भाजपा के वयोवृद्ध नेता ओर छत्तीस गढ़ के राज्यपाल बलराम जी दास टंडन नहीं रहे


छत्तीसगढ़ के राज्यपाल बलरामजी दास टंडन का मंगलवार को निधन हो गया. टंडन 90 साल के थे


छत्तीसगढ़ के राज्यपाल बलरामजी दास टंडन का मंगलवार को निधन हो गया. टंडन 90 साल के थे. उन्हें कार्डियक अरेस्ट आने पर रायपुर के मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया गया था. अस्पताल में ही इलाज के दौरान हालत बिगड़ती गई. इसके बाद अस्पताल के आईसीयू में ही अंतिम सांसे लीं.

सीएम डॉ रमन सिंह भी राज्यपाल की हालत जानने अस्पताल पहुंचे. राज्यपाल बलरामजी दास टण्डन के निधन की जानकारी सीएम डॉ रमन सिंह ने दी. सीएम डॉ रमन सिंह ने राज्यपाल के निधन पर गहरा शोक जताया है. बलरामजी दास टंडन ने 18 जुलाई 2014 को छत्तीसगढ़ में राज्यपाल पद की शपथ ली थी.

उनका पार्थिव शरीर चंडीगढ़ लाया गया। उनके पुत्र संजय टंडन ने बताया कि 16 अगस्त दोपहर डेढ़ बजे सैक्टर 25 के शमशान घाट में उनकी अंतेयष्टि की जाएगी। छतीस गढ़ के मुख्य मंत्री रमन सिंह ने राज्यपाल के निधन पर दु:ख व्यक्त करते हुये 7 दिन के राज्य शोक की घोषणा की।

सुबह करीब आठ बजे अचानक उनकी तबियत बिगड़ गई, जिसके बाद डॉक्टरों की सलाह पर उन्हें अस्पताल ले जाया गया था.

गौरतलब है कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा मार्च 2018 में जारी राजपत्र के अनुसार राज्यपालों के वेतन में वृद्धि की गई, जो 1 जनवरी 2016 से देय होगी. छत्तीसगढ़ के राज्यपाल बलरामजी दस टंडन ने बढ़ा हुआ वेतन लेने से इंकार कर दिया. राज्यपाल बलरामजी दास ने छत्तीसगढ़ के महालेखाकार को मई 2018 को पत्र लिखकर पुराना वेतनमान 1 लाख 10 हजार रुपए ही लेने की इच्छा जताई थी. इसके बाद राज्यपाल की चौतरफा तारीफ हुई और उन्होंने खूब सुर्खियां भी बंटोरी.

बता दें कि राज्यपाल बलरामजी दास टंडन का जन्म अमृतसर पंजाब में 1 नवम्बर 1927 को हुआ. अमृतसर में जन्मे बलरामजी दास टंडन ने लाहौर से स्नातक की उपाधि प्राप्त की. स्नातक करने के बाद निःस्वार्थ समाज सेवा में लगे रहे. इन्हे खेलों में भी काफी रुचि रही. कुश्ती, व्हालीबाल, तैराकी, कबड्डी के खिलाड़ी रहे. 1953 में पहली बार अमृतसर निगम से पार्षद चुने गए. कुल 06 बार अमृतसर से विधायक चुने गए. बलरामजी दास टंडन साल 1957, 1962, 1967, 1969, 1977 में विधायक चुने गए और 1975 से 1977 तक आपातकाल के दौरान जेल में रहे. साल 1997 में राजपुर विधानसभा सीट से विधायक चुने गए. 1979 से 1980 के दौरान पंजाब विधानसभा में नेता विपक्ष रहे. राज्यपाल टंडन के बेटे संजय टण्डन ने उनकी जीवनी पर एक पुस्तक ‘एक प्रेरक चरित्र’ लिखी है.

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने खुद को घोषित किया गौवंश का रक्षक, गौहत्या-गौमांस की बिक्री पर लगाया बैन


उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गौहत्या और गौमांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है. कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में गौवंश की रक्षा के लिए खुद को कानूनी संरक्षक घोषित किया है


उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गौहत्या और गौमांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है. कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में गौवंश की रक्षा के लिए खुद को कानूनी संरक्षक घोषित किया है. कोर्ट ने गाय, बछड़ा और बैलों की हत्या के लिए उनके परिवहन और उनकी बिक्री पर भी प्रतिबंध लगा दिया है. इस संबंध में दायर एक जनहित याचिका में कहा गया है कि रूड़की के एक गांव में कुछ लोगों ने साल 2014-15 में पशुओं का वध करने और मांस बेचने की अनुमति ली थी जिसका बाद में कभी नवीनीकरण नहीं हुआ.

याचिका में कहा गया है कि हालांकि, अब भी कुछ लोग गायों का वध कर रहे हैं और गंगा में खून बहा रहे हैं. यह न केवल कानून के खिलाफ है बल्कि यह गांव के निवासियों के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा है.

सड़क पर घूमते मिले आपके मवेशी तो होगी FIR

मुख्य न्यायाधीश राजीव शर्मा और न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के प्रावधानों के तहत आदेशों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए. कोर्ट ने उत्तराखंड गौवंश संरक्षण अधिनियम 2007 की धारा सात के तहत सड़कों, गलियों और सार्वजनिक स्थानों पर घूमते पाए जाने वाले मवेशियों के मालिकों के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज करने को कहा.

पशुओं को अनावश्यक दर्द और कष्ट न सहना पड़े

आदेश में कहा गया है कि मुख्य अभियंता, अधिशासी अधिकारी और ग्राम प्रधान यह सुनिश्चित करेंगे कि गाय और बैल समेत कोई आवारा मवेशी उनके क्षेत्र में सडकों पर न आए और ऐसे पशुओं को सड़कों से हटाते समय उन पशुओं को अनावश्यक दर्द और कष्ट न सहना पड़े. कोर्ट ने पूरे प्रदेश के सरकारी पशु अधिकारियों और चिकित्सकों को सभी आवारा मवेशियों का इलाज करने के निर्देश देते हुए कहा कि उनके इलाज की जिम्मेदारी नगर निकायों, नगर पचायतों और सभी ग्राम पंचायतों के अधिशासी अधिकारियों की होगी.

इसके अलावा, अदालत ने जानवरों के इलाज और उनकी देखभाल के लिए राज्य सरकार को तीन सप्ताह के भीतर अस्पताल खोलने के निर्देश भी दिए. सभी नगर निगमों, नगर निकायों और जिलाधिकारियों को अपने क्षेत्रों में गौवंश और आवारा मवेशियों को रखने के लिए एक साल की अवधि में गौशालाओं का निर्माण करना होगा.

नींबू-मिर्ची के सहारे लड़ रहे हैं सिंधिया


कांग्रेस को लग रहा है कि बीजेपी ने कुछ तांत्रिकों को अपने पाले में कर लिया है और अपने काले जादू से कांग्रेस के नेताओं को खत्म करने के लिए निकल चुके हैं


एक खबर ये निकली है कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस के नेता और पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री मान लिए गए ज्योतिरादित्य सिंधिया सूबे में नींबू और मिर्ची की माला पहनकर घूम रहे हैं.

जिन लोगों ने रामसे बंधुओं की बनाई भूतिया फिल्में 90 के दशक में सिनेमाघरों में देखने का दुर्भाग्य झेला है या फिर बाद के वक्त में बॉलीवुड की फैक्ट्री से निकली ‘फूंक’ या ‘भूत’ मार्का फिल्में देखी हैं, उन्हे पता है कि नींबू और मिर्च का मतलब होता है- जादू-टोना और शैतानी आत्माओं के खुराफात को अपने से दूर भगाना.

तो फिर आखिर, सिंधिया खुद को किस बुरी बला से बचाने की कोशिश कर रहे हैं?

नारियल फेंककर किया घोर अधर्म!

कुछ दिनों पहले सिंधिया ने एक नारियल अपनी कार के विंडो से बाहर फेंका था. यह नारियल उन्हें पन्ना में दिया गया था. बीजेपी ने कहा कि नारियल फेंक कर सिंधिया ने ‘घोर अधर्म’ किया है. जी हां, चौंकिए मत, सूबे में प्रचार अभियान ऐसी ही बेसिर-पैर की बातों के सहारे चल रहा है. बीजेपी के इस आरोप के जवाब में सिंधिया की टीम ने जवाब दिया कि नारियल में जादू-टोना करके दिया गया था, इससे सिंधिया और पार्टी को खतरा था. सो, नारियल को फेंकना ही पड़ा.

अब आपको बात समझ में आ जानी चाहिए. सिंधिया को जादू-टोने से डर लग रहा है. कांग्रेस को लग रहा है कि बीजेपी ने कुछ तांत्रिकों को अपने पाले में कर लिया है और वे तांत्रिक ‘श्रूमन द ह्वाईट’ की तरह अपने काले जादू से कांग्रेस के नेताओं को खत्म करने के लिए निकल चुके हैं जबकि ये नेता अभी चुनावी अखाड़े में भी नहीं उतरे. लेकिन जैसा कि उस मशहूर शेर में कहा गया है कि ‘हुए तुम दोस्त जिसके, दुश्मन उसका आस्मां क्यों हो’ उसी तर्ज पर यहां कहा जा सकता है कि जब दोस्त ही कांग्रेस को बर्बाद करने की काबिलियत रखते हैं तो फिर इस काम के लिए कांग्रेस को काला जादू जैसा दुश्मन तलाशने की क्या जरूरत है ?

दो दशक में पहली बार ऐसा वक्त आया है जब कांग्रेस के पास बीजेपी को हराने का अच्छा मौका है. लगातार तीन दफे सत्ता की बागडोर संभालने वाले मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए लोगों में कोई खास उत्साह का भाव नहीं है. मंदसौर में किसानों पर गोली चली, बेरोजगारी बढ़ी है, व्यापार-व्यवसाय ठहराव के शिकार हैं और बीएसपी के साथ गठबंधन होने के आसार मजबूत नजर आ रहे हैं. इन सारी बातों के कारण माहौल कांग्रेस के पक्ष में बनता दिख रहा है. लेकिन लगता है, पार्टी टेरेन्टिनो के रिजर्वॉयर डॉग्स की स्क्रिप्ट के हिसाब से काम कर रही है: आपसी विश्वास एक सिरे से गायब है और अंदरूनी तौर पर उठा-पटक करने वाले प्रतिद्वन्द्वियों को एकदम से खत्म कर देने की छुपी हुई हसरत जोर मार रही है.

कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का अलग तमाशा

सूबे के कांग्रेस महासचिव दीपक बवारिया पर जुलाई में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने हमला किया था. बवारिया ने कहा था कि केवल कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया ही मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं. पार्टी के एक कद्दावर नेता अजय सिंह के समर्थक बवारिया की इस बात से भड़क उठे. दरअसल बवारिया ने अपनी बात रीवा में कही थी जहां अजय सिंह की स्थिति मजबूत है. कांग्रेस महासचिव का बयान उन्हीं पर भारी पड़ा, लोगों को एक भद्दा सा तमाशा देखना पड़ा कि महासचिव का कुर्ता फटा हुआ है और वे उसी दशा में बदहवास बाहर निकल रहे हैं.

इसके कुछ ही दिन बाद बवारिया के सामने कांग्रेस कार्यकर्ता एकबार फिर से आपस में भिड़ गए और बावरिया से कुछ करते ना बना. कांग्रेस कार्यकर्ताओं के शोर-शराबे और सिरफुटौव्वल से परेशान बवारिया ने उन्हें सलाह दी कि वे आरएसएस के अनुशासित कार्यकर्ताओं से सीख लें. उनके ऐसा कहने से कांग्रेस का मुंह मलिन हुआ और बीजेपी के चेहरे पर चमक आई.

बीजेपी के खेमे में जैसा जोश है उससे जमीनी स्तर पर निबट पाना कांग्रेस के लिए बहुत कठिन पड़ रहा है. जन आशीर्वाद यात्रा शुरू हो चुकी है और शिवराज सिंह चौहान की सभा में बड़ी संख्या में भीड़ जुट रही है. शिवराज सिंह चौहान आत्मविश्वास से लबरेज हैं और कांग्रेस पर पुरजोर ताकत से हमला बोल रहे हैं.

दूसरी तरफ कांग्रेस समय काटने में लगी है, संसाधनों की कमी के कारण वह लंबे समय तक खर्चीला चुनाव-अभियान जारी रख पाने के काबिल नहीं. उम्मीद जताई जा रही है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अगस्त के आखिर में मशहूर ओंकारेश्वर मंदिर से अपने अभियान की शुरुआत करेंगे. इसके पहले कांग्रेस के खेमे से बस यही संदेश निकलकर सामने आ रहा है कि धींगामुश्ती आपस में ही मची है और महत्वाकांक्षाओं के जोर में कांग्रेस के नेता एक-दूसरे से भिड़ रहे हैं. ऐसे में लोग-बाग एक-दूसरे से पूछने लगे हैं कि ये लोग आपस ही में लड़ने में लगे हैं तो फिर बीजेपी को पटखनी देने की कोई योजना कैसे बनाएंगे.

भैंस के आगे बीन बजाने गए, भैंस ने खदेड़ दिया

दरअसल कांग्रेस के कार्यकर्ता जब आपस में लड़ नहीं रहे होते तो ऐसे-ऐसे करतब कर दिखाते हैं कि वह मजाक का विषय बन जाए और लोगों की बरबस ही हंसी छूट निकले. एक मुहावरा है भैंस के आगे बीन बजाय-भैंस बैठी पगुराय. तो इसी मुहावरे से प्रेरित होकर रविवार के रोज कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने यह जताने के लिए कि शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने सूबे की समस्या से मुंह फेर रखा है, एक विरोध प्रदर्शन करने की ठानी और देवास (इंदौर और भोपाल के बीच की जगह) में वे सचमुच ही भैंस ले आए, बांसुरी भी आई ताकि मतदाताओं के गुस्से का इजहार किया जा सके. अब बदकिस्मत कहिए कि विरोध-प्रदर्शन के तमाशे को कामयाब बनाने का दारोमदार जिस नायिका यानी की भैंस पर था वह ऐन वक्त पर भड़क उठी और उसने कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं को खदेड़ दौड़ाया और इस तरह नवंबर-दिसंबर में होने जा रहे चुनावी मुकाबले में उतरने से पहले ही कांग्रेस के कार्यकर्ता मैदान से बिदके घोड़े बनते नजर आए.

कांग्रेस के भितरखाने बतकही ये चल रही है कि बीएसपी, शरद यादव की अगुवाई वाले जेडी(यू), एसपी और एनसीपी के साथ महागठबंधन बनाकर बीजेपी को पटखनी दी जाए. इन दलों के नेताओं को यकीन है कि चुनाव की घोषणा होने के पहले महागठबंधन बन जाएगा. लेकिन महागठबंधन बनाने का मंसूबा अभी दूर की कौड़ी लग रहा है क्योंकि पार्टी के अलग-अलग गुट अभी आपस में ही लड़ने-भिड़ने में लगे हैं.

जादू-टोना भगाने के लिए सिंधिया भले ही नींबू और मिर्च की माला पहनकर घूमते नजर आए लेकिन चुनाव जीतने के लिए दरअसल उन्हें दबंग फिल्म के लोकप्रिय ‘आइटम सॉन्ग’ का वीडियो देखना चाहिए ताकि याद रहे कि पार्टी को आपस में जोड़ने की जरूरत है. जी हां, गीत की तर्ज पर कहें तो- फेविकोल से.

EC ने कानून ओर संविधान का हवाला दे कर एक साथ दोनों चुनावों में अपनी असमर्थता जताई


मुख्य चुनाव आयुक्त ओ पी रावत ने एक साथ चुनाव नहीं करवाने के लिए वीवीपैट मशीनों की कमी का हवाला दिया. साथ ही कहा कि इस फैसले को काफी मजबूती से इसे लागू करना होगा


देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव अभी एक साथ नहीं कराए जाएंगे। मुख्य चुनाव आयुक्त ओ पी रावत ने कहा कि एक साथ चुनाव कराने के लिए कानूनी और संवैधानिक बदलाव करने जरुरी हैं. उन्होंने कहा कि इसके लिए जनप्रतिनिधि कानून को बदलना होगा. इन बदलावों के बाद ही देश में एक साथ चुनाव संभव हैं.

उन्होंने एक साथ चुनाव नहीं करवाने के लिए पर्याप्त संख्या में वीवीपैट मशीनों की कमी का भी हवाला दिया. उन्होंने यह भी कहा कि इस फैसले (एक साथ चुनाव करवाने) को काफी मजबूती से इसे लागू करना होगा.

सोमवार को सूत्रों के हवाले से यह खबर आई थी कि केंद्र सरकार अगले साल होने वाले आम चुनाव के साथ-साथ देश के 11 राज्यों में भी विधानसभा चुनाव करवा सकती है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लंबे समय से लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की बात पर जोर देते रहे हैं. उनके मुताबिक इससे न सिर्फ ऊर्जा और समय की बचत होगी बल्कि देश हमेशा रहने वाले चुनावी मूड से भी बाहर निकलेगा.


बस यूँ ही पूछ लिया,

भाई, साहब को यह तो नहीं लग रहा की मोदी राज़ के दिन गए?

EC, बहाने भी बनाता है नहीं मालूम था। 

यूपी मदरसों में होगा ध्वजारोहण और गया जाएगा राष्ट्रिय गान

लखनऊ।

यूपी में पिछली बार की तरह इस बार भी मदरसो के लिए 15 अगस्तक का कार्यक्रम जारी किया गया है. इस कार्यक्रम में एक अहम फेरबदल करते हुए मदरसों पर इस बार वीडियोग्राफी की बाध्यता खत्म कर दी गई है. निर्देशों के अनुसार, 15 अगस्त की सुबह 8 बजे मदरसों में झंडारोहण और राष्ट्रगान होगा. इसके बाद 8 बजकर 10 मिनट पर स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की जाएगी। इस दौरान मदरसों के छात्रों की ओर से मदरसा परिसर में वृक्षारोपण, राष्ट्रीय एकता पर आधारित सांस्कृति कार्यक्रम होंगे। अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी की तरफ से यूपी के सभी मदरसों को निर्देश जारी कर दिए गए हैं।

दरअसल पिछले साल 2017 को यूपी के योगी सरकार ने सभी मदरसों में तिरंगा फहराने और राष्ट्रगान गाने का फरमान जारी किया था। जिसके बाद यूपी के मदरसों में स्वतंत्रता दिवस हर्षोल्लास से मनाया गया. सूबे की राजधानी लखनऊ, गोरखपुर और बरेली के मदरसों में झंडारोहण किया गया, साथ ही राष्ट्रगान के साथ-साथ हिंदुस्तान जिंदाबाद के नारे भी लगाए गए। राजधानी लखनऊ के फिरंगी महली मदरसे में बच्चों ने बड़े ही धूम-धाम से स्वतंत्रता दिवस मनाया. वहीं गोरखपुर के कोतवाली थाना क्षेत्र में स्थित मदरसा अंजुमन इस्लामिया में बच्चों और शिक्षकों ने सुबह राष्ट्र ध्वज फहरा कर राष्ट्रगान गया। जिसके बाद छात्रों ने देश भक्ति गीत गा कर स्वतंत्रता दिवस मनाया. यहीं नहीं, सरकारी आदेशों के तहत कार्यक्रम की वीडियो रिकॉर्डिंग भी कराई गई. इस अवसर पर मदरसे के सभी बच्चे और टीचर तिरंगे के रंग से रंगे थे। सभी के हाथों में तिरंगा लहरा रहा था और उनके सीनों पर हिंदुस्तान का बैज भी लगा था. छोटे-छोटे बच्चों के भीतर देशप्रेम का जज़्बा देखते ही बनता था, सभी बच्चे अनुशासित ढंग से अपने देश की आज़ादी का जश्न मना रहे थे।

ॐ माथुर, मेनका और वरुण की अनुपस्थिति कहती है की सब कुछ ठीक नहीं है

 

लखनऊ।

2019 के लोकसभा चुनाव की रणनीति के लिए मेरठ में दो दिनों तक बीजेपी प्रदेश कार्यसमिति की बैठक चली। इसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और सीएम योगी आदित्यानाथ सहित प्रदेश के सारे दिग्गज नेता शामिल हुए, लेकिन बीजेपी के तीन बड़े चेहरे इस बैठक में शामिल नहीं हुए, जिन्हें लेकर सवाल उठने लगे हैं। मोदी सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी, सुल्तानपुर से सांसद वरुण गांधी और यूपी के प्रभारी ओम माथुर के नदारद रहने पर सियासी गलियारों में सुगबुगाहट तेज हो गई है। बता दें कि इस बैठक के पहले से बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और यूपी प्रभारी ओम माथूर किसी भी कार्यक्रम में नजर नहीं आ रहे हैं. इन नेताओं के शामिल न होने के राजनीतिक मायने निकाले जाने लगे हैं. यूपी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष डा. महेंद्र नाथ पांडेय नेने बताया कि मेनका गांधी और वरुण गांधी ने हमें पहले सूचित किया था कि उनको व्यक्तिगत कार्यों से यूपी के बाहर जाना है। इसी कारण दोनों लोग बैठक में शामिल नहीं हो पाए।

नेताओं के बैठक में शामिल नहीं होने के सवाल पर समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम ने बताया कि मीडिया के माध्यम से ही सूचना मिलती है कि वरुण गांधी को लेकर पार्टी में कुछ ठीक नहीं चल रहा है। वहीं प्रदेश अध्यक्ष ने दावा किया कि 2019 के चुनाव में बीजेपी का उत्तर प्रदेश से सफाया हो जाएगा क्योंकि इन लोगों का भंड़ाफोड़ हो चुका है। उन्होंने कहा कि यूपी की जनता सब समझ चुकी है, जिसका जवाब आगामी 2019 के लोकसभा चुनाव में देगी। बीजेपी पर हमला बोलते हुए यूपी कांग्रेस के प्रवक्ता हिलाल नकवी ने दावा करते हुए कहा, 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में एक बड़ी टूट होनी है। नकवी ने कहा कि वरुण गांधी और मेनका गांधी का नाम तो जग जाहिर है। इसके अलावा अपना दल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी से गठबंधन तोड़ सकते हैं। हिलाल नकवी ने बताया कि ये बीजेपी के टूट की शुरुआत है क्योंकि इनके लोगों को अब मालूम हो चुका है कि 2019 में दोबारा देश में मोदी की सरकार बनने वाली नहीं है।

इससे पहले विधानसभा चुनाव में भी वरुण ने खुद को पार्टी के प्रचार से अलग रखा था। बीजेपी ने भी उन्हें ज्यादा तवज्जो नहीं दी थी। इसके बाद से ही वरुण गांधी यूपी में बीजेपी के किसी मंच पर दिखाई नहीं दिए। वरुण गांधी के साथ-साथ क्या उनकी मां मेनका गांधी भी पार्टी से नाराज है? ऐसे में मेनका गांधी के मेरठ की प्रदेश कार्यकारिणी में शामिल न होने से कई सवाल खड़े हो रहे हैं। वरुण को पार्टी में साइडलाइन किए जाने के चलते उनके अंदर भी नाराजगी है या फिर कोई और वजह है?

यूपी प्रभारी ओम माथुर अब यूपी के किसी कार्यक्रम में दिखाई नहीं देते हैं। बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से वे काफी कम दिखाई दे रहे हैं। कहा जा रहा है कि यूपी की नीतियां हो या संगठन का कामकाज, नजरअंदाज किए जाने से ओम माथुर आहत हैं और वे खुद यूपी प्रभारी का पद छोड़ने की पेशकश कर चुके हैं।

जवाबी गोलीबारी में पाक की संतरी पोस्ट और 2 जवान ढेर

 

श्रीनगर : उत्तरी कश्मीर के टंगडार(कुपवाड़ा) सेक्टर में भारतीय जवानों ने मंगलवार को पाकिस्तानी सेना द्वारा किए गए संघर्ष विराम के उल्लंघन का मुहतोड़ जवाब दिया है. सेना पाकिस्तान की अग्रिम निगरानी चौकी को तबाह कर दिया है. साथ ही उसके दो सैनिकों को भी मार गिराया है.

जानकारी के अनुसार, पाकिस्तानी सैनिकों ने मंगलवार सवा सात बजे के करीब टंगडार सेक्टर में एलओसी के साथ सटी भारतीय सेना की अनिल, चेतक और ब्लैक रॉक चौकियों व उनके दायरे में आने वाली अग्रिम नागरिक बस्तियों को निशाना बनाते हुए हलके और मध्यम दर्जे के हथियारों से निशाना बनाया.

शुरू के 15 मिनट तक भारतीय जवानों ने इसे महज उकसावे की कार्रवाई मानकर संयम रखा. लेकिन जब गोलाबारी की तीव्रता बढ़ी और गोले नागरिक  बस्तियों में गिरने लगे तो भारतीय जवानों ने भी जवाबी कार्रवाई की. अधिकारियों ने बताया कि आठ से नौ बजे के बीच दोनों  तरफ से भीषण गोलाबारी हुई.

इस दौरान भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना की एक अग्रिम निगरानी चौक जिसे संतरी पोस्ट कहा जाता है, को तबाह कर दिया है. रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता  राजेश कालिया ने जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तानी सेना की एक निगरानी चौकी तबाह होने और दो पाकिस्तानी सैनिकों के मारे जाने की पुष्टि की है. फ़िलहाल दोनों तरफ से एक दूसरे के ठिकानों पर रुक-रुककर गोलीबारी जारी है. टंगडार सेक्टर में भारतीय सैन्य और नागरिक ठिकानों को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचा है.

3 राज्यों में विधान सभा चुनाव जीत सकती है कांग्रेस पर लोक सभा चुनाव भाजपा के पक्ष में


एबीपी न्‍यूज और सी-वोटर के ओपिनियन पोल में हालांकि यह बात भी निकल कर सामने आई है कि अगले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के चलते बीजेपी इन तीनों राज्‍यों में कामयाबी पा सकती है

हरियाणा इस सूची में अगला राजी साबित होगा


इस साल के अंत में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्‍थान में होने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस बाजी मार सकती है. वर्तमान में तीनों ही राज्यों में बीजेपी सत्ता में है. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में पिछले 15 वर्षों से बीजेपी की ही सरकार है. इस बार तीनों सूबों में बीजेपी को बड़ा झटका लग सकता है.

हालांकि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी लहर के चलते बीजेपी इन तीनों राज्‍यों में कामयाबी पा सकती है. एबीपी न्‍यूज और सी-वोटर के ओपिनियन पोल में यह बात सामने आई है.

इस सर्वे में कहा गया है कि राजस्‍थान, मध्‍य प्रदेश और छत्‍तीसगढ़ में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिलेगा. एमपी में उसे 230 में से 117 सीटें, राजस्‍थान में 200 में से 130 सीटें और छत्‍तीसगढ़ में 90 में से 54 सीटें मिलेंगी. वहीं बीजेपी 106 (एमपी), 33 (छत्‍तीसगढ़) और 57 (राजस्‍थान) सीटों पर सिमट जाएगी.

इन राज्‍यों में जीत कांग्रेस के बड़ी कामयाबी होगी और लोकसभा से पहले उसके हौसले बुलंद हो सकते हैं. देश की यह सबसे पुरानी पार्टी अभी केवल 4 राज्‍यों में सत्‍ता में हैं. अगले साल के आम चुनाव से पहले इन राज्‍यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को सत्ता का सेमीफाइनल माना जा रहा है. इन तीनों राज्‍यों में कुल मिलाकर 65 लोकसभा सीटें हैं.

एबीपी न्‍यूज और सी-वोटर के इस सर्वे में 28 हजार लोगों ने हिस्‍सा लिया.

इन्‍होंने राज्‍य और केंद्र के लिए अलग-अलग पार्टियों को वोट देने की बात कही. राज्‍य में जहां सत्‍ता बदलने की बात कही तो केंद्र में वर्तमान सरकार को ही दोहराने पर सहमति दी. प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी पहली पसंद रहे. कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी दूसरे नंबर पर रहे लेकिन उन्‍हें काफी कम वोट मिले.

राजस्‍थान

एबीपी न्यूज-सी वोटर के सर्वे में यहां कांग्रेस को सबसे ज्‍यादा फायदा होते दिखाया गया है. पार्टी को 51 फीसदी वोट मिलने का अनुमान लगाया गया है जबकि बीजेपी को 37 प्रतिशत वोट मिलने की बात कही गई है. अगर ऐसा हुआ तो यह नतीजा 2013 के चुनावों से एकदम उलट होगा जब बीजेपी को 163 सीटें मिली थी. मुख्‍यमंत्री पद के लिए कांग्रेस के अशोक गहलोत सबसे लोकप्रिय चेहरे के तौर पर उभरे हैं. उन्‍हें 41 प्रतिशत लोगों ने वोट किया. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट को 18 प्रतिशत लोगों ने ही पसंद किया. वहीं लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी को 47 प्रतिशत वोट मिलने का अनुमान है. कांग्रेस 43 प्रतिशत वोट हासिल कर सकती है.

मध्‍य प्रदेश

चुनाव में यहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को 15 साल के सत्‍ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ सकता है. सर्वे में कांग्रेस को 42 और बीजेपी को 40 प्रतिशत वोट मिलने की संभावना जताई गई है. लोकसभा की बात करें तो बीजेपी को 46 और कांग्रेस को 39 प्रतिशत वोट मिल सकते हैं. पीएम पद के लिए नरेंद्र मोदी को 54 और राहुल को 25 प्रतिशत लोगों ने यहां पसंद किया है.

छत्‍तीसगढ़

साल 2000 में मध्य प्रदेश से अलग होकर बने इस राज्‍य में वोट शेयर के लिहाज से दोनों दलों में कड़ा मुकाबला रहेगा. कांग्रेस को 40 तो बीजेपी को 39 प्रतिशत वोट मिलने का अनुमान जताया गया है. इस लिहाज से राज्य की 90 विधानसभा सीटों में से 54 कांग्रेस जीत सकती है जबकि बीजेपी के खाते में महज 33 सीटें आ सकती हैं.

BJP ally Shiv Sena dismisses Narendra Modi’s media interviews as ‘propaganda’

 

Mumbai: In its first reaction to Prime Minister Narendra Modi’s published interview, BJP ally Shiv Sena on Monday described it as “akin to sheer propaganda”. “The reporters sent questions to the PMO, which sent written replies. Many have treated it as an an interview. In other words, it is propaganda,” the Sena said in ‘Saamana‘ and ‘Dopahar Ka Saamana,’ the party’s mouthpieces.

“The incumbent Prime Minister seems to have ended this tradition. He answers what he deems proper and the interviews are published accordingly,” the Sena said in a commentary. It noted that in the interview, the Prime Minister indicated that seven million jobs were created in one year, of which 4.5 million came up between September 2017 and April 2018. “The implication is that by 2019, double and triple number of jobs will be created, the PM feels,” the Sena pointed out.”It happens in China, Russia and Communist countries, a case of one-sided dialogue,” it added. The Sena pointed out how, in a direct interview, many questions could have been asked and any “fake statement” would have been detected by the interviewer. “That much freedom must be allowed to journalists.

“If the interview had been conducted face-to-face, the journalist would have got the opportunity to ask supplementaries such as in which sectors these jobs have been created and how to verify (the claims). “If so many jobs have indeed been created, then why do unemployed youths rampage on the streets for employment and job reservations?” it asked.

It said barely two years ago after demonetization, there were huge job losses, both in the organized and unorganized sectors. “Mumbai’s core job-creating sectors such as construction, production and service industries now resemble a desert,” the Sena said. “In the recent (Maratha) agitation, over 500 factories were attacked in Aurangabad and Pune, thanks to the government’s policies,” it said.

“In the past four years, the PM did not hold a single press conference, but expressed his mind through (radio program) Mann Ki Baat which the media reported, but it brought no laurels to Modi,” Saamna said. “Before the (2014) elections, Modi was a friend of the media, but after becoming the PM, he has retreated into a cage… If this continues, then many journalists may lose their jobs.”

Khalid shot at; may be focus crisis


Earlier on Monday, JNU student activist and infamous ‘anti-national’ Umar Khalid was shot at outside the Constitution Club in New Delhi. Although Khalid escaped the attempt unscathed, he narrated, in vivid and harrowing detail, how he was confronted by a band of men at a tea kiosk outside the club, one of whom, an unidentified man in a white shirt, was carrying a gun. Khalid tussled with the assailant in his struggle to overpower him; eventually, with the help of Khalid’s friends at the kiosk, this was accomplished and the man escaped, dropping his gun in the process.

This was, however, not before a shot was said to have been unsuccessfully fired at Khalid. The police are now attempting to verify if this aspect of the incident was true.

Khalid, who looked characteristically undeterred in his expression, spoke of the force of his sentimentality when the gun was first pointed at him – he felt, Khalid said, that his moment, like Gauri Lankesh’s, had arrived. Yet, for Khalid, this was but a manifestation of what he has been threatened with ever since the so-called JNU incident in February 2016, in which Khalid was arrested for his participation in a gathering commemorating, in mourning, the death of Afzal Guru. Death threats have come from innumerable quarters, from passersby in the streets to showmen in television newsrooms.

It is noteworthy that Khalid was at the Constitution Club, a mile or so away from Parliament, to attend a public discussion titled Khauf se Azaadi, an event organised under the auspices of the United Against Hate collective. The event bemoaned the loss of freedom from fear under the present political dispensation, featuring panelists such as Prashant Bhushan, Professor Apoorvanand, Najeeb Ahmed’s mother Fatima Nafees, Rohit Vemula’s mother Radhika Vemula, and Dr Kafeel Khan. In the attack on Umar Khalid’s life at an event against fear and for freedom, the act is the message.

File image of JNU student activist Umar Khalid. News18

File image of JNU student activist Umar Khalid. News18

Political establishments and liberal regimes have historically been suspicious of the figure of the student whose conformity has been seen, in many ways, as constitutive of the society and the nation. The student, at the cusp of working adulthood and only a moment away from childhood, is conceptualised as a resource to be delivered into appropriate lines of labour, gender, class, and citizenship. This is why the public university, or the nation, demands an apolitical studentship which does not disobey, let alone agitate and protest. If the student refuses conformity, every transgression is punishable, usually by hauntingly juridical means. In this history, India’s colonial and postcolonial governments have all been complicit – students have, for the crime of dissenting, been water-cannoned, lathi-charged, jailed, even killed. One needs only to remember Indira Gandhi’s political emergency, a spectacle as harrowing as our present circumstance.

Yet, rarely in India has fear – and the enormity of threat not only to the dissenting student, but anyone dissenting – been as palpable and potent. Ever since the present government came to realise that it faces a sizeable student representation against its ideological work and apparatus, it has taken peculiar delight in denuding both the student and his/her world. This has been evident in the affront against the public university, whose days in the country seem painfully numbered.

To dissent is now to be anti-national, and to be anti-national is to be criminal beyond recourse or pardon. Persecution is awarded not only on social media where abuse, ‘trolling,’ and threats of murder and rape are routinely issued by foot-soldiers of what looks like a deeply ideological regime, but also on the streets where, as Umar Khalid found out, life hangs in precarious balance. In the dispensation’s crudely careful silence on rapidly mushrooming instances of lynching by the power of the mob, there is the template of a politics which thrives in a culture of fear and political alienation. This is what emboldens and empowers ‘unidentified’ men of disparate calling but singular political motivation to take the law, and the life of another, into their hands.

The unsuccessful attack on Umar Khalid, in consonance with the successful attacks on Gauri Lankesh, MM Kalburgi, Govind Pansare, and many others, is reflective of a tragic poignancy. It unfolds the complicity of the political establishment, but more widely, of those in newsrooms, auditoria, even classrooms who perpetuate fear and acerbic hatred with brazen ignorance and impunity, of those, like so many of us, who will choose to look away. That a student, dissenting or otherwise, is shot at near Parliament and two days before the nation commemorates its independence is a commentary both on us and the nation.