# 121 करोड़ रूपये के बिजली निगम के डिफाल्टर हैं मनमोहन गोयल , जबकि 100 रूपये का डिफाल्टर भी नहीं लड़ सकता निकाय चुनाव
# हाई कोर्ट से वसूली पर स्टे का बहाना बना कर बीजेपी गोयल को प्रत्याशी बनाने पर अड़ी, लेकिन विरोधी गोयल का नामांकन रद्द कराने पर देंगे जोर
रोहतक :
मेयर पद के बीजेपी के प्रत्याशी मनमोहन गोयल के नामांकन की वैधता को ले कर संशय के बादल मंडराने लगे हैं । मनमोहन गोयल ने बिजली निगम से जो अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) लेकर निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय में जमा कराया है , उसमें साफ लिखा है कि मनमोहन गोयल और उनकी कंपनी ‘फेयरो अलोयज लिमिटेड’ पर बिजली निगम का 121 करोड़ रूपये का बिजली बिल बकाया है । स्थानीय निकायों की निर्वाचन संबंधी नियमावली के मुताबिक बिजली निगम के बिल का भुगतान करने में नाकाम या डिफाल्टर रहने वाला कोई भी व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता । इसके लिए बिजली निगम से एनओसी लेना एक आवश्यक व अनिवार्य औपचारिकता है ।
मनमोहन गोयल के नामांकन पत्र की वैधता को चुनाव आयोग में कड़ी चुनौती मिलने के आसार हैं । गोयल ने निर्वाचन अधिकारी के समक्ष जो एनओसी पेश की है , उसमें साफ लिखा है कि वे 121 करोड़ रूपये के डिफाल्टर हैं । साथ ही यह भी लिखा है कि 121 करोड़ रूपये की वसूली का मामला हाई कोर्ट में पैंडिग है और वसूली पर कोर्ट का स्टे है ।
बेशक वसूली पर कोर्ट का स्टे है और वसूली की रकम की मात्रा को लेकर निगम व मनमोहन गोयल के बीच विवाद है , लेकिनयह भी स्पष्ट है कि मनमोहन गोयल और उनकी कंपनी पूरी रकम को नाजायज नहीं मानती यानि जितनी रकम वे जायज मानते हैं , कम से कम उतनी रकम के तो वे डिफाल्टर हैं ही । यह भी एक सच्चाई है कि मनमोहन गोयल न केवल बिजली निगम के डिफाल्टर हैं बल्कि हाई कोर्ट ने उन्हें डिफाल्टर होने के चार्ज से मुक्त भी नहीं किया है । ऐसी स्थिति में यदि निर्वाचन आयोग उन्हें डिफाल्टर मानने से इंकार करता है और उनके नामांकन पत्र को सही करार देता है तो साफ है कि निर्वाचन आयोग के अधिकारी सरकार के दबाव में हैं ।
मालूम हुआ है कि बिजली निगम ने राज्य के एक मंत्री के दबाव पर मनमोहन गोयल को गोलमोल एनओसी दी है और हाईकोर्ट में केस के पैंडिंग होने का बहाना बनाया गया है । लेकिन कानून के जानकार इस बहाने को सिरे से खारिज कर रहे हैं ।
पता चला है कि मेयर पद के कुछ प्रत्याशी कल नामांकन पत्रों की जांच के समय इस मुद्दे को जोरशोर से निर्वाचन आयोग के अधिकारियों के समक्ष उठा सकते हैं और हाई कोर्ट से दिशा निर्देश या स्पष्टीकरण लिये जाने की मांग कर सकते हैं ।
यह भी पता चला है कि कुछ लोग मनमोहन गोयल के नामांकन की वैधता को हाईकोर्ट में चुनौती देने की तैयारी भी कर रहे हैं । इन लोगों का तर्क यह है कि जब मामूली रकम के डिफाल्टर व्यक्ति को भी चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं है तो मनमोहन गोयल के मामले में ढ़ील क्यों ?
कानून विशेषज्ञों का कहना है कि यदि मनमोहन गोयल चुनाव जीत जाते हैं और निकट भविष्य में हाई कोर्ट फैसला दे देता है कि बिजली निगम की वसूली जायज है और मनमोहन गोयल को यह रकम निगम को अदा करनी ही होगी , तब मेयर का चुनाव स्वत: ही रद्द हो जाएगा , क्योंकि नामांकन के समय गोयल डिफाल्टर माने जाएंगे ।
अब देखना यह है कि निर्वाचन अधिकारी इस मामले में क्या फैसला लेते हैं ? सत्तारूढ़ बीजेपी के नेता मनमोहन गोयल को अपना प्रत्याशी बनाए रखने पर पूरी तरह आमादा हैं , जबकि अन्य प्रत्याशी उनके नामांकन को रद्द कराने पर अड़ते हुए लग रहे हैं ।