अपने लिए सुरक्षित सीट तलाश रही हैं CM वसुंधरा!


वसुंधरा राजे का दूसरी सीट की तलाश करना राजस्थान में बीजेपी के हालात को दिखाता है. हर चुनाव में सरकार को उखाड़ फेंकने का वोटर का फैसला और एंटीइनकंबेंसी की वजह से पार्टी के तमाम नेता इस बार नई सीटें तलाश रहे हैं


जब भी शंका हो, दूसरी सीट देखो. राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे शायद भारतीय राजनीति की इसी, बहुत पुरानी नीति पर काम कर रही हैं. कहा जा रहा है कि वो कोई ऐसी सीट ढूंढ रही हैं, जहां आसानी से चुनाव जीता जा सके. इसकी वजह यह है कि उनके पुराने गढ़ पर कांग्रेस की तरफ से लगातार हमला हो रहा है.

बताया जा रहा है कि वसुंधरा के रडार पर जो 2 सीटें हैं, वो राजाखेड़ा और श्रीगंगानगर हैं. राजाखेड़ा राजस्थान-उत्तर प्रदेश सीमा पर स्थित है. जबकि श्रीगंगानगर पंजाब सीमा से सटा हुआ है. अगर बीजेपी हाईकमान उनके इस फैसले से सहमत होता है, तो राजे 7 दिसंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव में 2 सीटों से भी लड़ सकती हैं.

राजे की परंपरागत सीट झालरापाटन मध्य प्रदेश सीमा पर है. यहां लगातार कांग्रेस की तरफ से जोरदार तरीके से हाई प्रोफाइल कैंपेन हो रहा है. कुछ दिन पहले जब राजे अजमेर में अपनी ताकत दिखा रही थीं, तब कांग्रेस ने राहुल गांधी को रोड शो के लिए मुख्यमंत्री के क्षेत्र में आमंत्रित किया था. बुधवार को एक बार फिर राहुल गांधी झालरापाटन में इलेक्शन रैली और रोड शो के लिए मौजूद होंगे. इस रोड शो में मुख्यमंत्री की सीट का बड़ा क्षेत्र कवर किया जाएगा.

कांग्रेस एक सामान्य रणनीति पर काम कर रही है. वो चुनाव के समय राजे को उनकी अपनी सीट पर समेट देना चाहती है. पार्टी राज्य में बीजेपी के कैंपेन से उन्हें दूर रखना चाहती है. राज्य में वो अकेली ऐसी नेता हैं, जो भीड़ जुटा सकती हैं. ऐसे में कांग्रेस के गेम प्लान का अहम हिस्सा यही है कि सीएम को उनके ही विधानसभा क्षेत्र में बांधकर रख दिया जाए.

वसुंधरा राजे पर इस बार के चुनाव में बीजेपी को जिताकर लगातार दूसरी बार सरकार बनवाने की चुनौती है

वसुंधरा राजे तीन दशक से चुनाव नहीं हारी हैं. उन्होंने 9 चुनाव जीते हैं

राजस्थान की राजनीति में राजे ऐसे चंद नेताओं में हैं, जिन्होंने तीन दशक से चुनाव नहीं हारा है. इस दौरान उनके पूर्ववर्ती और समकालीन नेता जैसे भैरों सिंह शेखावत और अशोक गहलोत भी हार चुके हैं. लेकिन राजे का रिकॉर्ड बिल्कुल बेदाग है. उन्होंने अब तक 9 चुनाव जीते हैं, 5 लोकसभा और 4 विधानसभा के. मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने अपनी झालावाड़ लोकसभा सीट बेटे दुष्यंत सिंह के लिए छोड़ दी थी. वहां उनकी जबरदस्त पकड़ बरकरार है और कोई चुनौती देने वाला नहीं है. लेकिन 2018 के चुनाव अलग हो सकते हैं, क्योंकि राज्य में एंटीइनकंबेंसी बढ़ती जा रही है और राजे सरकार की लोकप्रियता गिरती जा रही है. तमाम ओपिनियन पोल इशारा कर रहे हैं कि सचिन पायलट और अशोक गहलोत की लोकप्रियता राजे से लगभग दोगुनी है. इसके अलावा, झालरापाटना में राजे की जीत में जातीय समीकरण से मदद मिलती थी. लेकिन अब राजपूतों में गुस्सा है. सवर्ण उनसे नाखुश हैं. यह दोनों ही बीजेपी के पारंपरिक वोटर हैं.

कई मायने में राजे के खिलाफ गुस्सा लगभग वैसा ही है, जैसा हिमाचल प्रदेश में प्रेम कुमार धूमल ने झेला है. नाराजगी काफी कुछ उनकी छवि और प्रदर्शन को लेकर है, न कि पार्टी को लेकर. कैंपेन के दौरान स्लोगन में नजर आ रहा है कि राजे को राजनीति में सबक सिखाने की बात है. भले ही वोटर नरेंद्र मोदी को पसंद कर रहा है.

राजे का दूसरी सीट की तलाश करना राज्य में बीजेपी के हालात को दिखाता है. हर चुनाव में सरकार को उखाड़ फेंकने का वोटर का फैसला और एंटीइनकंबेंसी की वजह से तमाम बीजेपी नेता इस बार नई सीटें तलाश रहे हैं. लेकिन, संभव है कि बीजेपी इस तरह का फैसला करे, जिसमें सीटें बदलने की इजाजत न हो. इसकी वजह यही होगी कि जिस सीट पर जिसने जैसा काम किया है, वही अपने भविष्य की जिम्मेदारी ले.

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