पीएम पद की उम्मीदवारी को लेकर यूपीए के भीतर ही राहुल के नेतृत्व को लेकर हिचकिचाहट दिखाई दे रही थी
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में छह महीनों का ही वक्त बाकी रह गया है. लेकिन अबतक कांग्रेस एक पहेली को सुलझा नहीं सकी है. ये पहेली पीएम पद की उम्मीदवारी को लेकर है. कांग्रेस का असमंजस अलग-अलग मौकों पर दिखाई देता है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की पीएम पद की उम्मीदवारी को लेकर कांग्रेस की कभी हां, कभी ना जारी है. एक बार फिर कांग्रेस के बयान से सवाल उठ गया है कि पीएम मोदी के खिलाफ ताल ठोकने वाले, एकता का दावा करने वाले और समान विचारधारा वाले संभावित महागठबंधन का चेहरा कौन होगा? अगर राहुल नहीं तो फिर कौन?
दरअसल, कांग्रेस ने पीएम पद की उम्मीदवारी से हाथ खींच लिए हैं.पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा है कि कांग्रेस साल 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को पीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश नहीं करेगी.
पी. चिदंबरम कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं. राहुल की गठित नई कांग्रेस वर्किंग कमेटी की टीम में भी वो मौजूद हैं. उनका ये खुलासा कांग्रेस के भीतर की आम सहमति है. इस पर शक नहीं किया जा सकता है और न ही इसे चिदंबरम का निजी बयान मानकर खारिज किया जा सकता है. जैसा कि कांग्रेस नेता शशि थरूर के बयानों के बाद अक्सर होता है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कांग्रेस की रणनीति में आए इस यू-टर्न के पीछे टर्निंग प्वाइंट क्या है?
पहले तो एक तरफ नवगठित सीडब्लूसी की बैठक में ये फैसला लिया जाता है कि राहुल ही पार्टी की तरफ से पीएम पद के उम्मीदवार होंगे तो अब कांग्रेस ही पीएम पद की उम्मीदवारी पर पैंतरा बदल लेती है.
क्या इसकी वजह वही है जो कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद बता रहे हैं? सलमान खुर्शीद कह रहे हैं कि कांग्रेस के लिए अकेले चुनाव जीत पाना मुश्किल है. इसी वजह से कांग्रेस महागठबंधन बनाने के लिए कोई भी रोड़ा सामने नहीं आने देना चाहती है.
दरअसल, पीएम पद की उम्मीदवारी को लेकर यूपीए के भीतर ही राहुल के नेतृत्व को लेकर हिचकिचाहट दिखाई दे रही थी. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने राहुल की दावेदारी पर सवाल उठाते हुए कहा था कि विपक्ष में ममता बनर्जी, शरद पवार, मायावती जैसे नेता भी हैं जो पीएम मैटेरियल हैं.
राहुल की पीएम पद की दावेदारी पर टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने भी कुछ प्रतिक्रिया नहीं दी थी. वहीं बीएसपी के तमाम नेता अपनी अध्यक्ष बहनजी मायावती को गठबंधन का पीएम चेहरा बताते हैं. जबकि समाजवादी पार्टी सवाल उठा चुकी है कि गठबंधन बनने से पहले कांग्रेस कैसे पीएम उम्मीदवार की दावेदारी कर सकती है?
दरअसल, कांग्रेस का जनाधार क्षेत्रीय पार्टियों ने इस हद तक कम कर दिया है कि कई राज्यों में कांग्रेस दो से चार नंबर पर खिसक चुकी है. उन राज्यों में कांग्रेस देश की सबसे बड़ी पार्टी और राष्ट्रीय पार्टी होने का दंभ नहीं भर सकती है. यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में क्षत्रपों की वजह से कांग्रेस सरेंडर की मुद्रा में है. यहां क्षत्रपों का सीधा मुकाबला बीजेपी से है जबकि कांग्रेस रेस में भी नहीं है.
चिदंबरम खुद ये मानते हैं कि पिछले दो दशकों में क्षेत्रीय पार्टियों ने राष्ट्रीय पार्टियों के वोट बैंक में सेंधमारी खुद की स्थिति मजबूत की है. हालात ये हैं कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों का संयुक्त वोट शेयर भी 50 फीसदी से कम है. ऐसे में क्षेत्रीय पार्टियों के साथ कांग्रेस का गठबंधन चुनाव में चमत्कार कर सकता है और इसी आस में कांग्रेस पीएम पद का त्याग दिखा रही है.
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सत्ता से हटाने का कांग्रेस का एक सूत्रीय एजेंडा है. कांग्रेस किसी भी कीमत पर और किसी भी कुर्सी की कुर्बानी के जरिए बीजेपी को सत्ता से बेदखल करना चाहती है. अकेले चुनाव जीतना कांग्रेस के लिए ‘मिशन इंपॉसिबल’ है. कांग्रेस के पास क्षेत्रीय पार्टियों की बैसाखियों का ही सहारा है. कांग्रेस ये नहीं चाहती है कि पीएम पद की उम्मीदवारी को लेकर महागठबंधन में टूट हो.तभी चिदंबरम ने राहुल की दावेदारी पर कांग्रेस का रुख साफ कर इस अध्याय को विराम देने की कोशिश की है.
हालांकि, इससे सीधे तौर पर बीजेपी को ही कांग्रेस पर हमला करने का मौका मिलेगा. बीजेपी चिदंबरम के बयान को भुनाते हुए प्रचार कर सकती है कि यूपीए के बाद अब खुद कांग्रेस को भी पीएम मोदी के सामने राहुल की दावेदारी की योग्यता को लेकर संशय है.
दरअसल, बीजेपी की विपक्ष के संभावित महागठबंधन पर बारीक नजर है. बीजेपी संभावित महागठबंधन के मायने जानती है. खासतौर से यूपी और बिहार जैसे राज्यों में विपक्षी गठबंधन अगर कामयाब हुआ तो बीजेपी को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है. यूपी की 80 और बिहार की 40 सीटें बीजेपी के लिए साल 2019 में बेहद जरूरी हैं.ऐसे में बीजेपी कोई मौका नहीं छोड़ती जिससे महागठबंधन को घेरा न जाए.
यूपी में उपचुनावों के दौरान एसपी-बीएसपी का गठबंधन और बिहार में विधानसभा चुनाव के वक्त आरजेडी-जेडीयू गठबंंधन ने बीजेपी की नींद उड़ाने का काम किया था. बीजेपी ये कतई नहीं चाहेगी कि उसके खिलाफ किसी भी तरह का कोई गठबंधन तैयार हो जो कि सोशल इंजीनियरिंग और जाति समीकरणों के जरिए बीजेपी के वोटबैंक में सेंध लगा सके. यही वजह है कि बीजेपी बार बार कांग्रेस की कोशिशों को कमजोर करने के लिए हमले करते रहती है.
कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान जब राहुल ने कहा कि वो पीएम बनने के लिए तैयार हैं तो बीजेपी ने संभावित महागठबंधन को आड़े हाथों लेते हुए कहा था कि कांग्रेस के युवराज पीएम बनने के लिए इस कदर आतुर हैं कि वो महागठबंधन की सहयोगी पार्टियों के वरिष्ठ नेताओं की भी कुर्सी के लिए अनदेखी कर रहे है. बीजेपी ने इस बयान से उन सहयोगियों को साधने की कोशिश की जो कांग्रेस के साथ जाने का मन बना रहे थे. बाद में यूपीए के सहयोगी एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने कहा था कि चुनाव बाद ही तय होगा कि गठबंधन की तरफ से पीएम पद का उम्मीदवार कौन होगा.
दरअसल, पीएम पद की उम्मीदवारी एक ऐसा मसला है जिसे लेकर कांग्रेस के सामने एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई है. बीजेपी के आक्रमक रवैये और यूपीए के सहयोगियों और क्षेत्रीय पार्टियों के दबाव के चलते ही कांग्रेस अपने सुर बदलने को मजबूर हुई है. तभी पहले राहुल गांधी किसी गैर कांग्रेसी को पीएम बनाने के लिए सहमत दिखे तो अब पीएम पद के पेंच को ही पचड़ा बनने से रोकने के लिए राहुल की दावेदारी को खारिज कर दिया.
अब देखना ये है कि कांग्रेस के इस कदम के बाद निर्जीव पड़े संभावित महागठबंधन में कितनी जान आती है. क्योंकि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में गठबंधन को लेकर बीएसपी और कांग्रेस में तलवारें खिंच चुकी हैं. ऐसे में अगर एक क्षेत्रीय दल महागठबंधन से छिटकता है तो दूसरे दलों को भी दोबारा सोचने का बहाना मिलेगा.
लेकिन चिदंबरम के इस बयान से बीजेपी के हौसले जरूर बुलंद हो सकते हैं क्योंकि कहीं न कहीं ये इशारा भी है कि मुकाबले से पहले ही कांग्रेस हथियार डालने की मुद्रा में दिखाई दे रही है. दरअसल, जिन मुद्दों को लेकर अबतक मोदी सरकार के खिलाफ कांग्रेस ने हमले किए उनको लेकर आम जनता या फिर सहयोगी दलों की तरफ से ऐसी कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई जिससे कांग्रेस बीजेपी पर दबाव बना पाने में सफल हो सकी.