‘महिला-विरोधी’ और ‘अवैध संबंधों’ के लिए लोगों को लाइसेंस प्रदान करेगा.’ स्वाति मालीवाल
दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्लयू) प्रमुख स्वाति मालीवाल ने कहा कि एडल्ट्री को अपराध की श्रेणी से बाहर करने से देश में महिलाओं की पीड़ा और बढ़ने वाली है
एडल्ट्री को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के सुप्रीम कोर्ट के गुरुवार को आए फैसले पर कुछ विशेषज्ञों ने आगाह करते हुए इसे ‘महिला-विरोधी’ बताया और चेतावनी दी कि यह ‘अवैध संबंधों’ के लिए लोगों को लाइसेंस प्रदान करेगा.
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने एडल्ट्री के प्रावधान से संबद्ध भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 497 को सर्वसम्मति से निरस्त कर दिया है. शीर्ष अदालत ने कहा कि यह पुरातन है और समानता के अधिकारों और महिलाओं को समानता के अधिकारों का उल्लंघन करता है.
दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्लयू) प्रमुख स्वाति मालीवाल ने कहा कि एडल्ट्री को अपराध की श्रेणी से बाहर करने से देश में महिलाओं की पीड़ा और बढ़ने वाली है.
उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘497 को लैंगिक रूप से तटस्थ बनाने, उसे महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए अपराध करार देने के बजाय इसे पूरी तरह से अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया.’
फैसले को स्पष्ट करने की जरूरत
शीर्ष अदालत के फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता वृंदा अडिगे ने इसे स्पष्ट करने की मांग करते हुए पूछा कि क्या यह फैसला बहुविवाह की भी इजाजत देता है ?
उन्होंने कहा, ‘चूंकि हम जानते हैं कि पुरुष अक्सर ही दो-तीन शादियां कर लेते हैं और तब बहुत ज्यादा समस्या पैदा हो जाती है जब पहली, दूसरी या तीसरी पत्नी को छोड़ दिया जाता है.’
कांग्रेस नेता रेणुका चौधरी ने भी इस मुद्दे पर और अधिक स्पष्टता लाने की मांग करते हुए कहा, ‘यह तीन तलाक को अपराध की श्रेणी में डालने जैसा है. उन्होंने ऐसा किया लेकिन अब पुरुष हमें महज छोड़ देंगे या हमें तलाक नहीं देंगे. वे बहुविवाह या निकाह हलाला करेंगे, जो महिला के तौर पर हमारे लिए नारकीय स्थिति पैदा करेगा. मुझे यह नहीं दिखता कि यह कैसे मदद करेगा. कोर्ट को स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए.’
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि एडल्ट्री को दीवानी स्वरूप का कृत्य माना जाता रहेगा और यह विवाह विच्छेद के लिए आधार बना रह सकता है. चीफ जस्टिस ने कहा कि कोई सामाजिक लाइसेंस नहीं हो सकता, जो घर बर्बाद करता हो.
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