FINAL FINALE OF ELITE GLOBAL EARTH NZ 2018
Photo Feature By Ranjit Singh Ahluwalia
ELITE GLOBAL EARTH NZ 2018 and the finalists are:
Photo Feature By Ranjit Singh Ahluwalia
ELITE GLOBAL EARTH NZ 2018 and the finalists are:
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की अब अलग से करेगा सुनवाई
केंद्र सरकार ने इस मामले में अपना जवाब दाखिल कर एसआईटी बनाने की सहमति दे दी है। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने अपना जवाब दाखिल नही किया
मामले की कल होगी सुनवाई
अशोक जैन, सिटीजेन रिपोर्टर, डेमोक्रेटिक फ्रंट:
भीलवाड़ा/सिक्योर को लेकर नाराज सांगानेर और जिंदल से त्रस्त उपनगरीय कस्बे पुर के मतदाता ही भीलवाड़ा सीट के विधाता साबित होंगे।बाकी रहे भीलवाड़ा शहर के वोटर तो वे, दोनों स्थानीय निकाय यूआईटी और नगरपरिषद के कामकाज को अगर नहीं भूलेंगे तो फिर चुनाव नतीजा क्या मतगणना से पहले सामने नहीं है ?
पांच साल तक शहर के लोगों को जिस तरह तला भूना गया उसे देखते चुनाव परिणाम तो कतई चौंकाने वाला नहीं होगा ।आज बढ चढ कर लोगों के दर्द को दूर करने का दम भरने की घोषणा करने वालों के नकाबपोश चेहरों को देख मतदात ने जज्बाती फैसला ले लिया तो पछतावा हाथ लगेगा और फिर पांच बरस के लम्बे इंतजार के अलावा कुछ बचने वाला नहीं है।मतदान से पहले भेड़ की खाल में छिपे भेड़ियों को जाति,धर्म,पैसों की चमक के प्रलोभन से कहीं ऊपर उठ कर पहचानना जरुरी है तभी इस लोकतंत्र के महापर्व और जागरूक मतदाता होने के धर्म का निर्वहन होगा।
यह बताने की जरुरत नहीं कि असली जनसेवक को कैसे पहचाना जाए?जिसे चुनने जा रहे हैं उसके अतीत को जरूर खंगालें,यदि लगे कि सब एक जैसे हैं तो’नन ऑफ देम’ यानि नोटा का विकल्प तो सामने है।इससे गलत चुनाव के पाप के बोझ से बचा जा सकता है। ये आपका कानूनी अधिकार है। इस चुनाव में उम्मीदवारों के द्वारा दिए गए धन सम्पत्ति के ब्यौरे को जांचिए,आपराधिक मामलों के बारे में जारी किए गए घोषणा पत्र को परखिए। आपकी सतर्कता,सजगता से राजनीति में अपराधियों,चोरों, बदमाशों और धोखेबाजों का प्रवेश बंद होगा।आपके वोट से चुन कर आने वाले को आपकी जागरूकता का पता चलते ही पांच बरस तक आप विधायक के आका और उसे निश्चित तौर पर गुलाम बनना होगा नहीं तो चुनाव में वो आपके चरणों में और अगले पांच वर्ष तक आप उसके चरणों में मिलेंगे।अच्छा यही है कि मतदाता को अपनी क्षमता का अहसास मतदान से पहले हो जाए वरना आजादी बाद से सांप निकलने के बाद लाठी पीटने का जो सिलसिला चलता रहा है वो आगे भी ऐसे ही चलता रहेगा। अपना फर्ज था आपको जगाने का सो पूरा किया। बाकी आप जानें और आपका राम जाने।वैसे पिछले दिनों की सटीक खबरों ने कुछ लोगों का जायका बिगाड़ दिया है। ग्यारह तारीख को संभव है वे दिमागी संतुलन भी खो दें। तब वो एक और एक ग्यारह व नौ दो ग्यारह की गणित समझ जाएंगे।…. जय राम जी की।
मोहम्मद रेहान अंसारी, सिटिज़न रिपोर्टर डेमोक्रेटिक फ्रंट:
महानगर मुरादाबाद में दिनाँक 01 12 2018 दिन शुक्रवार को समाजवादी पार्टी के महानगर अध्यक्ष हाजी मन्नू क़ुरैशी की अगुवाई में समाजवादी पार्टी के समस्त कार्यकर्ताओ ने इम्पीरियल तिराहा पर जमकर प्रदर्शन किया और कहा योगी और मोदी सरकार में बढ़ रहे अपराध लूट-डकैती-हत्या-बलात्कार-फिरौती-राहजनी और बढ़ रही महँगाई-बेरोजगारी-भ्रष्टाचारी किसानों पर हो रहे अत्याचार आदि के विरोध में जनाब हाजी मन्नू क़ुरैशी महानगर अध्यक्ष की अध्यक्षता में रेलवे स्टेशन से इम्पीरियल तिराहे तक सरकार के खिलाफ जुलूस भी निकाला गया और इम्पीरियल तिराहे पर खड़े होकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मीडिया के माध्यम से इस्तीफे की माँग भी की गई प्रदर्शनकारियो में मुख्य रूप से मौजुद रहे समाजवादी पार्टी के महानगर अध्यक्ष मन्नू क़ुरैशी, ज़ीशान शम्सी, हाजी सरताज आलम, शाहिद हुसैन गामा, हारून सैफ़ी, असलम खां,आदि कार्यकर्ता मौजुद रहे
Dr Rajendra Prasad भारतीय लोकतंत्र के पहले राष्ट्रपति थे। साथ ही एक भारतीय राजनीती के सफल नेता, और प्रशिक्षक वकील थे। भारतीय स्वतंत्रता अभियान के दौरान ही वे भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस में शामिल हुए और बिहार क्षेत्र से वे एक बड़े नेता साबित हुए। महात्मा गांधी के सहायक होने की वजह से, प्रसाद को ब्रिटिश अथॉरिटी ने 1931 के नमक सत्याग्रह और 1942 के भारत छोडो आन्दोलन में जेल में डाला।
राजेन्द्र प्रसाद ने 1934 से 1935 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में भारत की सेवा की। और 1946 के चुनाव में सेंट्रल गवर्नमेंट की फ़ूड एंड एग्रीकल्चर मंत्री के रूप में सेवा की। 1947 में आज़ादी के बाद, प्रसाद को संघटक सभा में राष्ट्रपति के रूप में नियुक्त किया गया।
राष्ट्रपति बनते ही प्रसाद ने कई सामाजिक भलाई के काम किये, कई सरकारी दफ्तरों की स्थापना की और उसी समय उन्होंने कांग्रेस पार्टी से भी इस्तीफा दे दिया। राज्य सरकार के मुख्य होने के कारण उन्होंने कई राज्यों में पढाई का विकास किया कई पढाई करने की संस्थाओ का निर्माण किया और शिक्षण क्षेत्र के विकास पर ज्यादा ध्यान देने लगे।
उनके इसी तरह के विकास भरे काम को देखकर 1957 के चुनावो में चुनाव समिति द्वारा उन्हें फिर से राष्ट्रपति घोषित किया गया और वे अकेले ऐसे व्यक्ति बने जिन्हें लगातार दो बार भारत का राष्ट्रपति चुना गया।
हम डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को आज़ाद भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में याद करते है लेकिन इसके साथ ही उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता अभियान में भी मुख्य भूमिका निभाई थी और संघर्ष करते हुए देश को आज़ादी दिलवायी थी।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद में भारत का विकास करने की चाह थी। वे लगातार भारतीय कानून व्यवस्था को बदलते रहे और उपने सहकर्मियों के साथ मिलकर उसे और अधिक मजबूत बनाने का प्रयास करने लगे। हम भी भारत के ही वासी है हमारी भी यह जिम्मेदारी बनती है की हम भी हमारे देश के विकास में सरकार की मदद करे। ताकि दुनिया की नजरो में हम भारत का दर्जा बढ़ा सके।
एएमयू के हॉल में हिंदू छात्रों को मीट तले हुए तेल में पूड़ी सब्जी बनाने की घटना को भाजपा युवा मोर्चा के महानगर अध्यक्ष निखिल महेश्वरी ने निंदनीय और शर्मनाक बताया है।
निखिल महेश्वरी ने कहा कि यह कृत्य एएमयू प्रशासन के इशारे पर ही होता है। इस तरह से हिंदू छात्रों को मानसिक व शारीरिक रूप से परेशान किया जाता है।
उन्होंने मांग की है कि इस कृत्य के लिए यह एएमयू प्रशासन हिंदू छात्रों से माफी मांगे और ऐसा कृत्य करने वालों के खिलाफ कठोर कार्यवाही की जाए।
Editor’s Note:
More than 700 documents accessed from former prime minister Rajiv Gandhi’s office reveal how horrible relief and rehabilitation measures by the authorities, and a company determined to hide the truth led to more deaths in the aftermath of the Bhopal gas tragedy. This three-part series uncovers how a dysfunctional administration at the state and Centre failed to contain the crisis 34 years ago, and how it’s taking lives even today.
Curtsy, Yatish Yadav
New Delhi:
Homi JH Taleyarkhan was serving as Indian Ambassador to Italy when the poisonous gas leak caused mayhem in the city of lakes. His letter marked as ‘important’ in the Prime Minister’s Office (PMO) file no (17/2049/A/86-III) reveals that Italian government, which had faced similar kind of disaster at Seveso near Milan in 1976, had rushed to Taleyarkhan offering help to deal with the tragedy but the Indian government appeared to be ‘not interested’. This is evident from Taleyarkhan’s letter to Sarla Grewal, then secretary to former prime minister Rajiv Gandhi. Taleyarkhan and Grewal are no more. She died in 2002 while Taleyarkhan passed away in June 1998.
“As soon as the Italians came to know about our Bhopal tragedy, they had come rushing to me in Rome as the Ambassador of India to explain all the remedial measures including the latest technology that they had applied at the time of a similar disaster they had suffered at Seveso near Milan in 1976. They had taken me to see the area and the steps they had taken. After the round they had organised a full-fledged conference to explain everything and had given me special video cassette and colour albums with commentary and captions specially done for us in English and had offered all help possible without any obligation whatsoever and purely out of love for our country and our people. I had sent it to our ministry concerned through the Ministry of External Affairs, but in spite of reminders I had heard nothing further,” Taleyarkhan wrote in the letter dated 28 October, 1986.
The date is significant because it was already 22-months since the tragic incident had happened in Bhopal and the Indian administration was scrambling to ensure remedial measures. Taleyarkhan had also sent a note on the Italian rehabilitation plan just a month after Bhopal tragedy and had eveb admitted it ‘most impressive action’ on the record.
The Seveso disaster in the chemical manufacturing plant had caused long-term health problems for 37,000 people. The Italians had divided the area in three zones, on the basis of gas leakage impact. The first zone called as zone ‘A’ which comprises of the area where the multinational chemical company plant was located was virtually razed to the ground, completely demolishing the buildings, the plant and machinery. The Italian government had offered Taleyarkhan that they were ready to provide assistance to India on sampling methods for soil and water contamination evaluation, clean up of designs, health monitoring of population and workers, safe disposal of hazardous waste, legal aspects like indemnification, compensation and visit of Italian experts to Bhopal.
Ignoring the cost of human existence
The PMO acknowledged Taleyarkhan letter and Italian offer only in November 1986 when JN Chaubey, a director-level officer sent an internal note to the additional secretary handling Bhopal issue. Taleyarkhan had by the time returned to India and had joined the minorities commission as a member.
The PMO note (4715) dated 4 November, 1986 said, “JH Taleyarkhan, member, Minorities Commission, has written to (additional) secretary regarding a note he had sent to the Ministry of External Affairs when he was the Indian Ambassador in Italy. His note deals with his visit to an area called Seveso near Milan, Italy, in February 1985 where relief and rehabilitation measures had been taken by Italians after a chemical disaster at Seveso in 1976. The note describes how the rehabilitation measures were taken in this area. The Seveso lesson could be very relevant to Bhopal case. If approved, the report from Taleyarkhan will be sent to the Department of Chemicals and Petro-Chemicals with a request that the Italian experience should be utilised appropriately.”
Six days later the Taleyarkhan’s note was sent to DV Kapur, then secretary, Department of Chemicals, through PMO UO No 17(2049) to examine the Italian’s offer.
There is nothing in the files to suggest that the administration even after a massive costly delay took any initiative to accept the Italian government’s offer. It also appears there was serious disconnect between the government assessment and ground reality brought to the notice by the civil society organisations at a time when the Indian government and Union Carbide were fighting the legal battle.
Non-profit organisations like Association For Protection of Democratic Rights had alleged that gas victims were yet to get any justice while a working group headed by BJ Heerjee, then additional secretary in the home ministry was satisfied with the progress on the ground. This group comprising of bureaucrats was set up by the government to assess the relief and rehabilitation measures taken by the state government. The group, which made a trip to Bhopal on 5-6 September, 1986, had observed that medical services were substantially improved and persons requiring medical attention had easier access to facilities.
“By now, 2,233 persons have been identified as dead due to gas leak. In January 1986, the number stood at 1,784. By the end of September 1986, the state government have made payment of Rs 10,000 for each of the 1,853 dead persons. The state government had included drainage, paving of roads, street lights and drinking water outlets in affected colonies in their environmental improvement programmes. After a visit to one of the badly affected areas, the group felt that the programme has to be considerably stepped up. It is necessary that this work is completed as quickly as possible because of many other implications apart from the benefit to the inhabitants,” the report had said.
A draft report prepared by the Ministry of Home Affairs said: “It is indeed regrettable that the profound help from (a) foreign government and international agencies did not materialise at all.”
For Union Carbide, it was business as usual
Despite the massive disaster, Union Carbide was not considered a pariah in the government corridors. A civil society group, International Coalition For Justice in Bhopal (ICJIB), formed in Australia for justice to gas victims had accused the Rajiv Gandhi government for entering into commercial transactions with Union Carbide ignoring the suffering of victims.
In a letter, dated 3 December, 1986, the ICJIB said, “It is reported that in 1985, after the occurrence of the Bhopal disaster, Union Carbide India Limited (UCIL) was awarded a Rs 100 million (approximately $8 million) contract by the Madhya Pradesh government for the manufacture/ distribution of condoms.”
The letter triggered an emergency meeting in the PMO to discuss the allegations. The internal note dated 9 February, 1987, and signed by Chaubey admitted that UCIL was indeed doing business in India after Bhopal disaster but the contract was signed prior to the tragedy.
“This aspect was checked up with the (then) additional secretary, family welfare in the Department of Health who informs us that under their programme of social marketing, they were distributing condoms to 10 major companies in the country, with largest retail outlets, so that their network would be utilised for marketing condoms in rural areas. This arrangement with UCIL was reached prior to the Bhopal case. This arrangement is still continuing and UCIL outlets are selling condoms in Bihar, Uttar Pradesh, Jammu and Kashmir but not in Madhya Pradesh,” the note said.
A day later, GK Arora, then additional secretary in the PMO, told the officials that they need to explore options to move UCIL share in condom distribution to some other firms.
“The arrangement existing between the Ministry of Health and the Union Carbide for social marketing of contraceptives should be examined afresh. Efforts should be made to get some other companies including multi-nationals such as Hindustan Lever, ITC, etc, to pick up UCIL’s share,” GK Arora wrote.
Relief eludes survivors
Thirty-four years later, nothing seems to have changed for the survivors of the Bhopal gas tragedy. Documents obtained by Bhopal Group for Information and Action (BGIA) under the Right To Information Act shows that funds meant for providing employment to survivors and their children have been diverted to build drains, roads and parks. Similarly, BGIA said, almost one-third of the funds meant for the housing of residents in the vicinity of the Union Carbide factory is also being diverted for the same purpose.
The Central Government in 2010 had approved a new action plan with Rs 272.75 crores for rehabilitation projects comprising of economic rehabilitation as well as the construction of houses for residents near Union Carbide factory in Bhopal. Documents obtained from the Department of Bhopal Gas Tragedy Relief and Rehabilitation shows the lackadaisical approach of the state and the Central Government. Rachna Dhingra of the BGIA expressed concern about the complicity of the Central Government in the misutilisation and misappropriation of funds meant for Bhopal gas tragedy survivors.
“In 2014, we sent hard evidence of misappropriation of Rs 18 Crores meant for economic rehabilitation of survivors to the CBI and to the Ministry of Chemicals that had provided the funds. No action has been taken against the known culprits till date. Documents show that in March this year the Ministry of Chemicals approved diverting of funds meant for survivors after objecting to it for three years,” she said.
The documents show that till December 2017, only Rs 129.50 crore was spent despite the lapse of eight years. As far as economic rehabilitation was concerned, Rs 104 crore was allocated in 2010 but only Rs 18.13 crore was spent. Minutes of Meeting of the Ministry of Chemical and Fertilizers with principal secretary, Bhopal Gas Tragedy Relief and Rehabilitation, Madhya Pradesh, shows the decision to divert unutilised funds were taken in March 2018.
“The balance unspent amount of Rs 14 crore under Social Rehabilitation for Construction of Houses to (Bhopal) gas (tragedy) victims and the amount of Rs 60.75 crore out of Rs 85.87 crore under Economic Rehabilitation (total of Rs 74.75 crore) may be spent for social and environmental facilities (construction of roads, khadanja, drainage, street lighting, etc) in the gas affected areas with the approval of the Cabinet,” documents revealed.
There are still loopholes in the disbursement of ex-gratia to the victims after more than three decades. Notes from of another meeting held in September reveal a shoddy state of affairs: “The Cabinet had sanctioned the disbursement of ex-gratia to 5,295 death cases in the year 2010. Thereafter, it was detected during scrutiny of records that 30 cases which awarded compensation under death category had erroneously been left out from the list of 5,295. The in-charge registrar brought out a total number of 35,455 cases sanctioned under the category of temporary partial disablement resulting in reduced capacity to earn livelihood; 34,229 cases were decided till July 2017.”
साभार: विनय कुमार
भोपाल में दिसंबर के पहले हफ्ते की रात बहुत सर्दी नहीं होती. 2 दिसंबर 1984 की रात भी कुछ ऐसी ही थी. जेपी नगर और आस पास के लोगों के लिए वह रात सामान्य होती…अगर वहां यह दर्दनाक हादसा न होता. 3 दिसंबर 1984 की सुबह अपने साथ एक ऐसी काली सुबह लेकर आएगी, इस बात का अंदाजा किसी को नहीं था.
2 दिसंबर की रात को क़ाज़ी कैंप, जेपी नगर (आज का आरिफ नगर) और उसके आसपास के इलाके के लोग रात का खाना खाकर सो गए थे. नई सुबह का इंतजार करते हुए लोगों ने कुछ योजनाएं बनाई होंगी. पता नहीं कितने युवक और युवतियों ने अपने प्रेम की कुछ बातों के लिए अगले दिन को चुना होगा. बच्चे रविवार होने की वजह से रोज से कुछ ज्यादा ही खेलकूद कर थके होंगे और उनकी माओं ने उनको किसी तरह खिला पिला कर सुलाया होगा कि कल फिर खेल लेना.
कुछ के लिए आने वाला सोमवार, 3 दिसंबर रोजगार के नए मौके लेकर आने वाला था. कुछ घरों में मेहमान भी उसी रात आए थे और उन घरवालों को भी यह भान नहीं रहा होगा कि यह मेहमान अब वापस नहीं जा पाएगा. उस इलाके में कुछ शादियां भी उस दरम्यानी रात को हो रही थीं. कुछ दूल्हा-दुल्हन भी पहले मिलन की आस लिए दुनिया से कूच कर गए.
उस रात की सुबह नहीं
आधी रात के बाद जब पुराना भोपाल, चंद पुलिसवालों, चौकीदारों और बीमारी से खांसते-खंखारते बुजुर्गों को छोड़कर गहरी मीठी नींद में सोया था तो किसी को खबर तक नहीं थी कि आरिफ नगर की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री उनके लिए जीने का नहीं बल्कि मरने का सबब बन जाएगी.
उस फैक्ट्री में मौजूद तमाम गैस के टैंकों के नंबर भले ही तब के कुछ कर्मचारियों और अधिकारियों को याद रहे हों लेकिन आगे चलकर टैंक नंबर E-610 इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया और भोपाल के लोग चाहकर भी इस नंबर को भूल नहीं पाएंगे. यह वही दुर्भाग्यशाली टैंक था जिससे गैस लीक हुई थी.
चाहे दुनिया की कोई भी कंपनी हो और वह लोगों के भलाई की कितनी ही बात करे, उसके लिए कहीं भी अपनी फैक्ट्री लगाने के पीछे सबसे अहम कारण वहां से मिलने वाला मुनाफा ही होता है. यह बात हर देश में भी लागू होती है, चाहे वह विकसित हो या विकासशील हो. बस विकसित देशों में इंसान की जिंदगी को तवज्जो दी जाती है और ऐसे कारखाने जो इंसानों या समाज के लिए खतरनाक होते हैं, उनको आबादी से दूर बनाया जाता है.
भोपाल में भी यूनियन कार्बाइड ने जब अपनी फैक्ट्री क़ाज़ी कैंप के पास 1969 में शुरू की थी, तब भी यहां आबादी थी. फर्क़ बस इतना था कि हिन्दुस्तान विकासशील देश था और यहां पर इंसानों की जिंदगी की कीमत कुछ खास नहीं थी. वैसे भी यूनियन कार्बाइड कीटनाशक दवाएं बना रही थी, बस गलती से इंसान भी कीट-पतिंगों की मानिंद उस हादसे में मारे गए.
इस देश में पैसे के बल पर कहीं भी कुछ भी किया जा सकता है और प्रशासन ऐसे उद्योगपतियों के कदमों में अपना सब कुछ न्योछावर करने के लिए तत्पर था, बशर्ते उनको मुंहमांगी कीमत मिल जाए.
अंदेशा था फिर लापरवाही क्यों?
ऐसा नहीं है कि किसी को इसका अंदेशा नहीं था. उस दुर्भाग्यपूर्ण रात के पहले भी कई बार छोटे-मोटे हादसे उस कारखाने में हो चुके थे. गैस लीक की छोटी मोटी घटनाएं हुई थीं. एकाध मजदूर उसमें मारे भी गए थे. अख़बारों में यूनियन कार्बाइड कारखाने की लोकेशन पर कई बार सवाल खड़े किए जा चुके थे लेकिन न तो किसी को फर्क़ पड़ना था और न पड़ा.
कारखाना अपनी गति से चलता रहा और शायद अगले कई सालों तक ऐसे ही चलता रहता, अगर उस रात वह हादसा नहीं हुआ होता. सुरक्षा के मानकों को दरकिनार करके मुनाफा बढ़ाने की नीयत के चलते कारखाने में कभी भी कोई दुर्घटना घट सकती थी लेकिन किसी का भी ध्यान उसकी तरफ नहीं था. यह कारखाना शुरू होने के ठीक 10 साल बाद 1979 में कंपनी ने मिथाइल आइसोसाइनाइट का उत्पादन शुरू किया. और इसके ठीक 5 साल बाद एक ऐसा हादसा हुआ जिसे इतिहास की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी मानी जाती है.
आज 34 साल बाद भी जेपी नगर, आरिफ नगर और आसपास के मोहल्लों में लोग उस दिन को याद करके सिहर जाते हैं. उस त्रासदी से किसी तरह बचने वाले लोग जब उस रात की कहानी सुनाते हैं तो दिल दहल जाता है.
कुछ यादें हैं कि जाती नहीं
पेशे से कारोबारी संजय मिश्रा उस समय करीब 16 साल के थे. उस रात वह घोड़ा नक्कास के अपने घर में परिवार के साथ सोए हुए थे. रात में गैस ने बहती हवा के साथ जैसे-जैसे अपना असर फैलाना शुरू किया, उनके इलाके में भी शोर मचने लगा. जो लोग खुले में थे या बाहर सो रहे थे, उनको घबराहट, बेचैनी और सांस में रुकावट महसूस हो रही थी.
किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि यह किस वजह से हो रहा है और हर व्यक्ति परेशान हाल में दूसरों से कारण जानने की कोशिश कर रहा था. तभी कहीं से खबर आई कि कार्बाइड कारखाने से जहरीली गैस लीक हो गई है और यहां से भागने में ही भलाई है.
मिश्रा के परिवार के सब लोग उठे और जो कपड़ा मिला उसे अपने नाक और मुंह पर बांधा और लाल परेड मैदान की तरफ दौड़ लगाई. उनको याद भी नहीं है कि उन्होंने अपने घर में ताला बंद किया था या नहीं. बस जान बचाने के लिए पूरा परिवार भाग रहा था. रास्ते में उनको जगह-जगह सड़क पर, गलियों में गिरे लोग और जानवर दिखाई पड़ रहे थे जो दम घुटने से छटपटा रहे थे.
भागते भागते उनका पूरा परिवार लाल परेड मैदान पहुंचा और उससे आगे जाने की उन लोगों में क्षमता नहीं बची थी. धीरे धीरे उनको महसूस हुआ कि वहां सांस लेने में ज्यादा दिक्कत नहीं हो रही थी. आंखों में जलन भी कम थी तो सारा परिवार वहीं पूरी रात पड़ा रहा. कुछ ही देर में पूरा लाल परेड मैदान लोगों से भर गया. हर तरफ लोग कराह रहे थे. कुछ जिनका परिवार बिछड़ गया था, वह उनको याद करके रो पीट रहे थे. उन बिछड़े लोगों को यह अहसास हो गया था कि जो भी पीछे रह गया, वह शायद ही अब उनसे दोबारा मिल पाएगा.
अपनों को खोने की रात
हजारों लोगों ने एक ही रात में अपनों को खो दिया. सरकारी आंकड़ों में भले ही मारे गए लोगों का आंकड़ा 4000 से कम था. लेकिन असलियत में यह संख्या 50,000 से भी ज्यादा रहा.
उस हादसे के एक और प्रत्यक्षदर्शी विजय मिश्रा ने एक और बात बताई. उन्होंने बताया कि उस रात ठंड और दिनों की अपेक्षा ज्यादा थी. लिहाजा गैस ऊपर आसमान में नहीं जा पा रही थी. हलके पीले रंग की गैस की परत चारों तरफ फैली हुई थी और इस वजह से भी बहुत ज्यादा लोगों की मौत हुई.
एक और प्रत्यक्षदर्शी की जुबानी उस रात का खौफनाक मंजर कुछ ऐसा था. अमन शर्मा उस समय लगभग 24 वर्ष के युवक थे और अपने परिवार के साथ रेलवे कॉलोनी में रहते थे. उस रात किसी परिचित की शादी थी तो बारात से खा पीकर आने में रात के बारह बज गए. उसके बाद वह भी परिवार के साथ सो गए. पिताजी रेलवे में थे और उनकी रात की पाली नहीं थी, इसलिए वह भी घर पर ही थे. रात जब शोर मचना शुरू हुआ तो सब लोग जागकर बाहर आए.
बाहर यूनियन कार्बाइड कारखाने से जहरीली गैस लीक होने की खबर मिली तो पूरा परिवार घर के दो स्कूटर से वहां से भागा. एक स्कूटर पर अमन अपने पिता और एक और सदस्य को लेकर मंडीदीप की तरफ भागे. दूसरे स्कूटर पर उनके बड़े भाई अपनी मां, बहन और अन्य सदस्यों को लेकर टी टी नगर की तरफ भागे.
अमन बताते हैं कि मंडीदीप पहुंचते-पहुंचते उनकी हालत स्कूटर चलाने लायक नहीं रह गई. वह एक दूकान के सामने स्कूटर लेकर लुढ़क गए. गैस लीक होने की खबर वहां भी पहुंच चुकी थी लेकिन वहां उसका असर बहुत कम था. वह आज भी वहां के दुकानदारों और मौजूद लोगों का आभार करना नहीं भूलते जिन्होंने उनको और इनके परिवार को झटपट घर के अंदर खींच लिया और पानी के साथ साथ बेनाड्रिल सिरप पिलाने लगे. कुछ देर में उन लोगों को राहत मिली और उनको अहसास हुआ कि फिलहाल मौत का साया उनके सर से हट गया है.
एक अफसोस यह भी
शर्मा को बस एक अफसोस यह है कि भागने के दौरान जब वह स्कूटर से पुल पार कर रहे थे तो कुछ लोगों के हाथ या पैर के ऊपर से उनका स्कूटर गुजर गया था. अमन के बड़े भाई टी टी नगर पहुंचते-पहुंचते बेदम होने लगे और वह भी सड़क के किनारे फुटपाथ पर गिर पड़े. इस तरफ भी गैस का असर कम था और वहां मौजूद लोगों ने उन लोगों को अपने घर में पनाह दे दी.
इस तरह उनका पूरा परिवार इस हादसे से बाल बाल बच गया. हालांकि इस हादसे के बाद उनकी मां को सांस लेने में तकलीफ आजीवन रही. एक और बात उन्होंने बताई कि इस हादसे के बाद रेलवे स्टेशन या आसपास भिखारी अगले कुछ महीनों तक नजर नहीं दिए. जितने भी भिखारी थे वे सब इस गैस कांड के चपेट में आकर मारे गए.
भोपाल गैस त्रासदी इतिहास की सबसे भीषण त्रासदियों में से एक थी. अधिकांश लोगों को इससे बहुत आर्थिक क्षति उठानी पड़ी तो कुछ लोगों को इससे जाती फायदा भी हुआ. गैस कांड के अगले दिन एक स्थानीय नेता लोगों का हुजूम लेकर यूनियन कार्बाइड की तरफ बढ़े. उन्होंने लोगों को उनका हक़ दिलाने की भी बात की.
उसी बीच एक अफवाह तेजी से फ़ैली कि यूनियन कार्बाइड कारखाने में आग लगा दी गई है और अब जहरीली गैस का बहुत ज्यादा असर फैलने वाला है. इससे उस पूरे इलाके में भगदड़ मच गई. इसके बाद उपद्रवियों ने जमकर घरों और दुकानों को लूटा. उस राजनेता की राजनीति की दुकान इसके बाद चल निकली.
एक किस्सा यह भी
रेलवे के दो अधिकारियों का किस्सा भी लोगों ने बताया. एक अधिकारी जो शराब पीने के लिए बहुत बदनाम थे, वह घर पर शराब पीकर सो रहे थे. जब चारों तरफ हल्ला मचा तो वह भी घर से बाहर निकले और चारों तरफ घूम-घूम कर लोगों से पूछने लगे.
इसी बीच शायद गैस या किसी और वजह से वह गिर पड़े और जब तक उनको घर ले जाया जाता, उनकी मौत हो गई. ये किस्सा सुनाने वालों का कहना है कि घरवालों ने उनको ले जाकर उनके ऑफिस में बैठा दिया. बाद में उनकी मौत को ड्यूटी पर हुई मौत बताया गया. कुछ लोगों का कहना है कि उनके परिवार को इसका फायदा भी हुआ.
दूसरे अधिकारी उस समय ड्यूटी पर ही थे. उनको भी खबर लग गई थी कि गैस त्रासदी हो गई है. लेकिन उन्होंने अपनी ड्यूटी नहीं छोड़ी और स्टेशन पर मौजूद लोगों की सलामती में लगे रहे. उसका नतीजा उनको आगे भुगतना पड़ा. उनकी पत्नी और बेटी दोनों गैस के चलते अगले दो दिनों में दुनिया में नहीं रहे. बेटा बाहर था तो वह बच गया लेकिन कुछ सालों बाद वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठे. आज भी वह भोपाल रेलवे स्टेशन पर पागलों की तरह घूमते नजर आते हैं. मेरी भी मुलाकात उनसे एक बार स्टेशन पर ही हुई थी और उनसे जुड़े किस्से के बारे में मुझे बाद में पता चला.
तमाम अखबार, पत्रिकाएं और सरकारी अमला इस बात की तस्दीक़ करते हैं कि उस कांड का असर आज भी मौजूद है. बहुत से बच्चे आज भी अपंग या मानसिक रूप से कमजोर पैदा हो रहे हैं और पिछले 34 वर्षों में कितने ही लोगों ने धीरे धीरे कैंसर और अस्थमा जैसे रोगों से अपनी जान गंवा दी है.
लोगों को मुआवजा तो मिला है लेकिन उतना नहीं जितना मिलना चाहिए था. और जिन लोगों को इस हादसे में उनसे छीन लिया है, उनका दर्द कभी भर ही नहीं सकता. आज यूनियन कार्बाइड का कारखाना उजाड़ पड़ा है लेकिन जहरीले पदार्थों का अवशेष अब भी मौजूद है. जरूरत है इस हादसे से सबक लेने की जिससे भविष्य में कोई और गैस कांड या ऐसी कोई त्रासदी ना हो.
उद्योग मंत्री विपुल गोयल ने स्विमिंग में राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने वाले खिलाड़ियों का किया सम्मान
फ़रीदाबाद सेक्टर 15 में एम स्पोर्ट्स अकैडमी द्वारा किया गया सम्मान समारोह का आयोजन वह दिन दूर नहीं जब फरीदाबाद के खिलाड़ी निकालेंगे पानी से सोने के पदक- विपुल गोयल विपुल गोयल ने हरियाणा के खिलाड़ियों और खेल नीति की जमकर की तारीफ
हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग द्वारा पुलिस विभाग के लिए आज पंचकूला में लिखित परीक्षा हुई। हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग द्वारा पुलिस विभाग के लिए लिखित परीक्षा 35 लोकेशन व 48 केन्द्रों पर आयोजित की गई।
इन परीक्षा केन्द्रों पर CM फ्लाइंग स्क्वाड की DSP पूर्णिमा सिंह व DSP सुरेन्द्र वत्स ने अपनी टीम के साथ निरीक्षण किया। साथ ही गुप्तचर इकाई पंचकूला के कर्मचारी भी तैनात किए गए है, ताकि इन परीक्षा केन्द्रों पर परीक्षा सुचारु रुप से हो सके।
इन सभी परीक्षा केन्द्रों पर तैनात ईन्चार्ज उम्मीद्वारों के लिए बनाए गए महिला फ्रिसिक्ंग स्थान पर एक महिला पुलिस कर्मी व पुरुष फ्रिसिक्ंग स्थान पर एक पुरुष पुलिस कर्मी तैनात किया गया है और सभी परीक्षा केन्द्रों पर ईन्चार्ज एक उप निरिक्षक पद का अधिकारी तैनात किया गया है। जिला पंचकूला के परीक्षा केन्द्रों पर 3 एसीपी व 11 निरिक्षक लगाए गए हैं। इसके अतिरिक्त स्थानीय प्रशासन के द्वारा भी अलग से डयूटी मैस्ट्रिैट नियुक्त किए गए हैं। इन परीक्षा केंद्रों पर कुल 12,554 परीक्षार्थियों ने परीक्षा दी। यह परीक्षा सुबह 10.30 से दोपहर 12.00 तक हुई।
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