कांग्रेस को जिस डील में घोटाला दीख पड़ता है जानिए उस डील का सच


राफेल विमान सौदे पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सबके सामने है, लेकिन याचिका और इस पर आए फैसले के पूर्व यह जानना जरूरी है कि राफेल विमान सौदा है क्या?


राफेल डील को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला दिया है. कोर्ट ने इस मामले में जांच की मांग वाली सारी याचिकाएं खारिज कर दी हैं. राफेल डील पर उठाए जा रहे सवालों पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस पर कोई संदेह नहीं है.राफेल डील की खरीद प्रक्रिया में कोई कमी नहीं है.

साथ ही कोर्ट ने कहा कि कीमत देखना कोर्ट का काम नहीं है. कोर्ट के इस फैसले को कांग्रेस के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी पर बड़ा हमला करते हुए आरोप लगाया था कि राफेल डील में मोदी सरकार ने घपला किया है. उन्‍होंने आरोप लगाते हुए कहा था कि मोदी इस डील के लिए निजी तौर पर पेरिस गए थे और वहीं पर राफेल डील हो गई और किसी को इस बात की खबर तक नहीं लगी.

यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट में इस डील को लेकर जांच किए जाने की मांग वाली याचिकाएं भी दाखिल की गई थी. बीते 14 नवंबर को हुई सुनवाई में इसपर फैसला सुरक्षित भी रख लिया गया था. अब फैसला सबके सामने है, लेकिन याचिका और इस पर आए फैसले के पूर्व यह जानना जरूरी है कि राफेल विमान सौदा है क्या?

राफेल विमान क्या है?

राफेल एक फ्रांसीसी कंपनी डैसॉल्ट एविएशन निर्मित दो इंजन वाला मध्यम मल्टी-रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) है. राफेल लड़ाकू विमानों को ‘ओमनिरोल’ विमानों के रूप में रखा गया है, जो कि युद्ध में अहम रोल निभाने में सक्षम हैं. ये बखूबी ये सारे काम कर सकती है- वायु वर्चस्व, हवाई हमला, जमीनी समर्थन, भारी हमला और परमाणु प्रतिरोध.

भारत ने राफेल को क्यों चुना है?

राफेल भारत का एकमात्र विकल्प नहीं था. कई अंतरराष्ट्रीय विमान निर्माताओं ने भारतीय वायुसेना से पेशकश की थी. बाद में छह बड़ी विमान कंपनियों को छांटा गया. इसमें लॉकहेड मार्टिन का एफ -16, बोइंग एफ / ए -18 एस, यूरोफाइटर टाइफून, रूस का मिग -35, स्वीडन की साब की ग्रिपेन और रफाले शामिल थे.

सभी विमानों के परीक्षण और उनकी कीमत के आधार पर भारतीय वायुसेना ने यूरोफाइटर और राफेल को शॉर्टलिस्ट किया. डलास ने 126 लड़ाकू विमानों को उपलब्ध कराने के लिए अनुबंध हासिल किया, क्योंकि ये सबसे सस्ता मिल रहा था. कहा गया कि इसका रखरखाव भी आसान है.

खरीद प्रक्रिया कब शुरू हुई?

भारतीय वायु सेना ने 2001 में अतिरिक्त लड़ाकू विमानों की मांग की थी. वर्तमान आईएएफ बेड़े में बड़े पैमाने पर भारी और हल्के वजन वाले विमान होते हैं रक्षा मंत्रालय मध्यम वजन वाले लड़ाकू विमान लाना चाहता था. वैसे इसकी वास्तविक प्रक्रिया 2007 में शुरू हुई. रक्षा मंत्री ए के एंटनी की अध्यक्षता वाली रक्षा अधिग्रहण परिषद ने अगस्त 2007 में 126 विमान खरीदने के प्रस्ताव पर हरी झंडी दे दी.

कितने राफेल खरीद रहे हैं और लागत क्या है?

इस सौदे की शुरुआत 10.2 अरब डॉलर (5,4000 करोड़ रुपये) से होनी अपेक्षित थी. 126 विमानों में 18 विमानों को तुरंत लेने और बाकि की तकनीक भारत को सौंपे जाने की बात थी. लेकिन बाद में इस सौदे में अड़चन आ गई.

फिर क्या हुआ?

राफेल के लिए भारतीय पक्ष और डेसॉल्ट ने 2012 में फिर बातचीत शुरू हुई. जब नरेंद्र मोदी की सरकार सत्ता में आई तो उसने वर्ष 2016 में इस सौदे को फिर नई शर्तों और कीमत पर फिर किया.

यह देरी क्यों?

भारत और फ्रांस दोनों ने वार्ताओं का दौरान राष्ट्रीय चुनाव और सरकार में बदलाव देखा. कीमत भी एक अन्य कारण था. यहां तक कि खरीद समझौते के हस्ताक्षर के दौरान, दोनों पक्ष वित्तीय पहलुओं पर एक निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पा रहे थे. विमान की कीमत लगभग 740 करोड़ रुपए है. भारत उन्हें कम से कम 20 फीसदी कम लागत पर चाहता था. शुरुआत में योजना 126 जेट खरीदने की थी, अब भारत ने इसे घटाकर 36 कर दिया.

भारत और फ्रांस दोनों के लिए सौदा कितना अहम?

फिलहाल फ्रांस, मिस्र और कतर राफेल जेट विमानों का उपयोग कर रहे हैं. हालांकि डेसॉल्ट कंपनी की माली हालत ठीक नहीं है. कंपनी को उम्मीद थी कि भारत से सौदे के बाद कंपनी अपने राजस्व लक्ष्यों को पूरा कर पाएगी. भारत ने रूस के मिग की बजाय डेसाल्ट को चुना. भारत ने अमेरिका के लॉकहीड को भी नजरअंदाज कर दिया था.

नई सरकार में क्या हुआ?

अप्रैल 2015 में नरेंद्र मोदी ने पेरिस का दौरा किया. तभी 36 राफेल खरीदने का फैसला किया गया. बाद में एनडीए सरकार ने इस सौदे पर वर्ष 2016 में साइन कर दिए. जब फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांकोइस होलैंड ने जनवरी में भारत का दौरा किया तब राफेल जेट विमानों की खरीद के 7.8 अरब डॉलर के सौदे पर हस्ताक्षर हुए.

कांग्रेस को इस पूरी डील में घोटाला नजर आ रहा है. राफेल विमान सौदे को लेकर मोदी सरकार पर कांग्रेस ने न सिर्फ हमला बोला है, बल्कि घोटाले का आरोप भी लगाया है. कांग्रेस ने राष्ट्रीय हित एवं सुरक्षा के साथ सौदा करने का भी आरोप लगाया. कहा कि इस सौदे में कोई पारदर्शिता नहीं है. इसके खिलाफ याचिका भी दायर की गई. अब इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील की खरीद प्रक्रिया में कोई कमी नहीं होने की बात कही है.

रायबरेली में प्रधानमंत्री के स्वागत में तत्पर महिला कांग्रेस


हाल ही राजस्थान में आयोजित एक चुनावी रैली में मोदी ने विधवा पेंशन योजना सहित कई घोटाला करने का कांग्रेस पर आरोप लगाया. इस दौरान उन्होंने पूछा कि ‘ये कांग्रेस की कौन सी विधवा थी जिसके खाते में पैसा जाता था.’


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजस्थान विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर हमला करते हुए उन्हें ‘विधवा’ तक कह दिया था. अब प्रधानमंत्री मोदी अपने पहले दौरे पर 16 दिसंबर को रायबरेली जा रहे हैं. सोनिया गांधी पर की गई विधवा टिप्पणी से नाराज महिला कांग्रेस कार्यकर्ता प्रधानमंत्री के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने वाली हैं. इस प्रदर्शन में महिला कांग्रेस के सभी राज्यों की प्रमुखों के शामिल होने की संभावना है.

हाल ही राजस्थान में आयोजित एक चुनावी रैली में मोदी ने विधवा पेंशन योजना सहित कई घोटाला करने का कांग्रेस पर आरोप लगाया. इस दौरान उन्होंने पूछा कि ‘ये कांग्रेस की कौन सी विधवा थी जिसके खाते में पैसा जाता था.’

प्रधानमंत्री के इस बयान को सीधे तौर पर सोनिया गांधी के लिए माना गया. सोनिया के पति और देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 1991 में राजनीतिक हत्या कर दी गई थी.

प्रधानमंत्री की भाषा असंसदीय

प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद उनकी खूब आलोचना भी हुई. सोशल मीडिया पर खासकर के लोगों ने उनकी भाषा पर आपत्ति दर्ज कराई और कई यूजर्स ने तो यहां तक लिखा कि एक देश के प्रधानमंत्री से ऐसी भाषा की उम्मीद नहीं की जा सकती.

रायबरेली सदर से कांग्रेस विधायक और महिला कांग्रेस की महासचिव अदिति सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री ने जिस भाषा का इस्तेमाल किया है, वह असंसदीय है और हम सोनिया गांधी के खिलाफ लगाए गए आरोपों की निंदा करते हैं.

अदिति सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री की अपमानजनक टिप्पणी के खिलाफ महिला कांग्रेस की कार्यकर्ता रेल कोच फैक्ट्री के बाहर उन्हें काला झंडा दिखाएंगी. मोदी नए बने रेल कोच फैक्ट्री का उद्घाटन करने के लिए रविवार को रायबरेली में रहेंगे.

गांधी परिवार पर पीएम साधेंगे निशाना

सूत्रों ने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी इस दौरे पर गांधी परिवार पर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों पर भी जनसभा में बोलेंगे. इसका नजारा विधानसभा चुनाव की रैलियों के दौरान भी देखा गया था.

रायबरेली के दौरे बाद प्रधानमंत्री उसी दिन प्रयागराज (इलाहाबाद) जाएंगे और कुंभ की तैयारियों का जायजा लेंगे. इस महीने के आखिर में प्रधानमंत्री अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी का दौरा करेंगे और गाजीपुर में एक रैली को संबोधित करेंगे. नए साल के शुरुआत में पीएम मोदी वाराणसी में प्रवासी भारतीय दिवस के कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे और कुंभ में एक श्रद्धालु के तौर पर शामिल होंगे.

राहुल से विनम्रता की अपेक्षा कोई अनहोनी मांग तो नहीं


अगर हम ‘मेक इन इंडिया’, को अपनाना चाहते हैं, तो हमें रिलायंस और अन्य सभी सैंकड़ों कंपनियों को इस रेस में शामिल कर उन्हें भारत की मिलिट्री हार्डवेयर उत्पादन प्रणाली में तेज़ी लाने देना चाहिए

राफेल पर सर्वोच्च नयायालय के फैसले के पश्चात राहुल से विनम्रता की अपेक्षा रखते हुए उन्हे राष्ट्र हित में विमानों को शिघ्रातिशीघ्र भारत में लाने की सरकारी कवायद का साथ देना चाहिए।


भारत की सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील से संबंधित, कथित अपराध के सभी मामलों (आरोपों) को निरस्त कर दिया है और इसके साथ ही राहुल गांधी का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ चलाया जा रहा प्रचंड अभियान औंधे-मुंह आ गिरा है. अब समय आ गया है कि राहुल गांधी को बहुत ही सम्मानपूर्वक तरीके से खुद को इस मामले से जल्द से जल्द अलग कर लेना चाहिए और आसमान में भारत की सुरक्षा करने को तत्पर राफेल फाइटर विमानों के रास्ते से हट जाना चाहिए.

लेकिन, बहुत ही अफ़सोस की बात है कि वैसा होता दिख नहीं रहा है. राहुल गांधी अब भी बहुत ही फूहड़ तरीके से एड़ी-चोटी एक किए हुए हैं, बजाए इसके कि वो अपनी हार मान लेते. वे अब इस मामले में एक JPC यानी जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी की मांग कर रहे हैं. जिसकी जांच, सुप्रीम कोर्ट की जांच से अलग होगी. JPC की मांग करके राहुल गांधी एक ऐसी चीज़ की मांग कर रहे हैं जो काठ के घोड़े के समान होगा और जिससे उन्हें कभी भी नीचे उतरने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी, और वे हमेशा उसपर लदे रह सकते हैं, किसी असाधारण झुकाव या डगमगाहट के दौरान भी. असामान्य तौर पर होता ये आया है कि विरोधी पक्ष ऐसे मसलों पर JPC को बंद या स्थिर (फ्रीज़) करने की मांग करते हैं, जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही कोई फैसला सुना दिया है. हालांकि, गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने संकेत दिए हैं कि इस मामले में सरकार की तुरंत ऐसी कोई मंशा नहीं है लेकिन राहुल गांधी पर इसका कोई असर नहीं पड़ रहा है.

भारतीय एयरफोर्स को इन विमानों की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है

लोगों को सिर्फ़ भौचक्का करने और उनके मन में घृणा पैदा करने की नीयत से, आसमान में उड़ने लायक 36 राफेल फाइटर विमानों की खरीद की जो लंबी और थकाऊ प्रक्रिया रही है, उसे और 126 अन्य विमानों के उत्पादन और भारत में किए जाने वाले संयोजन की प्रक्रिया के कारण ऐसा लग रहा है मानो जैसे बोफोर्स विवाद कोई प्रतिष्ठा का मुद्दा था. ये देखते हुए कि कैसे अभी तक इस श्रेणी का पहला विमान भी भारत की धरती तक नहीं पहुंच पाया है, इससे जुड़े ज़हरीले विवादों ने इस पूरे प्रकरण को ही एक बहुत बड़ी गड़बड़ी या बेतरतीबी वाला वाकया बना दिया है. जबकि, भारतीय एयरफोर्स को इन विमानों की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है.

हमें फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के साथ-साथ भारतीय रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण, एचएएल के विभिन्न वरिष्ठ अधिकारियों, कई एयरमार्शल्स, दसॉल्ट के प्रवक्ताओं और अनगिनत विशेषज्ञों, जानकारों का शुक्रगुज़ार होना चाहिए, जिन्होंने लगातार इस मुद्दे पर अपनी राय और कांग्रेस पार्टी के आरोपों के विरुद्ध जानकारी देते रहे हैं. वरना, राहुल गांधी ने तो ऐसा माहौल बना दिया था कि– हम और आप ये समझ ही नहीं पा रहे थे कि आख़िर ये पूरा माजरा है क्या?

संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण

एक ऐसा देश जिसकी वायुसेना की मारक क्षमता स्वीकृत तौर काफी जर्जर हो चुकी है, जिसके पास 11 स्कॉवर्डन कम हैं, और 100 से भी ज़्यादा एयरक्राफ्ट चौथी पीढ़ी के हैं, उसके लिए इस तरह से ऐसे 36 लग्जरी विमान खरीद पाना बहुत बड़ी बात है. सच तो ये है कि जब भारत ऐसे समृद्ध विमान खरीदने की हिम्मत कर पा रहा है, तब इस खरीद को राजनीतिक रंग देना, उससे अपने फायदे की सोचना, एक ऐसी ग़लती है जिसे हमें गलती से भी नहीं करना चाहिए.

इसके बावजूद हम एक दूसरे पर कीचड़ उछालने में व्यस्त हैं. एक भारतीय के तौर पर, जिसके चारों तरफ ऐसे दुश्मन पड़ोसी हों, जो हर समय हमारी सीमा पर अपनी वायुसेना की बदौलत डराने-धमकाने का काम करते हैं, तब मैं ये सबकुछ सुनकर थक सा गया हूं. इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि हिंदुस्तान एरोनॉटिकल लिमिटेड इसे सही तरह से कर पाया या नहीं, वो भी तब जब हम आकाश में चारों तरफ दुश्मनों से घिरे हैं, जहां हम कमज़ोर हैं और जहां से हमपर हमला हो सकता है. ऐसे में हम यहां बैठकर एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं?

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने बिल्कुल सही जगह पर वार किया जब उन्होंने कहा कि, ‘हमारा देश किसी भी स्थिती में बिना तैयारी या अपर्याप्त तरीके से तैयार नहीं हो सकता है,’ खासकर, लड़ाकू विमानों के मामले में.

वायुसेना के प्रमुख भी एचएएल की कामकाज और उत्पादन से खुश नहीं 

सुप्रीम कोर्ट के द्वारा सुनाए गए फैसले से पहले, राफेल मुद्दे पर जो हालिया खबर आई थी वो दो हफ़्ते पहले तब आई थी जब, हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड के सीईओ आर.माधवन ने, बड़े ही विस्तार से ये बात समझाने की कोशिश की थी कि एचएएल के राफेल बनाने का सामर्थ्य और साधन दोनों ही मौजूद हैं, (क्योंकि वो सुखोई 30 भी बना चुके हैं) लेकिन उनकी कंपनी ने खुद ही इसे नहीं बनाने का निर्णय लिया था. एचएएल वही कंपनी है, जिसे राहुल गांधी के मुताबिक, मोदी सरकार ने अनिल अंबानी को फायदा पहुंचाने के लिए अंतिम समय में बदल दिया था. उनके मुताबिक उनका (एचएएल का) दसॉल्ट के साथ समझौता काम करने के घंटों और तकनीक के आदान-प्रदान के मुद्दे पर एक-राय नहीं बनने के कारण टूट गया था.

हम लाख चाहकर भी माधवन की इस कोशिश को नकार नहीं सकते हैं जब वो अपनी कंपनी की छवि को ये कहकर बचाने की कोशिश कर रहे हैं कि, हम ‘कर’ सकते थे. लेकिन, ‘कर सकने’, ‘करने’ और ‘करना चाहते थे’, ये सब बातें बेमानी हैं अगर आपने किया नहीं. ऐसे में उनको आखिर कुछ कहने की ज़रूरत ही क्यों आन पड़ी?

आइए, अब हम गले की फांस बनी इस हड्डी को काटते हुए आगे बढ़ें, और एचएएल से जुड़ी कुछ आंतरिक सच्चाईयों से रुबरू हो लें, ताकि हम दिमाग लगाकर तर्कपूर्ण तरीके से इसके इतिहास के संदर्भ में इस पर सोचविचार कर सकें.

एचएएल एक सरकारी कंपनी है और कई अन्य पीएसयू कंपनियों की तरह इसे भी सरकार द्वारा अपनी देखरेख में रख लिया गया था. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि केंद्र सरकार ये डील होने देना चाहती है कि नहीं, ये समझौता हर हाल में होकर रहता. फिर चाहे कर्मचारियों के काम करने के घंटे और उसपर आए खर्चे में फर्क होता या कोई और वित्तीय असहमति. इस बात की परवाह किए बगैर ये डील हर हाल में होकर रहती.

क्या आप एचएएल में ऐसे किसी भी व्यक्ति को जानते हैं, जिसने नई दिल्ली या पीएम मोदी के आदेशों को मानने से इनकार कर दिया है ?

लेकिन, ज़रा रुक कर सोचें. मुमकिन है कि इस पूरी बातचीत या सौदे के दौरान दसॉल्ट ही एचएएल के साथ डील करते हुए खुश नहीं हों. हो सकता है कि वो ही चाहते हों कि वे सार्वजनिक की जगह किसी निजी कंपनी के साथ ये सौदा करें, जहां जवाबदेही किसी भी सरकारी कंपनी से ज्य़ादा होती है और लाल-फीताशाही कम. इसके अलावा वहां काम की डिलीवरी भी समय पर होती है, वरना उसका जुर्माना पड़ता है. एचएएल के कार्य इतिहास पर नज़र डालें तो पाएंगे कि उसके सीवी इस तरह की कोई उपाधि मौजूद नहीं है, न हीं उसकी ऐसी कोई ख़्याति है. न तो उसके नाम हवाई जहाज़ बनाने का कोई कीर्तिमान है, और न ही समय पर काम पूरा करके देता है. पिछले महीने ही एयरचीफ़ मार्शल बीएस धनोहा ने रिकॉर्ड पर कहा था कि, ‘सुखोई की डिलीवरी में एचएएल तीन साल पीछे चल रहा है, जगुआर में हम छह साल पीछे हैं और मिराज में भी दो साल पीछे चल रहे हैं.’

युद्ध पोत पर राफेल

हम तो उस एलसीए प्रोग्राम का ज़िक्र ही नहीं करते हैं, जो पिछले 35 सालों से चल रहा है और अभी तक पूरा नहीं हुआ है.

अब सवाल ये है कि अगर वायुसेना के प्रमुख भी एचएएल की कामकाज और उत्पादन से खुश नहीं हैं, तो फिर दसॉल्ट को उनसे दिक्कत क्यों नहीं हो सकती है ? आख़िर, ये जो पृष्ठभूमि हमारे सामने है उसे मानने में दिक्कत क्यों है ?  क्या हमें इस बात पर चर्चा नहीं करनी चाहिए कि एचएएल के सीईओ अपनी कंपनी के कामकाज, उसकी उपयोगिता और कार्यक्षमता को न सिर्फ़ बेहतर करे बल्कि दुरुस्त भी ?

और ये जो दिमागी तौर पर एक तमाशा बनाने की कोशिश की जा रही है कि इन फाइटर विमानों को रिलायंस बना रहा है उसे भी एक किनारे रखने की ज़रूरत है. क्योंकि जिन चीज़ों का निर्माण हो रहा है वो सिर्फ़ कुछ कल-पुर्ज़े और अतिरिक्त हिस्से हैं, जिसे चाहे रिलायंस बनाए या एचएएल या कोई और भी बना लेता तो भी दसॉल्ट, उन्हें बड़ी ही आसानी से मैनुफैक्चरिंग ब्लूप्रिंट थमाकर यूं ही चला नहीं जाता. उसकी प्रतिष्ठा ठीक वैसे ही दांव पर लगी है, जैसे राफेल की और वो किसी भी तरह से एक बाहरी कंपनी को बग़ैर पूरी निगरानी और जांच के घटिया सामान बनाने की बनाने की अनुमति नहीं देता. इसलिए, उत्पादन की कुशाग्रता, हुनर और साधन सबकुछ दसॉल्ट के अधीन होता.

अगर हम ‘मेक इन इंडिया’, को अपनाना चाहते हैं, तो हमें रिलायंस और अन्य सभी सैंकड़ों कंपनियों को इस रेस में शामिल कर उन्हें भारत की मिलिट्री हार्डवेयर उत्पादन प्रणाली में तेज़ी लाने देना चाहिए और इतना ही नहीं उन्हें वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धात्मक होने का भी अवसर देना चाहिए. आज़ादी के 70 सालों के बाद, आज भी हम अपनी मिलिट्री और रक्षा सेवाओं के लिए दुनिया के सामने भीख मांगते हैं.

यहां तक कि चीन और पाकिस्तान के पास भी उनके अपने एयरक्राफ्ट हैं, हालांकि सयुंक्त अभियान के तहत. ठीक ऐसे ही स्वीडन, बेल्जीयम, दक्षिण कोरिया और सऊदी अरब के पास भी जल्द ही स्वदेशी विमान आ जाएंगे. साब डिफेंस एंड सिक्योरिटी ने ब्राज़ील को ग्रिपेन एनजी मल्टी रोल फाइटर देने की पेशकश की थी, जैसे उसने फ्रांस और भारत को की. लेकिन, वहां उसके इस कदम के बाद किसी तरह का विवाद या कीचड़ नहीं उछाला गया.

राहुल का राफेल चुनाव जीतने तक ही सीमित रहा

देश में करीब 500 लोगों को नौकरी के अवसर मिलेंगे

इस पूरे मामले में एक बड़ा मुद्दा उस मुनाफ़े का भी बनाया जा रहा है जो अनिल अंबानी की कंपनी को इस सौदे से होगी. ये संभवत: वही पैसा है जिसमें एचएएल को कोई रूचि नहीं थी और उसने डील नहीं की. विडंबना ये है कि अब उसे ही एक मुद्दा बनाया जा रहा है. हम ये भी भूल रहे हैं कि इस सौदे का 50% फ्रेंच कंपनियों से ऑफसेट प्रोग्रामिंग की मांग कर रहा है. ये वो कंपनियां हैं जो भारतीय मिलिट्री की मैनुफैक्चरिंग सेक्टर को मदद करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.

चूंकि, दसॉल्ट के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने इस साल की शुरुआत में ही कह दिया था कि- उनकी कंपनी अनिल अंबानी की रिलायंस के साथ जुड़ने जा रही है और उनकी नई कंपनी में 49% का निवेश भी करेगी. उसने इसके अलावा भी कई कंपनियों के साथ समझौते पर हामी भरी थी जिनमें – बीटीएसएल, काईनेटिक, महिंद्रा, मैनी, डिफिस़, भारत इलेक्ट्रोनिक शामिल हैं. इसके अलावा भी अन्य 90 कंपनियों के साथ जल्द ही कई और समझौते होने वाले हैं जिससे देश में करीब 500 लोगों को नौकरी के अवसर मिलेंगे.

जब साल 2017 में अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस ने फ्रांसिसी कंपनी थेल्स के साथ मिलकर काम करना शुरू किया था, ताकि वो रडार और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सेंसर्स के क्षेत्र में काम करे और इसमें भारतीय क्षमता को विकसित करे, तब तो किसी ने शोर नहीं मचाया था. उस अनुभव के बाद, हो सकता है कि दसॉल्ट को लगा हो कि वो दोबारा उसी कंपनी (रिलायंस) के साथ काम करे, जिसके साथ उसने पहले से काम किया हो और संतुष्ट भी हुआ हो. क्योंकि काम के दौरान जान-पहचान और आसानी होना दोनों ही काफी मायने रखता है.

थेल्स इस समय ऑफसेट प्रोग्राम पर एक बिलियन डॉलर तक खर्च कर रहा है. कंपनी के वाइस – प्रेसीडेंट पास्केल सूरिस के अनुसार, ‘हम हज़ारों नौकरियां पैदा करने के रास्ते पर हैं, ऐसी नौकरियां जो उच्चतम तकनीकि क्षमता वाली नौकरी हो.’

इस मसले पर अब वो वक्त आ गया है, जब हर किसी को अपना मुंह बंद कर लेना चाहिए और हमारी कमज़ोर पड़ी वायुसेना में नई जान भरने देना चाहिए. हमारी वायुसेना में इस वक्त काफ़ी पुराने एयरक्राफ्ट के सिर्फ़ 31 स्कॉर्डन हैं, जबकि होने कम से कम 42 चाहिए थे, ताकि दो मोर्चे पर लड़ाई लड़ सके. क्या आप ये जानना चाहते हैं कि हमारे एयरक्राफ्ट पुराने कैसे हो गए हैं? हमने पिछले चार सालों में 31 एयरक्राफ्ट खो दिए हैं, जिनमें मिराज-2000, जगुआर और एमआईजी 27 शामिल हैं.

मैं किसी भी दिन इन तुच्छ नेताओं और अफ़सरशाही के अनर्गल प्रलापों की जगह, आसमान में उड़ते अपने जेट विमानों की गड़गड़ाहट सुनना पसंद करूंगा. इसके लिए राहुल गांधी अगर कुछ कर सकें तो उन्हें इन विमानों की डिलीवरी जल्द से जल्द देश की धरती पर करवाना सुनिश्चित करना चाहिए.

राहुल का कद बड़ा दिखाने के लिए की नामों की घोषणा में देरी


कांग्रेस में इस तरह पहली बार हुआ है कि एक दूसरे के समर्थक आमने सामने आ गए हों, कांग्रेस में शक्ति प्रदर्शन को पंसद नहीं किया जाता है. कई नेताओं को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है.

धनाभाव से जूझ रही कांग्रेस को पुराने दिग्गज नेता अब कोरपोरेट जगत का रुख कांग्रेस की ओर मोड़ेंगे। 


राहुल गांधी की अगुवाई में तीन राज्य जीतने के बाद मुख्यमंत्री चयन में हाई वोल्टेज ड्रामा देखने को मिला है. राजस्थान में अपने नेता के समर्थन में लोगों ने प्रदर्शन किया है. लेकिन अंत भला तो सब भला है. मध्य प्रदेश में कमलनाथ और राजस्थान में अशोक गहलोत रेस जीत गए. राजनीति में अंत तक अपनी राजनीतिक चाल चलनी होती है.

कांग्रेस के ये नेता अनुभव के आधार पर आगे निकल गए. युवा नेताओं को अब कुछ दिन या साल इंतजार करना पड़ सकता है. शाहरुख खान का बाजीगर वाला डायलॉग भी है. हार कर जीतने वाले को बाजीगर कहते है. अशोक गहलोत को जादूगर तो पहले से ही कहा जाता है. अब वो राजनीति के बाजीगर भी हो गए हैं.

आलाकमान की अहमियत

कांग्रेस में इस तरह पहली बार हुआ है कि एक दूसरे के समर्थक आमने सामने आ गए हों, कांग्रेस में शक्ति प्रदर्शन को पंसद नहीं किया जाता है. कई नेताओं को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है. भजनलाल ने सीएम बनने के लिए शक्ति प्रदर्शन किया लेकिन बने भूपेन्द्र सिंह हुड्डा. आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएसआर की मृत्यु के बाद जगन मोहन रेड्डी ने बगावती तेवर अपनाए तो पार्टी से बाहर होना पड़ा था.

कांग्रेस में आलाकमान की अहमियत हमेशा रही है. सोनिया गांधी के वक्त में विधायक दल द्वारा पार्टी के मुखिया को सर्वाधिकार सौंप दिए जाते रहे हैं. सोनिया गांधी फैसले करती रहीं हैं. सिवाय अमरिंदर सिंह और वीरभद्र सिंह के केस में जिन्होंने पार्टी आलाकमान को सीएम बनाने के लिए मजबूर कर दिया, हालांकि पार्टी के भीतर प्रदेश में उनके कद का नेता नहीं था जो चुनौती दे सकता था.

पावर शिफ्ट

कांग्रेस में पावर शिफ्ट की भी अपनी भूमिका है. कांग्रेस के मैनेजर्स ये जानते हैं कि ये सही मौका है जब राहुल गांधी को पार्टी के भीतर स्थापित कर दिया जाए. इसलिए ये एहसास दिलाया गया कि राहुल गांधी कितने ताकतवर हैं. वो सीएम बना सकते हैं. कांग्रेस के युवा नेताओं का गुमान भी कम हुआ है. महज राहुल गांधी से रिश्ते अच्छे होने पर पद नहीं मिल सकता है. बल्कि जिस तरह राजनीतिक नफा नुकसान की अहमियत होती है, उसके हिसाब से निर्णय लिया जाता है.

राहुल गांधी ने जो फैसला किया है, वो कांग्रेस के मुखिया होने की वजह से किया है. राजनीति में निजी रिश्तों की अहमियत है, लेकिन राजनीति में ऐसा हमेशा नहीं होता है. तीन दिन फोकस यही रहा कि 12 तुगलक लेन से क्या संदेश मिलता है. जहां चुनाव था वहां के नेता और पूरे देश के कार्यकर्ताओं की निगाह राहुल गांधी के फैसले पर टिकी थीं. कांग्रेस में तय हो गया कि फैसला दस जनपथ में नहीं राहुल गाधी के 12 तुगलक लेन में हो रहा है. 7 लोककल्याण मार्ग के बाद दूसरा महत्वपूर्ण पता बन गया है.

ओल्ड गार्ड बनाम युवा नेता

कांग्रेस के मुखिया ने सीनियर नेताओं पर भरोसा किया है. पहली वजह वफादारी है. जो परिवार के प्रति है. दूसरी वजह दो राज्य में अल्पमत सरकार भी है. पुराने नेता सबको साथ लेकर चलने में माहिर हैं. नए लोगों को अभी इस विधा को सीखने की जरूरत है. पार्टी के भीतर और बाहर समन्वय बनाना आवश्यक है. नए नेताओं ने टिकट में जिस तरह मनमानी की है, वो भी इनके खिलाफ गई है. खासकर जो बागी जीतकर आए वो पुराने नेताओं के साथ हो गए. जिससे बैलेंस उनकी तरफ चला गया है. हालांकि पहले से ये पता था कि मुख्यमंत्री कौन बन रहा है.

युवा नेताओं को इसका आभास पहले से था, इसलिए खींचतान ज्यादा थी. टिकट बंटवारे में अपने समर्थकों को ज्यादा टिकट दिलाने का यही मकसद था. मध्यप्रदेश में दिग्विदय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच बहस होना, छत्तीसगढ़ में प्रभारी पीएल पुनिया और भूपेश बघेल के बीच खटपट की बात थी.राजस्थान में सचिन पायलट और रामेश्नर डूडी के बीच मतभेद की खबर इसका सबूत है.

लोकसभा चुनाव पर निगाह

हालांकि कांग्रेस आलाकमान यानी राहुल गांधी ने आम चुनाव के समीकरण पर ज्यादा ध्यान दिया है. मंझे हुए राजनीतिक खिलाड़ियों को तरजीह दी है. इसके कई कारण हैं, लोकसभा चुनाव सिर पर है. पुराने नेता राज्य पर फौरन अपनी पकड़ मजबूत कर सकते हैं. वहीं नए लोगों को प्रशासनिक व्यवस्था को समझने में वक्त लग सकता है.

ऐसे में लोकसभा की तैयारी कैसे हो सकती है, इस लिहाज से चयन किया गया है. ये लोग अपने राज्य में बिना केन्द्रीय नेताओं की मदद से अच्छा परफॉर्म कर सकते हैं. वहीं राहुल गांधी और बाकी नेता दूसरे राज्यों पर फोकस कर सकते हैं.जो पार्टी के लिए मुफीद साबित हो सकता है.

गठबंधन की राजनीतिक मजबूरी

2019 का चुनाव नरेन्द्र मोदी बनाम गठबंधन होने वाला है. एक बड़ा और माकूल गठबंधन ही जीत की गारंटी है वरना मोदी को मात देना आसान नहीं है. इस गठबंधन को हकीकत में लाने के लिए सीनियर नेताओं की टीम ही कर सकती है. इसकी वजह है छोटे दलों के नेताओं पर इनका असर है.

2008 में जब मनमोहन सिंह की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया था. तब कई पूर्व और तत्कालीन मुख्यमंत्रियों ने अहम भूमिका अदा की थी. अब नया समीकरण बनाने के लिए भी ये लोग मददगार साबित हो सकते है. खासकर बीएसपी-एसपी जैसे दल इन नेताओं के वायदों पर भरोसा कर सकते हैं.

फंड की कमी

कांग्रेस के पास फंड की कमी है. मौजूदा साल में भी कांग्रेस को नाम मात्र ही चंदा मिला है. नए राज्यों के जीतने से कॉरपोरेट जगत का नजरिया कांग्रेस के लिए बदल सकता है. पुराने नेता नए कॉरपोरेट को पार्टी की तरफ लाने में मददगार साबित हो सकते हैं. इसलिए कांग्रेस में पहले से ये पता था कि पार्टी की जीत की स्थिति में कुर्सी किसे मिलने वाली है. लेकिन ये पूरी गहमा-गहमी राहुल गांधी पर फोकस शिफ्ट करने के लिए की गई है. क्योंकि चयनित लोगों पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ है.

ताकत दिखाने वालों को नहीं मिली सत्ता

सोनिया गांधी के वक्त में भी ताकत दिखाने वालों को पद नहीं दिया गया था. हरियाणा में भजनलाल ने ताकत दिखाने की कोशिश की थी. 2004 में तत्कालीन प्रदेश के मुखिया भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को कुर्सी मिल गई. जिनको अहमद पटेल की हिमायत हासिल थी. जगन मोहन रेड्डी ने अपने पिता की मौत के बाद हंगामा किया लेकिन सत्ता नहीं मिल पाई थी. 2008 में अशोक गहलोत ने रेस में पीछे होते हुए अपनी राह आसान कर ली है. कांग्रेस में ये बानगी है लेकिन ये साफ है कि आलाकमान ही ताकतवर है, जिसको चाहे बिठाए जिसको चाहे हटाए.

बीजेपी अपवाद नहीं

हालांकि ये अपवाद नहीं है बीजेपी मे हाई कमान कल्चर है. हरियाणा महाराष्ट्र इसका उदाहरण है. वहीं एक केस के चलते उमा भारती को हटाकर शिवराज सिंह चौहान को सीएम बनाया गया था. झारखंड में बाबू लाल मरांडी के दावे को दरकिनार करके अर्जुन मुंडा को सीएम बनाया गया था.

उपेंद्र कुशवाहा अकेले पड़े

राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी (RLSP) को शनिवार को तब एक बड़ा झटका लगा जब बिहार विधानसभा और विधान परिषद के उसके सभी सदस्यों ने घोषणा की कि वे अभी भी NDA में हैं. साथ ही RLSP सदस्यों ने पार्टी अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा पर आरोप भी लगाया कि उन्होंने गठबंधन से अलग होने की घोषणा में निजी हितों को तवज्जो दी.

आरएलएसपी के दोनों विधायकों सुधांशु शेखर और ललन पासवान और पार्टी के एकमात्र विधानपरिषद सदस्य संजीव सिंह श्याम ने एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में बयान जारी किया. तीनों ने शेखर को मंत्रिपद दिए जाने पर जोर दिया जो कि पहली बार विधायक बने हैं और तीनों में सबसे कम आयु के हैं.

श्याम ने कहा कि हम चुनाव आयोग से भी संपर्क करेंगे और दावा करेंगे कि हम असली आरएलएसपी का प्रतिनिधित्व करते हैं. हमें पार्टी के अधिकतर कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों का समर्थन हासिल हैं. उन्होंने ऐसा करके स्पष्ट किया कि आरएलएसपी एक बिखराव की ओर बढ़ रही है.

आरएलएसपी ने दो चुनाव एनडीए के साथ लड़ा था

आरएलएसपी ने 2014 लोकसभा चुनाव और 2015 बिहार विधानसभा चुनाव एनडीए के साथ लड़ा था. आरएलएसपी के कुल मिलाकर तीन सांसद हैं जिसमें कुशवाहा भी शामिल हैं. इसके साथ ही पार्टी के बिहार में दो विधायक और विधानपरिषद का एक सदस्य है.

तीनों विधायकों ने कुशवाहा से अलग होने की घोषणा की है. वहीं दो अन्य सांसदों जहानाबाद से अरुण कुमार और सीतामढ़ी से राम कुमार शर्मा है. अरुण कुमार पिछले दो वर्षों से अलग रास्ता अपनाए हुए हैं.

शर्मा ने शुरू में एनडीए और नीतीश कुमार के समर्थन में बयान दिया था लेकिन बाद में अपना रुख बदल लिया और उन्हें तब कुशवाहा के साथ दिल्ली में देखा गया था जब उन्होंने कैबिनेट से अपने इस्तीफे के साथ ही एनडीए से अलग होने के निर्णय की घोषणा की थी.

उपेंद्र कुशवाहा

श्याम ने कहा कि हम यह लंबे समय से कह रहे हैं कि हम आरएलएसपी के एनडीए के साथ रहने के पक्ष में हैं लेकिन कुशवाहा जिन्हें अपने निजी लाभ की चिंता थी उन्होंने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया.

कुशवाहा को सिर्फ अपने से मतलब

रालोसपा के विधानपरिषद सदस्य ने आरोप लगाया कि गत वर्ष मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एनडीए में वापस लौटने के बाद रालोसपा के लिए मंत्रिपद पर विचार नहीं करने के बारे में बात करने में कुशवाहा ने देरी की. श्याम ने दावा किया वास्तव में उन्होंने इसको लेकर कभी प्रयास नहीं किया. जब सहयोगी दलों के बीच मंत्रिपदों का आवंटन किया जा रहा था वह पटना में घूम रहे थे.

उन्होंने कहा कि कुशवाहा केंद्र में अपने मंत्रिपद को लेकर खुश थे. उसके बाद उनका पूरा ध्यान ऐसे समझौते पर केंद्रित था जो उनके हितों की पूर्ति करे. उन्हें इसकी कोई परवाह नहीं थी कि उनकी पार्टी से भी किसी को राज्य में मंत्रिपद मिलना चाहिए. एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि न तो उन्हें और न ही पासवान को मंत्रिपद चाहिए.

श्याम ने कहा कि हम चाहते हैं कि सुधांशु शेखर को राज्य मंत्रिपरिषद में शामिल किया जाए और यदि इसके लिए उनके नाम पर विचार नहीं किया जाता है तो हम बहुत निराश होंगे.

असली आरएलएसपी हमारी

उन्होंने कहा कि हम दलबदलू नहीं बल्कि असली आरएलएसपी की प्रतिनिधित्व करते हैं. हमारा रुख अधिकतर कार्यकर्ताओं और पार्टी के पदाधिकारियों की भावनाओं के अनुरूप है. हम अपने दावे को लेकर जल्द ही चुनाव आयोग से संपर्क करेंगे. इस घटना पर टिप्पणी के लिए बिहार में एनडीए के नेता उपलब्ध नहीं थे.

पार्टी में उठापटक पिछले महीने तब सामने आ गया था जब शेखर और पासवान उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के आवास पर आयोजित बीजेपी विधायक दल की बैठक में शामिल होने पहुंचे थे.

Police File

DATED

15.12.2018

 

One arrested for consuming liquor at public place

One case U/S 68-1(B) Punjab Police Act 2007 & 510 IPC have been registered in PS-I.T Park, Chandigarh against one person who was arrested while consuming liquor at public place. Later he bailed out.

This drive will be continuing in future, the general public is requested for not breaking the law.

 

One arrested under NDPS Act

Crime Branch of Chandigarh Police arrested Mehraj R/o Room No.19, C/o Togga, Gurudwara Wali Gali, Village- Khudda Lahora, Chandigarh from Dhanas Road to PGI Light Point and recovered 15 injections of Buprenorphine and 15 injections of Pheniramine Meleate drugs from his possession on 14-12-2018. A case FIR No. 353, U/S 22 NDPS Act has been registered in PS-11, Chandigarh. Investigation of the case is in progress.

MV Theft

          Sh. Gagandeep R/o Village-Badalgarh, Distt.-Fatehabad, Haryana reported that unknown person stolen away complainant’s Zen Car No. HR-01R-0045 while parked near village-Kaimbwala Turn, Chandigarh on 09.12.2018. A case FIR No. 245, U/S 379 IPC has been registered in PS-03, Chandigarh. Investigation of the case is in progress.

        Sh. Mani Ram R/o # 350, BDC, Sector-26, Chandigarh reported that unknown person stolen away complainant’s auto No. CH-01TA-2921 while parked near # 2154, Sector-19, Chandigarh on 13.12.2018. A case FIR No. 335, U/S 379 IPC has been registered in PS-19, Chandigarh. Investigation of the case is in progress.

Accident

A case FIR No. 375, U/S 279, 337 IPC Act has been registered in PS-26, Chandigarh on the complaint of Ashish Thakur R/o # 1647, Sector-23/B, Chandigarh who alleged that driver of vehicle No. CH—1779 who hit to Activa scooter No.HR-04G-5519 at P.S.-East Chowk on 13.12.2018. Driver of activa namely Gyan Chand Walia R/o # 3546, Sector-35/D, Chandigarh got injured and admitted in PGI, Chandigarh. Investigation of the case is in progress.

A case FIR No. 463, U/S 279, 427 IPC has been registered in PS-MM, Chandigarh on the complaint of a lady resident of Sector-37, Chandigarh who alleged that driver of car No. HP-22C-5620 sped away after hitting to complainant’s car No. CH-01AN-3952 at Kala Gram Light Point, Chandigarh on 13.12.2018. Investigation of the case is in progress.

Theft

Sh. Varinder Pal Singh Bal R/o # 135, Sector-36/A, Chandigarh reported that unknown person stolen away battery from complainant’s Scorpio car while parked outside # 135, Sector-36/A, Chandigarh on night intervening 13/14-12-2018. A case FIR No. 432, U/S 379 IPC has been registered in PS-36, Chandigarh. Investigation of the case is in progress.

Action against violation of orders of DM, UT, Chandigarh

A case FIR No. 244, U/S 188 IPC has been registered in PS-03, Chandigarh against Karan Bajaj R/o # A4-303, Nirmal Chhaya Tower, VIP Road, Zirakpur, Punjab who late night open his SCF No.17, First Floor, Sector-9/D, Chandigarh without any information to local Police and violated the orders U/S 144 Cr.P.C of DM, UT, Chandigarh. Later he bailed out.