Gray line in dark clouds

 

Opinion polls, particularly those conducted well in advance of elections are notoriously inaccurate, critics even wonder if some are deliberately slanted. Despite those realities the Congress party like the proverbial drowning man and a straw, will desperately clutch on to the poll which suggests that the party will regain Rajasthan, and despite the Prime Minister’s recent campaigning, Vasundhara Raje will make way for Sachin Pilot in Jaipur.

Whether that is the incumbency factor at work, or evidence of Raje’s increasing unpopularity within the BJP ranks is a question yet to be answered. However, a couple of by-elections have suggested that Pilot does have an advantage.

Which is not the case in Madhya Pradesh and Chhattisgarh: the same polls suggest the Congress does have a slim chance of success there too, but the sitting BJP chief ministers retain their personal popularity ~ confusion over who the Congress will project for the top job could negate the anti-incumbency factor. Of course Pilot could have internal rivals too: hopefully the High Command will desist from meddling. Best to wait and watch: a couple of polls do not an election determine.

Yet those surveys, even if subsequently proved off-target, should serve to boost the sagging morale in the Congress’ ranks. Rahul Gandhi’s hopes of leading a grand alliance next summer have taken a hit ~ the Bahujan Samaj Party and the Samajwadi party’s refusal to join forces in the upcoming curtain- raisers are a serious setback, unlikely to be rectified before the big one. That both Ms Mayawati and Akhilesh Yadav have accused the Congress (read Rahul Gandhi) to be too arrogant to enter into an alliance rooted in equality in seat-sharing says a lot.

The skewed sense of entitlement persists despite a series of electoral reverses and points to Rahul’s inability to lead others: the manner in which he talks of becoming prime minister if other parties so desire indicates he believes he would be doing them a favour if he accepts the leadership role.

Sonia Gandhi does try hard to keep intact what remains of the UPA: Rahul is a stumbling block she dare not try to dislodge; family and dynasty remain top priority. The Lok Dal has called upon Mayawati to lead the fight against the BJP, Mamata Banerjee believes she is better placed, and though Chandrababu Naidu might deny it he would not be averse to responding to the “nation’s call”. More so since Sharad Pawar is thinking aloud about calling it a day.

The sinister assertion that Rahul Gandhi remains Narendra Modi’s most potent electoral weapon will be tested on December 11/12 ~ there are few signs of the theory being reversed. Many hope that Rahul will spring a surprise a couple of months hence. If he does not, well-wishers of the Congress will hope that the worms eventually turn

हुडा द्वारा 2019 चुनावों के लिए घोषणापत्र कि रूप रेखा तैयार


चण्डीगढ़ 09 अक्तुबर 2018
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने कहा है कि 2019 में लोकसभा के चुनाव के घोषणा पत्र में कृषि, किसान और कृषि मजदूरों के हितों में नई योजना और उनकी समस्याओं के लिए स्थाई हल निकालने के लिए श्री राहुल गांधी जी ने मुझे यह जिम्मेवारी दी है। इसलिए हमने पंजाब, हरियाणा व उत्तरप्रदेश के किसानों के साथ मिलकर उनसे सुझाव लेने का कार्यक्रम बनाया है। इसी सिलसिले में आज यह मीटिंग हुई, जिसमें पंजाब व हरियाणा के सैकड़ों किसान प्रतिनिधियों ने कई अच्छे सुझाव दिये हैं। मीटिंग में किसानों की दुर्दशा और उनके द्वारा की जा रही आत्महत्याओं पर चिंता व्यक्त की गई। इसके लिए मौजूदा भाजपा सरकारों को जिम्मेवार ठहराया गया। मीटिंग में दोनों प्रदेशों की किसान यूनियनों व एसोसियेशनों और कृषि से जुड़े व्यवसायों के प्रतिनिधी व प्रगतिशील किसानों ने भाग लिया।
हुड्डा ने कहा कि किसान प्रतिनिधियों ने निम्न महत्वपूर्ण सुझाव भी दिये और आग्रह किया कि ये सुझाव कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किये जायें:-
1. सम्पूर्ण कर्जा माफी
2. सभी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित की जाये। यूनतम समर्थन मूल्य स्वामीनाथन रिपोर्ट (सी 2 फार्मुला) से निर्धारित किया जाए और किसान की पूरी फसल खरीदी जाए।

3. पराली की समस्या के समाधान के लिए आर्थिक सहायता या विशेष उपकरणों का प्रावधान किया जाए।
4. आवारा पशुओं की समस्या का निदान किया जाए।
5. खाद, कृषि उपकरण, कीटनाशक दवा और ट्रैक्टर के स्पेयर पार्टस को जीएसटी के दायरे से बाहर किया जाये तथा पैट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाया जाये।
6. सिंचाई सुविधायें बढ़ाई जायें – पुराने जलाश्यों का सुधार और विस्तार किया जाये।
वर्षा के पानी का संरक्षण किया जाये।

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि किसान प्रतिनिधियों ने यह सुझाव भी रखा कि किसानों को खेती के लिए बिजली व नहरी पानी मुफ्त मिले। जहां बिजली का बिल अदा करना पड़े, वहां के किसानों को एमएसपी पर विशेष बोनस मिले। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिए प्राईवेट बीमा कम्पनियों की जगह सरकारी बीमा कम्पनियां हों और प्रीमियम की राशी केन्द्र व राज्य सरकार मिल कर भरें। फसल खराबे के समय गिरदावरी कृषि और राजस्व अधिकारी स्वयं मौके पर जाकर करें और मुआवजे के लिए एकड़ को ईकाई माना जाए। कुछ किसानों ने यह सुझाव भी दिया कि धान खरीद की तरह सरकार गन्ने की फसल को खरीदे और तत्पश्चात् गन्ना मिलों को सप्लाई करे।
हुड्डा ने कहा कि वे तथा घोषणा पत्र कमेटी के अन्य साथी देश के विभिन्न राज्यों में आठ जगह किसानों से सीधा संवाद करेंगे और उनके सुझाव मागेंगे। इस कड़ी में उनका अगला कार्यक्रम गांव जट्टारी (विधान सभा क्षेत्र खैर), जिला अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) जाने का है। उन्होंने निराशा व्यक्त की कि प्रधानमंत्री किसानों के मसीहा सर छोटुराम की प्रतिमा का अनावरण करने आए पर किसानों के कल्याण के लिए कोई घोषणा करके नहीं गए और न ही भाजपा की प्रदेश सरकार ने किसानों की भलाई के लिए किसी नई योजना की घोषण की। इससे प्रदेश के किसानों को घोर निराशा हुई है।
इस अवसर पर पंजाब से इन्द्रजीत जीरा, प्रधान, किसान खेत मजदूर यूनियन, भारतीय किसान यूनियन के गुरनाम सिंह चढ़ूनी, स्वामी इन्द्र व दलविन्द्र सिंह मट्टु, भारतीय किसान यूनियन (अ), प्रह्लाद सिंह ,शमशेर सिंह दहिया, बीकेयू, करनाल, जयकंवर, सेवा सिंह आर्य व दलबीर सिंह जागलान बीकेयू, बबलजीत सिंह खियाला व बलकार सिंह भंगु, किसान खेत मजदूर यूनियन, भारतीय किसान यूनियन (धर्मपाल बाढ़ड़ा) व किसान संर्घष समिति (मीर सिंह जेवली), दादरी के प्रतिनिधी राजू मान, जसपाल सिंह, कमलजीत सिंह, जगरूप सिंह, सर्वजीत सिंह काका, देवेन्द्र सिंह व महेन्द्र सिंह झाम्बा, पंजाब किसान खेत मजदूर संगठन और प्रगतिशील किसान रमेश खरकड़ी ने अपने सुझाव रखे। एक्सपर्ट के तौर पर डॉ0 कृष्ण सिंह खोखर ने भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
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नीतू खुराना भाजपा द्वारा पंजाब प्रदेश कि प्रेस सचिव नियुक्त

 

भारतीय जनता पार्टी पंजाब की ओर से नीतू खुराना को पार्टी के प्रति उनकी सेवाओं को देखते हुए सूबे का प्रैस सचिव नियुक्त किया गया। वहीं, नीतू खुराना के प्रैस सचिव बनने की सूचना जैसे ही उनके समर्थकों तक पहुंची तो उनमें खुशी की लहर दौड़ पड़ी। भारी संख्या में पार्टी समर्थक नीतू खुराना को मुबारकबाद देने उनके पास पहुंच गए।

नीतू खुराना ने कहा कि पार्टी द्वारा दी गई जिम्मेदारी को वह पूरी मेहनत और ईमानदारी के साथ निभाऊंगी और द्वारा दी गई जिम्मेदारी पर पार्टी हाईकमान का धन्यवाद व्यक्त किया।

गौरतलब है कि नीतू खुराना ने अपना राजनीतिक सफर जीरकपुर भाजपा मंडल में बतौर सचिव से शुरू किया, जिसके बाद पार्टी ने उन्हें जिला मोहाली का सचिव नियुक्त किया और 3 साल की टर्म को पूरा करने के बाद पार्टी ने उन्हें सूबे की टीम का सदस्य बनाते हुए उन्हें प्रैस सचिव घोषित किया है।

माँ शैलपुत्री : प्रथम पूज्य देवी

मां दुर्गा की पहली शक्ति की पावन कथा

 

  शैलपुत्री

वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌ । 

वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥

 

प्रथम नवदुर्गा: माता शैलपुत्री

नवरात्री में माता के नौ स्वरूपों में प्रथम स्वरुप है माँ शैलपुत्री। हिमालय के घर पुत्री स्वरुप जन्म लेने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। माता शैलपुत्री के वहां वृषभ है इसी लिए इन्हे वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है। माता के दाएं हाथ में त्रिशूल व बाएं हाथ में कमल का फूल देखा जाता है। नवरात्री में माँ शैलपुत्री को ही सबसे पहले पूजा जाता है।

माता दुर्गा के स्वरुप कुछ इस प्रकार है :- 

 

नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर दुर्गा देवी के नौ रूपों की पूजा-उपासना बहुत ही विधि विधान से की जाती है। इन रूपों के पीछे तात्विक अवधारणाओं का परिज्ञान धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है। आइए जानते हैं मां शैलपुत्री के बारे में…

 

मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। हिमालय के वहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं। उनकी एक मार्मिक कहानी है।

 

एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है।

 

सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा।

 

वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं।

 

पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं।

 

माता शैलपुत्री का मंत्र। 

वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌ ।

वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥

 

शैलपुत्री माता की आरती। 

शैलपुत्री मां बैल असवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।

पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।

सोमवार को शिव संग प्यारी।आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।

घी का सुंदर दीप जला के।गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।

जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिवमुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।

 

माता शैलपुत्री का स्तोत्र पाठ। 

प्रथम दुर्गा त्वंहिभवसागर: तारणीम्।
धन ऐश्वर्यदायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥

त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्॥

चराचरेश्वरी त्वंहिमहामोह: विनाशिन।
मुक्तिभुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रमनाम्यहम्॥

 

माता शैलपुत्री का  कवच। 

ओमकार: मेंशिर: पातुमूलाधार निवासिनी।
हींकार: पातु ललाटे बीजरूपा महेश्वरी॥

श्रींकारपातुवदने लावाण्या महेश्वरी ।
हुंकार पातु हदयं तारिणी शक्ति स्वघृत।

फट्कार पात सर्वागे सर्व सिद्धि फलप्रदा॥

 

भोग व प्रसाद। 

अपने रोगो से मुक्ति के लिए माँ शैलपुत्री को भोग लगाए गाय के देसी घी से बनी किसी चीज़ का और स्वयं  प्रसाद ग्रहण करे।

 

प्रथम नवरात्र के दिन माँ शैलपुत्री की आराधना करे। कलश स्थापना के बाद माँ शैलपुत्री का ध्यान लगाए और उनके मंत्र का कम से कम 1 माला जाप करे, स्त्रोत पढ़े और विधि पूर्वक आरती करे।

नवरात्री मेले कि तैयारियां पूरी: मनसा देवी श्राईन बोर्ड

पंचकूला, 9 अक्तूबर:
हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल 10 अक्तूबर को अश्वनी नवरात्र के प्रथम दिन प्रात: 9 बजे माता मनसा देवी मंदिर में माता के दर्शन करेंगे तथा शीश नवाएंगे। इसके साथ-साथ मुख्यमंत्री मंदिर परिसर में स्थित यज्ञशाला में पूजा, घट स्थापना एवं यज्ञ में भाग लेंगे।
श्री माता मनसा देवी पूजा स्थल बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री एसपी अरोड़ा ने बताया कि इससे पूर्व मुख्यमंत्री मंदिर परिसर में 50 लाख रुपये की लागत से नवनिर्मित शैड एवं सीढिय़ों का उद्घाटन करने के साथ-साथ श्री वाटिका व पटियाला मंदिर तक जाने वाले डबल कोरिडोर की आधारशिला भी रखेंगे।
उन्होंने बताया कि बोर्ड द्वारा श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए पुख्ता प्रबंध किए गए हैं ताकि श्रद्धालुओं को माता के दर्शन करने में किसी प्रकार की असुविधा न हो। उन्होंने बताया कि पुलिस विभाग द्वारा कानून एवं व्यवस्था बनाने के दृष्टिगत 750 अधिकारी एवं पुलिस जवानों की तैनाती की गई है, जिनमें छह डीएसपी शामिल हैं। इसी प्रकार 12 ड्यूटी मैजिस्ट्रेट, 18 प्रोटोकोल अधिकारी भी नियुक्त किए गए हैं। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए श्री माता मनसा देवी व श्री काली माता मंदिर कालका के लिए विशेष बसें भी चलाई गई हैं। बजुर्गों एवं विशेष आवश्यक्ता वाले व्यक्तियों व सीनियर सिटीजनों के लिए गोल्फ कार्ट व गाड़ी की व्यवस्था भी विशेष रूप से की गई है। कालका बस स्टैंड से काली माता मंदिर तक ई-ऑटो की व्यवस्था भी की गई है।
श्री अरोड़ा ने बताया कि मेले के दौरान मंदिर परिसर में 11 से 17 अक्तूबर तक सुप्रसिद्ध व टीवी कलाकारों द्वारा धार्मिक एवं सास्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति भी दी जाएगी।

10 से 18 अक्तूबर तक चलने वाले अश्विन नवरात्र मेला पर विशेष

श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी करती है माता मनसा देवी
भारत की सभ्यता एवं संस्कृति आदिकाल से ही विश्व की पथ-प्रदर्शक रही है और इसकी चप्पा-चप्पा धरा को ऋषि मुनियों ने अपने तपोबल से पावन किया है। हरियाणा की पावन धरा भी इस पुरातन गौरवमय भारतीय संस्कृति, धरोहर तथा देश के इतिहास एवं सभ्यता का उद्गम स्थल रही है। यह वह कर्म भूमि है, जहां धर्म की रक्षा के लिए दुनिया का सबसे बड़ा संग्राम महाभारत लड़ा गया था और गीता का पावन संदेश भी इसी भू-भाग से गुंजित हुआ है। वहीं शिवालिक की पहाडियों से लेकर कुरूक्षेत्र तक के 48 कोस के सिंधुवन में ऋषि-मुनियों द्वारा पुराणों की रचना की गई और यह समस्त भूभाग देवधरा के नाम से जाना जाता है।
इसी परम्परा में हरियाणा के जिला पंचकूला में ऐतिहासिक नगर मनीमाजरा के निकट शिवालिक पर्वतमालाओं की गोद में सिन्धुवन के अतिंम छोर पर प्राकृतिक छटाओं से आच्छादित एकदम मनोरम एवं शांति वातावरण में स्थित है – सतयुगी सिद्घ माता मनसा देवी का मंदिर। कहा जाता है कि यदि कोई भक्त सच्चे मन से 40 दिन तक निरंतर मनसा देवी के भवन में पहुंच कर पूजा अर्चना करता है तो माता मनसा देवी उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण करती है। माता मनसा देवी का चैत्र और आश्विन मास के नवरात्रों में मेला लगता है।
माता मनसा देवी के मंदिर को लेकर कई धारणाएं व मान्यताएं प्रचलित हैं। श्रीमाता मनसा देवी का इतिहास उतना ही प्राचीन है, जितना कि अन्य सिद्घ शक्तिपीठों का। इन शक्ति पीठों का कैसे और कब प्रादुर्भाव हुआ इसके बारे में शिव पुराण में विस्तृत वर्णन मिलता है। धर्म ग्रंथ तंत्र चूड़ामणि के अनुसार ऐसे सिद्घ पीठों की संख्या 51 है, जबकि देवी भागवत पुराण में 108 सिद्घ पीठों का उल्लेख मिलता है, जो सती के अंगों के गिरने से प्रकट हुए। श्रीमाता मनसा देवी के प्रकट होने का उल्लेख शिव पुराण में मिलता है। माता पार्वती हिमालय के राजा दक्ष की कन्या थी व अपने पति भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर उनका वास था। कहा जाता है कि एक बार राजा दक्ष ने अश्वमेध यज्ञ रचाया और उसमें सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, परन्तु इसमें भगवान शिव को नहीं बुलाया, इसके बावजूद भी पार्वती ने यज्ञ में शामिल होने की बहुत जिद्द की। महादेव ने कहा कि बिना बुलाए वहां जाना नहीं चाहिए और यह शिष्टाचार के विरूद्घ भी है। अन्त मे विवश होकर मां पार्वती का आग्रह शिवजी को मानना पड़ा। शिवजी ने अपने कुछ गण पार्वती की रक्षार्थ साथ भेजे। जब पार्वती अपने पिता के घर पहुंची तो किसी ने उनका सत्कार नहीं किया। वह मन ही मन अपने पति भगवान शंकर की बात याद करके पश्चाताप करने लगी। हवन यज्ञ चल रहा था। यह प्रथा थी कि यज्ञ में प्रत्येक देवी देवता एवं उनके सखा संबंधी का भाग निकाला जाता था। जब पार्वती के पिता ने यज्ञ से शिवजी का भाग नहीं निकाला तो पार्वती को बहुत आघात लगा।  आत्म-सम्मान के लिए गौरी ने अपने आपको यज्ञ की अग्नि में होम कर दिया। पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में प्राणोत्सर्ग करने के समाचार को सुन शिवजी बहुत क्रोधित हुए और वीरभद्र को महाराजा दक्ष को खत्म करने के लिए आदेश दिए। क्रोध में वीरभद्र ने दक्ष का मस्तक काटकर यज्ञ विघ्वंस कर डाला। शिवजी ने जब यज्ञ स्थान पर जाकर सती का दग्ध शरीर देखा तो सती-सती पुकारते हुए उनके दग्ध शरीर को कंधे पर रखकर भ्रान्तचित से तांडव नृत्य करते हुए देश देशातंर में भटकने लगे।
भगवान शिव का उग्र रूप देखकर ब्रह्मा आदि देवताओं को बड़ी चिंता हुई। शिवजी का मोह दूर करने के लिए सती की देह को उनसे दूर करना आवश्यक था, इसलिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से लक्ष्यभेद कर सती के शरीर को खंड-खंड कर दिया। वे अंग जहां-जहां गिरे वहीं शक्तिपीठों की स्थापना हुई और शिव ने कहा कि इन स्थानों पर भगवती शिव की भक्ति भाव से आराधना करने पर कुछ भी दुलर्भ नहीं होगा क्योंकि उन-उन स्थानों पर देवी का साक्षात निवास रहेगा। हिमाचल प्रदेश के कांगडा के स्थान पर सती का मस्तक गिरने से बृजेश्वरी देवी शक्तिपीठ, ज्वालामुखी पर जिव्हा गिरने से ज्वाला जी, मन का भाग गिरने से छिन्न मस्तिका चिन्तपूर्णी, नयन से नयना देवी, त्रिपुरा में बाई जंघा से जयन्ती देवी, कलकत्ता में दाये चरण की उंगलियां गिरने से काली मदिंर, सहारनपुर के निकट शिवालिक पर्वत पर शीश गिरने से शकुम्भरी, कुरूक्षेत्र में गुल्फ गिरने से भद्रकाली शक्ति पीठ तथा मनीमाजरा के निकट शिवालिक गिरिमालाओं पर देवी के मस्तिष्क का अग्र भाग गिरने से मनसा देवी आदि शक्ति पीठ देश के लाखों भक्तों के लिए पूजा स्थल बन गए हैं।
एक अन्य दंत कथा के अनुसार मनसा देवी का नाम महंत मंशा नाथ के नाम पर पड़ा बताया जाता है। मुगलकालीन बादशाह सम्राट अकबर के समय लगभग सवा चार सौ वर्ष पूर्व बिलासपुर गांव में देवी भक्त महंत मन्शा नाथ रहते थे। उस समय यहां देवी की पूजा अर्चना करने दूर-दूर से लोग आते थे। दिल्ली सूबे की ओर से यहां मेले पर आने वाले प्रत्येक यात्री से एक रुपया कर के रूप में वसूल किया जाता था। इसका मंहत मनसा नाथ ने विरोध किया। हकूमत के दंड के डर से राजपूतों ने उनके मदिंर में प्रवेश पर रोक लगा दी। माता का अनन्य भक्त होने के नाते उसने वर्तमान मदिंर से कुछ दूर नीचे पहाडों पर अपना डेरा जमा लिया और वहीं से माता की पूजा करने लगा। महंत मंशा नाथ का धूना आज भी मनसा देवी की सीढियों के शुरू में बाई ओर देखा जा सकता है।
आईने अकबरी में यह उल्लेख मिलता है कि जब सम्राट अकबर 1567 ई. में कुरूक्षेत्र में एक सूफी संत को मिलने आए थे तो लाखों की संख्या में लोग वहां सूर्य ग्रहण पर इकटठे हुये थे। महंत मंशा नाथ भी संगत के साथ कुरूक्षेत्र में स्नान के लिये गये थे। कहते हैं कि जब नागरिकों एवं कुछ संतों ने अकबर से सरकार द्वारा यात्रियों से कर वसूली करने की शिकायत की तो उन्होंने हिंदुओं के प्रति उदारता दिखाते हुए सभी तीर्थ स्थानों पर यात्रियों से कर वसूली पर तुरंत रोक लगाने का हुकम दे दिया, जिसके फलस्वरूप कुरूक्षेत्र एवं मनसा देवी के दर्शनों के लिए कर वसूली समाप्त कर दी गई।
श्रीमाता मनसा देवी के सिद्घ शक्तिपीठ पर बने मदिंर का निर्माण मनीमाजरा के राजा गोपाल सिंह ने अपनी मनोकामना पूरी होने पर लगभग पौने दो सौ वर्ष पूर्व चार वर्षो में अपनी देखरेख में सन 1815 ईसवी में पूर्ण करवाया था। मुख्य मदिंर में माता की मूर्ति स्थापित है। मूर्ति के आगे तीन पिंडीयां हैं, जिन्हें मां का रूप ही माना जाता है। ये तीनों पिंडीयां  महालक्ष्मी, मनसा देवी तथा सरस्वती देवी के नाम से जानी जाती हैं। मंदिर की परिक्रमा पर गणेश, हनुमान, द्वारपाल, वैष्णवी देवी, भैरव की मूर्तियां एवं शिव लिंग स्थापित है। इसके अतिरिक्त श्रीमनसा देवी मंदिर के प्रवेश द्वार पर माता मनसा देवी की विधि विधान से अखंड ज्योत प्रज्जवलित कर दी गई है। इस समय मनसा देवी के तीन मंदिर हैं, जिनका निर्माण पटियाला के महाराज द्वारा करवाया गया था। प्राचीन मदिंर के पीछे निचली पहाडी के दामन में एक ऊंचे गोल गुम्बदनुमा भवन में बना माता मनसा देवी का तीसरा मदिंर है। मदिंर के एतिहासिक महत्व तथा मेलों के उपर प्रति वर्ष आने वाले लाखों श्रद्घालुओं को और अधिक सुविधाएं प्रदान करने के लिए हरियाणा सरकार ने मनसा देवी परिसर को 9 सितम्बर 1991 को माता मनसा देवी पूजा स्थल बोर्ड का गठन करके इसे अपने हाथ मे ले लिया था।
श्री माता मनसा देवी की मान्यता के बारे पुरातन लिखित इतिहास तो उपलब्ध नहीं है, परन्तु पिंजौर, सकेतडी एवं कालका क्षेत्र में पुरातत्ववेताओं की खोज से यहां जो प्राचीन चीजे मिली हैं, जो पाषाण युग से संबंधित है उनसे यह सिद्घ होता है कि आदिकाल में भी इस क्षेत्र में मानव का निवास था और वे देवी देवताओं की पूजा करते थे, जिससे यह मान्यता दृढ होती है कि उस समय इस स्थान पर माता मनसा देवी मदिंर विद्यमान था। यह भी जनश्रुति है कि पांडवों ने बनवास के समय इस उत्तराखंड में पंचपूरा पिंजौर की स्थापना की थी। उन्होंने ही अन्य शक्तिपीठों के साथ-साथ चंडीगढ के निकट चंडीमदिंर, कालका में काली माता तथा मनसा देवी मदिंर में देवी आराधाना की थी। पांडवों के बनवास के दिनों में भगवान श्री कृष्ण के भी इस क्षेत्र में आने के प्रमाण मिलते हैं। त्रेता युग में भी भगवान द्वारा शक्ति पूजा का प्रचलन था और श्री राम द्वारा भी इन शक्ति पीठों की पूजा का वर्णन मिलता है।
हरिद्वार के निकट शिवालिक की ऊंची पहाडियों की चोटी पर माता मनसा देवी का एक और मदिंर विद्यमान है, जो आज देश के लाखों यात्रियों के लिये अराध्य स्थल बना हुआ है, परन्तु उस मदिंर की गणना 51 शक्तिपीठों में नहीं की जाती। पंचकूला के बिलासपुर गांव की भूमि पर वर्तमान माता मनसा देवी मदिंर ही सिद्घ शक्ति पीठ है, जिसकी गणना 51 शक्ति पीठों में होने के अकाट्य प्रमाण हैं। हरिद्वार के निकट माता मनसा देवी के मदिंर के बारे यह दंत कथा प्रसिद्घ है कि यह मनसा देवी तो नागराज या वासुकी की बहिन, महर्षि कश्यप की कन्या व आस्तिक ऋषि की माता तथा जरत्कारू की पत्नी है, जिसने पितरों की अभिलाषा एवं देवताओं की इच्छा एवं स्वयं अपने पति की प्रतिज्ञा को पूर्ण करने तथा सभी की मनोकामना पूर्ण करने के लिए वहां अवतार धारण किया था, सभी की मनोकामना पूर्ण करने के कारण अपने पति के नाम वाली जरत्कारू का नाम भक्तों में मनसा देवी के रूप में प्रसिद्घ हो गया। वह शाक्त भक्तों में अक्षय धनदात्रि, संकट नाशिनी, पुत्र-पोत्र दायिनी तथा नागेश्वरी माता आदि नामों से प्रसिद्घ है।
श्री माता मनसा देवी पूजा स्थल बोर्ड के मुख्य प्रशासक एवं उपायुक्त श्री मुकुल कुमार ने बताया कि बोर्ड द्वारा माता के दर्शन करने के लिए देश के कोने-कोने से आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए पुख्ता प्रबंध किये गये है। उन्होंने बताया कि 10 से 18 अक्तूबर तक चलने वाले अश्विन नवरात्र मेले के दौरान मेले स्थल पर श्रद्धालुओं के आने के लिए विशेष बस सेवाये चण्डीगढ, जीरकपुर तथा आस-पास के क्षेत्रों से सीटीयू तथा हरियाणा रोडवेज की बसों की माता मनसा देवी व काली माता मंदिर कालका में मेला स्थल पर पहुंचने के लिए भी व्यवस्था की गई है ताकि श्रद्धालुओं को आने जाने में किसी प्रकार की असुवधिा न हो।

सैक्टर 5 स्थित परेड ग्राउण्ड में 13 व 14 अक्तूबर को सांय 6 से 9 बजे तक दो दिवसीय नवरात्र उत्सव का आयोजन किया जाएगा

 पंचकूला 9 अक्तूबर:
नगर निगम तथा जिला प्रशासन पंचकूला द्वारा सैक्टर 5 स्थित परेड ग्राउण्ड में 13 व 14 अक्तूबर को सांय 6 से 9 बजे तक दो दिवसीय नवरात्र उत्सव का आयोजन किया जाएगा। इस सम्बध्ं में जानकारी देते हुए नगर निगम के कार्यकारी अधिकारी जरनैल सिंह ने बताया कि इस उत्सव में जिला की स्वंय सेवी संस्थाएं व चण्डीगढ तथा मोहाली के निवासी भाग लेंगे। इस उत्सव के दौरान स्टाल लगाने के लिए सैक्टर 4 में स्थित नगर निगम पंचकूला के कार्यालय में क्षेत्रीय कराधान अधिकारी के मोबाईल न0 8178289973 पर सम्पर्क स्थापित किया जा सकता है।

कालका में स्थित काली माता मंदिर में अश्वनी नवरात्र मेले के दौरान विशाल शोभा यात्रा भी निकाली गई

कालका/पिंजौर, 9 अक्तूबर:
कालका में स्थित काली माता मंदिर में अश्वनी नवरात्र मेले के दौरान श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए बोर्ड द्वारा व्यापक प्रबंध किए गए हैं। हर साल की भांति विशाल शोभा यात्रा भी निकाली गई।
माता काली मेले के संबंध में कालका की विधायक लतिका शर्मा ने पिंजौर गार्डन से शोभा यात्रा का शुभारंभ किया जो महत्वपूर्ण स्थानों से होते हुए कालका मंदिर परिसर में पहुंची। उल्लेखनीय है कि इस शोभा यात्रा में श्रद्धालुओं की भव्य भीड़ दिखाई दी और माता की जय-जय कार के साथ माता काली मंदिर में पहुंची। इस भव्य शोभा यात्रा में बच्चों, युवाओं, महिलाओं व बजुर्गों ने भारी संख्या में भाग लिया और काली माता मंदिर में पहुंच कर माता का आर्शीवाद लिया।
इस शोभा यात्रा में प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष बंतो कटारिया, सुभाष शर्मा, बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एसपी अरोड़ा, सचिव सत्यानारायण वर्मा, इ्रन्द्र कुमार,सुनील, हरविन्द्र कौर, राजवर्मा, किशोरी शर्मा, संजीव कौशल सहित काफी संख्या में श्रद्वालुओं ने भाग लिया।
इस अवसर पर कालका की विधायक लतिका शर्मा ने बताया कि 10 से 18 अक्तूबर तक चलने वाले अश्विन नवरात्र मेला के दौरान प्रतिदिन प्रात: 9 से 11.30 बजे तक हवन का आयोजन किया जाएगा। इसके बाद प्रात: 11 से दोपहर 2 बजे तक भंडारा तथा सायं 7 से रात्रि 10 बजे तक माता की चौंकी होगी। उन्होंने बताया कि कालका में पांडवों ने कौरवों के साथ युद्ध से पूर्व विजयश्री की मनोकामना की थी और मां काली के आर्शीवाद से पाण्डवों ने कौरवों पर विजय प्राप्त की थी।  उन्होंने श्रद्वालुओं से आग्रह करते हुए कहा कि वे  नवरात्रों मेंंं माता के दर्शन करें ताकि माता की अपार कृपा श्रद्वालुओं  पर बनी रहे और उनका जीवन समृद्वि और खुशहाली की ओर अग्रसर हो।
फोटो कैप्शन ।  काली माता कालका में 10 से 18अक्तूबर तक चलने वाले अश्विन मेला से पूर्व शोभा यात्रा निकालते हुए।

जिला प्रशासन द्वारा परली न जलाने कि अपील

पंचकूला, 9 अक्तूबर:-
जिला में धान फसल की कटाई जोरों पर है। फसल की ज्यादातर कटाई कम्बाईन हारवेस्टर से की जाती है, जिसके फलस्वरूप फसल का कुछ अवशेष बच जाते हैं। इस फसल अवशेष को प्राय किसानों द्वारा जला दिया जाता हैं। फसल अवशेष जलाने से भूमि में मौजूद आवश्यक कार्बन तत्व, सूक्ष्म पोषक तत्व व जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति नष्ट हो जाती है। आग लगाने से उत्पन्न धुऐं से दिल व फेंफड़ों की बीमारियों की सम्भावना बनी रहती है जिससे अस्थमा इत्यादि बिमारी हो जाती है। आग से पर्यावरण में मौजूद ऑक्सीजन की कमी भी हो जाती है। प्राय: कई बार देखने में आया है कि आग से जान व माल का भारी नुकसान भी हो जाता हैं।
उपायुक्त श्री मुकुल कुमार ने कहा कि फसल अवशेष का किसान पशुओं के चारे के रूप में प्रयोग कर सकते हैं। कृषि विभाग द्वारा फसल अवशेष के निपटान हेतू व भूमि की शक्ति बनाऐं रखने हेतू विभिन्न प्रकार के कृषि यन्त्रों जैसे कि स्ट्रा रिपर, स्ट्रा बेलर, रिपर बाइंडर और जीरो ड्रिल, हैपी सीडर, मल्चर, रिवर्सिबल प्लो, स्ट्रा चैपर तथा स्ट्रा श्रेडर इत्यादि पर सबसिडी दी जाती है। इन कृषि यन्त्रों के प्रयोग से किसान फसल अवशेषों का उचित प्रयोग कर सकते हैं। स्ट्रा बेलर से गाठें बना कर व गाठों को बिक्री करके अतिरिक्त कमाई भी की जा सकती है।
उन्होंने बताया कि फसल अवशेष जलाने से होने वाले दुष्प्रभावों को देखते हुए माननीय कोर्ट द्वारा दिशा निर्देश जारी किए हैं। यदि किसी किसान द्वारा फसल अवशेष जलाए जाते हैं तो उससे जुर्माने के रूप में 2500 रुपये से 15000 रुपये तक का जुर्माना वसूला जाएगा।
फसल अवशेष न जलाने के बारे में कृषि विभाग द्वारा खण्ड बरवाला व रायपुरानी में एक विशेष अभियान चलाया गया, जिसके अन्र्तगत सभी उच्च विद्यालयों व वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों के बच्चों को फसल अवशेष के दुष्प्रभावों से अवगत करवाया गया। इसके अतिरिक्त एक जागरूक वाहन चलाया जा रहा है, जिसके माध्यम से खण्ड बरवाला व रायपुररानी के सभी गाँवों में फसल अवशेष न जलाने की मुहिम चलाई जा रही है।
उन्होंने किसानों को फसल अवशेष न जलाने की अपील की।

Meeting with Ram Leela Societies held and a set of instructions/ guidelines is given

Sri Ram Leela being celebrated at 49 places in the city w.e.f. 9th to 20th October, 2018.  Adequate Police, Security and Traffic arrangements have been made for the proper maintenance of law & order at all the places by deploying DSPs-03, SHOs/Inprs-16 and NGOs/ORs/L-ORs-309. During the Sri Ram Leela celebrations PCR patrolling is being intensified and special checking is also being conducted at all the outer borders. In addition to above Director Health Services, UT has been intimated to keep ambulance and hospital staff on alert and Chief Fire Officer to keep all the Fire Stations on high alert.

In this regard SSP/UT hold a special meeting with the organizers of main Ram Leelas in office at   PHQ, Sec.9, Chandigarh at 1:00PM on 09-10-2018 to brief them to follow all the guidelines and   security measures laid down by the Chandigarh Administration.

Also a set of Instructions / Guidelines for the Celebration of Ram Leela is given.

 

 

  1. The timings of staging Ram Leela should be strictly observed as per written permission by DM/UT, SSP/UT Office.

 

  1. The organizers will submit a list of 25 able bodied volunteers or as prescribed by SHO, for each Ram Leela alongwith their photographs for preparation of identity Cards to be displayed by the volunteers at the time of their duty to the area SHO. Identity Cards should be issued by the area SHO/Beat Incharge.

 

  1. The organizer will have to obtain separate permissions using the space in respect of venue selected for Ram Leela and Dushera events.

 

  1. Besides above 25 volunteers, the organizers will also raise more volunteers who will be active and remain on duty in each Ram Leela from the start and till dispersal of the public.

 

  1. A Cycle/Scooter stand will be provided by the organizers and managed by their volunteers at the distant place from the actual stage of Ram Leela. No jhoola etc. will be permitted. The people coming to witness Ram Leela Should be carefully watched and none should be allowed to carry any concealed article in Ram Leela.

 

  1. Special announcement should be made not to carry jhola, bag, brief-case, transistors etc, at the place of function and anything suspicious or unattended, if noticed near the place of function should not be touched by anyone and should be immediately brought to the notice of Police Control Room (Phone No. of Police Control Room : 100).

 

  1. The stage and backside of the stage should be properly managed and no unknown person be allowed to enter there.

 

  1. Barricading around Ram Leela premises would be erected by the organizers and there would be frisking by volunteers at each and every entry gate under Police Supervision.

 

  1. Proper lighting arrangements i.e. floodlights should be proided at the place of function and its surrounds by the organizers. In case of failure of electricity, the organizers must have generator with them to cope the situation.

 

  1. Proper security search of the area / ground before the function / Ram Leela should be carried out by each organizer daily in consultation with police.

 

  1. The stall/food vendors should be allowed at the places earmarked for the purpose by the organizers in consultation with police.

 

  1. On each site entry morcha with sand bags shall be constructed at strategic place where two armed sentries will be mounted by rotation throughout the function by the police.

 

  1. The loudspeakers should be played at low pitch.

 

  1. Efforts should be made to display scene from Shree Ramayana and no vulgar type of scenes/songs be permitted on the stage.

 

  1. No Ram Leela performance/play/pantomime or other drama which is deliberately intended to outrage the religious feelings of any class of citizens by insulting or blaspheming or profaning the religion or the religious belief of that class or is grossly indecent or its scurrilous or obscene or intended for blackmail is allowed.

 

  1. Installation of fire extinguisher equipments near the stage.

 

  1. Installation of sufficient No. of CCTV cameras at the place of function.

 

  1. There should be proper gap between stage and public.

 

  1. That the organizer will be responsible for any mishap / accident during the event and also will responsible for loss of all type of Public/Government/Private property.

 

  1. That they will ensure that a situation is not created where law enforcement agencies have to resort to use of force for the dispersal of unlawful assembles/unruly crowd.

 

  1. That the organizer should make liaison with the police officials on duty to avoid any untoward incident.

 

  1. That no decorative paper/synthetic material should be used anywhere in the Pandal/Structure.

 

  1. That water should be stored in fire-buckets / drums kept in readiness for use. Half quantity may be kept inside the temporary pandal/structure and the other half outside limits immediate vicinity. The buckets or receptacles duly having signage of water should at all times be readily available for immediate use for dealing with the fires.

 

  1. This NOC can be cancelled at any time on law & order/administrative ground.

 

 

  1. Proper security search of the area/ground before the function/Ram Leela should be carried out by each organizer daily in consultation with police.

 

  1. The stall/food vendors should be allowed at earmarked places by the organizers or by the competent authorities of UT, Chd, in consultation with the police.

 

  1. The permission to use the loudspeaker shall be taken separately from the o/o Distt. Magistrate, UT Chandigarh by the organizers and follow all the instructions laid down by the competent authorities.