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केंद्र का कहना है कि राम जन्मभूमि न्यास से 1993 में जो 42 एकड़ जमीन अधिग्रहित की थी सरकार उसे मूल मालिकों को वापस करना चाहती है.
नई दिल्ली : अयोध्या विवाद पर केंद्र की मोदी सरकार ने मंगलवार को बड़ा कदम उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है. इसमें मोदी सरकार ने कहा है कि 67 एकड़ जमीन सरकार ने अधिग्रहण की थी. इसपर सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया है. सरकार का कहना है कि जमीन का विवाद सिर्फ 2.77 एकड़ का है, बल्कि बाकी जमीन पर कोई विवाद नहीं है. इसलिए उस पर यथास्थित बरकरार रखने की जरूरत नहीं है. सरकार चाहती है जमीन का कुछ हिस्सा राम जन्भूमि न्यास को दिया जाए और सुप्रीम कोर्ट से इसकी इजाजत मांगी है.
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि वह अपने 31 मार्च, 2003 के यथास्थिति बनाए रखने के आदेश में संशोधन करे या उसे वापस ले. केंद्र सरकार ने SC में अर्जी दाखिल कर अयोध्या की विवादित जमीन को मूल मालिकों को वापस देने की अनुमति देने की अनुमति मांगी है. इसमें 67 एकड़ एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया था, जिसमें लगभग 2.77 एकड़ विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि का अधिग्रहण किया था.
केंद्र का कहना है कि राम जन्मभूमि न्यास से 1993 में जो 42 एकड़ जमीन अधिग्रहित की थी सरकार उसे मूल मालिकों को वापस करना चाहती है. केंद्र ने कहा है कि अयोध्या जमीन अधिग्रहण कानून 1993 के खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जिसमें उन्होंने सिर्फ 0.313 एकड़ जमीन पर ही अपना हक जताया था, बाकि जमीन पर मुस्लिम पक्ष ने कभी भी दावा नहीं किया है.
अर्जी में कहा गया है कि इस्माइल फारुकी नाम के केस के फैसले में सुप्रीमकोर्ट ने कहा था कि सरकार सिविल सूट पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद विवादित भूमि के आसपास की 67 एकड़ जमीन अधिग्रहित करने पर विचार कर सकती है. केंद्र का कहना है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया है और इसके खिलाफ अपील सुप्रीम कोर्ट के सामने लंबित है, गैर-उद्देश्यपूर्ण उद्देश्य को केंद्र द्वारा अतिरिक्त भूमि को अपने नियंत्रण में रखा जाएगा और मूल मालिकों को अतिरिक्त जमीन वापस करने के लिए बेहतर होगा.
बता दें कि अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट में 29 जनवरी को सुनवाई होनी थी, लेकिन इसके लिए बनाई गई जजों की बेंच में शामिल जस्टिस बोबड़े के मौजूद न होने पर अब ये सुनवाई आगे के लिए टल गई है. अभी इस मामले में सुनवाई के लिए तारीख भी तय नहीं हुई है. इससे पहले पीठ के गठन और जस्टिस यूयू ललित के हटने के कारण भी सुनवाई में देरी हुई थी.
इससे पहले 25 जनवरी को अयोध्या मामले की सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने नई बेंच का गठन कर दिया था. इस बैंच में CJI रंजन गोगोई के अलावा एसए बोबडे, जस्टिस चंद्रचूड़, अशोक भूषण और अब्दुल नज़ीर शामिल हैं. पिछली बैंच में किसी मुस्लिम जस्टिस के न होने से कई पक्षों ने सवाल भी उठाए थे.
इससे पहले बनी पांच जजों की पीठ में जस्टिस यूयू ललित शामिल थे, लेकिन उन पर मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने सवाल उठाए थे. इसके बाद वह उस पीठ से अलग हो गए थे. इसके बाद चीफ जस्टिस ने नई पीठ गे गठन का फैसला किया था. वहीं अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की मांग कर रहे साधु-संतों की ओर से प्रयागराज में चल रहे कुंभ में परम धर्म संसद का आगाज सोमवार को हो चुका है. स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के नेतृत्व में 30 जनवरी तक प्रयागराज में चल रहे कुंभ मेले में परम धर्म संसद का आयोजन होगा.
वहीं साधु और संतों ने इस संबंध में बड़ा ऐलान भी किया हुआ है. उनका कहना है कि राम मंदिर सविनय अवज्ञा आंदोलन के जरिये बनाया जाएगा. प्रयागराज में चल रहे कुंभ मेले में इस समय साधु और संतों का जमावड़ा लगा हुआ है. यहां विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की धर्म संसद से पहले शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती परम धर्म संसद का आयोजन कर रहे हैं. यह परम धर्म संसद कुंभ में 28, 29 और 30 जनवरी तक चलेगी. इसमें राम मंदिर निर्माण के लिए चर्चा और रणनीति बनेगी. बता दें कि विश्व हिंदू परिषद 31 जनवरी को राम मंदिर मुद्दे पर धर्म संसद का आयोजन कर रही है.