Sunday, December 22
दिनेश पाठक अधिवक्ता, राजस्थान उच्च न्यायालय, जयपुर। विधि प्रमुख विश्व हिन्दु परिषद

कल सुप्रीम कोर्ट ने देश के सामने साबित कर दिया कि न्यायलयो मे लम्बित केसों के लिये देश मुख्य न्यायधीश चाहे वो कोई भी हो सिर्फ भाषण देता है या ज्ञान बांटता है या वकीलो को जिम्मेदार ठहराता या सरकार को जबकि असली जिम्मेदार स्वयं न्यायपालिका है क्योकि 150 साल पुराना केस जो सुप्रीम कोर्ट मे ही विगत आठ बर्षों से लम्बित है ,वो अर्जेंट नही लगा !

कल पूर्व निर्धारित तारीख राममन्दिर विवाद से सम्बन्धित थी जो स्वयं न्यायालय ने तय कर रखी थी कि इस मामले की सुनवाई नियमित रूप से 29 अक्टूबर से होगी जिसका विरोध कांग्रेस नेता और मुस्लिम पक्ष के वकील कपिल सिब्बल ने यह कहते हुआ किया कि राममन्दिर की सुनवाई 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले नही होनी चाहिये चूंकि कपिल सिब्बल ये जानता है कि इसका निर्णय किस पक्ष मे आने वाला है, क्योकि सारे सबूत राममन्दिर के पक्ष मे है और यदि निर्णय लोकसभा चुनाव से पहले आया तो पूरा फायदा बीजेपी को मिलेगा ! चुंकि तत्कालीन बेंच ने सिब्बल की मांग ठुकरा दी और 29 अक्टूबर से नियमित सुनवाई तय की !

जैसे ही 29 अक्टूबर को 150 साल पुराना केस न्यायालय के सामने सूचिबद्ध हुआ पहले तो तत्कालीन बेंच के सदस्यो को जो कि पूर्व मे सुनवाई कर रहे थे सुनवाई से अलग किया नयी बेंच का गठन किया और पल भर मे ही सिब्बल की मांग की ओर कदम बढाते हुये राममन्दिर केस को यह कहते हुये जनवरी तक सुनवाई टाल दी कि यह मामला अर्जेंट नही है ! जबकि राम लला के वकील वै्धनाथ और उत्तर प्रदेश सरकार के वकील और सोलिसीटर जनरल तुषार मेहता शीघ्र सुनवाई की गुहार लगाते रहे पर न्यायलय ने पूर्व मे सिब्बल द्वारा उठाई मांग की तरफ ध्यान दिया और जनवरी तक सुनवाई टाल दी ! अब पहले जनवरी मे यह तय होगा कि कौनसी बेंच इस केस की सुनवाई करे और कब करे तब तक लोकसभा चुनाव आ चुके होंगे और कपिल सिब्बल का एजेंडा पूरा हो चुका !

बिडम्बना यह है कि देशका हर मुख्यन्यायधीश शपथ लेते ही लम्बित मुकदमो के निपटारे के लिये प्रवचन देता है तो कभी सरकार को दोषी ठहराता है तो कभी वकील को कभी पिडित को लेकिन आज वकील भी तैयार थे मुवक्किल भी और सरकार भी लेकिन न्यायलय तैयार नही था आखिर क्यों ?

राममन्दिर का विषय देश के 100 करोड हिन्दुओं की आस्था का सवाल है देश के लोगो को उम्मीद थी कि न्यायलय हिन्दुओ की आस्था के प्रतीक राममन्दिर विवाद जो 150 साल से कोर्ट कचहरी मे अटका है अब तय हो जायेगा लेकिन न्यायलय ने पलक झपकते ही उनकी उम्मीदो को यह कहकर ‌चकनाचूरकर दिया कि यह मामला अर्जेंट नही है! क्या देश के 100 करोड लोगो की आस्था अर्जेंट नही है ? क्या 150 साल पुराना केस अर्जेंट नही है जो स्वयं सुप्रीम कोर्ट मे पिछले आठ बर्ष से लम्बित है अर्जेंट नही है? तो न्यायलय की नजर मे अर्जेंट सबरीमाला मन्दिर का केस था जिसमे याचिकाकर्ता भी वो थे जिनका भगवान अयप्पा मे कोई आस्था नही थी सिर्फ एक साजिश थी विधर्मी थे जिनका हिन्दू धर्म से कोई लेना देना नही था लेकिन सुप्रीम कोर्ट को मामला अर्जेंट लगा वही भगवान अयप्पा के वासतविक भक्त जब रिव्यू लगाने पहंचे तो उसी न्यायलय को अर्जेंट नही लगी और सुनवाई टाल दी!

दूसरी तरफ उसी राममन्दिर से सम्बन्धित विवाद मे बम विस्फोट के आरोप मे फांसी की सजा को रोकने के लिये न्यायलय को रात दो बजे खोलना अर्जेंट लगा वो भी एक आतंकवादी के लिये ? कुछ दिन अर्बन नक्सली के हाऊस अरेस्ट मे न्यायलय को इतना अरजेंट मामला लगा कि देश की आखे खुलने से पहले कोर्ट खुल गया !

पर देश के 100 करोड लोगो की आस्था से जुडा मामला अर्जेंट नही 150 साल पुराने केस की सुनवाई अर्जेंट नही
आज देश का हिन्दू समाज अपने को ठगा सा महसूस कर रहा है ! अब गेंद केन्द्र सरकार के पाले मे है अब सरकार को संसद मे कानून बनाकर देश के 100 करोड लोगो की आस्था कितनी अरजेंट है ये साबित करना है और संसद मे विधेयक लाकर सारे राजनितिक दलो का चेहरा बेनकाब करे कि कौनसा दल क्या राजनीति राममन्दिर के मुद्दे पर कर रहा है !