भारत की पाक सेना को दो टूक, अपने सरजमीं से आतंकियों को संभाले वरना…

भारत की पाक सेना को दो टूक, अपने सरजमीं से आतंकियों को संभाले वरना...


पाकिस्तान सेना की वर्दी पहने दो आतंकवादी मुठभेड़ में मारे गए. इसके बाद भारतीय सेना ने पाक सेना को चेता दिया है


हथियारों से लैस दो पाकिस्तानी घुसपैठियों की मुठभेड़ में मौत के भारतीय सेना ने पाकिस्तान को सख्त शब्दों में चेतावनी दी है कि अपनी सरजमीं से चलने वाले आतंकवादियों को वह काबू में रखे. एक दिन पहले ही भारतीय सेना कुलगाम में दो आतंकियों को मार गिराया था.

भारतीय सेना के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि पाकिस्तान से दोनों पाकिस्तानी घुसपैठियों के शव भी ले जाने के लिए कहा गया है. उन्होंने कहा, ‘पाकिस्तानी सेना को स्थापित संचार माध्यमों से सूचित किया गया है कि वह शत्रु पाकिस्तानी नागरिकों के शव ले जाए. पाकिस्तानी सेना को अपनी सरजमीं से चल रहे आतंकवादियों को काबू में रखने के लिए एक सख्त चेतावनी भेजी गई है.’

पांच से छह पाकिस्तानी सशस्त्र घुसपैठियों ने राजौरी जिले के सुंदरबनी सेक्टर में नियंत्रण रेखा पार कर सेना के गश्ती दल पर गोलीबारी की. इस गोलाबारी में जम्मू-कश्मीर लाइट इन्फैंटरी नौशेरा (राजौरी) के तीन सैनिक- हवलदार कौशल कुमार, डोडा के लांस नाइक रणजीत सिंह और पल्लांवाला (जम्मू) के रजत कुमार बासन- शहीद हो गए और सांबा के राइफलमैन राकेश कुमार घायल हो गए.

दोनों तरफ से गोलीबारी के दौरान सेना की वर्दी पहने दो घुसपैठिए मारे गए. माना जाता है कि वे पाकिस्तानी ‘बॉर्डर ऐक्शन टीम’ के सदस्य थे. लेकिन उनकी शिनाख्त सुनिश्चित नहीं की जा सकी.

पाक के आग्रह पर डीजीएमओ स्तर की मीटिंग हुई थी:

अधिकारी ने बताया कि पाकिस्तान के आग्रह पर 29 मई को सैन्य संचालन महानिदेशक (डीजीएमओ) स्तर की वार्ता हुई थी और तब से सरहद पार से उकसावे की हरकतों के बावजूद संघर्षविराम का पालन करने के लिए भारतीय सेना पूरा संयम बरत रही थी. उन्होंने बताया कि 30 मई से ले कर अब तक भारतीय सेना ने घुसपैठ की सात कोशिशें नाकाम कीं, जिनमें 23 आतंकवादी मारे गए.

‘इमोश्नल ब्लैक मेलर” – “प्रियंका वाड्रा लापता”, रायबरेली में बंटे पोस्टर

रायबरेली में 'प्रियंका वाड्रा लापता' के लगे पोस्टर, बताया 'इमोशनल ब्लैकमेलर'


इन पोस्टरों में प्रियंका से यह सवाल भी पूछा गया कि, आप रायबरेली कब आएंगी? क्योंकि इस दौरान यहां कई बड़े हादसे हुए जिसमें प्रियंका वाड्रा नजर नहीं आईं


अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में अभी भले कुछ महीने शेष हैं, लेकिन यूपी के रायबरेली में ‘पोस्टर पॉलिटिक्स’ की शुरुआत हो गई है. कांग्रेस के गढ़ रायबरेली में प्रियंका गांधी वाड्रा के लापता होने के पोस्टर लगाए गए हैं. इसमें कांग्रेस की स्टार प्रचारक प्रियंका को ‘इमोशनल ब्लैकमेलर’ बताया गया है. यही नहीं पोस्टर में प्रियंका से सवाल भी पूछा गया है कि आप रायबरेली कब आएंगी? क्योंकि इस बीच रायबरेली में कई बड़े हादसे हुए जिसमें प्रियंका नजर नहीं आई.

ANI UP

@ANINewsUP

‘Priyanka Vadra missing’ posters put up by unidentified people in Raebareli

कांग्रेस ने यहां जगह-जगह प्रियंका वाड्रा के लापता होने के पोस्टर लगाए हैं. साथ ही लोगों को पैम्पलेट्स भी बांटे गए हैं. यह पोस्टर रायबरेली में त्रिपुला चौराहे से लेकर हरदासपुर तक और शहर में कई जगह लगाए गए हैं. इन पोस्टरों में मैडम प्रियंका गांधी लापता लिखा है. पोस्टर में हरचंपुर रेल हादसा, ऊंचाहार दुर्घटना और रालपुर हादसे में प्रियंका के न आने पर तंज कसा गया है. यह भी लिखा गया है कि नवरात्र, दुर्गापूजा और दशहरा में तो नहीं दिखाई दी. अब क्या ईद में दिखेंगी मैडम वाड्रा?

प्रियंका गांधी को विषय बनाकर लगाए गए पोस्टरों से रायबरेली में राजनीतिक चर्चाओं का बाजार गर्म है. हालांकि कांग्रेस का इस पर अभी तक कोई बयान नहीं आया है. कांग्रेस जिलाध्यक्ष वी.के शुक्ला ने कहा है कि ऐसी गंदी हरकत करने वालों को मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा

EC की टीम ने तेलंगाना में चुनावी तैयारियों का लिया जायजा


मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत के नेतृत्व में आयोग के 10 अधिकारी चुनावी तैयारियों का जायजा लेने के लिए सोमवार को हैदराबाद पहुंचे


आगामी तेलंगाना विधानसभा चुनाव के मद्देनजर तैयारियों का जायजा लेने के लिए चुनाव आयोग की टीम ने सोमवार को हैदराबाद का दौरा किया. मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) के नेतृत्व में चुनाव आयोग के 10 अधिकारी यहां आए थे.

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Hyderabad: Chief Election Commissioner OP Rawat with a team of 10 Election Commission of India officials arrived in Telangana today to review poll preparedness in the state.
बीते शनिवार को बीजेपी ने यहां उम्मीदवारों की अपनी पहली लिस्ट जारी की थी. पहली सूची में 38 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की गई थी. यहां बीजेपी और सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के बीच कड़ी टक्कर है. राज्य में कांग्रेस, टीजेएस, टीडीपी और सीपीआई ने महागठबंधन की घोषणा की है.

तेलंगाना की 119 सीटों पर 7 दिसंबर को मतदान है. इसी दिन राजस्थान में भी विधानसभा के चुनाव होने हैं. तेलंगाना समेत पांच राज्यों में चुनाव के नतीजे 11 दिसंबर को आएंगे.

6 अक्टूबर को विधानसभा चुनावों की घोषणा होने के बाद इन पांचों राज्यों में आदर्श आचार संहिता लागू है.

अपने लिए सुरक्षित सीट तलाश रही हैं CM वसुंधरा!


वसुंधरा राजे का दूसरी सीट की तलाश करना राजस्थान में बीजेपी के हालात को दिखाता है. हर चुनाव में सरकार को उखाड़ फेंकने का वोटर का फैसला और एंटीइनकंबेंसी की वजह से पार्टी के तमाम नेता इस बार नई सीटें तलाश रहे हैं


जब भी शंका हो, दूसरी सीट देखो. राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे शायद भारतीय राजनीति की इसी, बहुत पुरानी नीति पर काम कर रही हैं. कहा जा रहा है कि वो कोई ऐसी सीट ढूंढ रही हैं, जहां आसानी से चुनाव जीता जा सके. इसकी वजह यह है कि उनके पुराने गढ़ पर कांग्रेस की तरफ से लगातार हमला हो रहा है.

बताया जा रहा है कि वसुंधरा के रडार पर जो 2 सीटें हैं, वो राजाखेड़ा और श्रीगंगानगर हैं. राजाखेड़ा राजस्थान-उत्तर प्रदेश सीमा पर स्थित है. जबकि श्रीगंगानगर पंजाब सीमा से सटा हुआ है. अगर बीजेपी हाईकमान उनके इस फैसले से सहमत होता है, तो राजे 7 दिसंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव में 2 सीटों से भी लड़ सकती हैं.

राजे की परंपरागत सीट झालरापाटन मध्य प्रदेश सीमा पर है. यहां लगातार कांग्रेस की तरफ से जोरदार तरीके से हाई प्रोफाइल कैंपेन हो रहा है. कुछ दिन पहले जब राजे अजमेर में अपनी ताकत दिखा रही थीं, तब कांग्रेस ने राहुल गांधी को रोड शो के लिए मुख्यमंत्री के क्षेत्र में आमंत्रित किया था. बुधवार को एक बार फिर राहुल गांधी झालरापाटन में इलेक्शन रैली और रोड शो के लिए मौजूद होंगे. इस रोड शो में मुख्यमंत्री की सीट का बड़ा क्षेत्र कवर किया जाएगा.

कांग्रेस एक सामान्य रणनीति पर काम कर रही है. वो चुनाव के समय राजे को उनकी अपनी सीट पर समेट देना चाहती है. पार्टी राज्य में बीजेपी के कैंपेन से उन्हें दूर रखना चाहती है. राज्य में वो अकेली ऐसी नेता हैं, जो भीड़ जुटा सकती हैं. ऐसे में कांग्रेस के गेम प्लान का अहम हिस्सा यही है कि सीएम को उनके ही विधानसभा क्षेत्र में बांधकर रख दिया जाए.

वसुंधरा राजे पर इस बार के चुनाव में बीजेपी को जिताकर लगातार दूसरी बार सरकार बनवाने की चुनौती है

वसुंधरा राजे तीन दशक से चुनाव नहीं हारी हैं. उन्होंने 9 चुनाव जीते हैं

राजस्थान की राजनीति में राजे ऐसे चंद नेताओं में हैं, जिन्होंने तीन दशक से चुनाव नहीं हारा है. इस दौरान उनके पूर्ववर्ती और समकालीन नेता जैसे भैरों सिंह शेखावत और अशोक गहलोत भी हार चुके हैं. लेकिन राजे का रिकॉर्ड बिल्कुल बेदाग है. उन्होंने अब तक 9 चुनाव जीते हैं, 5 लोकसभा और 4 विधानसभा के. मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने अपनी झालावाड़ लोकसभा सीट बेटे दुष्यंत सिंह के लिए छोड़ दी थी. वहां उनकी जबरदस्त पकड़ बरकरार है और कोई चुनौती देने वाला नहीं है. लेकिन 2018 के चुनाव अलग हो सकते हैं, क्योंकि राज्य में एंटीइनकंबेंसी बढ़ती जा रही है और राजे सरकार की लोकप्रियता गिरती जा रही है. तमाम ओपिनियन पोल इशारा कर रहे हैं कि सचिन पायलट और अशोक गहलोत की लोकप्रियता राजे से लगभग दोगुनी है. इसके अलावा, झालरापाटना में राजे की जीत में जातीय समीकरण से मदद मिलती थी. लेकिन अब राजपूतों में गुस्सा है. सवर्ण उनसे नाखुश हैं. यह दोनों ही बीजेपी के पारंपरिक वोटर हैं.

कई मायने में राजे के खिलाफ गुस्सा लगभग वैसा ही है, जैसा हिमाचल प्रदेश में प्रेम कुमार धूमल ने झेला है. नाराजगी काफी कुछ उनकी छवि और प्रदर्शन को लेकर है, न कि पार्टी को लेकर. कैंपेन के दौरान स्लोगन में नजर आ रहा है कि राजे को राजनीति में सबक सिखाने की बात है. भले ही वोटर नरेंद्र मोदी को पसंद कर रहा है.

राजे का दूसरी सीट की तलाश करना राज्य में बीजेपी के हालात को दिखाता है. हर चुनाव में सरकार को उखाड़ फेंकने का वोटर का फैसला और एंटीइनकंबेंसी की वजह से तमाम बीजेपी नेता इस बार नई सीटें तलाश रहे हैं. लेकिन, संभव है कि बीजेपी इस तरह का फैसला करे, जिसमें सीटें बदलने की इजाजत न हो. इसकी वजह यही होगी कि जिस सीट पर जिसने जैसा काम किया है, वही अपने भविष्य की जिम्मेदारी ले.

क्या वसुंधरा के पर कतरकर पार्टी डैमेज कंट्रोल कर पाएगी?


पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे ज्यादा परेशानी राजस्थान में ही हो रही है.


पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे ज्यादा परेशानी राजस्थान में ही हो रही है. राज्य में बीजेपी की सीधी लड़ाई कांग्रेस से है लिहाजा किसी तीसरे मोर्चे की ताकत नजर नहीं आ रही है. भले ही घनश्याम तिवाड़ी जैसे बीजेपी के पुराने दिग्गज अलग से मैदान में ताल ठोक रहे हों या फिर दलित वोटों की जुगत में लगी बीएसपी भी मैदान में क्यों न उतर आई हो, लेकिन, मुकाबले के केंद्र में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ही हैं.

बीजेपी की कोशिश, लड़ाई के केंद्र में हों मोदी

2018 के इस मुकाबले में मजबूत दावेदार बनकर उभरी कांग्रेस ने पांच साल की वसुंधरा सरकार के काम को आधार बनाकर हमला बोलना शुरू किया है. पलटवार बीजेपी की तरफ से भी हो रहा है, लेकिन, बीजेपी की कोशिश 2018 की इस लड़ाई के केंद्र से वसुंधरा को हटाकर मोदी को लाने की है. बीजेपी चाहती है कि पांच साल की लड़ाई महज वसुंधरा राजे बनाम सचिन पायलट न बनकर मोदी बनाम राहुल की लड़ाई के तौर पर सामने आए.

टीम अमित शाह की रणनीति के केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं जिनके साढ़े चार साल के काम-काज को आधार बनाकर बीजेपी 2019 की बड़ी लड़ाई के पहले 2018 में भी राजस्थान के रेगिस्तान में अपनी कंटीली राह को कुछ हद तक आसान बनाना चाहती है.

बीजेपी के रणनीतिकारों को लगता है कि अगर लड़ाई मोदी बनाम राहुल की हो तो फिर बीजेपी को काफी हद तक राहत मिल सकती है, वरना राजस्थान में इस बार पार्टी के लिए अपना किला बचाना मुश्किल लग रहा है.

अमित शाह की सियासी बिसात

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने राजस्थान को लेकर विशेष ‘गेम प्लान’ भी तैयार किया है. इसके लिए उन्होंने खुद सबसे ज्यादा फोकस राजस्थान पर किया है. शाह के लगातार हो रहे राजस्थान दौरे और वहां हर संभाग में जाकर पार्टी संगठन को चुस्त करने की कवायद इस बात का प्रतीक है. वसुंधरा राजे से नाराज पार्टी नेताओं को साथ लाने की कोशिश भी हो रही है. संघ और संगठन में समन्वय के साथ-साथ बूथ स्तर पर पार्टी को मजबूत करने पर जोर दिया जा रहा है.

माइक्रो मैनेजमेंट के माहिर खिलाड़ी अमित शाह खुद पूरे मामले पर नजर रख रहे हैं. बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने फ़र्स्टपोस्ट के साथ बातचीत में कहा, ‘भले ही राज्य में बीजेपी ने कई नेताओं और प्रभारियों को जिम्मेदारी दी है, लेकिन, खुद अमित शाह की हर पहलू पर नजर है.’

इसके अलावा राज्य में चुनाव प्रभारी केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर को बनाया गया है, जबकि अविनाश राय खन्ना पहले से ही प्रभारी की भूमिका में काम कर रहे हैं. ये दोनों नेता राज्य में पार्टी की चुनावी रणनीति को लेकर लगातार बैठक भी कर रहे हैं और उम्मीदवारों के चुनाव में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.

राज्यसभा सांसद मदनलाल सैनी अभी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं, हालांकि पार्टी आलाकमान केंद्रीय मंत्री और जोधपुर से सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाह रहा था, लेकिन, मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के विरोध के चलते मदन लाल सैनी को प्रदेश की कमान सौंपकर बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की गई. पार्टी आलाकमान ने चुनावी साल में विवाद खत्म करने के लिए ऐसा कर दिया. लेकिन, बाद में गजेंद्र सिंह शेखावत को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाकर संकेत साफ दे दिया गया कि पार्टी आलाकमान की पसंद गजेंद्र सिंह शेखावत ही हैं.

भरोसेमंद नेताओं के भरोसे आलाकमान !

हालांकि इन लोगों के अलावा भी बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने संगठन के दूसरे नेताओं को मैदान में उतार दिया है. बीजेपी के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री वी सतीश, केंद्रीय मंत्री और बीकानेर से सांसद अर्जुन राम मेघवाल, पार्टी महासचिव भूपेंद्र यादव और राजस्थान में संगठन मंत्री चंद्रशेखर भी लगातार चुनावी तैयारी में लगे हुए हैं जिनसे मिले फीडबैक के आधार पर पार्टी आगे की रणनीति बना रही है.

राजस्थान में संगठन मंत्री चंद्रशेखर कुछ महीने पहले ही राजस्थान में संगठन को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी दी गई है. इसके पहले वे पश्चिमी यूपी के संगठन का काम देख रहे थे. चंद्रशेखर को राजस्थान भेजने के पीछे भी बीजेपी आलाकमान का मकसद वसुंधरा की नकेल कसना था.

इसके अलावा वसुंधरा राजे की काट के लिए प्रदेश के दो राजपूत नेताओं केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को भी मैदान में उतारा है. इस तरह बीजेपी आलाकमान ने अपने तरीके से राजस्थान में पार्टी संगठन और चुनावी रणनीति में वसुंधरा की मनमानी को रोकने की पूरी तैयारी कर ली है.

नहीं चलेगी महारानी की मनमानी !

राजस्थान में पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के 200 में से 162 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि कांग्रेस महज 21 सीटों पर ही सिमट कर रह गई थी. उस वक्त मोदी लहर का असर राजस्थान में भी दिखा था. लेकिन, इस बार इस तरह की कोई लहर नहीं दिख रही है. बल्कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ माहौल जरूर दिख रहा है.बीजेपी की कोशिश है डैमेज कंट्रोल करने की. पार्टी को इस बात का अंदाजा है, क्योंकि इस साल हुए अजमेर और अलवर लोकसभा के उपचुनाव और मांडलगढ़ के विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था. इसे मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ गुस्से के तौर पर देखा गया था.

अब पार्टी आलाकमान ने डैमेज कंट्रोल करने के लिए ही पहले वसुंधरा के हाथों में चुनाव की पूरी कमान सौंपने के बजाए कई नेताओं को अपने तरीके से चुनाव अभियान की कमान सौंपी है. दूसरी तरफ अब तैयारी हो रही है कई मौजूदा विधायकों के टिकट काटने की.

बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, इस बार 162 विधायकों में से एक तिहाई से ज्यादा विधायकों के टिकट भी कट जाएं तो बहुत आश्चर्य नहीं होना चाहिए. पार्टी एंटीइंबेंसी फैक्टर को कम करने के लिए इस तरह की तैयारी कर रही है. इसके लिए पार्टी आलाकमान ने हर विधायक की रिपोर्ट मंगाई है, जिसके आधार पर ही टिकट का फैसला होगा.

बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, हर मौजूदा विधायक को टिकट उनके परफॉरमेंस और रिपोर्ट कार्ड के आधार पर ही तय होगा, भले ही वो विधायक कितने भी दिनों से अपने क्षेत्र से विधायक क्यों न हो ? सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी इस बाबत अपनी मंशा से पार्टी नेताओं को अवगत करा दिया है.

हालांकि, इसके पहले विधानसभा चुनाव या फिर लोकसभा चुनाव में वसुंधरा राजे की ही मनमानी चलती रही है, क्योंकि वहां प्रदेश अध्यक्ष भी अबतक उन्हीं के गुट के रहे हैं. लेकिन, अब पहली बार वसुंधरा पार्टी के अंदर ही घिर गई हैं. महारानी की मनमानी इस बार अब नहीं चलने वाली है. पार्टी आलाकमान जीताऊ उम्मीदवार और उम्मीदवार के रिपोर्ट कार्ड के आधार पर ही फैसला करेगा.

पार्टी की नजर लोकसभा चुनाव पर

2014 के लोकसभा चुनाव में राजस्थान की सभी 25 सीटें बीजेपी की झोली में आई थीं. लोकसभा चुनाव से पहले हुए विधानसभा चुनाव का असर लोकसभा में भी देखने को मिला था. इस लिहाज से बीजेपी के लिए अब विधानसभा का चुनाव काफी अहम हो गया है. पार्टी आलाकमान को अंदाजा है कि अगर विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन ज्यादा खराब हुआ तो फिर उसका असर लोकसभा चुनाव में भी पड़ सकता है.

पार्टी की तरफ से इसी रणनीति के तह तैयारी हो रही है, जिसमें पहले तैयारी सरकार बनाने की होगी. लेकिन, बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, अगर सरकार नहीं बन पाई तो भी पार्टी मजबूत विपक्ष के तौर पर राज्य में अपने –आप को जिंदा रखे, वरना कांग्रेस की एकतरफा जीत और पार्टी की एकतरफा हार का असर सीधे लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा.

सूत्रों के मुताबिक, अगर राजस्थान में सरकार नहीं बन पाई तो बीजेपी वसुंधरा को किनारे करने की तैयारी करेगी. हो सकता है कि पार्टी उन्हें विधानसभा में नेताप्रतिपक्ष का पद न दे. लोकसभा चुनाव से पहले अगर ऐसा पार्टी नहीं भी कर पाई तो इतना तय है कि फिर वो अपने हिसाब से नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति कर लोकसभा चुनाव की तैयारी करेगी. उस वक्त कमजोर हो चुकी वसुंधरा राजे को नजरअंदाज कर गजेंद्र सिंह शेखावत जैसे युवा चेहरे को कमान सौंपी जा सकती है.

नेताजी, पटेल और आंबेडकर के सम्मान से कांग्रेस को क्यों ऐतराज है: शाहनवाज हुसैन


शाहनवाज हुसैन ने कहा, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल, बाबा साहब भीमराव आंबेडकर जैसे महापुरूषों का सम्मान किए जाने का तो कांग्रेस को स्वागत करना चाहिए


मोदी सरकार पर इतिहास को फिर से लिखने का प्रयास करने के कांग्रेस के आरोप पर पलटवार करते हुए बीजेपी ने सोमवार को कहा कि नेताजी, सरदार पटेल, बाबा साहब आंबेडकर जैसे महापुरूषों के सम्मान पर विपक्षी दल को ऐतराज क्यों हो रहा है?

बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सैयद शाहनवाज हुसैन ने कहा, ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल, बाबा साहब भीमराव आंबेडकर जैसे महापुरूषों का सम्मान किए जाने का तो कांग्रेस को स्वागत करना चाहिए. लेकिन उसे इस पर ऐतराज है, क्यों?’

उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार इतिहास को फिर से लिखने का प्रयास नहीं कर रही है, बल्कि इन महापुरूषों के साथ जो नाइंसाफी हुई, जिस प्रकार इन्हें कांग्रेस ने भुलाने का काम किया, उसे दूर करते हुए उन्हें सम्मान देने का प्रयास किया जा रहा है.

हुसैन ने कहा कि 75 साल में पहली बार, अखंड भारत की पहली सरकार को सम्मानपूर्वक, समारोह में याद किया गया. कांग्रेस पर निशाना साधते हुए बीजेपी प्रवक्ता ने कहा कि नेताजी की तरह ही सरदार पटेल और बाबा साहब आंबेडकर का योगदान भुलाने की कोशिश की गई. 31 अक्टूबर को सरदार पटेल की याद में ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ का अनावरण किया जा रहा है.

स्वतंत्रता संग्राम में आरएसएस के योगदान पर कांग्रेस द्वारा सवाल उठाने के विषय पर हुसैन ने कहा कि कांग्रेस के लिए एक ही परिवार का योगदान मायने रखता है जबकि आजादी की लड़ाई में नागरिक होने के नाते अनेकानेक लोगों ने योगदान दिया और देश से मोहब्बत रखने वाला संगठन होने के नाते संघ ने भी योगदान दिया.

उल्लेखनीय है कि कांग्रेस ने बीजेपी नीत केंद्र सरकार पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की धरोहर हथियाने के लिए ‘षडयंत्रपूर्ण प्रयास’ करने का आरोप लगाते हुए रविवार को कहा था कि बीजेपी इतिहास फिर से लिखने के लिए व्याकुल है.

कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि ‘व्याकुल बीजेपी इतिहास फिर से लिखने की कोशिश कर रही है और सरदार पटेल एवं जवाहरलाल नेहरू के बीच तथा नेताजी सुभाष चंद्र बोस एवं नेहरू के बीच एक काल्पनिक प्रतिद्वंद्विता पैदा कर रही है. इसने शुभ अवसरों का इस्तेमाल ओछे राजनीतिक हथकंडों के लिए किया है.’

इससे पहले आजाद हिंद सरकार की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर रविवार को आयोजित समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि यह दुखद है कि एक परिवार को बड़ा बताने के लिए, देश के अनेक सपूतों के योगदान को भी भुलाने का प्रयास किया गया.

अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वी राज चौहान का महासम्मेलन 24 अक्तूबर को

पंचकूला, 22 अक्तूबर:

अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वी राज चौहान का महासम्मेलन 24 अक्तूबर को बरवाला अनाज मंडी के पास राजपूत यूथ ब्रिगेड के द्वारा आयोजित किया जाएगा। इस सम्मेलन में पंजाब विधानसभा स्पीकर राणा के.पी. सिंह तथा स्पीकर हरियाणा विधानसभा कंवरपाल गुज्जर मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत करेंगे जबकि समाज के आदर्श भाई शेर सिंह राणा व स्व. पृथ्वीराज चौहान की 36वीं पीढ़ी से श्रीमती सुनीता सिंह विशिष्ट अतिथि होंगे। इसके साथ-साथ काफी संख्या में समाज व सरकार के अन्य प्रतिनिधि भी भाग लेंगे।

पंचकूला, कालका व नारायणगढ़  विधानसभा क्षेत्र के विधायक तथा समाज से हरियाणा के एकमात्र विधायक श्याम सिंह राणा भी उपस्थित रहेंगे। यह जानकारी राजपूत यूथ ब्रिगेड एसोसिएशन (रजि0) के गणतव्य संयोजक जतिंदर सिंह राणा ने पंचकूला के सैक्टर एक स्थित रेड बिशप में आयोजित प्रेस वार्ता के दौरान दी। उन्होंने बताया कि इससे पूर्व भी संस्था द्वारा 2016 में अम्बाला में महाराणा प्रताप की जयंती का आयोजन किया था, जिसमे हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल सहित कई महानुभावों ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया था। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम को आयोजित करने का उद्देश्य युवा पीढ़ी को सही रास्ते पर लाना तथा उन्हें  पृथ्वीराज चौहान के मार्ग का अनुसरण करते हुए बुलंदियों तक पहुंचाना है। इसके अलावा कार्यक्रम का उद्देश्य 36 बिरादरियों में एकता व सामाजिक समरसता को बढ़ावा देना है। उन्होंने बताया कि समाज द्वारा समाज कल्याण के लिए भी कई कार्य किये जाते हैं तथा कई सामाजिक गतिविधियों का आयोजन किया जाता है, जिसमे खेल प्रतियोगिताएं, रक्तदान शिविर, गरीब व्यक्तियों की सहायता इत्यादि में भी समाज द्वारा बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया जाता है।

कांग्रेस राहुल के प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी से भागी क्यूँ?


पीएम पद की उम्मीदवारी को लेकर यूपीए के भीतर ही राहुल के नेतृत्व को लेकर हिचकिचाहट दिखाई दे रही थी


साल 2019 के लोकसभा चुनाव में छह महीनों का ही वक्त बाकी रह गया है. लेकिन अबतक कांग्रेस एक पहेली को सुलझा नहीं सकी है. ये पहेली पीएम पद की उम्मीदवारी को लेकर है. कांग्रेस का असमंजस अलग-अलग मौकों पर दिखाई देता है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की पीएम पद की उम्मीदवारी को लेकर कांग्रेस की कभी हां, कभी ना जारी है. एक बार फिर कांग्रेस के बयान से सवाल उठ गया है कि पीएम मोदी के खिलाफ ताल ठोकने वाले, एकता का दावा करने वाले और समान विचारधारा वाले संभावित महागठबंधन का चेहरा कौन होगा? अगर राहुल नहीं तो फिर कौन?

दरअसल, कांग्रेस ने पीएम पद की उम्मीदवारी से हाथ खींच लिए हैं.पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा है कि कांग्रेस साल 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को पीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश नहीं करेगी.

पी. चिदंबरम कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं. राहुल की गठित नई कांग्रेस वर्किंग कमेटी की टीम में भी वो मौजूद हैं. उनका ये खुलासा कांग्रेस के भीतर की आम सहमति है. इस पर शक नहीं किया जा सकता है और न ही इसे चिदंबरम का निजी बयान मानकर खारिज किया जा सकता है. जैसा कि कांग्रेस नेता शशि थरूर के बयानों के बाद अक्सर होता है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कांग्रेस की रणनीति में आए इस यू-टर्न के पीछे टर्निंग प्वाइंट क्या है?

पहले तो एक तरफ नवगठित सीडब्लूसी की बैठक में ये फैसला लिया जाता है कि राहुल ही पार्टी की तरफ से पीएम पद के उम्मीदवार होंगे तो अब कांग्रेस ही पीएम पद की उम्मीदवारी पर पैंतरा बदल लेती है.

क्या इसकी वजह वही है जो कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद बता रहे हैं? सलमान खुर्शीद कह रहे हैं कि कांग्रेस के लिए अकेले चुनाव जीत पाना मुश्किल है. इसी वजह से कांग्रेस महागठबंधन बनाने के लिए कोई भी रोड़ा सामने नहीं आने देना चाहती है.

दरअसल, पीएम पद की उम्मीदवारी को लेकर यूपीए के भीतर ही राहुल के नेतृत्व को लेकर हिचकिचाहट दिखाई दे रही थी. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने राहुल की दावेदारी पर सवाल उठाते हुए कहा था कि विपक्ष में ममता बनर्जी, शरद पवार, मायावती जैसे नेता भी हैं जो पीएम मैटेरियल हैं.

राहुल की पीएम पद की दावेदारी पर टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने भी कुछ  प्रतिक्रिया नहीं दी थी. वहीं बीएसपी के तमाम नेता अपनी अध्यक्ष बहनजी मायावती को गठबंधन का पीएम चेहरा बताते हैं. जबकि समाजवादी पार्टी सवाल उठा चुकी है कि गठबंधन बनने से पहले कांग्रेस कैसे पीएम उम्मीदवार की दावेदारी कर सकती है?

दरअसल, कांग्रेस का जनाधार क्षेत्रीय पार्टियों ने इस हद तक कम कर दिया है कि कई राज्यों में कांग्रेस दो से चार नंबर पर खिसक चुकी है. उन राज्यों में कांग्रेस देश की सबसे बड़ी पार्टी और राष्ट्रीय पार्टी होने का दंभ नहीं भर सकती है. यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में क्षत्रपों की वजह से कांग्रेस सरेंडर की मुद्रा में है. यहां क्षत्रपों का सीधा मुकाबला बीजेपी से है जबकि कांग्रेस रेस में भी नहीं है.

चिदंबरम खुद ये मानते हैं कि पिछले दो दशकों में क्षेत्रीय पार्टियों ने राष्‍ट्रीय पार्टियों के वोट बैंक में सेंधमारी खुद की स्थिति मजबूत की है. हालात ये हैं कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों का संयुक्‍त वोट शेयर भी 50 फीसदी से कम है. ऐसे में क्षेत्रीय पार्टियों के साथ कांग्रेस का गठबंधन चुनाव में चमत्कार कर सकता है और इसी आस में कांग्रेस पीएम पद का त्याग दिखा रही है.

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सत्ता से हटाने का कांग्रेस का एक सूत्रीय एजेंडा है. कांग्रेस किसी भी कीमत पर और किसी भी कुर्सी की कुर्बानी के जरिए बीजेपी को सत्ता से बेदखल करना चाहती है. अकेले चुनाव जीतना कांग्रेस के लिए ‘मिशन इंपॉसिबल’ है. कांग्रेस के पास क्षेत्रीय पार्टियों की बैसाखियों का ही सहारा है. कांग्रेस ये नहीं चाहती है कि पीएम पद की उम्मीदवारी को लेकर महागठबंधन में टूट हो.तभी चिदंबरम ने राहुल की दावेदारी पर कांग्रेस का रुख साफ कर इस अध्याय को विराम देने की कोशिश की है.

हालांकि, इससे सीधे तौर पर बीजेपी को ही कांग्रेस पर हमला करने का मौका मिलेगा. बीजेपी चिदंबरम के बयान को भुनाते हुए प्रचार कर सकती है कि यूपीए के बाद अब खुद कांग्रेस को भी पीएम मोदी के सामने राहुल की दावेदारी की योग्यता को लेकर संशय है.

दरअसल, बीजेपी की विपक्ष के संभावित महागठबंधन पर बारीक नजर है. बीजेपी संभावित महागठबंधन के मायने जानती है. खासतौर से यूपी और बिहार जैसे राज्यों में विपक्षी गठबंधन अगर कामयाब हुआ तो बीजेपी को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है. यूपी की 80 और बिहार की 40 सीटें बीजेपी के लिए साल 2019 में बेहद जरूरी हैं.ऐसे में बीजेपी कोई मौका नहीं छोड़ती जिससे महागठबंधन को घेरा न जाए.

यूपी में उपचुनावों के दौरान एसपी-बीएसपी का गठबंधन और बिहार में विधानसभा चुनाव के वक्त आरजेडी-जेडीयू गठबंंधन ने बीजेपी की नींद उड़ाने का काम किया था. बीजेपी ये कतई नहीं चाहेगी कि उसके खिलाफ किसी भी तरह का कोई गठबंधन तैयार हो जो कि सोशल इंजीनियरिंग और जाति समीकरणों के जरिए बीजेपी के वोटबैंक में सेंध लगा सके. यही वजह है कि  बीजेपी बार बार कांग्रेस की कोशिशों को कमजोर करने के लिए हमले करते रहती है.

कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान जब राहुल ने कहा कि वो पीएम बनने के लिए तैयार हैं तो बीजेपी ने संभावित महागठबंधन को आड़े हाथों लेते हुए कहा था कि कांग्रेस के युवराज पीएम बनने के लिए इस कदर आतुर हैं कि वो महागठबंधन की सहयोगी पार्टियों के वरिष्ठ नेताओं की भी कुर्सी के लिए अनदेखी कर रहे है. बीजेपी ने इस बयान से उन सहयोगियों को साधने की कोशिश की जो कांग्रेस के साथ जाने का मन बना रहे थे. बाद में यूपीए के सहयोगी एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने कहा था कि चुनाव बाद ही तय होगा कि गठबंधन की तरफ से पीएम पद का उम्मीदवार कौन होगा.

दरअसल, पीएम पद की उम्मीदवारी एक ऐसा मसला है जिसे लेकर कांग्रेस के सामने एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई है. बीजेपी के आक्रमक रवैये और यूपीए के सहयोगियों और क्षेत्रीय पार्टियों के दबाव के चलते ही कांग्रेस अपने सुर बदलने को मजबूर हुई है. तभी पहले राहुल गांधी किसी गैर कांग्रेसी को पीएम बनाने के लिए सहमत दिखे तो अब पीएम पद के पेंच को ही पचड़ा बनने से रोकने के लिए राहुल की दावेदारी को खारिज कर दिया.

अब देखना ये है कि कांग्रेस के इस कदम के बाद निर्जीव पड़े संभावित महागठबंधन में कितनी जान आती है. क्योंकि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में गठबंधन को लेकर बीएसपी और कांग्रेस में तलवारें खिंच चुकी हैं. ऐसे में अगर एक क्षेत्रीय दल महागठबंधन से छिटकता है तो दूसरे दलों को भी दोबारा सोचने का बहाना मिलेगा.

लेकिन चिदंबरम के इस बयान से बीजेपी के हौसले जरूर बुलंद हो सकते हैं क्योंकि कहीं न कहीं ये इशारा भी है कि मुकाबले से पहले ही कांग्रेस हथियार डालने की मुद्रा में दिखाई दे रही है. दरअसल, जिन मुद्दों को लेकर अबतक मोदी सरकार के खिलाफ कांग्रेस ने हमले किए उनको लेकर आम जनता या फिर सहयोगी दलों की तरफ से ऐसी कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई जिससे कांग्रेस बीजेपी पर दबाव बना पाने में सफल हो सकी.

राहुल गांधी महागठबंधन के पीएम उम्मीदवार नहीं


पूर्व केंद्रीय वित्‍त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि पिछले दो दशकों में राष्‍ट्रीय पार्टियों के वोट बैंक में सेंधमारी कर क्षेत्रीय पार्टियों की स्थिति मजबूत हुई है


2019 लोकसभा चुनाव को लेकर पूर्व केंद्रीय वित्‍त मंत्री पी चिदंबरम ने एक बड़ा खुलासा किया है. आम चुनावों को लेकर बयान देते हुए पी चिदंबरम ने कहा कि 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार के तौर पर घोषित नहीं करेगी. पूर्व केंद्रीय वित्‍त मंत्री पी चिदंबरम ने यह बात मिडियाकर्मियों से कही. उन्‍होंने कहा कि राहुल ही नहीं कांग्रेस अन्‍य किसी भी व्‍यक्ति की दावेदारी की घोषणा नहीं करेगी.

पूर्व केंद्रीय वित्‍त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि पिछले दो दशकों में राष्‍ट्रीय पार्टियों के वोट बैंक में सेंधमारी कर क्षेत्रीय पार्टियों की स्थिति मजबूत हुई है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों का संयुक्‍त वोट शेयर भी 50 फीसदी से कम है. उन्होंने कहा कि केंद्र में बीजेपी सरकार यह देखने के लिए पुरजोर कोशिशें कर रही है कि क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस से हाथ न मिला लें. स्थिति बदल जाएगी और कांग्रेस राज्‍य स्‍तर पर जबरदस्त गठबंधन बनाएगी.

पी चिदंबरम ने कहा- हम बीजेपी को बाहर देखना चाहते हैं और उसकी जगह पर एक ऐसी सरकार बनाना चाहते हैं जो कि प्रगतिशील हो, लोगों की स्वतंत्रता का सम्मान करती हो, भारी टैक्स से लोगों में तनाव न पैदा करती हो, महिलाओं और बच्चों को सुरक्षा दे सके और किसानों की स्थिति में सुधार कर सके. उन्होंने कहा हम गठबंधन चाहते हैं और उसके बाद ही मिलजुल कर पीएम उम्मीदवार का नाम तय किया जाएगी. आपको बता दें कि इसी बीच पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी एक दिवसीय दौरे पर आज रायपुर पहुंचेंगे. वह साइंस कॉलेज में एक सभा को संबोधित करेंगे. इसके बाद शाम को सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों से चर्चा भी करेंगे.

मुख्यमंत्री मनोहर लाल करेंगे 85करोड़ 10 लाख से अधिक की परियोजनाओं का शिलान्यास ओर उदघाटन

पंचकूला, 22 अक्तूबर:
हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल 23 अक्तूबर को प्रात 11 बजे सेक्टर 3 स्थित ताउ देवी लाल स्टेडियम में लगभग 85 करोड़ 10 लाख रुपये की राशि से अधिक की परियोजनाओं की आधारशिला व उद्घाटन कर जिलावासियों को बड़ी सौगात देंगे।
       यह जानकारी पंचकूला के उपायुक्त श्री मुकुल कुमार ने आज जिला सचिवालय के सभागार में आयोजित प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए दी। उन्होंने बताया कि एम.सी. क्षेत्र में 14 गांवों को शामिल कर सीवरेज व्यवस्था का नीव पत्थर भी रखेंगे। इनमें 9 गांव रामगढ़, बिल्लाह, कोट, खंगेसरा, सुखदर्शनपुर, खटौली, नग्गल, सकेतड़ी, खंगोवाल में ट्रीटमेंट प्लांट लगेगें जबकि कोट, टिपरा, बिटना, जलौली में इंटरमिडिएट पंपिंग स्टेशन लगेंगे। इस सीवरेज व्यवस्था पर 48.11 करोड़ रुपये की राशि खर्च की जाएगी और 87 किलोमीटर लंबी सीवरेज पाईप डाली जाएगी। यह परियोजना दिसंबर 2019 तक पूरा होने का लक्ष्य रखा गया है। यह सीवरेज व्यवस्था अम्रुत के तहत डाली जा रही है।
     उपायुक्त ने बताया कि मुख्यमंत्री हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण द्वारा एमडीसी, सेक्टर 6 पंचकूला में लगभग 539.54 लाख रुपये की राशि से आधुनिक सुविधाओं से बने सामुदायिक केन्द्र का उद्घाटन भी करेंगे। इसके साथ-साथ मुख्यमंत्री हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण द्वारा सेक्टर 17 में लगभग 348.50 लाख रुपये की लागत से बनने वाले सामुदायिक केन्द्र की आधारशिला भी रखेंगे। इसके अलावा मुख्यमंत्री मोरनी के बड़ीशेर से भोजकोटी नदी पर 1003.94 लाख रुपये की राशि से बनने वाले पुल की आधारशिला भी रखेंगे। सेक्टर 3 में नवनिर्मित खेल विभाग के निदेशालय भवन का लोकार्पण भी करेंगे। इस भवन पर 12.90 करोड़ रुपये की राशि खर्च की गई है। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री सेक्टर 2 में 5.18 करोड़ रुपये की राशि से बनने वाले अनुसूचित जाति एवं पिछड़े वर्ग कल्याण भवन की आधारशिला भी रखेंगे।
     श्री मुकुल ने बताया कि जिला में रायपुररानी, बरवाला व पंचकूला अनाज मंडी में अब तक धान की 1 लाख 13 हजार 587 मीट्रिक टन आवक हुई है। इसमें से 1 लाख 227 मीट्रिक टन धान का उठान किया जा चुका है। उन्होंने बताया कि धान की आवक अभी भी मंडियों में आ रही है तथा 31 अक्तूबर तक खरीद की जाएगी। उन्होंने बताया कि हैफेड एजंसी द्वारा 66 हजार 200 मीट्रिक टन हरियाणा वेयरहाउसिंग कार्पोरेशन द्वारा 47 हजार 387 मीट्रिक टन धान की खरीद की गई। किसानों को अपनी धान बेचने की दिशा में किसी प्रकार की असुविधा न हो, इस दिशा में पुख्ता प्रबंध किए गए हैं। मंडियों में बिजली, पानी की व्यवस्था व बारदाने की सुविधा भी विशेष तौर पर सुनिश्चित की जा रही है। किसानों की धान का भुगतान भी प्राथमिकता के अधार पर किया जा रहा है।
उपायुक्त ने बताया कि पंचकूला अनाज मंडी में अब तक 25650 मीट्रिक टन धान की आवक हुई। इसी प्रकार रायपुररानी मंडी में 24737 मीट्रिक टन तथा सबसे अधिक बरवाला अनाज मंडी में 63200 मीट्रिक टन धान की आवक हुई।
उन्होंने एक प्रश्र के उत्तर में बोलते हुए कहा कि हरियाणा रोडवेज कर्मचारियों की हड़ताल के दृष्टिगत जिलें में यात्रियों के लिए 18 गैर सरकारी बसे व 7 सरकारी बसे चल रही है। इसके साथ साथ 14 चालकों की नियुक्ती की गई है और उनका अस्पताल में मैडिकल करवाया जा रहा है।
जिला पुलिस उपायुक्त अभिषेक जोरवाल ने बताया कि पुलिस व जिला प्रशासन के तालमेल के साथ अश्विन नवरात्र मेला व विजयदशमी का कार्यक्रम सफलतापूर्वक संपन्न करवाया गया, जिसमें किसी प्रकार की कोई अप्रिय घटना नहीं घटी। उन्होंने एक प्रश्र के उत्तर में बोलते हुए कहा कि पुलिस विभाग के जवानों द्वारा जिला में कानून व्यवस्था एवं शांति बनाए रखने के हरसंभव प्रयास किये जा रहे है। पीसीआर द्वारा निगरानी रखी जा रही है। पिंजौर क्षेत्र में एक सरपंच के घर चोरी करने में कुछ युवाओं को गिरफ्तार किया गया। यह गिरफ्तारी सरपंच द्वारा उसी गांव के युवक की आवाज पहचानने पर हुई। उन्होंने कहा कि जो लोग कई दिनों के लिए किसी कार्य हेतू अपने घर पर ताला लगाकरचले जाते है, उन्हें अपने आस पड़ोस में रहने वाले लोगों के साथ साथ नजदीकी पुलिस चौंकी में जानकारी देनी चाहिए ताकि वहां पर निगरानी रखी जा सके।
नगर निगम प्रशासक राजेश जोगपाल ने कहा कि पंचकूला नगर निगम के साथ साथ कालका पिंजौर जोन में भी प्रवेश द्वार बनाये जायेंगे। पंचकूला में इस कार्य पर 16 करोड़ तथा कालका व पिंजोर में 19 करोड़ रुपये की राशि खर्च की जाएगी। इसी प्रकार सेक्टर-19 में रेहड़ी मार्केट के निर्माण पर 14.5 करोड़ रुपये की  राशि खर्च की जाएगी। सेक्टर-3 में नगर निगम के कार्यालय का निर्माण करवाया जाएगा। इसी प्रकार गांव दबकोरी एवं सेक्टर-20 में  चिल्ड्रन पार्क बनाये जायेंगें। मास दिसंबर में मैराथन का भी आयोजन किया जायेगा।
इस अवसर पर एसडीएम पंचकूला पंकज सेतिया, एसडीएम कालका रिचा राठी, नगराधीश ममता शर्मा, जिला शिक्षा अधिकारी एचएस सैनी, जिला राजस्व अधिकारी धीरज चहल, जिला खाद्य एवं पूर्ति नियंत्रक मेघर कंवर सहित संबंधित विभागों के  अधिकारी उपस्थित थे।