहती थी लेकिन उनको इजाज़त नहीं मिली. जगन्नाथ मंदिर के पुजारियों और सेवायतों के मुताबिक इंदिरा गांधी हिंदू नहीं बल्कि पारसी हैं इसलिए उन्हें मंदिर में प्रवेश की इजाज़त नहीं दी गई.
इंदिरा को गांधी सरनेम कैसे मिला
आपको याद होगा कि इसी वर्ष जनवरी के महीने में Zee News ने उत्तर प्रदेश के प्रयागराज से एक ऐतिहासिक Ground Report की थी. Zee News ने पहली बार पूरे देश को प्रयागराज के एक पारसी कब्रिस्तान में मौजूद फिरोज जहांगीर गांधी के कब्र की तस्वीरें दिखाई थीं. हमने ये रिपोर्ट इसलिए की थी क्योंकि इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी, को गांधी Surname पंडित जवाहर लाल नेहरू से नहीं बल्कि फिरोज़ गांधी से मिला. लेकिन इसके बाद भी फिरोज़ गांधी को कांग्रेस पार्टी की तरफ से वो सम्मान नहीं दिया गया जो इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को मिला था और आज राहुल और प्रियंका गांधी को मिल रहा है.
प्रयागराज में गांधी परिवार के पारसी कनेक्शन की दूसरी कड़ी प्रयागराज से एक हजार किलोमीटर दूर जगन्नाथ पुरी से जुड़ी है. अब गांधी परिवार का कोई भी सदस्य, जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश की हिम्मत नहीं जुटा पाता है. कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी नरम हिंदुत्व की राजनीति को ऊर्जा देने के लिए केदारनाथ के दर्शन किए और कैलाश मानसरोवर की यात्रा की. हर चुनाव में वो मंदिरों के दौरे करते हैं लेकिन उन्होंने कभी जगन्नाथ मंदिर में दर्शन की योजना नहीं बनाई. जगन्नाथ मंदिर के सेवायतों का कहना है कि वो इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की तरह राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को पारसी मानते हैं. इसलिए उनको मंदिर में प्रवेश नहीं दिया जा सकता है.
मंदिर के सेवायतों का ये मानना है कि जगन्नाथ मंदिर को लूटने और मूर्तियों को अ-पवित्र करने के लिए हुए हमलों की वजह से मंदिर में गैर हिंदुओं को प्रवेश दिए जाने की इजाजत नहीं है. मंदिर से जुड़े इतिहास का अध्ययन करने वालों का दावा है कि हमलों की वजह से 144 वर्षों तक भगवान जगन्नाथ को मंदिर से दूर रहना पड़ा. इस मंदिर के संघर्ष की कहानी भारत के महान पूर्वजों की त्याग तपस्या और बलिदान की भी कहानी है.
जगन्नाथ मंदिर को 20 बार विदेशी हमलावरों ने लूटा
जगन्नाथ
मंदिर के गेट पर ही एक शिलापट्ट में 5 भाषाओं में लिखा हुआ है कि यहां
सिर्फ हिंदुओं को ही प्रवेश की इजाज़त है. इसकी वजह समझने के लिए हमने मंदिर
प्रशासन से जुड़े लोगों से बात की. मंदिर के सेवायतों की तरफ से हमें ये बताया गया
कि जगन्नाथ मंदिर को 20 बार विदेशी
हमलावरों के द्वारा लूटा गया. खास तौर पर मुस्लिम सुल्तानों और बादशाहों ने
जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियों को नष्ट करने के लिए ओडिशा पर बार-बार हमले किया.
लेकिन ये हमलावर जगन्नाथ मंदिर की तीन प्रमुख मूर्तियों, भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र की मूर्तियों
को नष्ट नहीं कर सके, क्योंकि
मंदिर के पुजारियों ने बार-बार मूर्तियों को छुपा दिया. एक बार मूर्तियों को गुप्त
रूप से ओडिशा राज्य के बाहर हैदराबाद में भी छुपाया गया था.
जगन्नाथ मंदिर को भी हमला कर 17 से ज्यादा बाद नष्ट करने की कोशिश
की गई
हमलावरों
की वजह से भगवान को अपना मंदिर छोड़ना पड़े, इस बात पर आज के भारत में कोई
विश्वास नहीं करेगा. आज भारत में एक संविधान है और सभी को अपनी-अपनी पूजा और
उपासना का अधिकार प्राप्त है. लेकिन पिछले एक हजार वर्षों में मुस्लिम बादशाहों और
सुल्तानों के राज में हिंदुओं के हजारों मंदिरों को तोड़ा गया. अयोध्या में राम
जन्म भूमि, काशी
विश्वनाथ और मथुरा में कृष्ण जन्म भूमि का विवाद भी इसी इतिहास से जुड़ा है. इन
हमलावरों ने भारत के पश्चिमी समुद्र तट पर मौजूद सोमनाथ के मंदिर को 17 बार तोड़ा था. सोमनाथ के संघर्ष
का इतिहास ज्यादातर लोगों को पता है लेकिन जगन्नाथ मंदिर को भी हमला कर 17 से ज्यादा बाद नष्ट करने की कोशिश
की गई, इस इतिहास
की जानकारी बहुत ही कम लोगों को हैं.
ओडिशा सरकार की आधिकारिक वेबसाइट पर मंदिर पर हुए हमलों और मूर्तियों को नष्ट करने की कोशिश का पूरा इतिहास दिया गया है. वेबसाइट में मौजूद एक लेख में बताया गया है कि मंदिर और मूर्तियों को नष्ट करने के लिए 17 बार हमला किया गया.
पहला हमला वर्ष 1340 में बंगाल के सुल्तान इलियास शाह
ने किया
जगन्नाथ
मंदिर को नष्ट करने के लिए पहला हमला वर्ष 1340 में बंगाल के सुल्तान इलियास शाह
ने किया था, उस वक्त
ओडिशा, उत्कल
प्रदेश के नाम से प्रसिद्ध था. उत्कल साम्राज्य के नरेश नरसिंह देव तृतीय ने
सुल्तान इलियास शाह से युद्ध किया. बंगाल के सुल्तान इलियास शाह के सैनिकों ने
मंदिर परिसर में बहुत खून बहाया और निर्दोष लोगों को मारा. लेकिन राजा नरसिंह देव, जगन्नाथ की मूर्तियों को बचाने
में सफल रहे, क्योंकि
उनके आदेश पर मूर्तियों को छुपा दिया गया था.
दूसरा हमला
वर्ष 1360 में दिल्ली के सुल्तान फिरोज शाह
तुगलक ने जगन्नाथ मंदिर पर दूसरा हमला किया.
तीसरा हमला
मंदिर पर
तीसरा हमला वर्ष 1509 में बंगाल के सुल्तान अलाउद्दीन हुसैन शाह के कमांडर इस्माइल गाजी ने
किया. उस वक्त ओडिशा पर सूर्यवंशी प्रताप रुद्रदेव का राज था. हमले की खबर मिलते
ही पुजारियों ने मूर्तियों को मंदिर से दूर, बंगाल की खाड़ी में मौजूद चिल्का
लेक नामक द्वीप में छुपा दिया था. प्रताप रुद्रदेव ने बंगाल के सुल्तान की सेनाओं
को हुगली में हरा दिया और भागने पर मजबूर कर दिया.
चौथा हमला
वर्ष 1568 में जगन्नाथ मंदिर पर सबसे बड़ा
हमला किया गया. ये हमला काला पहाड़ नाम के एक अफगान हमलावर ने किया था. हमले से
पहली ही एक बार फिर मूर्तियों को चिल्का लेक नामक द्वीप में छुपा दिया गया था.
लेकिन फिर भी हमलावरों ने मंदिर की कुछ मूर्तियों को जलाकर नष्ट कर दिया था. इस
हमले में जगन्नाथ मंदिर की वास्तुकला को काफी नुकसान पहुंचा. ये साल ओडिशा के
इतिहास में निर्णायक रहा. इस साल के युद्ध के बाद ओडिशा सीधे इस्लामिक शासन के तहत
आ गया.
पांचवा हमला
इसके बाद
वर्ष 1592 में जगन्नाथ मंदिर पर पांचवा हमला हुआ. ये हमला ओडिशा के सुल्तान ईशा
के बेटे उस्मान और कुथू खान के बेटे सुलेमान ने किया. लोगों को बेरहमी से मारा गया, मूर्तियों को अपवित्र किया गया और
मंदिर की संपदा को लूट लिया गया.
छठा हमला
वर्ष 1601 में बंगाल के नवाब इस्लाम खान के
कमांडर मिर्जा खुर्रम ने जगन्नाथ पर छठवां हमला किया. मंदिर के पुजारियों ने
मूर्तियों को भार्गवी नदी के रास्ते नाव के द्वारा पुरी के पास एक गांव कपिलेश्वर
में छुपा दिया. मूर्तियों को बचाने के लिए उसे दूसरी जगहों पर भी शिफ्ट किया गया.
सातवां हमला
जगन्नाथ
मंदिर पर सातवां हमला ओडिशा के सूबेदार हाशिम खान ने किया लेकिन हमले से पहले
मूर्तियों को खुर्दा के गोपाल मंदिर में छुपा दिया गया. ये जगह मंदिर से करीब 50 किलोमीटर दूर है. इस हमले में भी
मंदिर को काफी नुकसान पहुंचा. वर्ष 1608 में जगन्नाथ मंदिर में दोबारा
मूर्तियों को वापस लाया गया.
आठवां हमला
मंदिर पर
आठवां हमला हाशिम खान की सेना में काम करने वाले एक हिंदू जागिरदार ने किया. उस
वक्त मंदिर में मूर्तियां मौजूद नहीं थी. मंदिर का धन लूट लिया गया और उसे एक किले
में बदल दिया गया.
नौंवा हमला
मंदिर पर
नौवां हमला वर्ष 1611 में मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में शामिल राजा टोडरमल के बेटे
राजा कल्याण मल ने किया था. इस बार भी पुजारियों ने मूर्तियों को बंगाल की खाड़ी
में मौजूद एक द्वीप में छुपा दिया था. मंदिर पर
दसवां हमला
10वां हमला
भी कल्याण मल ने किया था, इस हमले
में मंदिर को बुरी तरह लूटा गया था.
11वां हमला
मंदिर पर 11वां हमला वर्ष 1617 में दिल्ली के बादशाह जहांगीर के
सेनापति मुकर्रम खान ने किया. उस वक्त मंदिर की मूर्तियों को गोबापदार नामक जगह पर
छुपा दिया गया था
12वां हमला
मंदिर पर 12वां हमला वर्ष 1621 में ओडिशा के मुगल गवर्नर मिर्जा
अहमद बेग ने किया. मुगल बादशाह शाहजहां ने एक बार ओडिशा का दौरा किया था तब भी
पुजारियों ने मूर्तियों को छुपा दिया था.
13वां हमला
वर्ष 1641 में मंदिर पर 13वां हमला किया गया. ये हमला ओडिशा
के मुगल गवर्नर मिर्जा मक्की ने किया.
14वां हमला
मंदिर पर 14वां हमला भी मिर्जा मक्की ने ही
किया था.
15वां हमला
मंदिर पर 15वां हमला अमीर फतेह खान ने किया.
उसने मंदिर के रत्नभंडार में मौजूद हीरे, मोती और सोने को लूट लिया.
16वां हमला
मंदिर पर 16वां हमला मुगलत बादशाह औरंगजेब के
आदेश पर वर्ष 1692 में हुआ. औरंगजेब ने मंदिर को पूरी तरह ध्वस्त करने का आदेश दिया था, तब ओडिशा का नवाब इकराम खान था, जो मुगलों के अधीन था. इकराम खान
ने जगन्नाथ मंदिर पर हमला कर भगवान का सोने के मुकुट लूट लिया. उस वक्त जगन्नाथ
मंदिर की मुर्तियों को श्रीमंदिर नामक एक जगह के बिमला मंदिर में छुपाया गया था.
17वां हमला
मंदिर पर 17वां और आखिरी हमला, वर्ष 1699 में मुहम्मद तकी खान ने किया था.
तकी खान, वर्ष 1727 से 1734 के बीच ओडिशा का नायब सूबेदार था.
इस बार भी मूर्तियों को छुपाया गया और लगातार दूसरी जगहों पर शिफ्ट किया गया. कुछ
समय के लिए मूर्तियों को हैदराबाद में भी रखा गया.
दिल्ली में मुगल साम्राज्य के कमजोर होने और मराठों की ताकत बढ़ने के बाद जगन्नाथ मंदिर पर आया संकट टला और धीरे धीरे जगन्नाथ मंदिर का वैभव वापस लौटा. जगन्नाथ मंदिर के मूर्तियों के बार बार बच जाने की वजह से हमलावर कभी अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाए. पुरी के स्थानीय लोग लगातार इस मंदिर को बचाने के लिए संघर्ष करते रहे. ओडिशा के लोग मंदिर के सुरक्षित रहने को भगवान जगन्नाथ का एक चमत्कार मानते हैं.