खबरों की खबर तक कैसे पहुँचे नैयर


आपातकाल में अनेक लोगों को यह लग रहा था कि पता नहीं, अब इस देश में चुनाव होगा भी या नहीं. वैसे माहौल में खबरखोजी कुलदीप नैयर यह खबर देने जा रहे थे कि चुनाव होने ही वाले हैं. पर सवाल है कि उस खबर तक नैयर साहब कैसे पहुंचे?


चंडीगढ़, 27 अगस्त:

जनवरी, 1977 की बात है. आपातकाल की घनघोर छाया देश पर मंडरा रही थी. किसी को यह नहीं सूझ रहा था कि यह स्थिति कब तक रहेगी. आपातकाल 25 जून, 1975 की रात में लागू किया गया था. लगभग एक लाख राजनीतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था. इनमें से केरल के एक इंजीनियर राजन सहित 22 कैदियों की जेल में ही मृत्यु हो चुकी थी.

कर्नाटक की मशहूर अभिनेत्री स्नेहलता रेड्डी जब जेल में सख्त बीमार हुईं तो उन्हें रिहा कर दिया गया. लेकिन उनका इसके कुछ दिन बाद निधन हो गया. विदेशी मीडिया में सरकार विरोधी ऐसी खबरें छपने से प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी चिंतित थीं. विदेशों में उन्हें अपनी छवि की चिंता थी. उन्होंने आईबी से सर्वे कराया कि क्या आज चुनाव हो जाए तो क्या नतीजे आएंगे.

इमरजेंसी के दौरान इदिरा गांधी के देश में लोकसभा चुनाव कराने की योजना की किसी को भनक नहीं लगी (साभार: बीजेपी ट्विटर)

IB के एक अफसर ने कुलदीप नैयर के कान में फुसफुसा दिया कि ‘चुनाव होने वाला है’

आईबी से प्रधानमंत्री को यह सूचना मिली कि नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आएंगे. इस पृष्ठभूमि में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी चुनाव कराने की योजना बनाने लगीं. पर, बाहर इस बात की किसी को कोई भनक तक नहीं थी. पर,आईबी के एक परिचित अफसर ने एक दावत में कुलदीप नैयर के कान में फुसफुसा दिया कि ‘चुनाव होने वाला है.’

याद रहे कि आईबी से ही तो चुनाव संभावनाओं की जानकारी लेने को कहा गया था! हालांकि आईबी वाले इस बात का अनुमान नहीं लगा सके कि आतंक के माहौल में जिससे भी पूछोगे, वही कहेगा कि इंदिरा जी का राजपाट ठीक चल रहा है. हम खुश हैं. यही हुआ. इंदिरा जी धोखा खा गईं.

वर्ष 1977 के लोकसभा चुनाव में उत्तर भारत से तो कांग्रेस का लगभग सफाया ही हो गया था. आपातकाल में अनेक लोगों को यह लग रहा था कि पता नहीं, अब इस देश में चुनाव होगा भी या नहीं. वैसे माहौल में खबरखोजी कुलदीप नैयर यह खबर देने जा रहे थे कि चुनाव होने ही वाले हैं. पर सवाल है कि उस खबर तक नैयर साहब कैसे पहुंचे?

इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आईबी में कार्यरत पंजाब काडर के उस अफसर से मुलाकात के बाद नैयर साहब संजय गांधी के मित्र कमलनाथ के घर पहुंच गए. इस संबंध में कुलदीप नैयर लिखते हैं कि ‘कमलनाथ से मेरी अच्छी जान-पहचान हो गई थी. क्योंकि वो इंडियन एक्सप्रेस के निदेशक मंडल में थे.’

नैयर साहब ने कमलनाथ की पत्नी से कहा कि ‘मैं कमलनाथ जी का मित्र हूं.’ फिर उन्होंने अपना परिचय दिया. कमलनाथ की पत्नी ने नैयर का नाम सुन रखा था. पर कमलनाथ उस समय सो रहे थे. इसलिए उन्होंने नैयर को बिठाया. जल्दी ही कमलनाथ प्रकट हुए. फिर दोनों बालकानी में आकर बैठ गए.

कांग्रेस नेता कमलनाथ संजय गाधी के अच्छे मित्र थे, कुलदीप नैयर ने एक मुलाकात के दौरान उनसे देश में चुनाव होने को लेकर सवाल पूछा था (फोटो: फेसबुक से साभार)

कमलनाथ ने चुनाव की खबरों पर पूछे जाने पर प्रश्न टालने की कोशिश नहीं की

कुलदीप नैयर ने इस वाक्य से अपनी बात शुरू की कि ‘संजय गांधी किस चुनाव क्षेत्र में चुनाव लड़ने जा रहे हैं?’ नैयर ने अपनी पुस्तक ‘एक जिंदगी काफी नहीं’ में लिखा कि ‘वो चौंक कर मेरी तरफ देखने लगे पर उन्होंने प्रश्न को टालने की कोशिश नहीं की. उन्होंने कहा कि ‘यह अभी तय नहीं किया गया है.’ दरअसल वो लोग अपने एक संदेशवाहक की अहमदाबाद से वापसी का इंतजार कर रहे थे. वो संदेश वाहक वहां जेल में चंद्रशेखर से मिलने गया था.

चंद्रशेखर एक युवा तुर्क कांग्रेसी थे और इंदिरा गांधी के कटु आलोचक रह चुके थे. जेपी का साथ देने के कारण उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया था. कमलनाथ ने नैयर को बताया कि कांग्रेस चंद्रशेखर को मनाने की कोशिश कर रही है. नैयर ने मन ही मन यह अनुमान लगाया कि इसका मतलब यह है कि चुनाव अगले कुछ ही हफ्तों में होने जा रहा है. जब नैयर ने कमलनाथ से पूछा कि चुनावों के कितनी जल्दी होने की संभावना है तो कमलनाथ ने उल्टे सवाल किया कि ‘आपको यह जानकारी कहां से मिली?’

नैयर लिखते हैं कि ‘इससे खबर की और भी पुष्टि हो गई.’ पर इतनी जानकारी मात्र से नैयर संतुष्ट नहीं थे. नैयर ने लिखा है ‘फिर भी मैं जोखिम उठाने के लिए तैयार हो गया.’ उन्होंने सोचा कि ज्यादा से ज्यादा एक बार फिर जेल ही न जाना पड़ेगा. जेल से एक बार हो ही आए थे. दरअसल एक बार जेल से हो आने के बाद नैयर में विपरीत स्थिति को झेलने के लिए आत्मविश्वास पैदा हो गया था.

18 जनवरी, 1977 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के सभी संस्करणों में मोटे-मोटे अक्षरों में यह खबर प्रमुखता से छपी. उन दिनों इन पंक्तियों के लेखक को भी इसी खबर से लग गया था कि अब देश की राजनीतिक स्थिति बदलेगी. खैर उधर प्रेस सेंसरशिप अफसर ने नैयर को फोन कर के कहा कि ‘मुझे इस खबर का खंडन करने के लिए कहा गया है.’

कुलदीप नैयर का हाल ही में 95 वर्ष की आयु में निधन हो गया

प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक घोषणा कर दी कि मार्च में लोकसभा के चुनाव होंगे

उस अफसर ने यह भी कहा कि ऐसी खबर देने पर आपकी दोबारा गिरफ्तारी भी हो सकती है. पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. न तो खंडन और न ही गिरफ्तारी. उधर प्रधानमंत्री ने 23 जनवरी को यह सार्वजनिक घोषणा कर दी कि लोकसभा के चुनाव मार्च में होंगे.

आपतकाल में ढील दी गई. अधिकतर राजनीतिक कैदी रिहा कर दिए गए. चुनाव हुए और रिजल्ट एक इतिहास बन गया. संजय गांधी और इंदिरा गांधी तक अपनी सीटें हार गए. पर एक इतिहास पत्रकार कुलदीप नैयर के नाम भी लिख गया जिनका इसी महीने निधन हो गया.

‘अमरिंदर सिंह को शर्म आनी चाहिए, एक सिख होने के नाते उनको चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए.’ हरसिमरत कौर

 

1984 के सिख दंगों पर पंजाब के सीएम अमरिंदर सिंह के बयान पर अकाली दल की नेता हरसिमरत कौर बादल आगबबूला हो गई हैं. उन्होंने कहा, ‘अमरिंदर सिंह को शर्म आनी चाहिए, एक सिख होने के नाते उनको चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए.’

बता दें कि रविवार को अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल पर भड़कते हुए अमरिंदर सिंह ने कहा था, ‘1984 के दंगों को लेकर राहुल गांधी पर हमला करना अनुचित है, क्योंकि राहुल उस समय बच्चे थे और स्कूल में पढ़ते थे’ दरअसल कुछ समय पहले राहुल ने कहा था, ‘1984 के दंगों में कांग्रेस संलिप्त नहीं थी.’

वहीं सुखबीर सिंह बादल ने कहा था कि 1984 के दंगों में राहुल गांधी भी भागीदार थे. अमरिंदर ने सुखबीर के इस बयान को मूर्खतापूर्ण बताया था और कहा था कि राहुल पर इस मामले में आरोप लगाना सुखबीर की राजनीतिक अपरिपक्वता को दर्शाता है.

इसके अलावा हरसिमरत कौर ने कैलीफोर्निया में दिल्ली सिख गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमेटी के अध्यक्ष मनजीत सिंह पर हुए हमले का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा, ‘हमने सोमवार को यूएस राजदूत से मुलाकात की है, उन्होंने आश्वासन दिया है कि इस मामले में कड़ी कार्रवाई होगी और पीड़ित को पूरी मदद की जाएगी.’

आज का paanchaang

🌷🌷🌷पंचांग🌷🌷🌷
27 अगस्त 2018, सोमवार
paanchaang
विक्रम संवत – 2075
अयन – दक्षिणायन
गोलार्ध – उत्तर
ऋतु – शरद
मास – भाद्रपद
पक्ष – कृष्ण
तिथि – प्रतिपदा
नक्षत्र – शतभिषा
योग – सुकर्मा
करण – बालव

राहुकाल:-
7:30 AM – 9:00 AM

🌞सूर्योदय – 06:00 (चण्डीगढ)
🌞सूर्यास्त – 18:48 (चण्डीगढ)
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चोघड़िया मुहूर्त- एक दिन में सात प्रकार के चोघड़िया मुहूर्त आते हैं, जिनमें से तीन शुभ और तीन अशुभ व एक तटस्थ माने जाते हैं। इनकी गुजरात में अधिक मान्यता है। नए कार्य शुभ चोघड़िया मुहूर्त में प्रारंभ करने चाहिएः-
दिन का चौघड़िया (दिल्ली)
चौघड़िया प्रारंभ अंत विवरण
अमृत 05:56 07:33 शुभ
शुभ 09:09 10:46 शुभ
लाभ 15:35 17:12 शुभ
अमृत 17:12 18:48 शुभ

रात्रि का चौघड़िया (दिल्ली)
चौघड़िया प्रारंभ अंत विवरण
लाभ 23:00 00:21 शुभ
शुभ 01:45 03:09 शुभ
अमृत 03:09 04:33 शुभ

प्रदेश की प्राइवेट चीनी मिलों में किसानों के दो सौ करोड़ रुपए बकाया – सुरजेवाला

फ़ाइल फोटो


सुरजेवाला ने हरियाणा सरकार को दी चेतावनी कहा -सरकार प्रदेश के गन्ना किसानों के बकाया का भुगतान कराये, नहीं तो कांग्रेस उतरेगी किसानों के पक्ष में


चंडीगढ़ ::
वरिष्ठ कांग्रेस नेता और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कोर कमेटी के सदस्य रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा है की भाजपा सरकार और हरियाणा की प्राइवेट चीनी मिलों की मिलीभगत के चलते प्रदेश की प्राइवेट चीनी मिलों में किसानों के दो सौ करोड़ रुपए से ज्यादा बकाया हैं और किसान अपने हक़ को लेने के लिए दर-दर की ठोकर खाने पर मजबूर हैं।

भाजपा सरकार को आड़े हाथों लेते हुए सुरजेवाला ने कहा कि इस सरकार ने पिछले 4 सालों में सिर्फ किसानों को छलने व धोखा देने का काम किया है, जिससे अन्नदाता परेशान हैं। उन्होंने कहा कि​ आय दोगुनी करने के वायदे पर वोट हासिल कर सरकार में आयी भाजपा के राज में आय दोगुनी होना तो दूर यह सरकार चौदह दिनों में गन्ना मूल्य भुगतान के वायदों पर सरकार खरा नहीं उतर रही और उत्तरी हरियाणा के किसान पिछले तीन महीने से अपनी बकाया रकम का इन्तजार कर रहे हैं।

सुरजेवाला ने कहा कि सरकार प्राइवेट चीनी मिलों से केवल नूरा कुश्ती खेल रही है और अब उन्हें वो नोटिस देने का नाटक किया जा रहा है, जो उन्हें दो महीने पहले दे देने चाहियें थे। इस सरकार की किसान विरोधी नीतियों के कारण प्राइवेट मिलो में गन्ना डालने वाले किसान-मारे-मारे फिर रहे है। चीनी मिलें किसानों का दो सौ करोड़ रूपए दबाए बैठी हैं, पर किसान आर्थिक तंगी से जूझ रहा है।

सुरजेवाला ने कहा कि कहा कि गन्ना भुगतान के बड़े दावे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर करते हैं लेकिन झूठ की बुनियाद पर टिकी केंद्र और राज्य सरकार का किसानों के हितों से कोई सरोकार नहीं है। इस निकम्मी सरकार की उपेक्षा के कारण हरियाणा के किसानों के लिए मीठा गन्ना कड़वाहट का कारण बन गया है। उन्होंने कहा कि प्रदेश का मेहनती किसान,गन्ने की रिकॉर्ड उपज कर हमारा गौरव बढ़ाता है,पर भाजपा सरकार के किसान विरोधी राज में उनका बक़ाया रिकॉर्ड स्तर तक पहुँच जाता है। क्या मोदी जी और खट्टर जी गन्ना किसानों की सुध केवल चुनावी घोषणा के दौरान ही लेते हैं?

सुरजेवाला ने कहा कि भाजपा सरकार का गन्ना किसानों को दिया गया पैकेज महज एक दिखावा था, जिसकी कलई अब पूरी तरह से खुल चुकी है। गन्ना किसानों का आज दो सौ करोड़ रूपया बकाया है।किसान सिर से लेकर पांव तक कर्ज में डूबता जा रहा है, लेकिन भाजपा सरकार किसानों को राहत देने की बजाय अपने कुछ चुनिंदा खास उद्योगपतियों को लाखो करोड़ों का फायदा पहुंचा रही है।

सुरजेवाला ने कहा कि जनता को जात-पात के आधार पर बाँट कर असली मुद्दों से ध्यान हटाकर उनके साथ धोखाधड़ी करना और जुमले गढ़ना ही इस लूट-खसोट सरकार का मूल मंत्र बन गया है। इसका जीता जागता उदाहरण यह है कि प्राइवेट मिलों और सरकार की मिलीभगत के कारण हरियाणा के गन्ना किसानों को उनके बकाया का भुगतान नहीं किया जा रहा है।

सुरजेवाला ने हरियाणा सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि सरकार प्रदेश के गन्ना किसानों का करोडों रुपये का बकाया का भुगतान करे अन्यथा कांग्रेस पार्टी को सड़क से लेकर विधानसभा तक सरकार के खिलाफ उतरने पर मजबूर होना पड़ेगा।

यादव ओर कुशवाहा बिहार में पका रहे राजनैतिक खीर


खीर में पंचमेवा की जरूरत को अति पिछड़ा, गरीब और दलित-शोषित लोग पूरा करेंगे, खीर में चीनी शंकर झा आजाद मिलाएंगे, तुलसी दल भूदेव चौधरी के यहां से ले लाएंगे, जुल्लीफार अली के यहां के दरस्तखान ले आएंगे


अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों को लेकर सियासी समीकरण तेजी से बदल रहे हैं. एक तरफ जहां कुछ नेता पुराने गिले-शिकवे भुलाकर महागठबंधन में वापस आ रहे हैं, वहीं, कुछ नेता नई चुनावी चाल चल रहे हैं. रविवार को राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने महागठबंधन को लेकर बड़ा बयान दिया. अब राष्ट्रीय जनतांत्रिक दल (आरजेडी) नेता तेजस्वी यादव ने उपेंद्र को लेकर खुशी जाहिर की है.

तेजस्वी ने बताया पौष्टिक खीर है राजनीति की जरूरत

तेजस्वी ने ट्वीट किया, ‘नि:संदेह उपेंद्र जी, स्वादिष्ट और पौष्टिक खीर श्रमशील लोगों की जरूरत है. पंचमेवा के स्वास्थवर्धक गुण ना केवल शरीर बल्कि स्वस्थ समतामूलक समाज के निर्माण में भी ऊर्जा देता है. प्रेमभाव से बनाई गई खीर में पौष्टिकता स्वाद और ऊर्जा की भरपूर मात्रा होती है. यह एक अच्छा व्यंजन है.’

शनिवार को बीपी मंडल की 100वीं जयंती के मौके पर उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा कि यदुवंशियों (यादव) के दूध और कुशवंशियों (कोइरी) के चावल मिल जाये तो खीर बनने में देर नहीं लगती है. उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा, ‘हमलोग साधारण परिवार से आते हैं. साधारण परिवार में जिस दिन घर में खीर बनती है तो दुनिया का सबसे स्वादिष्ट व्यंजन माना जाता है. खीर में पंचमेवा की जरूरत को अति पिछड़ा, गरीब और दलित-शोषित लोग पूरा करेंगे. खीर में चीनी शंकर झा आजाद मिलाएंगे. तुलसी दल भूदेव चौधरी के यहां से ले लाएंगे. जुल्लीफार अली के यहां के दरस्तखान ले आएंगे और फिर सभी लोग मिलकर स्वादिष्ट व्यंजन का आनंद लेंगे.’

जेडीयू ने कहा, ‘कहीं खीर से शुगर की बीमारी न हो जाए’

वहीं, महागठबंधन में शामिल होने को लेकर उपेंद्र कुशवाहा के बयान पर जेडीयू ने तंज कसते हुए कहा है कि अगर उपेंद्र कुशवाहा दूध और चावल मिलाकर खीर बनाएंगे तो वह एक मीठा पदार्थ बनेगा. जिससे शुगर की बीमारी हो सकती है. जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि ऐसे में जरूरी है कि मीठा ना खाकर नमकीन खाया जाए जिससे शरीर को कोई हानि नहीं पहुंचती. यानी इशारों ही इशारों में जेडीयू ने भी उपेंद्र कुशवाहा को एनडीए में बने रहने की सलाह दी है.

सत्तलोलुप दलों द्वारा बिहार में अराजकता का माहौल बनाने की कोशिश


सत्ता का सुख भोग चुके लोग दोबारा सत्ता पाने के लिए बेचैन हैं. वो कुछ भी करने को तैयार हैं


कुछ साल पहले का एक रोचक प्रसंग है. राज्य में हुए विधानसभा चुनाव से कुछ सप्ताह पहले ‘राजा’ ने एक कड़क छवि के उभरते राजनेता को देर रात अपने आवास पर चुपके से बुलाया और कहा, ‘आप पूरे प्रदेश में घूम-घूमकर मुझे गाली दीजिए. इसके बदले जितना ‘राशन’ चाहिए आपके आवास पर पहुंच जाएगा.’ राजनेता ने ईमानदारी से अपना काम पूरा किया और दूसरी तरफ राजा ने भी अपना वचन निभाया.

चुनाव जीतने के बाद ‘राजा’ ने बताया कि ‘उनके गाली देने से मुझे बहुत चुनावी फायदा हुआ. ओबीसी और ईबीसी के मतदाता जो हमसे नाराज चल रहे थे फिर मेरे पक्ष में गोलबंद हो गए क्योंकि उन्हें लगा कि एक उच्च जाति का नेता हेलीकाप्टर घुमा-घुमाकर गाली दे रहा है. इसका मतलब है कि हमारा राजा हमारे भले के लिए जरूर कोई नेक काम कर रहा है.’

इस कर्मकांड के नायक अभी जीवित हैं पर स्वयं निष्क्रिय हैं. लेकिन लगता है कि उनकी सोच अभी भी चलन में है. ये वही नेता हैं जिन्होंने सत्तर के दशक में मात्र अपने राजनीतिक लाभ के लिए आवाज बदलकर फोन से अपने मरने की झूठी खबर राज्यभर में फैला दी थी. इनका मानना रहा है कि सियासी लाभ व सत्ता को हथियाने के लिए जायज और नाजायज पर बहस नहीं की जाती है. येन, केन, प्रकारेण कुर्सी को झपट लिया जाता है.

खुद ही मर्ज बने और खुद ही हाकिम भी

गंभीरता से विवेचना करने पर दिख रहा है कि पिछले कुछ दिनों से राज्य में घट रही हिंसक और शर्मशार करने वाली घटनाएं ऊपर वर्णित विचार और सोच से बहुत अच्छी तरह मेल खा रही हैं. सत्ता का सुख भोग चुके लोग दोबारा सत्ता पाने के लिए बेचैन हैं. वो कुछ भी करने को तैयार हैं. अपने हित को साधने के क्रम में उन्हें सही-गलत की पहचान नहीं करनी है क्योंकि यही विचार और सोच उनको ‘विरासत’ में मिली है. घटनास्थल के दर्शन करने पर स्पष्ट और प्रमाणिक सबूत मिल रहा है कि इसी सोच के महारथी लोग जनता को दर्द दे रहे हैं और हाकिम बनकर दवा देने का भी नाटक कर रहे हैं. ऐसा कर-कराके वो अपने लक्ष्य को प्राप्त करेंगे कि नहीं ये तो आने वाला समय ही बताएगा.

इसी विचार के लोगों ने भोजपुर जिला के विंहिया बाजार का आंचल 20 अगस्त को मैला किया है. लोग-बाग बताते हैं इस सोच के युवकों ने अफवाह फैलाने में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और अनुसूचित समाज की महिला को निवस्त्र करके पूर बाजार में घंटों घुमाया. अब प्रशासन भी मान रही है कि अरेस्ट किए गए 15 संदिग्धों में कई लोग इस सोच के हैं. घटना के विरोध में प्रदर्शन करने का काम भी इसी जमात के लोग कर रहे थे. विंहिया की जनता बातचीत के क्रम में बता रही है कि दोषी और विरोधी दोनों एक ही चना के दाल हैं. फिर ये विरोध और हंगामा मजाक नहीं तो और क्या है?

अराजकता का माहौल बनाने की कोशिश

अगस्त 17 को भोजपुर जिला के सहार थाना में घटी घटना के पीछे भी इसी सोच के लोगों का हाथ है. कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि एक दबंग विधायक ने सरकार को बदनाम करने के लिए चैकीदार के लड़के की हत्या पर बवंडर खड़ा करवाया और जब पुलिस लाश उठाने गई तो भीड़ जुटाकर पुलिस को पिटवाने का काम किया ताकि अराजकता का माहौल बने. एक महिला पुलिसकर्मी को भी बेदर्दी से पीटा गया. इसी भीड़ में से किसी ने तमंचे से दारोगा पर गोली दाग दी. दारोगा अभी भी अस्पताल में भर्ती हैं. घटना के दूसरे दिन वही भीड़ कानून को हाथ में लेकर सड़क जाम कर रही थी और देश और प्रदेश सरकार के खिलाफ नारा लगा रहीं थी.

उसी प्रकार, वैशाली जिला अंतर्गत जन्दाहा प्रखंड के ब्लाक प्रमुख मनीष कुमार सहनी की हत्या 13 अगस्त को दिन दहाड़े होती है. एफआईआर में रामबाबू सहनी और उनका बेटा अभय सहनी नामजद अभियुक्त बनाए गए हैं. मृतक का भाई ओम प्रकाश सहनी लिखता है कि रामबाबू के कहने पर उसका बेटा अभय सहनी पिस्टल से गोली मारता है. जनता दल यू के एमएलसी और प्रवक्ता नीरज कुमार बताते हैं कि ‘आरोपी एक राजनीतिक दल के प्रखंड अध्यक्ष हैं. अभी तक उनको दल से भी नहीं निकाला गया है.’ उनका सवाल है कि ‘कानून-व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह उठाने और चिल्लाने वाले नेताओं की मंशा क्या है?’

‘मन की बात’ का 47वां संस्करण

 

मोदी ने रविवार को आकाशवाणी अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 47वें संस्करण में देशवासियों को संबोधित करते हुए कहा कि सुशासन को मुख्य धारा में लाने के लिए देश सदा वाजपेयी का आभारी रहेगा।

प्रधानमंत्री ने कहा कि वाजपेयी ने भारत को नई राजनीतिक संस्कृति दी और बदलाव लाने का प्रयास किया। इस बदलाव को उन्होंने व्यवस्था के ढांचे में ढालने की कोशिश की जिसके कारण भारत को बहुत लाभ हुआ हैं और आगे आने वाले दिनों में बहुत लाभ होने वाला सुनिश्चित है।

उन्होेंने कहा कि भारत हमेशा 91वें संशोधन अधिनियम 2003 के लिए अटल जी का कृतज्ञ रहेगा। इस बदलाव ने भारत की राजनीति में दो महत्वपूर्ण परिवर्तन किए। पहला यह कि राज्यों में मंत्रिमंडल का आकार कुल विधानसभा सीटों के 15 प्रतिशत तक सीमित किया गया। दूसरा यह कि दल-बदल विरोधी कानून के तहत तय सीमा एक-तिहाई से बढ़ाकर दो-तिहाई कर दी गयी। इसके साथ ही दल-बदल करने वालों को अयोग्य ठहराने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश भी निर्धारित किए गए।

प्रधानमंत्री ने कहा कि कई वर्षों तक भारी भरकम मंत्रिमंडल गठित करने की राजनीतिक संस्कृति ने ही बड़े-बड़े “जम्बो” मंत्रिमंडल कार्य के बंटवारे के लिए नहीं बल्कि राजनेताओं को खुश करने के लिए बनाए जाते थे। वाजपेयी ने इसे बदल दिया। इससे पैसों और संसाधनों की बचत हुई। इसके साथ ही कार्यक्षमता में भी बढ़ोतरी हुई।

मोदी ने कहा कि यह अटल जी दीर्घदृष्टा ही थे, जिन्होंने स्थिति को बदला और हमारी राजनीतिक संस्कृति में स्वस्थ परम्पराएं पनपी। अटल जी एक सच्चे देशभक्त थे। उनके कार्यकाल में ही बजट पेश करने के समय में परिवर्तन हुआ। पहले अंग्रेजों की परम्परा के अनुसार शाम को पांच बजे बजट प्रस्तुत किया जाता था क्योंकि उस समय लन्दन में संसद शुरू होने का समय होता था। वर्ष 2001 में अटल जी ने बजट पेश करने का समय शाम पांच बजे से बदलकर सुबह 11 बजे कर दिया।

मोदी ने कहा कि वाजपेयी के कारण ही देशवासियों को ‘एक और आज़ादी’ मिली। उनके कार्यकाल में राष्ट्रीय ध्वज संहिता बनाई गई और 2002 में इसे अधिसूचित कर दिया गया। इस संहिता में कई ऐसे नियम बनाए गए जिससे सार्वजनिक स्थलों पर तिरंगा फहराना संभव हुआ। इसी के कारण अधिक से अधिक भारतीयों को अपना राष्ट्रध्वज फहराने का अवसर मिल पाया। इस तरह से उन्होंने प्राण प्रिय तिरंगे को जनसामान्य के क़रीब कर दिया। उन्होेंने कहा कि वाजपेयी ने चुनाव प्रक्रिया और जनप्रतिनिधियों से संबंधित प्रावधानों में साहसिक कदम उठाकर बुनियादी सुधार किए।

प्रधानमंत्री ने कहा कि इसी तरह आजकल आप देख रहे हैं कि देश में एक साथ केंद्र और राज्यों के चुनाव कराने के विषय में चर्चा आगे बढ़ रही है। इस विषय के पक्ष और विपक्ष दोनों में लोग अपनी-अपनी बात रख रहे हैं। ये अच्छी बात है और लोकतंत्र के लिए एक शुभ संकेत भी। मैं जरुर कहूंगा कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए, उत्तम लोकतंत्र के लिए अच्छी परम्पराएं विकसित करना, लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए लगातार प्रयास करना, चर्चाओं को खुले मन से आगे बढ़ाना, यह भी अटल जी को एक उत्तम श्रद्धांजलि होगी।

वाजपेयी के योगदान का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने गाज़ियाबाद से कीर्ति, सोनीपत से स्वाति वत्स, केरल से भाई प्रवीण, पश्चिम बंगाल से डॉक्टर स्वप्न बनर्जी और बिहार के कटिहार से अखिलेश पाण्डे के सुझावाें का जिक्र किया।

राहुल कहने के लिए कहते हैं

इन/पिछले दिनों राहुल गांधी यूरोप दौरे पर हैं, उनके साथ मनीष तिवारी ओर सैम पित्रोदा दीख पड़ते हैं।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को अक्सर अपने गांधी परिवार से आने के कारण निशाने पर रखा जाता है. साथ ही उन्हें आलोचना का भी सामना करना पड़ता है कि उनके पास एक संपन्न पृष्ठभूमि के अलावा कुछ भी नहीं है. ब्रिटेन में भी इस सवाल ने राहुल का पीछा नहीं छोड़ा. यहां राहुल गांधी से सवाल किया गया कि उनके पास गांधी सरनेम के अलावा और क्या है? राहुल ने जवाब दिया कि उन्हें सुने बिना किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहिए. उन्होंने ब्रिटेन के पत्रकारों से कहा कि उनकी ‘क्षमता’ के आधार पर उनके बारे में कोई राय बनानी चाहिए, ना कि उनके परिवार की ‘निंदा’ कर के.

कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, ‘आखिर में यह आपकी इच्छा है. क्या आप मेरे परिवार की निंदा करेंगे या आप मेरी क्षमता के आधार पर मेरे बारे में कोई राय बनाएंगे… यह आपकी पसंद है. यह आप पर निर्भर करता है, मुझ पर नहीं.’

ब्रिटेन यात्रा पर गए राहुल गांधी ने कहा कि ‘मेरे पिता के प्रधानमंत्री बनने के बाद से मेरा परिवार सत्ता में नहीं रहा. यह चीज भूली जा रही है.’

राहुल ने कहा ‘दूसरी बात, ‘हां, मैं एक परिवार में पैदा हुआ हूं… मैं जो कह रहा हूं उसे सुनें, मुद्दों के बारे में मुझसे बात करें, विदेश नीति, अर्थशास्त्र, भारतीय विकास, कृषि पर, खुलेआम और स्वतंत्र रूप से मुझसे बात करें. मुझसे जो भी प्रश्न पूछना चाहते हैं, वह पूछें और फिर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि मैं क्या हूं.’

चलिये राहुल गांधी को सुनें: 

भाजपा और आरएसएस पर अपने हमले को तेज करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि लोग अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे जनवादी नेताओं का समर्थन इसलिए करते हैं, क्योंकि वे नौकरी नहीं होने को लेकर गुस्से में हैं. भारतीय पत्रकारों के संघ से बातचीत करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि समस्या के समाधान की बजाए ये नेता उस गुस्से को भुनाते हैं और देश को नुकसान पहुंचाते हैं

डोकलाम: 

जब राहुल गांधी से डोकलाम मुद्दे पर सवाल किया गया तो उनका जवाब था, ‘चीनी सैनिक अभी भी डोकलाम में हैं और उन्होंने वहां बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे का निर्माण किया है. प्रधान मंत्री हाल ही में चीन गए और उन्होंने डोकलाम पर कोई चर्चा नहीं की… कोई यहां आ गया है, आपको थप्पड़ मारता है और आपके पास चर्चा के लिए कोई एजेंडा नहीं है.’

राहुल ने पीएम पर हमला करते हुए कहा कि अगर सरकार ने चीन की तरफ भी देखा होता तो डोकलाम जैसा मुद्दा सामने आया ही नहीं होता. डोकलाम जैसी घटना को पहले ही रोका जा सकता था.

आगे पढ़िये:

गांधी से एक युवक ने सवाल किया था कि वह चीन के साथ डोकलाम मुद्दे को कैसे सुलझाते तो वह इसका जवाब नहीं दे सके थे और कहा था कि उनके पास तथ्यात्मक जानकारी नहीं है इसलिए वह इस बारे में कुछ नहीं कह सकते हैं।

भाजपा के आईटी प्रकोष्ठ के प्रमुख अमित मालवीय ने ट्वीट किया कि जब पूछा गया “अगर आपको मौका मिलता तो आप कैसे डोकलाम मसले को किस प्रकार से सुलझाते, गांधी अचकचा गए और कहा कि उनके पास विवरण नहीं है इसलिए कुछ कह नहीं सकते।” ..तो आश्चर्य है कि आखिर वह किस आधार पर सरकार की आलोचना कर रहे थे।( या यह कह रहे हे की मुझे मेरे ज्ञान से जाँचो)

अब हमनें राहुल गांधी को सुना तो क्या निष्कर्ष निकालें, मुझे हमारे इतिहास के एक प्राध्यापक की बात याद आती है जिनसे हम कुछ प्रश्नों का उत्तर जानने गए थे, उन्होने कहा था,”मैं किसी भी बेवकूफाना प्रश्न का उत्तर नहीं दूँगा।” मुझे हंसी आ गयी ओर अज्ञानता वश पूछ बैठा “सर, प्रश्न को आपके किन मानकों पर खरा उतरना होगा?” प्रश्न का उत्तर तो नहीं मिलना था सो नहीं मिला पर फटकार अवश्य मिल गयी

जारी है:

27 अगस्त 1942 को 41.78 मीटर वेव लेंथ पर शुरू हुआ था ‘आज़ाद रेडियो’


देश को गुलामी से मुक्त कराने के लिए भारत छोड़ों आन्दोलन के दौरान क्रांतिकारियों ने 27 अगस्त से मुम्बई में भूमिगत रेडियो से ख़बरों का प्रसारण शुरू किया था जिस से अंग्रेजों में खलबली मच गई थी और खुफिया एजेंसी को इसका पता लगाने के लिए नाकों चने चबाने पड़े थे।


नई दिल्ली:

इस गुप्त रेडियो का इतिहास गत दिनों पहली बार एक पुस्तक के रूप में सामने आया है जिसमे 76 साल बाद सार्वजानिक हुए गोपनीय दस्तावेजों के साथ इसकी पूरी रोमांचक गाथा लिखी गई है। प्रकाशन विभाग द्वारा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सहयोग से प्रकाशित पुस्तक ‘अनटोल्ड स्टोरीज आॅफ ब्राॅडकास्ट’ में इस गुप्त रेडियो ‘आज़ाद रेडियो’ से 71 दिन तक प्रसारित ख़बरों को पहली बार सार्वजानिक किया गया है।

पुस्तक का लोकार्पण हाल ही में केन्द्रीय संस्कृति राज्य मंत्री डॉ महेश शर्मा एवं केंद्र के अध्यक्ष राम बहादुर राय ने किया। यह पुस्तक राष्ट्रीय कला केंद्र के अधिकारी गौतम चटर्जी द्वारा सम्पादित एवं राष्ट्रीय अभिलेखागार से प्राप्त दस्तावेजों पर आधारित है।

पुस्तक के अनुसार यह आज़ाद रेडियो 27 अगस्त 1942 को 41.78 मीटर वेव लेंथ पर शुरू हुआ था और इसका नाम कांग्रेस रेडियो था। इस रेडियो के पीछे प्रख्यात समाजवादी नेता डॉ राम मनोहर लोहिया का हाथ था और यह उनके ही दिमाग की उपज थी। इस रेडियो की शुरुआत हमारा हिंदुस्तान गीत से होती थी और अंत में वन्दे मातरम् से इसका समापन होता था।

यह रेडियो 71 दिनों तक अपना प्रसारण छह विभिन्न स्थानों से करता रहा ताकि पुलिस उसके ट्रांसमीटर को पकड़ न सके। मुम्बई के चौपाटी के सी व्यू इमारत से शुरू हुआ यह रेडियो बाद में रतन महल, अजित विला लक्ष्मी भवन पारेख वाड़ी तथा पैराडाइज बंगलो से संचालित होता रहा।

इस रेडियो को चलाने के काम में सात लोगों की टीम थी जिनमें चार गुजरात के थे। इनके नाम विट्ठल दास माधवी खखर (20), उषा मेहता (22), विट्ठल भाई कांता भाई जावेरी (28) और चंद्रकांत बाबूभाई जावेरी हैं। इसके अलावा उस ज़माने के मशहूर शिकागो रेडियो के मुख्य अभियंता जगन्नाथ रघुनाथ ठाकुर आजाद रेडियो के निदेशक और वायरलेस विशेषज्ञ नानक धर चाँद मोटवानी और 40 वर्षीय नरीमन प्रिंटर थे जो पेशे से रेडियो इंजीनियर थे।

पुस्तक के अनुसार पुलिस को इस रेडियो के प्रसारण की जानकारी मिलने पर आठ अक्टूबर 1942 से इसकी निगरानी शुरू हुई लेकिन उन्हें इसके ठिकाने का पता नहीं चल सका। नौ अक्टूबर से एक अक्टूबर तक इस रेडियो से जो कुछ भी प्रसारित हुआ उसे इस पुस्तक में हुबहू संकलित किया गया है।

मुम्बई पुलिस आयुक्त की 27 जनवरी 1943 की रिपोर्ट के अनुसार इस रेडियो का पता लगाने के लिए सीआईडी के अलावा सैन्य ख़ुफ़िया एजेंसी, नौसेना और अन्य अधिकारी लगाए गए जिसके बाद 12 नवम्बर को रात आठ बजे इस रेडियो का ट्रांसमीटर पकड़ा गया। अभिलेखागार की रिपोर्ट के अनुसार छापे में तीन ट्रांसमीटर पकड़े गए।

पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार उस समय उस ट्रांसमीटर की कीमत दस हज़ार थी। पुलिस की दबिश में ट्रांसमीटर के अलावा दो एम्लिफायर, पॉवर पैक, एक माइक्रोफोन और एक ग्रामोफ़ोन तार आदि जब्त किए गए।

विशेष जज जे लोकुर ने 14 मई 1943 को इस मुकदमे का फैसला सुनाया। अदालत में सुनवाई के दौरान उषा मेहता ने अपना कोई बयान दर्ज नहीं कराया जबकि शेष ने खुद को निर्दोष बताया। जज ने विट्ठल दास को पांच साल के सश्रम कारावास, उषा मेहता को चार साल सश्रम कारावास तथा चंद्रकान्त जवेरी को एक साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई जबकि नानक मोटवानी को आरोपों से मुक्त कर दिया गया।

इस तरह आज़ाद रेडियो की कहानी ख़त्म तो हो गई पर भारत के प्रसारण के इतिहास की अमर कहानी और आजादी की लड़ाई के एक अध्याय के रूप में दर्ज हो गई और इस रेडियो ने लाखों भारतीयों के दिलों में भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान स्वाधीनता की भावना जगाने का काम किया।

श्रावण पूर्णिमा एवं रक्षाबंधन की कोटी कोटी बधाई