Monday, December 9

अजय कुमार

चण्डीगढ़ 06 सितम्बर, 2018
पूर्व मुख्य संसदीय सचिव व प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता रणसिंह मान ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के शासकीय कौशल पर सवाल उठाते हुए कहा कि राज्य के बाहर के उनके सलाहकार, उनकी लीगल टीम व नम्बर बनाने वाले उच्च अधिकारी उन्हें कहीं का नहीं छोड़ेंगे। मुख्यमंत्री को पता होना चाहिए कि जब कभी उन पर आफत आयेगी, तो इनमें से कोई भी उनकी मदद में खड़ा होने वाला नहीं है, बल्कि सब अपना पल्ला झाड़ लेंगे। अपना दाव खेलने वाले अशोक खेमका जैसे लोग व उन्हें उकसाने वाला इनेलो भी दूर खड़े मिलेंगे।

मान ने मुख्यमंत्री को संविधान की शपथ लेने की याद दिलाते हुए कहा कि हकीकत में बिना किसी भेदभाव के काम करने की आपकी कसम धूल में मिल चुकी है। शिकोहपुर (गुरूग्राम) की जमीन की खरीद-फरोख्त मामले में राबर्ट वाड्रा व पूर्वमुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा पर एफआईआर इसका ताजा व ठोस सबूत है, जो यह दर्शाता है कि आप अपने लोगों व राजनीतिक विरोधियों के प्रति समान भाव नहीं रखते हैं, बल्कि उन्हें झूठे केसों में उलझा कर चुप रहने का भय दिखाते हैं। ऐसा करते समय आप कानून को ठेंगा दिखाने में भी नहीं झिझकते हैं। मान्यवर ! यदि आप सोचते हैं कि सत्ता से हटने के बाद संघ प्रचारक का थैला उठा कर चले जायेंगे, यह सब तो ठीक है, पर आप द्वारा किये गये गैरकानूनी कामों का हिसाब तो एक दिन जरूर देना होगा।

मान ने कहा कि शिकोहपुर मामले में शिकायतकर्त्ता सुरेन्द्र शर्मा को तो केवल बलि का बकरा बनाया गया है। शायद उन्हें नहीं मालूम कि यह मामला पहले ही माननीय उच्च न्यायालय में विचाराधीन है। हकीकत में खेल की असली सूत्रधार तो भाजपा है, सुरेन्द्र शर्मा तो मुखोटा है। सुरेन्द्र शर्मा न उस जमीन के खरीददार हैं और न बेचने वाले हैं और न डील में बिचौलिये की भूमिका में हैं। जब सुरेन्द्र शर्मा के हित किसी रूप में भी उपरोक्त डील में प्रभावित नहीं हैं, तो उनकी शिकायत का क्या औचित्य है ? यदि सरकार को राजस्व प्राप्ति में हेराफेरी की शंका थी, तो सरकार स्वयं आगे क्यों नहीं आई ? क्या दो प्राईवेट पार्टियों के बीच जमीन की खरीद- फरोख्त में किसी अनजान का दखल कानून सम्मत है ? क्या कोई पार्टी सरकार से पूछ कर जमीनों के भाव तय करती है ? गुरूग्राम में बैठे अधिकांश भाजपा नेता प्रॉपर्टी का काम करते रहे हैं व कर रहे हैं। उन्हीं से पूछ लें कि कोई भी व्यक्ति या पार्टी अपनी जमीन लीये भाव से उस समय के बाजार भाव को देखकर कितनी भी ऊंची कीमत पर बेच सकता है। सरकार को सन्देह है, तो 2005 से 2012 तक, जब प्रॉपर्टी बूम पर थी, का कैग से स्पेशल बिजनेस ऑडिट करवा लें। सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिये कि सरकार ने केवल राबर्ट वाड्रा-डीएलएफ के बीच हुई डील को ही कार्रवाई के लिए क्यों चुना, जबकि प्रॉपर्टी में बूम के इस समय जमीनों की ऐसी कितनी ही डील हुई हैं।

मान ने कहा कि भाजपा शासित राज्यों में पुलिस का दोहरा व विरोधाभासी रवैया गौर करने वाला है। कोरेगांव-भीमा मामले में महाराष्ट्र पुलिस का हलफनामा इतिहासकार रोमिला थापर और अन्य पर सवाल उठाता है कि किस हैसियत से इन लोगों ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की है, जबकि उनका इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है। वहीं राबर्ट वाड्रा व डीएलएफ डील में एक अनजान सुरेन्द्र शर्मा की दरख्वास्त पर गुरूग्राम पुलिस एफआईआर दर्ज करती है। सरकार को मालूम है कि इस केस में सुरेन्द्र शर्मा का कोई वास्ता नहीं है।

मान ने कहा कि राबर्ट वाड्रा व रियल इस्टेट कम्पनी डीएलएफ के बीच हुई जमीन की डील का लाईसेंस आज भी वैध है। जाहिर है कि उपरोक्त जमीन के टुकड़े पर लाईसेंस तभी मिला होगा, जब पार्टी ने सभी शर्तें पूरी की होंगी व पूरी स्टाम्प डियूटी व कन्वर्जन चार्जिज अदा किये होंगे। आईएएस अधिकारी खेमका द्वारा उपरोक्त जमीन का म्यूटेशन रद्द करने के आदेश को तीन वरिष्ठतम आईएएस अधिकारियों द्वारा निरस्त करने के बाद आज इसके लाईसेंस पर कोई विवाद शेष नहीं है। उपरोक्त प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त में तत्कालीन कांग्रेस सराकर की कोई भूमिका नहीं है। यह विशुद्ध रूप से दो प्राईवेट पार्टियों के बीच का करार है। सरकार किसी प्राईवेट पार्टी को कलैक्टरेट रेट से ऊपर खरीद व बिक्री, चाहे वो कितनी भी ऊपर है, दखल देने का अधिकार नहीं रखती। हां, यदि भाजपा गलत नीयत से व राजनैतिक लाभ के लिये, राफेल डील पर पर्दा डालने के लिये व पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की जनक्रान्ति यात्रा को लेकर लोगों को भ्रमित करने के लिये ये सब कर रही है, तो वो भ्रम में है। भाजपा समझ ले कि न कांग्रेस पार्टी राफेल डील में हुए घोटाले पर चुप रहेगी और न भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की जनक्रान्ति रथ यात्रा रूकेगी।
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