कर्पूरी ठाकुर, क्या यूपी में भाजपा की नैया पार लगा पाएंगे
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी यूपी में महागठबंधन होने की स्थिति में ओबीसी समुदाय के बीच कर्पूरी ठाकुर की लोकप्रियता को भुनाना चाहती है
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और ‘गुदड़ी के लाल’ के नाम से पुकारे जाने वाले कर्पूरी ठाकुर एक बार फिर से चर्चा में हैं. इस बार ठाकुर की चर्चा बिहार में न हो कर पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में हो रही है. गुरूवार को ही यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने ऐलान किया है कि राज्य के हर जिले में कम से कम एक सड़क का नाम कर्पूरी ठाकुर के नाम पर रखा जाएगा. केशव प्रसाद मौर्या यूपी के लोक निर्माण विभाग के मंत्री भी हैं. केशव प्रसाद मौर्या का यह ऐलान आगामी लोकसभा चुनाव के नजरिए से काफी अहम माना जा रहा है.
केशव प्रसाद मौर्या का यह बयान अति पिछड़ा वोट को बनाए रखने और आकर्षित करने का यह एक प्रयास है. राज्य में 27 प्रतिशत के पिछड़ा आरक्षण को तीन भागों में बांटने की दिशा में यह एक प्रयास है. राज्य में तीन भागों में आरक्षण को बांटने पर यह होगा कि ज्यादातर नौकरियां जो यादव और कुर्मियों को मिला करती थीं, वह अब अतिपिछड़े वर्ग को भी मिलने लगेगा.
अति पिछड़ों के सबसे बड़े नेता कर्पूरी ठाकुर
जानकारों का मानना है कि उत्तर भारत में अतिपिछड़ों में कर्पूरी ठाकुर से बड़ा नेता अब तक नहीं हुआ है. ऐसे में बीजेपी इनके नाम को भुनाकर राजनीतिक लाभ लेना चाहती है और यह विशुद्ध ही बीजेपी का वोट बैंक बचाने का यह एक प्रयास है.
यूपी में कर्पूरी ठाकुर को याद किए जाने के और भी कई कारण हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी यूपी में महागठबंधन होने की स्थिति में ओबीसी समुदाय के बीच कर्पूरी ठाकुर की लोकप्रियता को भुनाना चाहती है. कर्पूरी ठाकुर को बिहार में अत्यंत पिछड़ी जातियों का मसीहा माना जाता है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी हाल के कुछ वर्षों में कर्पूरी ठाकुर के रास्ते पर ही चलते दिखे हैं. नीतीश कुमार ने भी गैर यादव ओबीसी वोटर्स का एक समूह तैयार किया है, जो आज भी उनके कोर समर्थक माने जाते हैं.
माना जा रहा है कि बीजेपी के अंदर एसपी और बीएसपी महागठबंधन को लेकर खलबली मची हुई है. पिछले कुछ दिनों से इसकी सुगबुगाहट से ही बीजेपी नेताओं में खलबली मची हुई है. बीजेपी यह जानती है कि सवर्णों का साथ है, लेकिन राजनीतिक नजरिए से सवर्ण सबसे बड़े भगोड़े भी होते हैं. जबकि, यूपी में ओबीसी बीजेपी के कोर वोटर्स रहे हैं. अगर एसपी और बीएसपी का गठबंधन बनेगा तो इस वर्ग में सेंध लगेगी. ऐसे में बीजेपी कर्पूरी ठाकुर जैसे उन तमाम नेताओं को याद करेगी, जिसको एसपी और बीएसपी ने अपने शासनकाल में भुला दिया था. इससे अतिपिछड़ा वर्ग में पार्टी की छवि बेहतर होगी.
अमित शाह के लखनऊ दौरे के साथ शुरू हुई जातिगत समीकरण को साधने की शुरुआत
बता दें कि यूपी में जातिगत समीकरण को साधने की शुरुआत बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के पिछले लखनऊ दौरे के दौरान ही शुरू हो गई थी. अमित शाह ने यूपी सरकार के सभी मंत्री और विधायकों से कहा था कि समाज के निचले तबके तक पहुंचकर सरकार की जनलाभार्थ योजनाओं का प्रचार-प्रसार करें.
जहां तक कर्पूरी ठाकुर के नाम का सहारा लेने का मतलब है, इससे साफ होता है कि पिछले कुछ चुनावों में यूपी में बीजेपी को गैर यादवों का जबरदस्त वोट मिला था. दूसरी तरफ बीजेपी यादवों को भी नाराज नहीं करना चाहती है. मौर्या, कुशवाहा और कुर्मी के वोट भी बीजेपी को लगातार मिलते रहे हैं.
जानकार मानते हैं कि महागठबंधन की बात से ही बीएसपी के कोर वोटर्स एसपी के कोर वोटर्स से ग्राउंड लेवल पर चिढ़ते हैं. ऐसे में अगर महागठबंधन होता है तो ये वोटर्स बीजेपी के साथ आ सकते हैं. उन सीटों पर महागठबंधन को नुकसान होगा जिन-जिन सीटों पर दोनों के वोटर्स आपस में चिढ़ते हैं. महागठबंधन से नाराज वोटर्स तब विकल्प के तौर पर बीजेपी को चुन सकते हैं.
यूपी की जातिगत समीकरण की बात करें तो सारे ओबीसी जरूरी नहीं कि यादवों से नाराज हों या दलितों में कुछ जाटव से नाराज रहते हैं. उन जातियों को अपनी तरफ खींचने के लिए बीजेपी की राजनीतिक चाल है. नाई, धोबी, कहार जैसी छोटी-छोटी जातियों पर बीजेपी की नजर है और 2019 में इनका वोट बीजेपी के लिए निर्णायक साबित सकता है.
कर्पूरी के फॉर्मूले पर अबतक सीएम बने हुए हैं नीतीश
बिहार में अतिपिछड़ा वर्ग में कर्पूरी ठाकुर को मसीहा के तौर पर याद किया जाता है. बिहार में नाई जाति का एक प्रतिशत से भी कम वोट होने के बावजूद ठाकुर बिहार में तीन-तीन बार मुख्यमंत्री बने. कर्पूरी ठाकुर के ही फॉर्मूले को नीतीश कुमार अपनाकर अब तक मुख्यमंत्री बने हुए हैं. अब यही कोशिश यूपी में भी की जाने वाली है.
बिहार में कर्पूरी ठाकुर को करीब से जानने वाले कई पत्रकारों का मानना है कि ठाकुर जैसा ईमानदार नेता आजतक हमने अपनी जिंदगी में नहीं देखा है. यूपी में कर्पूरी ठाकुर को लेकर जिस तरह की बात सामने आ रही है उससे जरूर कुछ न कुछ राजनीतिक महत्वाकांक्षा हो सकती है. कर्पूरी ठाकुर का प्रभाव बिहार से सटे पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई भागों में है ऐसे में बीजेपी इसको भुना सकती है.
बता दें कि कर्पूरी ठाकुर ने ही साल 1978 में बिहार में सबसे पहले सरकारी नौकरियों में 26 प्रतिशत आरक्षण लागू किया था. इसमें 12 प्रतिशत अतिपिछड़ों के लिए सुरक्षित किया था. 8 प्रतिशत पिछड़ों के लिए. बिहार के सीएम नीतीश कुमार अब भी अगर आरक्षण लागू करते हैं तो अतिपिछड़ों को ज्यादा और पिछड़ों को कम आरक्षण देते हैं. इसी का नतीजा है कि बिहार में नीतीश कुमार का यह एक वोट बैंक बन गया है, और जिसके बल नीतीश इतने दिनों से शासन चला रहे हैं. अब यही काम यूपी में बीजेपी सरकार करना चाह रही है.
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