परवानू में ट्रक यूनियन के प्राधान बाबा हरदीप सिंह मनी पर जान लेबा घातक हमला पीजीआई रेफर
परवानू में ट्रक यूनियन के प्राधान बाबा हरदीप सिंह मनी पर जान लेबा घातक हमला । पी जी आई रेफर ।
परवानू में ट्रक यूनियन के प्राधान बाबा हरदीप सिंह मनी पर जान लेबा घातक हमला । पी जी आई रेफर ।
नरेश शर्मा भारद्वाज:
जालंधर के नए पुलिस कमिश्नर को, पंजाब के सबसे अमीर आईपीएस होने के साथ साथ होनहार अफसर भी हैं गुरप्रीत भुल्लर, जालंधर में 14 साल पहले भुल्लर ने बचाई थी 77 बच्चों की जान
जालंधर के नए पुलिस कमिश्नर गुरप्रीत सिंह भुल्लर करीब 152 करोड़ की संपति के मालिक होने के साथ साथ पंजाब के सबसे अमीर आईपीएस हैं. मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक वह पंजाब पुलिस के तमाम अफसरों में सबसे अमीर है. अमीर होने के साथ साथ वह होनहार अफसर भी हैं. करीब 14 साल पहले की बात है उस समय जालंधर में एसएसपी प्रणाली थी. 15 अगस्त 2004 के दिन बस्ती गुजं से लालू नामक बच्चा गायब हुआ. फिर एक के बाद एक करीब 23 बच्चे गायब हुए. उस समय गुरप्रीत सिंह भुल्लर एसएसपी थे. युवा एसएसपी ने इन घटनाओं को चुनौती के रूप में लिया और रोजाना देर रात तक और फिर तड़के इसी आपरेशन पर काम शुरू होता था. आखिरकार गुरप्रीत भुल्लर ने पुराना रिकार्ड खंगाला तो कपूरथला में ऐसा ही केस की साल पहले सामने आया था. वो शख्स था दरबारा सिंह. वह जेल से छूट चुका था. कड़ी मशक्कत के बाद 29 अक्टूबर 2004 में उसे पकड़ा गया तो 23 बच्चों के कत्लों का खुलासा हुआ. एसएसपी भुल्लर के इस प्रयास से करीब 77 बच्चों की जान बची क्योंकि दरबारा ने 100 बच्चों को मारने की कसम खाई थी. उसके बाद दरबारा जेल से बाहर नहीं आ सका और कुछ माह पहले दरबारा ने पटियाला देल में दम तोड़ा है. अब फिर से गुरप्रीत भुल्लर उसी कुर्सी पर बैठेंगे जिसे वो करीब दस साल पहले छोड़ गए थे. इसके बाद मोहाली में वह लंबे समय तक एसएसपी रहे और हाल ही में जालंधर में एसएसपी देहात भी रहे. इस दौरान ड्रग्स और गैंगस्टर उनके निशाने पर रहे. अब उम्मीद करते हैं कि जालंधर में गुरप्रीत सिंह भुल्लर की नई पारी पहले से भी सफल रहेगी.
दिनेश पाठक, Sep 27, 2018
I am satisfied that this impediment has been defeated. The way is now clear for the hearing of Ram janmabhoomi appeals: Alok Kumar, VHP Working President on Ayodhya matter (Ismail Faruqui case)
15:21(IST)
बहुमत के निर्णय से बहुमत के लोग खुश होंगे, माइनोरिटी के निर्णय से अल्पसंख्यक प्रसन्न होगा. लेकिन जिस समस्या को लेकर हमने शुरुआत की है, उसका हल नहीं किया गया है. बात अंकगणित की नहीं है लेकिन इस बात की है कि सुप्रीम कोर्ट को एक आवाज में बोलना चाहिए.
Majority judgement will please majority,minority judgement will please minority.Very problem we started off with hasn’t been resolved.Not about arithmetic,but of convincing everybody that SC should’ve spoken in 1voice: Rajiv Dhawan, Petitioner’s counsel in Ayodhya title suit case
14:46(IST)कोर्ट ने कहा कि इस्माइल फारूकी केस से अयोध्या जमीन विवाद का मामला प्रभावित नहीं होगा. ये केस बिल्कुल अलग है. अब इसपर फैसला होने से अयोध्या केस में सुनवाई का रास्ता साफ हो गया है. कोर्ट के फैसले के बाद अब 29 अक्टूबर 2018 से अयोध्या टाइटल सूट पर सुनवाई शुरू होगी.
14:46(IST)दोनों जजों के फैसले से जस्टिस नजीर ने असहमति जताई. उन्होंने कहा कि वह साथी जजों की बात से सहमत नहीं है. यानी इस मामले पर फैसला 2-1 के हिसाब से आया है. जस्टिस नजीर ने कहा कि जो 2010 में इलाहाबाद कोर्ट का फैसला आया था, वह 1994 फैसले के प्रभाव में ही आया था. इसका मतलब इस मामले को बड़ी पीठ में ही जाना चाहिए था.
14:45(IST)जस्टिस अशोक भूषण ने अपना फैसला पढ़ते हुए कहा कि हर फैसला अलग हालात में होता है. पिछले फैसले के संदर्भ को समझना जरूरी है.’ जस्टिस भूषण ने कहा कि पिछले फैसले में मस्जिद में नमाज अदा करना इस्लाम का अंतरिम हिस्सा नहीं है कहा गया था, लेकिन इससे एक अगला वाक्य भी जुड़ा है.
14:45(IST)जस्टिस भूषण ने अपना और चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की तरफ से कहा कि इस मामले को बड़ी बेंच को भेजने की जरूरत नहीं है. जो 1994 का फैसला था हमें उसे समझने की जरूरत है. जो पिछला फैसला था, वह सिर्फ जमीन अधिग्रहण के हिसाब से दिया गया था.
14:44(IST)फैसला पढ़ते हुए जस्टिस भूषण ने कहा- ‘सभी मस्जिद, चर्च और मंदिर एक समान रूप से महत्वपूर्ण हैं. राज्यों को इन धार्मिक स्थलों का अधिग्रहण करने का अधिकार है. लेकिन, इसका मतलब ये नहीं है कि इससे संबंधित धर्म के लोगों को अपने धर्म के मुताबिक आचरण करने से वंचित किया गया.’
14:40(IST)
अयोध्या मामले पर जस्टिस नजीर ने कहा कि बड़ी बेंच को यह तय करने की जरूरत है कि धार्मिक मान्यताओं की क्या भूमिका है
दिनेश पाठक:
ने अहम अदालती कार्यवाही के सीधे प्रसारण की अनुमति दे दी है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह आदेश देते हुए कहा कि इस प्रक्रिया की शुरुआत सुप्रीम कोर्ट से होगी। कोर्ट ने कहा कि लाइव स्ट्रीमिंग के आदेश से अदालत की कार्यवाही में पारदर्शिता आएगी और यह लोकहित में होगा।
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा, ‘इसे सुप्रीम कोर्ट से शुरू किया जाएगा पर इसके लिए कुछ नियमों का पालन किया जाएगा। लाइव स्ट्रीमिंग से जूडिशल सिस्टम में जवाबदेही आएगी।’ बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई की विडियो रिकॉर्डिंग और उसके सीधे प्रसारण को लेकर केंद्र से जवाब मांगा था। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि चीफ जस्टिस द्वारा संवैधानिक मामले की सुनवाई की विडियो रिकॉर्डिंग और लाइव स्ट्रीमिंग ट्रायल बेसिस पर की जा सकती है। केंद्र ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया की लाइव स्ट्रीमिंग और विडियो रिकॉर्डिंग के लिए पायलट प्रॉजेक्ट शुरू किया जा सकता है।
केंद्र सरकार ने दी थी यह दलील
केंद्र की तरफ से अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने शीर्ष अदालत में कहा था आगे चलकर पायलट प्रॉजेक्ट की कार्य पद्धति का विश्लेषण किया जाएगा और उसे ज्यादा प्रभावी बनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि लाइव स्ट्रीमिंग को एक प्रयोग के तौर पर पहले एक से तीन महीने के लिए शुरू किया जा सकता है, जिससे यह समझा जा सके कि तकनीकी तौर पर यह कैसे काम करता है।
वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने दाखिल किया था पीआईएल
चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ की इस बेंच ने वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह समेत सभी पक्षों से अटर्नी जनरल के इस प्रस्ताव पर अपनी राय देने को कहा था। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने PIL दाखिल कर अनुरोध किया था कि जो केस राष्ट्रीय महत्व और संवैधानिक महत्व के हैं, उनकी पहचान कर उन मामलों की रिकॉर्डिंग की जाए और सीधा प्रसारण किया जाना चाहिए।
SC ने कहा-नागरिकों को सूचना पाने का अधिकार
कोर्ट ने यह भी कहा था कि सुनवाई का सीधा प्रसारण होने से पक्षकार यह जान पाएंगे कि उनके वकील कोर्ट में किस तरह से पक्ष रख रहे हैं। जयसिंह ने याचिका में मांग की थी कि संवैधानिक और राष्ट्रीय महत्व के मामलों की सुनवाई का सीधा प्रसारण किया जाए क्योंकि नागरिकों के लिए यह सूचना पाने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों में ऐसा सिस्टम है।
An Army soldier and a civilian were killed and three terrorists were shot dead after security forces launched multiple counter-terrorist operations in Jammu and Kashmir. The soldier and one of the terrorists was killed during a pre-dawn encounter at Dooru in Anantnag district, 65 km from Srinagar.
Firing has stopped now. Sources say top Lashkar-e-Taiba terrorist Naveed Jaat alias Hanzla, who had been trapped during the encounter, has managed to escape. He was the same Lashkar terrorist who made a dramatic escape from jail in February after he shot dead two policemen who had brought him to a hospital for health check-up in Srinagar.
People familiar with the matter said it’s the second time in the last 15 days that Jaat broke the security cordon and managed to escape during an encounter.
The police said they suspect he might have received bullet injuries while fleeing from the encounter site.
“We believe he was hit by a bullet and is injured, but managed to flee,” said senior police officer Munir Ahmad Khan. A search operation is underway.
“Operation was launched based on specific information. We have lost one soldier and one terrorist has been killed in the operation,” another senior police officer said.
Internet has been snapped in Anantnag, Srinagar and Budgam districts, where the encounters broke out.
In Srinagar, a gunfight broke out at Noorbagh after security forces launched an operation following intelligence inputs that some terrorists could be hiding at a house in the area. The son of house-owner was killed during the operation.
The police said the terrorists have escaped from the house after the brief shootout. Locals alleged no terrorist was hiding in the house.
In a third encounter, the security forces engaged three terrorists trapped in a religious place at Chadoora in Budgam district, 28 km from Srinagar. The police said the terrorists took shelter in the religious place after they fled from a house where they had been hiding.
Two of the terrorists were shot dead. An Army officer who suffered injuries was taken to the Army’s 92 Base hospital.
Director General of Police Dilbag Singh said they took precautions to ensure there is no damage to the religious place and at the same time the terrorists are neutralised.
Dinesh Pathak:
The Supreme Court on Thursday struck down the adultery law, pertaining to Section 497 of the Indian Penal Code (IPC) and Section 198 of Code of Criminal Procedure (CrPC), as unconstitutional through a unanimous judgement.
The Chief Justice of India (CJI) Dipak Misra read out the judgment on behalf of himself and Justice AM Khanwilkar. “Thinking of adultery as a criminal offence is a retrograde step,” the CJI said in court. Mere adultery can’t be a crime unless it attracts the scope of Section 306 (abatement to suicide) of the IPC, the CJI held.
“Adultery might not be the cause of an unhappy marriage, it could be the result of an unhappy marriage,” Misra said as he read out his judgment that declared Section 497 as arbitrary.
The CJI stated before the apex court that adultery as an act is not criminal in China, Japan and in many other western countries and remarked that it “dents the individuality of a woman”. “In case of adultery, the criminal law expects people to be loyal which is a command which gets into the realm of privacy,” the CJI stated. Coming to the Indian Constitution and the protection it guarantees, the CJI said, that the beauty of our Constitution is that it includes “I, me and you”. Thus, as the adultery law violated Article 14 15(1) and 21 of the Constitution and offends the dignity of a woman, it was declared as manifestly arbitrary by the CJI. “A woman cannot be asked to think how a man or society desires. Her husband is not her master and servitude of one sex is unconstitutional,” the CJI noted in his judgment.
Justice Rohinton Fali Nariman also concurred with the CJI and Khanwilkar’s judgment and termed the archaic law as unconstitutional. “Ancient notions of a man being perpetrator and woman being a victim no longer holds good,” Nariman said in the top court.
Interestingly, Misra stated that he relied heavily on the triple talaq judgment by Nariman to come to his judgment on the case. The CJI also said that mere adultery cannot be a crime, but if any aggrieved spouse commits suicide because of life partner’s adulterous relation, then if the evidence is produced, it could be treated as an abetment to suicide.
“Section 497 is based on a notion that a woman loses her agency upon marriage. Human sexuality is an essential aspect of the identity of an individual. The current law deprives a woman of her agency as it is founded on the notion that a woman, on entering marriage, loses her voice and agency,” the CJI noted. He also spoke of how the Constitution enshrines the golden triangle of fundamental rights and judicial sensitivity is needed in this regard. Thus, the court ruled that adultery can be a ground for civil issues including dissolution of marriage, ie divorce, but it cannot be a criminal offence. Justice DY Chandrachud also concurred with the other judges on this and said that “Section 497 deprives a woman of agency and autonomy and dignity… Autonomy is intrinsic in dignified human existence and Section 497 denuded the woman from making choices,” he said.
Justice Indu Malhotra also maintained that, “Adultery could be a moral wrong towards spouse and family but the question is whether it should be a criminal offence?”, leading to a unanimous decision of the Supreme Court scrapping the Adultery Law.
A five-judge constitutional bench headed by the Misra on 8 August had reserved its verdict after Additional Solicitor-General Pinky Anand, appearing for the Centre, concluded her arguments.
The hearing in the case by the bench, that also comprised Nariman, Khanwilkar, Chandrachud and Justice Indu Malhotra, went on for six days, having commenced on 1 August.
The Centre had favoured retention of a penal law on adultery, saying that it is a public wrong that causes mental and physical injury to the spouse, children and the family. “It is an action willingly and knowingly done with the knowledge that it would hurt the spouse, the children and the family. Such intentional action which impinges on the sanctity of marriage and sexual fidelity encompassed in marriage, which forms the backbone of the Indian society, has been classified and defined by the Indian State as a criminal offence in an exercise of its constitutional powers,” the Centre had said.
Section 497 of the 158-year-old Indian Penal Code (IPC) says: “Whoever has sexual intercourse with a person who is and whom he knows or has reason to believe to be the wife of another man, without the consent or connivance of that man, such sexual intercourse not amounting to the offence of rape, is guilty of the offence of adultery.”
On 5 January, the apex court had referred to a five-judge Constitution bench the plea challenging the validity of the penal law on adultery. The court had taken a prima facie view that though the criminal law proceeded on “gender neutrality”, the concept was absent in Section 497.
जीरकपुर के गुरुदेव नगर मैं चोरी हुई, खबर लिखे जाने तक नुक्सान का ब्यौरा उपलब्ध नहीं था
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विक्रम संवत – 2075
अयन – दक्षिणायन
गोलार्ध – दक्षिण
ऋतु – शरद
मास – आश्विन
पक्ष – कृष्ण
तिथि – द्वितीया
नक्षत्र – आश्विन
योग – व्याघात
करण – गर
राहुकाल –
1:30PM – 3:00PM
🌞सूर्योदय – 06:17 (चण्डीगढ)
🌞सूर्यास्त – 18:09 (चण्डीगढ)
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🚩विशेष:-🚩
तृतीया का श्राद्ध।
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